Friday, November 15, 2019

अंतस की नदी

हर स्त्री और पुरुष के भीतर बहती है अंतस की नदी
https://storymirror.com/read/story/hindi/25sskg1s/ants-kii-ndii/detail

Saturday, November 2, 2019

कछु अकथ कहानी समीक्षा शिवानी जयपुर

कलमकार मंच द्वारा प्रकाशित मेरे कहानी संग्रह कछु अकथ कहानी के बारे में यहाँ पढिये और अच्छा लगे तो आर्डर भी यहीं कर दीजिए ।
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Saturday, July 6, 2019

पोर्टब्लेयर डायरी 3

3) #पोर्टब्लेयर #portblair #andmannicobar
दूर तक फैले नीले समुद्र में अपना अक्स देखता नीला आसमान हरे भरे घने पेड़ों से भरे भरे टापू समुद्र की गहराई को नाप कर खड़े किये गये पिल्लर और उन पर बना ब्रिज जिस के पास जेट्टी रुकी और उस पर अस्थाई सीढ़ी लगा कर उतरते और अचंभित हो ठिठक जाते यात्री। जिसकी भी नजर उतरते ही नीले विस्तार पर गई वह एक पल को ठिठक गया और फिर जैसे अचानक चौंक गया और इसे कैद करने के साधन ढूंढने लगा। प्रकृति की सुंदरता को हम कहाँ कैद कर सकते हैं हम तो उसके एक अंश मात्र से खुद को भरमाते हैं। प्रकृति को कैद करने के लिये जो प्राकृतिक कैमरा बनाया है उसका अधिकतम उपयोग ही करना उचित है। पुल पर जवान तैनात थे किनारे पर नीले पानी के नीचे सफेद चट्टान दिखते दिखते अचानक गायब हो गई। मैंने जरा झांक कर देखा तो मुझे तुरंत टोका गया मैडम दूर रहिये।
कितना गहरा पानी है यहाँ?
काफी गहरा है कहते हुए वह खुद बिलकुल किनारे पर खड़ा हो गया।
सूरज को पता ही नहीं था कि जिस दर्पण में देख कर वह इठला रहा है उसी में अपनी तपिश उंडेल कर वह अपने और उसके बीच बादलों की चादर तान देगा। इससे क्या न भास्कर नारायण अपना धर्म छोड़ सकते हैं और न उनके प्यार से पिघलकर धुआं धुआं हुए समंदर महाराज। वे तो बादल रूप में ही आलिंगन करने को तत्पर हुए जाते हैं। इस प्रेम के बीच आ जाते हैं हम पर्यटक जो इसकी तपिश और उससे उपजी उमस के बीच पसीना पसीना होते हैं रुमाल से पोंछते हैं और नारियल पानी ढूंढते हैं। बाहर आने के पहले ही हमारा लोकल एजेंट हाथ में तख्ती लिए मिल गया और गाड़ी आने तक उसने हमें एक पेड़ की छांव में नारियल पानी वाले के पास छोड़ दिया।
हैवलाक आयरलैंड में हमें क्या देखना है यह पूछने पर उसने बताया कि यहाँ स्कूबा डाइविंग है राधा नगर बीच है और अगर स्कूबा डाइविंग के लिए जाना है तो आप घंटे भर में तैयार हो जाइये।
अंडमान आयें और कोरल न देखें तो क्या फायदा हालाँकि तैरना जाने बिना गहरे समुद्र में उतरने का विचार ही डरावना था।
खूबसूरत काॅटेज से घिरे स्वीमिंग पूल वाला हमारा होटल देखते ही बस दिल में समा गया। जल्दी से कमरे में सामान रखा एक बैग में कपड़े रखे और नाश्ता किया तब तक हमारी गाड़ी आ गई। स्कूबा डाइविंग के पहले आवश्यक फार्म भरा डाइविंग सूट पहना और हाई टाइड के पानी में सफेद चट्टानों पर चलते हुए पहुँच गये कमर तक पानी में जहाँ पंद्रह मिनट की ट्रेनिंग होना था। हाँ पानी में जाने के पहले कमर पर पत्थरों की एक बेल्ट पहनाई गई मतलब यही था कि तुम्हें गहरे डूबना है तैरने की कोशिश न करना। मुझे तो वैसे ही तैरना नहीं आता ऐसे ही छोडते तो डूब ही जाती। वैसे अब तक जिस दुनिया में हम विचर रहे थे उसमें पहले ही डूब चुके थे।
पीठ पर आक्सीजन टैंक बांधा मुँह पर मास्क लगा कर साँसों पर नियंत्रण मुँह से साँस लेने की प्रेक्टिस इशारों को समझना उसका इशारों में जवाब देना गहराई में कान पर बनने वाले प्रेशर को रिलीज करना मुँह में पानी भरने पर उसे निकालने के लिए बटन दबाना ऊफ। पंद्रह मिनट में कई बार ऐसा लगा कि क्या करें जायें या नहीं जायें? कहीं कुछ भूल गये तो? लेकिन दिल ने कहा अब जो होगा देखा जाएगा। डाइविंग फीस के साथ फोटो वीडियो शूट कांप्लीमेंट्री था। जाने के पहले वीडियो शूट हुआ तो बड़ा अच्छा लगा पीठ पर सिलेंडर मुंह पर मास्क डाइविंग सूट बस कमर तक पानी में खड़े होकर चाँद पर पहुँचने सा आभास हो रहा था। तभी जोरदार बारिश शुरू हो गई मन फिर डर से भर गया। बारिश में समुद्र कितने खतरनाक होते हैं लेकिन अंडमान सागर बहुत शांत है। हम चल पड़े डूबने नीली चादर के नीचे छुपी एक और दुनिया का दीदार करने। मन में डर उत्सुकता आशंका सभी लेकर। धूप न होने के कारण हल्का धुंधला पन था लेकिन अंदर बड़ी बड़ी चट्टान उनके आसपास तैरती छोटी छोटी मछली जीवित कोरल छोटे छोटे पौधे काली पीली हरी पीली कुछ एकदम छोटी मछलियों के झुंड तो कभी इक्का दुक्का बड़ी मछली। कहीं चट्टानों के बीच इतनी गहराई कि तल में कुछ दिखाई न दे तो कहीं इतनी ऊंची कोरल रीफ के डर कर पैर सिकोड़ लिए कि कहीं उनसे टकराकर उन्हें नुकसान न पहुँचा दें। तभी फोटोग्राफर कैमरा लेकर आ गया और धड़ाधड़ फोटो खींचना शुरू कर दिया। गहरे पानी की अनूठी दुनिया ने वैसे ही हतप्रभ कर रखा था ऐसे में पोज देना किसे सूझता है?
हर व्यक्ति के साथ एक गाइड था जो हर आधे मिनट में इशारे से ठीक होने के बारे में पूछता रहा। कई बार प्रेशर के कारण कान सुन्न हुए लेकिन ठान लिया था समय पूरा होने के पहले बाहर नहीं आना है। आधे घंटे का समय चुटकियों में बीत गया और हम बाहर आये तब तक बारिश बंद हो गई थी लेकिन बादल घने थे। बहुत देर तक तो विश्वास ही नहीं हुआ कि हम एक अनोखी दुनिया में विचरण करके आ गये हैं। जो दुनिया टीवी स्क्रीन पर देखते थे उसे इतने पास से देख कर आ रहे हैं। अद्भुत अनुभव था जिसे शब्दों में ढालना मुश्किल है। ध्यान या समाधि की स्थिति शायद ऐसी होती होगी जब सब कुछ विलीन हो जाये।
बाहर आकर हम कपड़े बदल रहे थे सामान समेट रहे थे लेकिन नजरों के सामने तैरती मछलियाँ सांस लेते कोरल पानी की गहराई ही थी।
यहाँ से अगला स्पाॅट था राधा नगर बीच। घने जंगल के बीच नारियल के बगीचे उनके किनारे पर बने छोटे छोटे मकान मकान के सामने करीने से लगाया गया गार्डन ऊंचे नीचे सर्पीले रास्ते। ड्राइवर ने हमें वहाँ छोड़ा और दो घंटे बाद वापस आने का कहकर चला गया।
कविता वर्मा

पोर्टब्लेयर डायरी 2

2) #पोर्टब्लेयर #andmannikobar #portblair 
धरती की नमी सूरज की तपिश से ऊभचुभ होकर बादल बनने को बेताब थी और इस बेताबी की बैचेनी वह लोगों के चेहरों पर छोड़ जा रही थी। सबसे पहले तो हमने इस बैचेनी से बचने के लिए नारियल पानी पिया फिर गाड़ी में बैठकर होटल पहुँचे। रात्रि जागरण और ठिठुरन की थकान हावी थी। ड्राइवर ने बताया कि दोपहर तीन बजे सेल्यूलर जेल देखने जाना है तब तक का समय हमारा था। कमरे में सामान रख कर जल्दी से नहाया फिर नाश्ता किया और बिस्तर पर पीठ टिकाते ही आँख लग गई।
दोपहर पोर्टब्लेयर की ऊँची नीची पहाड़ी सड़कों से शहर की एक झलक देखते कुछ कुछ उसका मिजाज़ समझने की कोशिश करते हम काला पानी के नाम से कुख्यात उस जेल के गेट पर पहुँच गये जो पहली झलक में किसी पुरानी लेकिन बेहतर रख रखाव वाली सरकारी इमारत सी ही लगी। बाहर लोगों की लंबी कतार लगी थी। यहाँ हमें एक व्यक्ति हमारे टिकट के साथ मिला और कुछ ही देर में हम जेल के अंदर थे। एक बड़े से अहाते में जिसमें जेल की तीन तीन मंजिला दो भुजाएँ पूरी लंबाई में फैली थीं बीच में बना एक वाॅच टाॅवर जिससे सभी तरफ नजर रखी जा सकती थी और एक भुजा समुद्र की दिशा की तरफ थी। उस तरफ दूर तक फैला विशाल समुद्र इमारत को भयावह सन्नाटे से घेरे रखता था। एक जैसी आठ बाय दस फीट की कोठरियाँ जिसके रौशनदान और दरवाजे से कतरा भर आसमान दिखता था। ऐसी इमारत जहाँ से कहीं भागना संभव नहीं था उसमें दीवार के बीच आले बनाकर लोहे के दरवाजे में मोटी सांकल लगाई गई थी। इन्हीं दो भुजाओं के बीच रसोई घर फाँसी घर और दंड देने के लिए बनी कार्यशाला जिसमें तीस पौंड तेल निकालने जैसी सजा दी जाती थी। आज हमें मिली तमाम आजादी और सुरक्षा के बीच उसकी भयावहता समझना मुश्किल है लेकिन उस समय बरसों उस एकांत वास में हड्डी तोड़ मेहनत और मनोबल तोड़ने वाले व्यवहार और सजा के बीच रहने वाले उन 218 कैदियों की जीवटता को समझ पाना और भी ज्यादा मुश्किल है। अंग्रेज उनकी जीवटता और इरादों से किस कदर डरे हुए होंगे यह जानने के लिए लोहे के दरवाजे और सांकल की मोटाई ही काफी है।
शाम छह बजे से परिसर में लाइट और साउंड शो था जिसमें कालापानी का इतिहास और कैदियों को दी जाने वाली सजाओं को बताया गया। इस शो में लाइट का इफेक्ट झुटपुटे उजाले के कारण मध्यम ही रहा तो लाइट से भी बेहतरीन प्रयोग की काफी संभावना अपेक्षित थी। बाकी रही सही कसर फोटोग्राफी और रिकार्डिंग न करने के नियम तोड़ने वाले कर देते हैं। खैर कुल मिलाकर इतिहास से परिचित करवाने का अच्छा प्रयास है।
हम जब बाहर निकले अंधेरा घिर गया था दूसरा एक ड्राइवर लेने आया था जिसने हमें थोड़ी देर मार्केट में कुछ शापिंग करने का समय दिया और फिर वापस होटल छोड़ा।
अगले दिन सुबह साढ़े छह बजे की फेरी से हमें हैवलाक आयरलैंड जाना था जिसके लिए सुबह साढ़े पाँच बजे तैयार होना था ताकि चैक इन के लिये समय से पहुँच सकें। खाना खाकर जल्दी ही हम सो गये।
सुबह जब हम पोर्ट पर पहुँचे पहली बार नीले शांत समुद्र के दीदार हुए। आसमान साफ था और उसकी परछाई से सराबोर समुद्र भी उसी रंग में रंगा था। समुद्र में खड़ा छोटा सा जहाज जिसमें हमें जाना था और दूर तक गहरा नीला समुद्र जिसकी रक्षा करने के लिए बीच बीच में हरेभरे द्वीप सिर उठाये खड़े थे। तुरंत कैमरे मोबाइल निकाले न जाने कितने फोटो लेकिन मन नहीं भरा और जहाज (जट्टी) पर चढने का समय आ गया। जहाज के चलते ही थोड़ी ही देर में हम ऊपर डेक पर आ गए। वहाँ तेज म्यूजिक के साथ डांस चल रहा था साइड गैलरी में खड़े होकर तेजी से पीछे छूटते और आगे और गहरे समुद्र में घुसते जाना एक रोमांच पैदा कर रहा था। दूर गहनता को प्रमाणित करती लहरें और जट्टी के तल से पीछे छूटती दूधिया लहरें। ओह ये दृश्य कभी पूरी संतुष्टि क्यों नहीं देते बस देखते रहो देखते रहो लेकिन मन हटने को तैयार ही नहीं होता। अब तक सूरज बादलों के बीच से निकल कर पानी के वितान पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा था। अपने साम्राज्य में सूर्य चाहे पृथ्वी से कितना ही बड़ा हो लेकिन पृथ्वी सुत समुद्र के एक छोटे से हिस्से पर ही चकाचौंध फैला पा रहा था। अजीब है न जब मन समंदर की तरफ हो तो वह सूरज को भी छोटा बना देता है और क्यों न बनाए आखिर अभी समंदर ही तो मन के करीब था अचंभित करता हुआ। बाँयी ओर एक बेहद विशाल पहाड़ी द्वीप साथ साथ चल रहा था। कभी करीब हो जाता कभी दूर। दरअसल समंदर और द्वीप ऐसे हाथों में हाथ डाले रहते हैं यहाँ कि न द्वीप इसके विस्तार को रोकते हैं और न समुद्र इसके किनारों पर सिर पटक कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करता है। सभी कुछ बड़ा शांत सौहार्द्र पूर्ण और आप इस में खोये सोचते रह जाते हैं कि हम इंसान इनके सीने चीर कर भी इस सौहार्द्र का अंश मात्र भी खुद में समाहित क्यों न कर पाये?
लगातार पानी को देखते चक्कर आने लगते हैं लेकिन दृष्टि हटती नहीं। तभी पानी में बहती एक लाल भूरी पत्ती दिखती है जो न जाने किस किनारे से किस मंजिल पर पहुंचने के लिए निकली थी। उसकी मंजिल का अंदाजा लगा ही नहीं था कि एक छोटी सी चिड़िया ने पानी में डुबकी लगाई। वह पानी से निकलती तब तक जहाज आगे बढ़ गया और मैं बस कल्पना ही कर रही हूँ कि वह अपना भोजन तलाश कर बाहर आ गई होगी।
तभी ऊपर डेक से पानी में कुछ गिरा देखते समझते तब तक लहरों में समा गया। तभी फिर कुछ गिरा इस बार आंखें एलर्ट थीं और तुरंत पकड़ लिया यह डिस्पोजेबल कप था फिर थोड़ी थोड़ी देर में कप प्लेट पैकेट फिंकाते रहे। मैंने हर बार आगे को झुक कर ऊपर देखा। एक्जीक्यूटिव क्लास में सफर करने वाले दिल दिमाग से भी एक्जिक्यूटिव हों जरूरी तो नहीं हैं। कभी-कभी सोचती हूँ काश कोई ऐसी मशीन हो जो इंसान के सिविक सेंस का आकलन कर सके और उसके आधार पर ही उन्हें ऐसे खूबसूरत प्राकृतिक स्थानों पर जाने की अनुमति दी जाये तो शायद अगली पीढ़ी के लिए हम रहने लायक पृथ्वी बचा सकेंगे। 
डेक पर म्यूजिक जोर शोर से चल रहा था और मैं सोच रही थी कि काश यह थोड़ी देर के लिए बंद हो जाये सब थोड़ी देर बिलकुल चुप हो जायें और कुछ देर नीले समंदर और हरे टापुओं पर इठलाती हवा की खामोश सदाएं सुनी जा सकें।
वैसे मुझे कभी समझ नहीं आया कि शोर तो शहरों में भी काफी है और जब उसी में रहना है तो लोग इतनी दूर प्रकृति को अपने शोर से भरने क्यों चले आते हैं?
आपको समझ आये तो बताइयेगा जरूर।



Monday, June 3, 2019

पोर्टब्लेयर डायरी 1

इंदौर से शाम छह बजे घर से चले तब तक बिलकुल भी अंदाजा नहीं था कि कैसी जगह होगी। अब तक कई समुद्र के किनारे जा चुके हैं इसलिए वैसे ही किसी जगह की छवि मन में थी। इंदौर का हवाई अड्डा जैसा कि न्यूज में पढते थे उससे कहीं ज्यादा खूबसूरत और भव्य था। अभी कुछ दिन पहले ही एयर पोर्ट डायरेक्टर आर्यमा सान्याल जी से मुलाकात हुई थी और उनके व्यक्तित्व ने जितना प्रभावित किया था एयरपोर्ट ने उसमें इजाफा ही किया। शाम सात बजे पहली बार प्लेन में कदम रखा। इंडिगो की नीले सफेद रंग से सजी धजी फ्लाइट।
करीब डेढ़ घंटे में हम मुंबई पहुंचे और वहाँ इंतजार शुरू हुआ बिटिया का। लगभग आधे घंटे तक साफ सफाई बोर्डिंग चैक के बाद बिटिया फ्लाइट में आई और फिर तो यात्रा में जान आ गई।
रात लगभग साढ़े बारह बजे कोलकाता एयरपोर्ट पहुंचे और लगेज के इंतजार में खड़े हो गए। एक एक कर सभी का लगेज आ गया लेकिन हम खड़े ही रहे। तभी एक आदमी ने पूछा आपको आगे जाना है क्या तो आपका लगेज आगे के लिए बुक हो गया है वहीं मिलेगा। अब तक जोर से भूख लग आई थी। एयरपोर्ट से बाहर जाने पर फिर से सिक्यूरिटी चैक से गुजरना पड़ता इसलिए सोचा कि यहीं कुछ खा लेते हैं। कोलकाता एयरपोर्ट बहुत बड़ा और भव्य है। देखते देखते हम ऊपर फर्स्ट फ्लोर तक पहुंचे। कुछ फोटो लिये। फूड जोन बंद हो चुका था बस एक दो स्टाॅल टी जंक्शन और सीसीडी के खुले थे। वहाँ पेट भर खाने लायक विशेष कुछ नहीं था लेकिन भूख लगे तो जो मिले वही सही।
हालाँकि जिस तरह स्लीपर पहनने वाले के लिए हवाई यात्रा सुलभ बनाई गई है वैसे ही स्लीपर पहनने वाले के लिए खाने पीने के सामान के रेट भी सुगम होते तो ठीक था। अभी तो ये सूटबूट वालों के लिए भी विचारणीय लगे। कोलकाता एयरपोर्ट पर रात के समय भीड़ कम हो गई थी लेकिन एसी की ठंडक दिन की गर्मी और भीड़ भाड़ के अनुसार ही थी। अठ्ठारह डिग्री सेल्सियस से कम के तापमान पर चादर ओढ़ कर भी सारी रात ठिठुरते ही गुजरी। उस पर लगातार चलता म्यूजिक सोने कैसे देता। खैर हमारे यहाँ के अनुसार तो रात ही थी लेकिन सुदूर पूर्व में तो साढ़े चार बजे उजाला होने लगता है। सुबह साढ़े पाँच की फ्लाइट के लिए साढ़े चार बजे चेक इन की प्रक्रिया शुरू हो गई।
हल्के बदलाये उजाले में शुरू हुए सफर में ऊपर और नीचे दोनों तरफ बादल थे। बादलों के आर पार कुछ भी नहीं था फिर लगा कि बादलों की परछाई बन रही है नीचे पानी था। नहीं पानी नहीं समुद्र जो धुंधलाई रौशनी में बादलों सा ही दिख रहा था। अजीब सा सपनई नजारा था जिसमें बादल कहाँ शुरू हो कर कहाँ समुद्र से मिल रहे थे और समुद्र क्षितिज पर कहाँ बादलों पर सवार हो गया था पता ही नहीं चल रहा था। सात बजे बाद सूरज अपना उनींदा पन हटा कर आसमान के मैदान में डट कर खड़ा हुआ तब बादलों ने अपना साम्राज्य समेटा और धरती आसमान के बीच की सीमा रेखा स्पष्ट हुई लेकिन धरती पर तब तक समुद्र का साम्राज्य फैल चुका था। गहरा नीला समुद्र अपने गहन गंभीर स्वरूप में किनारे पर एक दो छोटी छोटी लहरें पहुँचा कर अपने होने का प्रमाण दे रहा था। दूर तक गहरे हरे पेड़ समुद्र की गंभीरता में सुर मिलाये खड़े थे और आसमान तक एक शांत सुंदर क्षेत्र के होने का संदेश पहुँचा रहे थे। आसमान से दिखने वाले इस नजारे ने आभास दे दिया था कि हमने जितना सोचा था उससे कहीं ज्यादा खूबसूरत जगह पर हम पहुँच चुके हैं और अब उसे भरपूर अपने दिलो दिमाग में समाने के लिए खुद को तैयार कर रहे थे।
पोर्टब्लेयर का वीर सावरकर हवाईअड्डा अपनी छोटी सी नीली इमारत के साथ हमारा इस्तकबाल करने को तैयार था। एयरपोर्ट के बाहर हमारे नाम की तख्ती लिये ड्राइवर हमारा इंतजार कर रहा था।
कविता वर्मा 

नर्मदे हर

 बेटियों की शादी के बाद से देव धोक लगातार चल रहा है। आते-जाते रास्ते में किसी मंदिर जाते न जाने कब किस किस के सामने बेटियों के सुंदर सुखद जी...