Wednesday, January 13, 2010

चिठ्ठियाँ ........५


खैर अब धड़कते दिल से चिठ्ठी लिखी, सहेलियों से भी सलाह ली गयी,जिन सहेलियों ने कभी कोई चिठ्ठी नहीं लिखी थी उन्होंने भी पूरे मनोयोग से बताया की क्या लिखना चाहिए और क्या बिलकुल नहीं लिखना चाहिए।पर इन सबके बावजूद उस एक बात का तो जवाब दिया ही नहीं की मम्मी-पापा से पूछा की नहीं ?अब चिठ्ठियों में एक नया ही रंग आ गया था,उनके इंतज़ार में एक नयी ही कसक थी,और उनकी रक्षा ..........वो तो पूछिए ही मत। इन्ही पत्रों के साथ ननंदो और भाभीजी को भी पत्र लिखना शुरू हो गया,शादी के पहले उन्हें जानने समझाने का इससे अच्छा कोई जरिया नहीं था।अब पत्र अलग-अलग मन:स्थिति के साथ लिखे जाते थे,एक सहेलियों को,जो में सालो से लिख रही थी,दूसरे होने वाले पति को जहाँ एक झिझक थी साथ ही एक दूसरे को जानने की ललक भी थी। और तीसरे जहाँ एक अतिरिक्त सावधानी रखी जाती थी की किसी बात का कोई गलत अर्थ न निकल जाए।
तभी एक दिन ससुरजी का आना हुआ.वे शादी कितारिख और अन्य बाते सुनिश्चित करने आये थे.उन्होंने ने मेरी गोद भराई भी की,और फल,मेवा के साथ झोली में एक पत्र भी डाल दिया। सबको बड़ा आश्चर्य हुआ,ये क्या है?खैर पत्र खोला गया, पढ़ा गया,उसमे उन्होंने अपनी होने वाली बहू के लिए अपने असीम प्यार और आशीर्वाद के साथ,जीवन को संवारने के कुछ मुख्य बिन्दुओं को बड़ी ही साहित्यिक शैली में लिखा था.उनका ये पत्र अब तक के सभी पत्रों से निराला था,जिसे बार-बार पढ़ा गया और अपने आप को एक सुघड़ बहु के रूप में ढालने के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में इस्तेमाल किया गया। पत्रों का ये सिलसिला बस यूँ ही चलता रहा ................

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