Thursday, September 26, 2024

अनजान हमसफर

 इंदौर से खरगोन अब तो आदत सी हो गई है आने जाने की। बस जो अच्छा नहीं लगता वह है जाने की तैयारी करना। सब्जी फल दूध खत्म करो या साथ लेकर जाओ। गैस खिड़कियाँ बंद करो इतना सारा सामान गाड़ी में रखो लेकिन क्या करें करना ही पड़ता है। उसके बाद हाईवे पर जो अदूरदर्शिता के चलते खोदकर रखा है पुल बनाने के लिए वह रास्ता गुस्सा दिलाता है। एक बार महू पार कर लिया और मिलिट्री एरिया में आ गये फिर तो बस आनंद का सफर होता है और इसमें लगभग एक घंटा लग जाता है। अब ध्यान जाता है आगे पीछे चलने वाली गाड़ियों पर सवारियों पर आसपास के खेत खलिहान कच्चे पक्के घरों पर जंगल और घुमावदार रास्तों पर।

आज ऐसे ही रास्ते पर एक बाइक पर नजर गई। तीन सवारियाँ दो लड़के उनके पीछे एक दुबली पतली छोटी सी लड़की उसकी गोद में एक बच्चा दो तीन बैग। दो तीन बार वह बाइक क्रास हुई और हर बार उस पर नजर गई।

अधिकतर मैं अकेले गाड़ी चलाना पसंद करती हूँ मैं और मेरी तन्हाई मेरा रेडियो मेरे गाने। गाड़ी में या तो ऐसा साथ हो जिससे बातचीत का आनंद हो या चुपचाप चलें या फिर अकेले हों। मन में आया इस लड़की को गाड़ी में बैठा लूँ तब तक वह गाड़ी आगे बढ़ गई।

जाम घाट पर पार्वती मंदिर के आगे रास्ते पर बादल उतरे थे। इतना घना व्हाइट आउट कि दस मीटर आगे भी न दिखे। अरे आज फिर! यही कहा मन ने। मैंने गाड़ी धीमी की मोबाइल में वीडियो आॅन किया और एक हाथ में मोबाइल थामे वीडियो बनाते धीरे-धीरे जाम गेट की तरफ बढी। रेयर व्यू में देखा वह बाइक मेरे पीछे हो गई। सुरक्षा के हिसाब से यह अच्छा था। घने बादल के बीच रास्ता किस तरफ मुड़ रहा है यह भी नहीं दिख रहा था। लग रहा था आगे बारिश होगी। 

जाम गेट पर कुछ दिखने लगा और वह गाड़ी अब बगल से आगे निकलने को हुई तभी मैंने कार का शीशा नीचे करके उसे हाथ दिया।

कहाँ जा रहे हो? इसे गाड़ी में बैठा दो।

हम भी खरगोन जा रहे हैं। गुड़िया भी है साथ में।

हाँ तभी तो कहा तुम तीन होते तो थोड़ी कहती। उन्होंने तुरंत उस लड़की और गुड़िया को गाड़ी में बिठाया एक बैग गाड़ी में रखा।

मंडलेश्वर में मिलना कहकर मैंने गाड़ी आगे बढा दी।

आज देवानंद का जन्मदिन है विविधभारती पर प्यारे गाने बजे और मैं साथ न गाऊँ कैसे संभव है। थोड़ी देर मुझे संकोच हुआ फिर सोचा गाड़ी मेरी है यार मैं चाहे जो करूँ 😜

खैर थोड़ा गाना थोड़ी बातचीत वह लड़की पास के गाँव की है शादी को तीन साल हुए ग्यारह महीने की बेटी है। खरगोन कालेज से एम काॅम कर रही है। कालेज जाती है सुबह दस बजे तक घर के काम हो जाते हैं और बच्ची को सब संभाल लेते हैं।

मंडलेश्वर में बाइक पीछे आती नहीं दिखी तो हम आगे बढ़ गये। अब वह थोड़ी बैचेन हुई। बार बार साइड मिरर में देखती।

मैंने कहा चिंता मत करो फोन नंबर याद है तो फोन कर दो। उसे अपना फोन दिया क्योंकि उसका फोन रिचार्ज नहीं था और बैग में था। फोन की घंटी गई किसी ने नहीं उठाया।

कोई बात नहीं गाड़ी चला रहे हैं आवाज नहीं आ रही होगी। जब देखेंगे फोन लगा लेंगे। गुड़िया उठ गई थी थोड़ा कुनमुनाई अचरज से मुझे देखा। धीरे से मेरा हाथ छुआ। सोकर उठी थी भूखी थी वह फीड करवाने लगी। मुझे याद आया कई बार बच्चों को बाइक से लेकर जाते थे कभी ऐसा भी होता कि गाड़ी रोकने के लिए सुरक्षित स्थान नहीं मिलता तब बाइक पर चलते हुए फीड करवाया है। 

कसरावद पार करके हम आगे बढ़ गये तब फोन आया। उन्हें बता दिया खरगोन में कहाँ आना है। कुछ खास समझ नहीं आया बोले हम वहाँ आकर फोन कर लेंगे।

खरगोन आ गया हम घर पहुंच गये। आज सुबह काॅफी नहीं पी थी मुझे काॅफी पीना था। वर्माजी डिब्बा भरकर रबड़ी लाये थे बोले उसे दे दूँ।

हाँ बिलकुल वह रास्ते में फीड करवा रही थी भूख लगी होगी।

उसने पहले गुड़िया को खिलाई थोड़ी खुद खाई तब तक फोन आ गया। और वे दोनों चले गये।

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