खंडवा से जब हम बैतूल आये तब मन न जाने कैसा -कैसा हो गया.ऐसा लगा जैसे दिल को किसी ने मुठ्ठी में भींच दिया हो.युवावय की प्यारी सहेलियां जिनसे हर बात ,हर भावना साझा की जाती थी उन्हें छोड़ कर जाना ऐसा था जैसे अपने प्राण छोड़ कर शरीर कही और ले जाना। पर उस समय की सबसे बड़ी खासियत ये थी कि, उस समय टेलीफोन हर घर में नहीं था। संपर्क का एक ही साधन था पत्र। हाँ दिन में स्कूल कौलेज होते थे ,इसलिए पोस्टमेन का इन्तजार नहीं किया,लेकिन घर आते ही मेरी निगाहें अपने पढ़ने की टेबल पर घूमती जहां मेरे आये ख़त रखे होते थे। फिर तो खाना -पीना भूल कर जब तक दो-चार बार उन्हें पढ़ न लूं चैन नहीं आता था। अब एक पेज के पत्र से मन भी नहीं भरता था,३-४ पेज के पत्र रात को १२-१ बजे तक बैठ कर लिखे जाते थे,जिन्हें लिखते हुए खुद ही हंसती थी खुद ही सोचती थी ये पढ़ कर मेरी सहेलियां क्या-क्या बाते करेंगी ?मेरी इंदौर वाली सहेली के पत्र आने अब बंद हो गए थे। या कहना चाहिए उसके दायरे बदल गए थे,उनका भी इंदौर से तबादला हो गया था ,पर मुझे मालूम था की वहां से वो अजमेर गए है। तो एक दिन उसे याद करते -करते अजमेर उसके पापा के ऑफिस के पते पर ऑफिस इंचार्ज के नाम एक पत्र लिख दिया। की फलां-फलां व्यक्ति इंदौर से ट्रान्सफर हो कर इस साल में वहां आये थे अब वे कहाँ है उनकी जानकारी दे। बस उस पत्र में अंकल को अपना परिचित मित्र लिखा । अब ऑफिस इंचार्ज की भलमनसाहत देखिये की उन्होंने भी लौटती डाक से उनकी जानकारी दे दी पर मेरे संबोधन के हिसाब से अन्तेर्देशीय के ऊपर मेरा नाम लिखा "श्रीमती कविता ",हमारे पत्र पापा के ऑफिस में आते थे वहां से पापा घर भेज देते थे,तो में डाकिये के इन्तजार के बजाय चपरासी का इंतज़ार करती थी। जब वो पत्र ले कर आया तो वह खुला हुआ था,देख कर बड़ा गुस्सा आया,पापा ने पत्र क्यों खोला, पर जब पत्र पर अपना नाम पढ़ा तो खुद ही हंसी आ गयी . phir ye bhee sochaa ki patra khol kar padh lene tak paapa ka blood presure kitana badh gaya hoga............ बाकी अगले अंक में
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बेहतरीन प्रस्तुति...धन्यवाद ..
ReplyDeletePURANE DOST KO DHOONDNA AUR PHIR USSE MILNA KITNA ACHHA LAGTA HAI, YEH MEIN SAMAJHTA HOON... MEIN NE BHI APNE DHANBAD(JHARKHAND) SE BHICHDE DOST KO GAUHATI(ASAM) SE DHOONDH NIKALA... PHIR YE SILSILA TOOTA NAHI HAI!
ReplyDeleteDIL KO CHOO JANI WALI POST !
अच्छा लगा यह पोस्ट पढ़ना। एस.एम.एस. के जमाने में चिट्ठियों के जमाने याद आ गये।
ReplyDeleteढेर सारी शुभकामनायें.
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