जिंदगी के हर कदम हर पड़ाव हर मोड़ पर ,घटनाओं को अलग अलग कोण से देखते हुए बहुत कुछ सीखा जा सकता है.सच तो यही है की हर घटना कुछ सिखाने के लिए ही होती है ओर अगर थोडा रुक कर चीज़ों को देखा जाये उन्हें महसूस किया जाये तो जिंदगी जीने का एक नया नजरिया मिलता है या आपके नज़रिए में बेहतरी के लिए कुछ न कुछ तबदीली जरूर आती है .पिछले १० दिन पर नज़र डालती हूँ तो यही महसूस होता है.एक छोटा सा निर्णय कहीं बहुत आत्मविश्वासी बना देता है तो उस डगर पर जब आत्मविश्वास डिगता है जो डर लगता है वह मजबूत ही बनाता है. वैसे भी मेरा यह मानना है की जीवन की हर घटना को सकारात्मक ढंग से लेने से हर काम सरल हो जाता है वहीँ अगर उनमे कमियां ढूँढने बैठ जाएँ तो चीज़ें कठिन हो जाती है.
करीब १० दिन पहले फ़ोन आया की मम्मी (सासु माँ )की तबियत ठीक नहीं है उन्हें अस्पताल ले गए है उम्र का तकाजा है कमजोरी भी रहती है सोचते हुए में अस्पताल पहुंची. इसके पहले पतिदेव का फ़ोन आया की क्या हुआ वो शहर से बाहर थे मैंने कहा की अभी बताती हूँ अस्पताल पहुँच कर .पता चला की उन्हें हार्ट अटक आया है.आई सी यु में है .उन्हें बहुत तेज़ दर्द हो रहा था. बार बार उठ कर बैठ जाती फिर लेटती में कभी पीठ दबाती ,तो कभी हाथ सहलाती .उस दिन उन्हें दर्द में इस तरह तड़पते देख कर बहुत तकलीफ हुई.अभी तक जिस बुढ़ापे को किताबों में पढ़ा था फिल्मों में देखा था उस की विवशता को अपने सामने इतने पास आज पहली बार देख रही थी. हाँ अपनी दादी को देखा था लकिन इस बात को समझने के लिए वह उम्र कम थी.
कुछ जरूरी इंजेक्शन दवाएं मंगवानी थी लकिन वह अस्पताल के मेडिकल स्टोर पर उपलब्ध नहीं थी .भैया उन्हें लेने बाज़ार चले गए अब अस्पताल में में मम्मी के साथ अकेली थी.इस बीच इ सी जी मोनिटर पर उनकी धड़कन जिस तरह कलाबाजियां दिखाती रही ऐसे समय में उनके पास अकेले होने का वो एहसास एक सिरहन सी भर जाती है. एक पल के लिए ये भी सोचा की क्या सच में इस समय में अकेली हूँ मम्मी की ऐसी हालत में ....एक बारगी मन हुआ की पतिदेव को फ़ोन करके कहूं की जल्दी आ जाइये लकिन इतना समय ही कहाँ था.मम्मी को किसी भी करवट चैन नहीं था कभी उठ कर बैठती तो कभी दर्द से दोहरी हो फिर बिस्तर पर लुडक जाती ओर इतनी सारी नालियां ट्यूब जो लगी थी उन्हें भी व्यवस्थित करना था. खैर बुरा समय था निकल गया दूसरे दिन ये भी आ गए .४-५ दिन अस्पताल में रह कर मम्मी घर आ गयी.
दीपावली सर पर थी स्कूल से छुट्टी तो खैर वैसे ही नहीं मिलती ओर अगर ले भी लो तो घर में मन कहाँ लगता है,कोर्स कैसे पूरा होगा की चिंता सताती है.दशहरे पर पचमढ़ी घूम आये अब दीवाली की तय्यारी ???घर की तय्यारी तो ठीक ही थी लकिन ऐन दीवाली के पहले इनका यूं ४-५ दिन छुट्टी पर होना...बिजली विभाग वालों के लिए तो दीवाली अग्नि परीक्षा होती है. हमारा दीवाली पर इनके पास जाना तय था लकिन हमें लेने आना...मतलब एक पूरे दिन का खात्मा.अब ये तो संभव ही नहीं था.फिर मैंने सोचा की में खुद ही क्यों न चली जाऊ .अब तक इतनी ड्राइविंग तो आ ही गयी है. बस कर दिया एलान की आप हमें लेने मत आना हम खुद ही आ जायेंगे.हालाँकि हाँ इतनी आसानी से नहीं हुई.हाई वे पर पहली बार गाड़ी चलाना जहाँ स्पीड ही ८० से १०० के बीच होती है .अभी तक तो ज्यादातर सुनसान सडकों पर ही गाड़ी चलती आयी हूँ उसमे भी ५ वां गेअर कभी लगाती ही नहीं हूँ. लकिन मैंने भी सोचा कभी तो पहली बार होता ही है न तो इस बार ही क्यों नहीं. बस कुछ नहीं सुना.फिर मेरे दोनों चंगु मंगू तो है ही मुझे सपोर्ट करने के लिए.
हाँ पापा आप चिंता मत करो मम्मी चला लेंगी गाड़ी हम सब आ जायेंगे. फिर हम है न साथ में .मेरी बेटियां मेरी सबसे बड़ी ताकत .पता नहीं क्यों लोग सोचते है की .....मुझे तो जीवन में आगे बढ़ने के लिए बेटियों से इतना सपोर्ट मिला है फिर चाहे बड़ी क्लास पढ़ाने से पहले खुद पढ़ना हो या पेपर बनाने में ये प्रश्न डालूँ या ये की असमंजस हो ,या क्लास की एक्टिविटी के लिए नए आईडिया चाहिए हों या किसी प्रेसेंटेशन की तय्यारी हो बस बेटियों को बताओ ओर कह देंगी हम हैं न मम्मी आप चिंता मत करो.एक बार एक मित्र से चर्चा करते हुए मैंने कहा भी था मेरी बेटियों के साथ तो में दुनिया जीत सकती हूँ ओर ये सच भी है. हाँ गाड़ी तो ले कर आ जाउंगी बस उसमे पेट्रोल आप डलवा देना .मुझे पेट्रोल पम्प पर जाना अच्छा नहीं लगता. ओर जिस तरह हंसते हुए इन्होने मुझे देखा अब क्या कहूँ गुस्सा तो आया लकिन...मैंने भी हवा में उड़ा दिया हाँ न रहने दीजिये अगर आपको नहीं डलवाना हम डलवा लेंगे.
खैर दीवाली के एक दिन पहले चौदस के दिन हमें निकलना था सुबह उठते से तय्यारी शुरू हो गयी थोडा थोडा करते इतना सामान हो गया की पीछे आधी सीट भर गयी .निकलने से पहले भगवन को भी मना लिया जैसे हंसी ख़ुशी जा रहें है वैसे ही लौटे. गाड़ी स्टार्ट करते ही बड़ी बिटिया ने कहा बाय पास से चलते है लकिन अरे नहीं बाय पास से तो में रोज़ ही जाती हूँ कह कर गाड़ी रिंग रोड की तरफ घुमा ली. अब वहां इतना ट्राफिक इतने गढ्ढे. अब क्या करते आधे से ज्यादा रास्ता तो कट ही गया.फिर एक डर मन पर हावी होने लगा अगर ऐसा ही रास्ता मिला तो??क्या वाकई इतनी दूर गाड़ी चला लूंगी?? फिर बेटियों से पूछा बेटा अपन पहुँच तो जायेंगे न?वैसे पतिदेव ने एक ट्रंप कार्ड दे दिया था ये कह कर की तुमसे जितनी दूर गाड़ी चले चला लेना फिर मुझे फ़ोन कर देना में आ जाऊंगा. लेकिन निकलते से फ़ोन थोड़े ही किया जा सकता है. अब कम से कम ५० किलोमीटर तो चले .रास्ता कुल १५० किलोमीटर का ही तो है.खैर जैसे ही नए बने हाई वे पर आये बढ़िया चौड़ी सड़क बीच में दिवाइदर सड़क देख कर मजा आ गया..बेटा ऐसी सड़क पर तो मजे से चल सकते है है न?? पता नहीं उनसे पूछा या खुद को ही तसल्ली दी लेकिन जवाब में जो उत्साह झलका उसे महसूस कर लगा अब कोई डर नहीं है.
गाड़ी चलाते हुए बहुत ज्यादा शोर शराबा न बाबा कहीं ध्यान भटक गया तो?ये बात ओर है की जब पतिदेव गाड़ी चलाते है तो पूरे समय उनसे बातें भी करती हूँ ओर जब कोई अच्छा गाना आता है तो तेज़ आवाज़ में सुनती भी जाती हूँ बच्चों के साथ मस्ती बातें लड़ाई नोक झोंक सब तो होती है लेकिन अभी...न जी बच्चे भी धीमी आवाज़ में बातें कर रहे है रेडियो भी विविध भारती ज्यादा धूम धड़ाका नहीं.
गाड़ी में ५ वां गेअर लगते हुए एक बार फिर उसी अनजान डर ने घेर लिया लगा लूं न ??कहीं स्पीड बहुत तेज़ तो नहीं हो जाएगी कहीं अचानक ब्रेक लगाना पड़ा तो?? लेकिन १० १५ किलोमीटर चलने के बाद ही समझ आ गया की ये डर बेबुनियाद है क्योंकि रोड में कहीं कोई क्रोसिंग ही नहीं है ५ वां गेअर लगाकर जब स्पीड ८० के पार पहुंची पीछे से बिटिया बोली ये मम्मी क्या बात है ऐसा स्पीड ....कहा न मेरी बेटियां मेरी सबसे बड़ी ताकत है. बस फिर क्या था पहले ५० किलोमीटर पार किये ओर पतिदेव को फ़ोन लगाया की हम मानपुर तक आ गए है. उन्होंने कहा की में खलघाट पार आ जाता हूँ...अरे क्यों??हम आ जायेंगे न नहीं पापा आप मत आओ मम्मी बढ़िया गाड़ी चला रही है. गर्व से सीना फूल गया. बेटियों ने तारीफ कर दी मतलब अब किसी की परवाह नहीं.
अचानक बायीं ओर से एक कार सररर से निकल गयी अरे ये तो दिखी ही नहीं कहाँ से आयी...फिर एक अनजाना डर कहीं में गाड़ी दूसरी लें में ले जाती इसी समय तो???जहाँ आप बेफिक्र होने लगते है वहीँ कुछ ऐसा जरूर होता है की फिर चौकन्ने हो जाएँ ऐसा सिर्फ गाड़ी चलाने में ही नहीं होता बल्कि जीवन में संबंधों में हर जगह होता है .जिस रिश्ते को ले कर आप बहुत आश्वस्त होते है वहीँ चूक हो जाती है .बस एक चूक या एक आश्वस्ति ............खैर.
अचानक बीच में सब खामोश हो गए. अरे ये क्या बेटा बातें करो ऐसे तो हमें नींद आ जाएगी ..मानपुर के आगे का घाट काट कर सड़क बिलकुल सीधी कर दी गयी है घाट से उतारते हुए कानों पार ऐसा प्रेशर पड़ा की थोड़ी देर को सबके कान सन्न हो गए. एकदम सीधा उतर वो तो अच्छा था की पहले ही सबक मिल गया था की गाड़ी ४ थे गेअर में डाल लेना .
पतिदेव का फिर फ़ोन आ गया की में आ जाता हूँ .हमें तो इसके आगे का रास्ता ही नहीं पता था .लेकिन पापा बैठेंगे कहाँ गाड़ी में तो जगह ही नहीं है .नहीं पापा हम आ जायेंगे. बेटियों ने फिर मना कर दिया. गाड़ी चलाते हुए करीब डेढ़ घंटा हो गया था .कहीं रुकने का मन हो रहा था लेकिन फिर वही गाड़ी में हम तीनो लड़कियां नहीं नहीं अकेले किसी ढाबे पार रुकना ठीक नहीं है.बच्चे कोल्ड ड्रिंक पीने का कह रहे थे लेकिन अब बाद में कह कर हम चलते रहे. लेकिन अब थकान हो गयी है पैर अकड़ गए है बेटा ऐसा करो पापा को फोन कर दो न की आ जाएँ अब तो थक गए.
पापा तो इन्तेजार में ही बैठे थे जैसे ही फोन गया वो वहां से चल दिए.तब तक हम भी रास्ता पूछते हुए आगे बढ़ चले थे .हर गाड़ी को देखते हुए इसमें पापा है क्या??आखिर ओर १० १५ किलोमीटर बाद पतिदेव मिल गए. वो ऑफिस की गाड़ी में ड्राइवर के साथ आ गए थे उनके आते ही झट से गाड़ी रोकी हाथ पैर सीधे किये ओर बगल वाली सीट संभल ली. जीवन का एक ओर नया अनुभव थोडा आत्मविश्वास जगाता हुआ थोडा डराता हुआ तो थोड़े डर को दूर भगाता हुआ.
बेटियां भी किलक उठीं पापा अब तो हम गाड़ी से लेह लद्धाख भी जा सकते है अब तो मम्मी भी बढ़िया गाड़ी चला लेती है. बस ऐसे ही अनुभव से तो जीवन में रांग बिखरते है.
आप सभी को दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनायें.
हिम्मत करो तो सब आसान हो जाता है ..सासू मां की तबियत कैसी है ??
ReplyDeleteशुभकामनाएं !!
रोमांचित कर देने वाला आलेख. मैं गाड़ी धीरे चलता हूं. एक दिन बेटे ने कहा 'पापा थोडा तो तेज़ चलाओ... हम ग्रेटर नॉएडा एक्सप्रेसवे पर थे और मैंने हिम्मत कर कार ११० की स्पीड तक ले गया... लेकिन सावधानी से...' बेटा बहुत खुश हुआ. मुझे भी हिम्मत आई... बच्चे (बेटा हो या बेटी) बल होते हैं.
ReplyDeleteबहुत रोमांचक आलेख...जिंदगी में कोई भी पहला काम मुश्किल लगता है, लेकिन एक बार शुरू कर दिया जाए तो मंजिल अपने आप आसान हो जाती है..आशा है सासू माँ की तबियत ठीक होगी.
ReplyDeletebahut hi achhe lage hauslon ke rang ... chaah lo to sab mumkin hai
ReplyDeletebadhiya.........aur sarthak aalekh!!
ReplyDeleteअगली बार मिलते हैं, लेह लद्दाख में। अब गाड़ी में एक गेयर और लगवाना पड़ेगा। :)
ReplyDeleteमन में हिम्मत हो तो कोई काम मुश्किल नहीं ..
ReplyDeleteआपका अनुभव रोचक और रोमांचक लगा .........
ReplyDeleteरोमांचित कर देने वाला आलेख
ReplyDeleteGyan Darpan
RajputsParinay
आपके लिखने की शैली इतनी रोचक है कि पूरा एक सांस में पढ़ गया। पढ़ते-पढ़ते यही भाव थे के हे भगवान सकुशल पहुंच जायं। यह आपके लेखन शैली का ही कमाल है।
ReplyDeleteजीवन की हर घटना हमें कुछ न कुछ सीखाती है। महसूस करने और समझने की आवश्यकता है।
..बहुत बधाई।
सही मे यह जीवन भी किसी गाड़ी की तरह है कभी स्पीड बढ जाती है तो कभी बहुत कम हो जाती है। बस इस स्पीड को नियंत्रित करके ही चलना पड़ता है।
ReplyDeleteआंटी जी की तबीयत का ध्यान रखिएगा।
बहुत अच्छा लगा पढ़ कर।
सादर
उत्तम प्रस्तुति, आभार
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमन में हो हौसला तो हर डगर आसान लगती है | बस इसी विशवास को बनाएँ रखें | बाकी सब समय पर छोड़ दें |
ReplyDeleteअभी तक जिस बुढ़ापे को किताबों में पढ़ा था फिल्मों में देखा था उस की विवशता को अपने सामने इतने पास आज पहली बार देख रही थी....
ReplyDeleteहाँ मैंने भी पहली बार ये विवशता देखी ....
अपने पिता श्वसुर में ...
उफ्फ......
वो बोन कैंसर से पीड़ित हैं .....
और बेहद दर्दनाक और लाचारी की अवस्था में से गुजर रहे हैं ....
वाह आपने तो कमाल कर दिया……………वैसे अपनो के साथ से ही हौसला बढता है।
ReplyDeleteTHE WAY OF INKED THE PERSONAL VIEWS OF VERY BEST.
ReplyDeleteरोमांचक आलेख.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना|
ReplyDeleteआपको तथा आपके परिवार को दिवाली की शुभ कामनाएं!!!!
जहां चाह वहां राह।
ReplyDeleteसासु मां के अच्छे स्वास्थ्य की कामना।
दीपावली की मंगलकामनाएं।
रोचक प्रेरक मनोवैज्ञानिक प्रसंग .
ReplyDeleteसोच लेने पर कार्य आसान हो जाते हैं!
ReplyDeleteसंदेशपूर्ण सकारात्मक लेख।दीपावली व नववर्ष की सपरिवार शुभकामनाएं।
ReplyDeleteदीवाली की शुभकामनाएं....
ReplyDeleteहर काम कभी ना कभी पहली बार करना ही पड़ता है....फिर हाइवे पर का चलने से अच्छा क्या हो सकता है...लेह-लद्दाख बाई रोड जाने का विचार भी काफी प्रेरक है...
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है आपने ...बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आभार ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है .बेहतरीन ...आभार
ReplyDeleteसुंदर मन की सुंदर प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteपढ़ कर अतिसुन्दर लगा ! उससे भी ज्यादा ये की परिवार के अन्दर एक संतुलन और आत्मविश्वास है ! गाड़ी चलते समय ज्यादा ही सतर्क रहें तो और अच्छा होगा ! थोड़ी सी चुक , जान लेवा हो सकती है ! देर से ही सही - दीपावली बीत गयी है -जीवन मंगलमय हो !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और बार- बार पढ़ने की जिज्ञासा जाग्रत हो रही है । मेर पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteकभी कभी गाडी चलाना सचमुच चिंता का विषय बन जाता है. बढ़िया अनुभव शेयर करने के लिये बधाई. बेटियां ज्यादा संवेदनशील होती ही हैं.
ReplyDeleteबहुत रोचक पोस्ट...एक दम जीवंत यात्रा वृतांत....वाह
ReplyDeleteनीरज
आपके पोस्ट पर आना सार्थक लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । सादर।
ReplyDeleteबहुत बढिया
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