Saturday, April 30, 2011

इंतजार ३

(मधु और मधुसुदन मंदिर में अचानक मिले देखते ही बरसों पुरानी बातें ताज़ा हो गयी. थोड़ी देर साथ बैठ कर एक दूसरे के बारे में जानकारी ली एक दूसरे का पता फोन नंबर लिया ) अब आगे...
.मधु के जाने के बाद में फिर बगीचे की बेंच पर बैठ गया पैतीस साल एक लम्बा अंतराल .मधु और में शाहपुर के कोलेज में थे .में एम् ए फ़ाइनल में था और वह सेकेण्ड इयर में जब हमारा परिचय हुआ था .
पहली ही नज़र में उसकी हंसी मेरे दिल में उतर गयी थी उसका आँखों से हंसना हर बात में चुटकियाँ लेना मेरे दिल दिमाग पर छा गया .हमारे शौक भी लगभग एक ही थे. दोनों ही पढ़ने के शौकीन . पर उसके दिल की बात में नहीं जानता था .करीब ६ महीने तक में अकेले में उसके ख्यालों से बातें करता रहा . और एक दिन हिम्मत कर के दिल के सारे ज़ज्बात मोती की तरह सजा कर एक पुस्तक में रख दिए और वह पुस्तक उसे पढ़ने के लिए दे दी. उस सारी रात में सो न सका
पता नहीं उसने पत्र देखा होगा या नहीं?पढ़ कर क्या सोचा होगा मेरे बारे में ? क्या उसे गुस्सा आया होगा? बार बार सोचने पर भी मेरा मन ये मानने को तैयार नहीं था की वह गुस्सा हुई होगी. में सोच ही नहीं पा रहा था वह ऐसा कर सकती है. हालाँकि वह मुझे पसंद करती है ऐसा कोई इशारा उसकी और से नहीं हुआ था. फिर भी मन अनिश्चितता के झूले में झूल रहा था. पल भर में पेंग लेता और उम्मीद का झोंका मन को छू जाता और अगले ही पल जमीन पर आ टकराता .बस एक ही सवाल -पता नहीं वह मेरे बारे में क्या सोच रही होगी??
अगले दिन धड़कते दिल से कॉलेज गया नज़रें उसे ही ढूंढ रही थी.वह सहेलियों के साथ आते दिखी . हलके पीले रंग के सूट में वह और उसकी बसंती खिलखिलाहट मन को खुशबू से सराबोर कर गयी. उसने मुझे देख कर भी अनदेखा किया और क्लास की ओर बढ़ गयी .मुझे कुछ समझ न आया वह नाराज़ है खुश है या कुछ और.
तीसरे पीरियड में गलियारे में उसने मेरी ओर एक पुस्तक बढाई ओर बिना कुछ बोले आगे बढ़ गयी मेरा मन बुझ गया. पर वो मेरी किताब नहीं थी जब मैंने उसे खोला तो उसमे से कागज का एक पुर्जा निकला .
ओह में तो मानो बौरा ही गया . आज भी मुझे वह शब्द याद है. आपका पत्र अच्छा लगा, में भी आपको पसंद करती हूँ .
अब हमारी मुलाकातें अकेले में होने लगी कभी केन्टीन कभी कॉलेज के पीछे पेड़ों के झुरमुट में ,तो कभी शहर से दूर बने एक मंदिर में. .
मधु बहुत अच्छी नज़में ,कवितायेँ लिखा करती थी. वह मुझे लेकर अपने दिल के भावों को कविताओं में उतारा करती थी .जीवन के प्रति उसका नजरिया बहुत उदार था. वह हर हाल में खुश रहती.
साल कब ख़त्म हो गया पता ही नहीं चला . मेरा एम् कौम का रिजल्ट आने से पहले ही मेरी नौकरी लग गयी . में बहुत खुश था. मधु को लेकर बुने अपने सपनों को हकीकत के केनवास पर उतारने का एक नया सपना अब मेरी आँखों में था.
हमारे मिलने का समय अब बदल गया . शाम को ऑफिस से छूटते ही में कॉलेज की तरफ भागता मधु भी कभी सहेली कभी लाइब्ररी तो कभी कोई ओर बहाना बना कर आ जाती .
मधु पढाई पूरी करके नौकरी करना चाहती थी .उसने मुझे स्पष्ट कह दिया था की में घर में नहीं बैठ सकती में तो उसके प्यार में उसकी हर बात में हामी भर देता .उसका चेहरा अपने हांथों में लेकर उसकी आँखों में झांकते हुए बस यही कहता -तुम जैसे चाहो वैसे रहना पर बस हमेशा मेरे साथ रहना मधु ,में तुम्हारे बिना नहीं रह सकता . ओर मधु मेरी बांह पकड़ कर लता सी लिपट जाती मुझसे. क्रमश

इंतजार २

(बरसो बाद मंदिर में मधु और मधुसुदन ने एक दूसरे को देखा और उनकी कई पुरानी यादे जाग उठी.) अब आगे.....
तुम यहाँ कैसे मधु ने पूछा.
अभी चार पांच महीने पहले ही ट्रान्सफर हो कर यहाँ आया हूँ. पास ही की कॉलोनी में मकान लिया है . कभी कभार शाम को यहाँ आ जाता हूँ. इस मंदिर में बहुत शांति मिलती है. बहुत सारी बातें याद करते हुए शाम निकल जाती है.
में भी यहाँ इसीलिए आती हूँ. कहते हुए मधु ने जीभ काट ली वह दूर देखने लगी.
तुम यही कही पास ही रहती हो? उसकी झेंप कम करने के लिए मैंने बात बदली.
पास तो नहीं हाँ ५-७ किलोमीटर दूर एक कॉलोनी में .
तुम्हारा खुद का घर है या...
खुद का है .कई साल हो गए . मम्मी बहुत पीछे पड़ी थी-अपना घर नहीं बसाया तो क्या कम से कम एक मकान तो अपना कर लो.
में कुछ असहज हो गया. मधु आज भी अकेली है मेरे कारण.
मुझे माफ़ कर दो मधु मेरे कारण ...
नहीं तुम्हारे कारण नहीं मेरी बात को बीच से काटते हुए उसने कहा .शायद यही हमारी नियति थी .
क्या कर रही हो तुम?
एक कम्पनी में सलाहकार हूँ. मम्मी मेरे ही साथ रहती है दिन भर काम और शाम को सहेलियों के साथ घूमना फिरना. आज मेरी सहेलियां साथ नहीं आ पाई तो अकेले ही निकल पड़ी. और तुम??
में एक कम्पनी में सीनियर मेनेजर हो कर यहाँ आया हूँ . पत्नी दो साल पहले गुजर गयी बेटा अमेरिका में है और बेटी दिल्ली में .दोनों की शादी हो गयी अपनी अपनी जिंदगी में सेटल है यहाँ में अकेला हूँ.
थोड़ी देर हम दोनों के बीच चुप्पी छाई रही .पूछना तो चाहता था.मधु कैसे गुजारे तुमने इतने साल अकेले पर पूछ न सका .
अब मुझे जाना होगा .मम्मी घर में अकेली है आजकल उनकी तबियत भी ठीक नहीं रहती . फिर कब मिलोगी मधु? अपनी आवाज़ के कम्पन पर में खुद ही हैरान था.
मुझे देख कर हंस पड़ी वो. अरे अब तो इंदौर में ही हो जब चाहो मिल सकते हैं.
उसे हँसता देख कर मेरी जान में जान आयी.
तुम्हारा फोन नंबर ,पता?
हमने एक दूसरे का नंबर लिया और धीरे धीरे गाड़ी की ओर बढ़ चले .
आपको कही छोड़ दूं ?
नहीं में चला जाऊँगा ,थोडा टहलना भी हो जायेगा.
ठीक है फिर मिलते है हाथ हिलाते मधु ने गाडी बढ़ा दी. में दूर तक जाते धूल के गुबार को देखता रहा. क्रमश

Friday, April 29, 2011

इंतजार

मधु -मंदिर में अचानक एक महिला को देखते ही मेरे मुंह से बेसाख्ता निकला .वह भी मेरी ओर देखते हुए बोली मधुसुदन आप ?यहाँ कैसे कब आये ?
कुछ देर तक दोनों एक दूसरे को देखते ही रहे .तभी हमें हमारी स्थिति का आभास हुआ . अचकचा कर चारों ओर देखते हुए मैंने कहा हमें किनारे हो जाना चाहिए .
में दर्शन करके आती हूँ . तुमने दर्शन कर लिए ?
हाँ हाँ तुम जाओ में बाहर सीढ़ियों पर तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ .
ठीक है कहते हुए मधु मंदिर के गर्भ गृह की और चल दी
आज बसंतपंचमी पर शहर से दूर बसी इस कॉलोनी के सरस्वती मंदिर में बहुत गहमागहमी थी .दूर दूर से लोग दर्शन के लिए आ रहे थे. इतने बड़े शहर में बमुश्किल एक दो सरस्वती मंदिर थे . आम दिनों में यह मंदिर सामान्यतः सूना ही रहता है गाहे बगाहे बाहर की कॉलोनी या शहर से कोई यहाँ आता है.
में सीढ़ियों पर बैठ कर मंदिर की सजावट देखने लगा . पूरा मंदिर केसरिया पीले फूलों की माला से सजा था. माँ सरस्वती का शृंगार भी पीले सफ़ेद फूलों से किया गया था. हाथ में वीणा और पुस्तक लिए माँ अपनी सौम्य मुस्कान के साथ मानों मुझे ही देख रही थी. लाउडस्पीकर अपने पूरे जोश के साथ माँ की स्तुति गान के साथ उन्हें प्रसन्न करने में लगा था. प्रांगंद में तीन चार कर्ता धर्ता दोने में बूंदी और फल का प्रसाद वितरण कर रहे थे.
मधु दर्शन कर प्रसाद लेने आ गयी थी .उसने मेरी और इशारा करके उन लोगो को कुछ कहा और उन्होंने मधु के हाथ में एक दोना और पकड़ा दिया .उसने दोनों हांथों से दोना लेते हुए माथे से लगाया और मेरी और बढ़ चली. उसके माथे पर कुमकुम का बड़ा सा टीका उसकी शोभा बढ़ा रहा था.
प्रसाद का एक दोना मेरे हांथों में पकड़ाते हुए उसने कहा आपने तो प्रसाद लिया नहीं होगा? में मुस्कुरा दिया. तुम तो मेरी आदत जानती हो. पर तुम्हे अभी तक याद है? कहना तो चाहता था मुझे अच्छा लगा पर में चुप ही रहा . मधु भी मुस्कुरा दी.
मंदिर के बाहर ही छोटा सा बगीचा था जिसमे दो -तीन बेंचे लगी थीं मैंने बगीचे की और देखते हुए कहा-थोड़ी देर रुक सकती हो ?अकेले आयी हो क्या ? अभी तक किसी और के साथ होने का संकेत मुझे नहीं मिला था.
हाँ अकेले आयी हूँ. कहाँ बैठे गार्डेन में? मेरी नज़रों का पीछा करते हुए उसने पूछा .
हाँ वही बैठते है .हम दोनों खाली पड़ी बेंच की ओर बढ़ चले.
बेंच पर बैठ कर हम दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा.कितना बदल गयी है मधु,पर बदल कर भी वैसी ही है मेरी आदते अभी तक याद है उसे. में कभी भी मंदिर से प्रसाद नहीं लेता था उसे याद है .अधिकतर बाल सफ़ेद हो गए है बीच बीच में एक्का दुक्का काले बाल उन्हें सुंदर शेड दे रहे है. सामने के थोड़े आगे निकले दांत अभी भी हँसते हुए लगते है .उम्र के साथ शरीर भर गया है पर मोटापा नहीं कहा जा सकता.
सलवार कुरता पैरों में जूतियाँ हलकी ठण्ड से बचने के लिए जेकेट .बत्तीस सालों के अंतराल में भी ज्यादा कुछ नहीं बदला है.
मुझे अपनी ओर देखते हुए पाकर मधु ने हंसते हुए पूछा ज्यादा तो नहीं बदली हूँ न में? हाँ बाल जरूर सफ़ेद हो गए है.
में झेंप सा गया . बाल तो मेरे भी सफ़ेद हो गए है. अब इस उम्र में काले बाल अच्छे भी तो नहीं लगते . और हम दोनों ठहाका मार कर हंस दिए. क्रमश

Friday, April 22, 2011

पीपल


पीपल पर फिर नयी कोंपले आ गयी
फिर चहचहाने लगे पंछी उस पर
सड़क के किनारे लगा
बरसों पुराना पीपल
न जाने किसके हाथ से लगाया हुआ
छोड़ देता है अपने पुराने पत्ते
उसका विशाल भव्य आकर
हो जाता है रीता
और करता है इंतजार
नए पत्ते ,पंछियों और पथिकों का
है उसका विश्वास अटूट
ये सब फिर लौटेंगे

बरसों पहले बसी कालोनी
अपनी सामर्थ्य भर पैसा जुटाते
बच्चों की जरूरत मुताबिक
करते सुविधाओं का विस्तार
खूब रौनक भरी
लगभग एक उम्र के सब बच्चे
खेल के मैदान और छत पर
गूंजते कहकहे और किलकारियां
पीपल के नीचे बैठ कर
लिए गए मशविरे
देखते पीपल की कोपलें
दी गयी सलाहें
कुछ बन कर वापस लौटेंगे ये पंछी

आज इन्हें जाने दो
पीपल की एक एक शाख सा
हर घर रहा इसी आस पर

तब से अब तक
न जाने कितनी बार
पीपल पर आ गयी नयी कोंपलें
कितने ही पंछियों के बने बसेरे
पीपल फैलता रहा अपनी शाखें
देने ज्यादा पथिकों को अपनी छाँव

पीपल के नीचे बैठ कर
आज भी होते है मशविरे
अपने विस्तार को समेटने के
इन बूढ़े पीपलों को
हो गया है विश्वास
इनकी शाख पर
कोंपलें अब नहीं लौटेंगी
पंछी दो घडी सुस्ता कर
फिर उड़ जायेंगे
कि अब उनका बसेरा है कही और

पीपल के नीचे
अब भी होती है बैठके
चहकते पंछियों को देखते
मन का सूनापन मिटने को.

Wednesday, April 20, 2011

एतबार

अब जान कर भी कहाँ जान पाते हैं लोग?

हर मोड़ पर नए रूप में नज़र आते हैं लोग.


थामा जो तूने हाथ तो दिल को संबल मिला.

पर तूफ़ान में हाथ छोड़ दिया कैसा दिया सिला?


सोचा था कदम बहके तो थाम लोगे तुम.

पर हमसे पहले ही तुम बहकने क्यों लगे?


तुमसे था अपने होने का गुरुर हमको

एतबार यूँ टूटा खुद पे भरोसा कैसे करें?

Tuesday, April 12, 2011

आईना

आईने में झांकते
देखते अपना अक्स
नज़र आये चहरे पर
कुछ दाग धब्बे
अपना ही चेहरा लगा
बदसूरत ,अनजाना
घबराकर नज़र हटाई
अपने अक्स से
और देखा आईने को
नज़र आये तमाम दाग
आईने के चहरे पर
आईने के सामने से हटते ही
मेरा चेहरा फिर था

खूबसूरत, बेदाग

कितना आसन था.

यूँ ही बैठे फुर्सत में
झाँका अपने अतीत में
कुछ पल ख़ुशी के
कुछ दोस्ती और प्रेम के
चमकते इन पलों से
था रोशन मेरा चेहरा
लेकिन इस पर भी
नज़र आये कुछ दाग
दिखा चेहरा धब्बेदार
कोशिश करते पहचानते
इन धब्बों को
ये थे जीवन के वो पल
जो सने थे ईर्ष्या, द्वेष ,धोखे से
स्वार्थ के दाग जो थे
बड़े भद्दे और डरावने
अनायास ही पहुंचा मेरा हाथ
हटाने उन धब्बों को
कितने गहरे जमे थे वो
छू भी न पाया उन्हें

चाहा न देखूं इस अक्स को
पर जीवन के साथ जुड़ा है ये
इस कदर
कि इससे दूर जाना नहीं है संभव
कि नहीं हो सकता अब

मेरा चेहरा फिर खूबसूरत बेदाग
कि आईना है ये जिंदगी का
इससे दूर नहीं हो सकता मै

नर्मदे हर

 बेटियों की शादी के बाद से देव धोक लगातार चल रहा है। आते-जाते रास्ते में किसी मंदिर जाते न जाने कब किस किस के सामने बेटियों के सुंदर सुखद जी...