Tuesday, August 9, 2016

कौन कहता है आंदोलन सफल नहीं होते ?


बात तो बचपन की ही है पर बचपन की उस दीवानगी की भी जिस की याद आते ही मुस्कान आ जाती है। ये तो याद नहीं उस ज़माने में फिल्मों का शौक कैसे और कब लगा जबकि उस समय टीवी नहीं हुआ करते थे। उस पर भी अमिताभ बच्चन के लिए दीवानगी। मुझे लगता है इसके लिए वह टेप रिकॉर्डर जिम्मेदार है। थोड़ा अजीब है अमिताभ बच्चन और फिल्मो की दीवानगी के लिए टेप रिकॉर्डर जिम्मेदार पर है तो है। 
बात है सन 79 की है तलवार तीर कमान ले कर कोई  क्रांति नहीं हुई थी पर क्रांति तो हुई थी। झाबुआ जिले के उस छोटे गाँव में रेडियो भी नहीं चलता था तब पापाजी ने टू इन वन खरीदा था और अपने मनपसंद गानों की लिस्ट बना कर कुछ कैसेट रिकॉर्ड करवा ली थीं। उन्हीं में से एक कैसेट में मिस्टर नटवरलाल का गाना था शेर की कहानी वाला।  जिसे पापा रोज़ सुबह से लगा कर हम बच्चों को जगाया करते थे। तो ये पहला परिचय था हमारा अमिताभ बच्चन से उनकी आवाज़ के मार्फ़त। जब वे कहते थे 'लरजता था कोयल की भी कूक से बुरा हाल था उसपे भूख से ' और 'ये जीना भी कोई जीना है लल्लू ' और तभी से वे हमारे मनपसंद हीरो थे। फेवरेट उस ज़माने में ईजाद नहीं हुआ था। 

जब हम लोग इंदौर आये तब कभी कभार टाकीज में फिल्म देखने लगे। अमिताभ बच्चन की पहली फिल्म कौन सी देखी ये तो याद नहीं पर उससे उनके हमारे दिलो दिमाग पर छाये जादू पर कोई फर्क नहीं पड़ा। उसी समय उनकी एक फिल्म आई लावारिस। 

हमारा बड़ा मन था लावारिस देखने का जिस आवाज़ को कैसेट में सुनते आये थे उसे बड़े परदे पर अपने सामने सुनने का। सुना था उसमे भी एक गाना अमिताभ बच्चन की आवाज़ में है और वो गाना रोज़ रेडियो पर सुनते थे। स्कूल में कुछ दोस्त देख चुके थे जिसकी जानकारी दोनों भाई देते रहते थे। उससे उनकी दीवानगी में इजाफा ही हुआ था। हमने पापाजी से कहा हमें लावारिस फिल्म देखना है। सुनते ही उन्होंने कहा लावारिस ये कैसा नाम है ? बेकार होगी वो फिल्म कोई अच्छी फिल्म आएगी तब दिखाएंगे। अब क्या कहते थोड़ी बहुत पैरवी की इस दोस्त ने देखी है उसने बताया है पर पापाजी को तो नाम ही पसंद नहीं आया था इसलिए साफ़ इंकार हो गया। 
फिल्म लगे काफी दिन हो गये थे जल्दी ही वह उतरने वाली थी।  एक दिन दोनों भाइयों ने सलाह की हम भूख हड़ताल करते हैं। थोड़ा मुश्किल था लेकिन फिल्म तो मुझे भी देखना थी।  अब भूख हड़ताल कोई चुपचाप तो की नहीं जाती तो बाकायदा टोपी बनाई गई तख्तियाँ बनीं उन पर भूख हड़ताल लिखा गया और पापाजी के आने से पहले हम तीनों भाई बहन बाहर वाले कमरे में पलंग पर बैठ गए। 

जब पापाजी आये छोटे भाई ने नारे लगाये जिसमे हमने साथ दिया 'पापाजी की तानाशाही नहीं चलेगी नहीं चलेगी। ' पापाजी ने एक नज़र हम सब पर डाली और अंदर चले गये मम्मी से पूछा क्या माजरा है उन्होंने बता दिया लावारिस फिल्म देखना है। उन्होंने हमसे कुछ नहीं कहा मुँह हाथ धो कर खाना खाया तब तक हम बीच बीच में चुपके से अंदर झांकते रहे पर वहाँ कोई असर होता दिख नहीं रहा था। क्रांतिकारियों के हौसले पस्त होते जा रहे थे। पेट के चूहों ने उम्मीदों को कुतर दिया था। दो चार नारे और लगे फिर हम इशारों में बातें करके अगले कदम के बारे में विचार करने लगे थे। हमने तो इतनी तैयारीं की थी और हमें अपने आंदोलन की सफलता पर पूरा यकीन था पर हाय री किस्मत। ऐसा पता होता तो कोई अगला कदम सोच कर रखते। खैर थोड़ी देर में अंदर से पापाजी की आवाज़ आई कविता प्रवीण योगेश चलो खाना खा लो और थोड़े बुझे मन से ही सही हमें अपना अगला कदम मिल गया जो किचन की ओर बढ़ रहा था। 

भरे पेट और उम्मीद से खाली हम अपने बिस्तरों पर पड़ गये। 'बुदबुदाते हुए 'ये जीना भी कोई जीना है लल्लू '
फिल्म कल उतर जायेगी आज बुधवार है उस दिन हम ये सोच कर ही स्कूल गए थे। महीना जुलाई का था या अगस्त का ये तो याद नहीं पर उस दिन मूसलधार बारिश हो रही थी। हम स्कूल से वापस आये तो देखा पापाजी घर पर हैं। पापाजी आज आप जल्दी घर आ गये ? 
क्यों हम जल्दी घर नहीं आ सकते क्या ? जल्दी से कुछ खा पी लो और तैयार हो जाओ। 
कहाँ जाना है ? 
कहा न तैयार हो जाओ। 
इशारे से मम्मी से पूछा तो पता चला फिल्म देखने छह से नौ वाले शो में।  फिर क्या था जल्दी जल्दी सब तैयार हो गए पर बारिश इतनी तेज़ थी कि मोटर साइकिल से तो जा नहीं सकते थे। तय हुआ छाता ले कर चौराहे तक जायेंगे वहाँ से ऑटो ले लेंगे। आज तो सब में राजी थे। तेज़ हवा का पानी था कुछ पैदल जाते भीगे कुछ ऑटो में। जब पहुंचे पहला गाना बस ख़त्म ही हुआ था लेकिन अमिताभ बच्चन की एंट्री हमारी एंट्री के बाद ही हुई। टाकीज में पापाजी ने गरमा गर्म कचोरियाँ खिलाई कि ठण्ड ना लगे पर हम तो फिल्म में ऐसे डूबे थे कि काँपते हुए भी परदे से नज़र नहीं हट रही थी। अंदर अमिताभ बच्चन के घूंसे चल रहे थे बाहर जोर शोर से बारिश लौटते में रात नौ बजे सड़के सुनसान हो गई थीं।  दूंढने पर भी ऑटो नहीं मिला तो हमने मार्च पास्ट शुरू किया आखिर को आंदोलन की सफलता के बाद परेड सलामी तो बनती ही है ना। 

(कौन बनेगा करोड़पति के लिए कुछ फोन मैंने भी किये थे पर करोड़ों रुपये जीतने से ज्यादा चाव तो ये किस्सा खुद अमिताभ बच्चन को सुनाने का था। अब जब लग रहा है कोई मौका नहीं बचा तो सोचा लिख ही डालूँ इस किस्से को।)
कविता वर्मा 

30 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 10 अगस्त 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बढिया संस्मरण, भूख हड़ताल हमेशा कारगर होती है। :)

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  3. बढिया संस्मरण, भूख हड़ताल हमेशा कारगर होती है। :)

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    1. भूख हड़ताल तो हो ही नहीं पाई पापाजी की एक आवाज़ से टूट गई। पर फिल्म देखने मिल गई।

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    2. भूख हड़ताल तो हो ही नहीं पाई पापाजी की एक आवाज़ से टूट गई। पर फिल्म देखने मिल गई।

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  4. वाह !! क्या बात है ..खूब बढ़िया

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  5. रोचक संस्मरण

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  6. बढिया संस्मरण, .....बहुत अच्छा लगता है बीती बातों को याद करना उनमें डूबना ...कितना अंतर दीखता है तब और अब में ...

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    1. sach me Kavita ji ..ab bachche aisi jid nahi jante ..

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  7. वाह बढिया संस्मरण। मुझे अपनी झनक झनक पायल बाजे फिल्म के लिये की मशक्कत याद आ गई।

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    1. ham apne bachpan me mashakkat ke baad hi kuchh pate the ..isliye us cheez ki kadra bhi karte the ...

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  8. वाह बढिया संस्मरण। मुझे अपनी झनक झनक पायल बाजे फिल्म के लिये की मशक्कत याद आ गई।

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  9. स्मृतियों के झरोखों से ऐसे ही आते हैं ताज़ा हवा के झोंके।रोचक संस्मरण।

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  10. स्मृतियों के झरोखों से ऐसे ही आते हैं ताज़ा हवा के झोंके।रोचक संस्मरण।

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  11. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 'वर्तमान से अतीत की ऐतिहासिक यात्रा कराती ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  12. भूख हड़ताल टूट कर भी सफल हो गई - दोनों ओर से समझौता ,बहुत अच्छा रहा .

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    1. ji ..papaji ne pahle pata kiya film kaisi hai fir dikhai ...

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  13. Badhiya sansmaran...bahut achha laga padhkar..hame bhi gane bahut pasand aate the amitabh ke ye wale.

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    1. unki awaz bahut badiya hai ...acting to khair hai hi badiya ..

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  14. वाह , , मंगलकामनाएं !

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