शादी के बाद भी पत्रों का सिलसिला चलता रहा.सहेलियों के साथ,ननदों के साथ,और मायके जाने पर उनके साथ.अब हर पत्र एक अलग रंग का होता था.अब तो मम्मी के भी पत्र आते थे,जिसमे प्यार के साथ कई सीख भी होती थी,तो ससुरजी के पत्र भी जिसमे हमारे अकेले होने की चिंता के साथ हर हफ्ते बस दो ही लाइन की कुशल क्षेम देने का आग्रह भी होता था। चिठ्ठियों का यह नया रंग अभिभूत कर देता था। शादी के बाद अपने लाये सामान के साथ बचपन से अभी तक लिखी चिठ्ठियों का मेरा खजाना भी था.जिसे गाहे बगाहे पढ़ लेती थी।
नयी-नयी गृहस्थी के साथ एक शौक अकसर महिलायों को होता है वह है साफ़ सफाई का,सो एक दिन सफाई करते हुए न जाने क्या हुआ,शायद मन कुछ ठीक नहीं था,या कुछ और,पता नहीं क्यों ये सोचा की इतनी पुरानी सहेलियां जिनसे बिछड़े करीब १५ साल हो गए है,उन्हें तो शायद मेरी याद भी नहीं होगी,मैं ही उनके पत्रों को संजोए बैठी हूँ मैंने सबसे पुराने पत्र जला डाले.हाँ-हाँ वही पत्र जिनकी खजाने की तरह रक्षा करती थी जला डाले ,पता नहीं इससे घर में कितनी जगह बनी हाँ दिल का एक कोना आज भी खाली महसूस हो रहा है।
धीरे -धीरे सब सहेलियों की भी शादियाँ हो गयी,ननदे भी ब्याह गयी,मम्मी-पापा,सासुजी-ससुरजी भी इंदौर ही आ गए,पत्रों की जगह पहले फोन फिर मोबाइल ने ले ली,सब इतने पास आ गए पर फिर भी एक दूरी बन गयी है,पत्रों में विस्तार से लिखे समाचारों की जगह,मोबाइल के "हाँ और बोलो",या "सुनाओ"ने ले ली,बात करते हुए,आधा ध्यान टाइम पर और बिल पर रहने लगा,दुनिया जीतनी छोटी हो गयी उतनी ही दूरियां बढ़ गयी,आज मेरे घर कोई चिठ्ठी नहीं आती,डाकिया सिर्फ बिल या स्टेटमेंट्स लाता है ,आज चिठ्ठियों के बिना मेरे दिन सूने है मेरी जिंदगी का एक कोना सूना है,मैं आज भी चिठ्ठियों का इंतजार करती हूँ .................
ok, thanks.
ReplyDeleteचिठ्ठियों की बात ही निराली होती थी कितना इन्तेजार रहता था!!! वो चिठ्ठी की खुशबु की क्या कहिये आज कल तो या तो मिस कल आते हैं या sms!! या कहते हैं काम हो जाए तो एक मिस कल नहो तो २ मिस काल मर देना हा..हा.. पहुँचते ही मिस काल मर देना!!! हा.हा..
ReplyDeleteचिट्ठियाँ जो हस्त लिखित आया करती थीं, उनकी बात ही निराली थी..अब तो दुर्लभ हो चली हैं वो.
ReplyDeletereally, in today's time, the world has shortened, by means of communication and we really do miss the handwritten long letters, which we used to preserve in our hearts.
ReplyDeletehast likhit patra ki bat hi alag hoti hai kavitaji kabhi-kabhi padte waqt esa lagta hai mano likhnewal khud samne khada hai.
ReplyDeleterahi bat purni chithyo ko nast karne ki to aap ke dil main abhi bhi un ki yade abhi bhi taja hai esliya gusse main aap ne unhe phad ki hai
dil ko chu gayi..aur pane bite dino ki yaad taja kar gayi..
ReplyDeleteक्या बात है! बेहद संजीदा लग रही हैं आप...अरे फ़िक्र क्यों करती हैं आज ही आपको खत लिखते है...जरा घर का पता तो मालूम हो, खत के साथ खुद ही आ जायेंगे...:)
ReplyDeleteखतों और चिट्ठियों के प्रति इतनी शिद्दत ,भई आप तो हममिजाज हैं लगता है ,पता दीजीए तो अभी लिख मारते हैं एक पोस्ट्कार्ड अंतरदेशी लिफ़ाफ़ा जो आप कहें
ReplyDeleteअजय कुमार झा
wah, aanand aa gaya aur yah bhi hisab lagaya ki mene kab se chitthi nahi likhi aur muje kab se kisi ka patra nahi mila.
ReplyDeletemuje lagta hai ham sab ne kuch patra jane kitne saalo se sahej rakhe hai.
...kirti rana/blog pachmel
wakai chidthiyo ki to baat hi alag hai...
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कविता जी आप तो चिट्ठियों पर मेहरबान हैं. आपके ब्लॉग पर चिट्ठी से जुडी यादें रोज ताजा हो रही हैं. आपकी चिट्ठियों में रिश्तों की सोंधी खुशबू है, जो भीना-भीना अहसास दे जाती है. अब आपकी चिट्ठियाँ डाकिया बाबू नहीं बांचे तो भला कौन बांचेगा. तो आप भी अपनी इन सभी चिट्ठियों को "डाकिया डाक लाया" ब्लॉग पर देखें और चिट्ठियाँ लिखती रहें, ताकि हम उन्हें पहुंचाते रहें.
ReplyDeleteआप अच्छी लेखिका हैं| आपके पाठक भी अच्छे इंसान हैं| मैं थोड़ा नासमझ हूँ, शायद इसीलिये मुझे ऐसा लगता है कि प्रश्न चिठ्ठियों के होने या न होने का नहीं है| बात कुछ और है कहीं और...! लोगों का ख़याल था के संचार क्रान्ति सब कुछ बदल देगी| लेकिन जिन दिमाग ने इस क्रांति को इजाद किया उसे कौन बदलेगा? कुछ ऐसे ही ख़याल मेरे नादाँ जेहन मैं आ रहे हैं| मैं आपके जैसा अच्छा लेखक होता तो शायद मन की बात को ठीक तरह समझा पाता, बहरहाल उम्दा लेखन के लिए हार्दिक बधाइयाँ !
ReplyDeleteउम्दा लेखन के लिए हार्दिक बधाइयाँ
ReplyDeletepahli baar aapke blog par aai aur aapki chitthiyan padkar achcha laga. dakiye ki awaaj ya uska ghanti bajana mobile tone se kahin jyada pyara hota hai. aapki chitthiyan pyari hai aur aap bhi.
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