Sunday, March 17, 2024

नर्मदे हर

 बेटियों की शादी के बाद से देव धोक लगातार चल रहा है। आते-जाते रास्ते में किसी मंदिर जाते न जाने कब किस किस के सामने बेटियों के सुंदर सुखद जीवन की प्रार्थना की याद ही नहीं। यह एक बहाना ही है कि फिर फिर उन देवस्थानों में जाएं और कृतज्ञता व्यक्त करें। इसी क्रम में आज नर्मदा स्नान का मुहूर्त निकला।

खरगोन आते-जाते हमेशा नर्मदा पार करते हैं। एक नदी जिसके दर्शन मात्र से पुण्य मिलता है। इस बार नर्मदा यात्रा के समय न स्वास्थ्य ठीक था और शादी की तैयारियों के कारण जाना संभव ही नहीं था।

शादियों के तीन महीने बाद तक न जाने कितनी बार नर्मदा पुल से गुजरे हर बार वादा किया माँ जल्दी ही आएंगे लेकिन जब तक वह न बुलाएं कैसे जाना होगा।

आज बुलावा आया तो शाम को निकल पड़े। स्नान करने के साथ मन में उछाह था दीपदान करने का। नर्मदा के विशाल विस्तार पर टिमटिमाते दीप मंथर गति से आगे बढ़ते हैं जिन्हें देखकर ही मन को सुख मिलता है। बस आजकल जिस तरह प्लास्टिक के दोने में रखकर दीप प्रवाहित करते हैं वह मुझे नहीं करना था। घर से घी में डूबी फूलबत्ती तो रख लीं लेकिन उन्हें जलाने के लिए आटे के दीपक नहीं बना पाए इसलिये जामुन के कुछ पत्ते तोड़कर रख लिये।

स्नान के लिए दो आप्शन थे एक महेश्वर का अथाह जल और दूसरा मंडलेश्वर का धीरे-धीरे ढलता किनारा। पिछली बार महेश्वर में स्नान करते जब पैर नीचे की सीढ़ी पर रखना चाहा वह अथाह तल की ओर चला गया और मैं बस डूबने लगी। मुझे संभालने में पतिदेव के भी पैर उखड़ गये और वे घबरा गये इसलिये आज जब लगभग अंधेरा हो चला था महेश्वर में स्नान करने की हिम्मत नहीं हुई। इसलिये रास्ता पूछते हम पहुँचे मंडन मुनि की नगरी मंडलेश्वर के घाट पर।

पत्थरों से बना घाट धीरे-धीरे पानी में उतरता है और जितनी गहराई तक जाना हो वहीं रुकने के लिए जमीन दे देता है। कमर से थोड़े ऊपर पानी में डुबकियाँ लगा लगाकर नहाए। पैरों के नीचे एक सुदृढ़ तल बड़ी आश्वस्ति था। नहाकर नदी को अर्ध्य दिया और बाहर निकले। कपड़े बदलने के लिए यूँ तो चेंजिंग रूम हैं लेकिन चूंकि अंधेरा था और तट बिलकुल खाली तो वहीं थोड़ी आड़ करके कपड़े बदले।

पूजा करके जामुन के पत्ते पर एक एक फूलबत्ती रखकर जलाई और नदी में प्रवाहित कर दी। हल्की-फुल्की बत्ती को पत्ते ने आसानी से वहन किया और नदी के मंधर बहाव के साथ दूर तक बहते चले गये। चूँकि रात नदी के तल पर फैल चुकी थी नावें बंद हो चुकी थीं और कोई स्नानार्थी नहीं थे इसलिए दीपों की इस यात्रा में कोई अवरोध नहीं था।

बस संतोष इस बात का था कि कुछ दिनों में पत्ते सड गल जाएंगे और बत्ती जलकर राख हो जाएगी और नदी में कोई प्रदूषण नहीं होगा।

बस इस तसल्ली के साथ नर्मदा स्नान पूर्ण हुआ।

हर हर नर्मदे

Thursday, July 13, 2023

घूंट घूंट उतरते दृश्य

 #घूंट_घूंट_उतरते_दृश्य

एक तो अनजाना रास्ता वह भी घाट सड़क कहीं चिकनी कहीं न सिर्फ उबड़ खाबड़ बल्कि किनारे से टूटी। किनारा भी पहाड़ तरफ का तो ठीक लेकिन खाई तरफ का जहाँ से निकलने में रीढ़ की हड्डी में सिरहन दौड़ जाये। यही क्या कम था कि बीच-बीच में हवा के झोंकों के साथ आते बादल पूरी सड़क ही नहीं पेड़ पहाड़ सभी को ढंक लें। आपको पता ही न चले कि कितनी देर बाद कितनी दूर कितना तीखा मोड़ किस दिशा में आयेगा। हम बस चले जा रहे थे और तभी अचानक सड़क किनारे खड़ी वे दिखीं। गाड़ी की गति धीमी ही थी उन्हें देख और धीमी हो गई। बादलों के बीच बारिश हो न हो कोई फर्क कहाँ पड़ता है वे आपसे टकराते हैं और अपने संचय जल से कुछ नमी आपको दे देते हैं बिना मांगे बिना आपके चाहे।

इन बादलों के बीच वे खड़ी थीं हाथ में दोने लिये जामुन ले लो।

न जाने कितने बादल उनसे बिना जामुन लिये उन्हें अपनी नमी से तर करके चले गये थे। वे गीली तो नहीं थीं लेकिन नम थीं। बाल कपड़े हाथ और कुछ कुछ आँखें।

जामुन ले लो जामुन ले लो। कार का शीशा नीचे होते ही उनकी आवाज ही नहीं उनके हाथ भी अंदर चले आये। ताजा जामुन बारिश में गिरे धुले और कुछ पिलपिले। उनकी आँखों में उम्मीद की किरण कि जामुन उन्हीं से लिये जाएंगे।

अरे अरे आराम से कितने के दिये।

दस रुपये।

क्या नाम है तुम्हारा?

मैं अर्चना ये विमला ये वंदना।

स्कूल नहीं जातीं?

जाते हैं।

अब ध्यान गया अरे हाँ ये यूनीफॉर्म पहने हैं।

स्कूल के बाद जामुन बेचती हो यहाँ अकेले जंगल में डर नहीं लगता?

जवाब में बस एक मुस्कान ही मिली शायद लगता हो लेकिन दस रुपये कमा पाने के लिए डर पर काबू पाना जरूरी है।

एक दोना लेते ही दूसरी दोनों के चेहरे उदास हो गये।

बादल तेजी से रास्ते को घेर रहे थे इतने सारे जामुन खायेगा कौन का ख्याल था। तुमसे लौटते समय लेंगे। हाथ में दस दस के दो नोट कुलबुला तो रहे थे लेकिन कहीं उनके स्वाभिमान को धक्का न लगे इसलिये देने की हिम्मत न हुई।

गाड़ी तेजी से आगे बढ़ गई तभी ध्यान आया अरे हम तो सुबह लौटेंगे तब वे स्कूल में होंगी। तब तक गाड़ी एक तीखा मोड़ लेकर और ऊपर चढ़ गई और घने बादलों के बीच लेकिन उनकी आँखों में उतर आये बादल अभी भी उस एक दोने में गाड़ी में रखे हुए हैं।

#तोरणमाल

Friday, June 23, 2023

यादगार सफर

 पिछली बार की खरगोन यात्रा खतरों के खिलाड़ी वाली रही। शाम छह बजे निकली थी यह सोचकर कि डेढ़ घंटे में जाम घाट उतर जाऊँगी। उसके बाद अंधेरा हो जायेगा इसलिये हसबैंड से कहा था कि वे मंडलेश्वर के आगे चौली गाँव तक आ जाएं। लेकिन चार बजे खूब तेज बारिश हो गई। उसके बाद हसबैंड से बात नहीं हुई तो चाय बनाकर मैं थोड़ा अलसा गई। फिर अचानक धुन चढी कि नहीं बस अभी जाना है। तैयारी करके निकलते सवा छह बज गये ।

जाने की धुन में दाँए बाएँ सोचा नहीं। सोचा नहीं कि महान इंदौर के उटपटांग छोटे अंडरपास में जाम लगा होगा बस निकल गई। चार किलोमीटर बाद अंडरपास पर आधा घंटा लग गया। वहाँ से आगे बढ़ी तो रालामंडल फाटे पर फिर जाम था।

बादल घने थे सामने बिजली ऐसे चमक रही थी मानों आसमान से धरती तक रास्ता बनाकर उतर रही है। अंधेरा हो चुका था लेकिन गाड़ी पलटाकर वापस जाने की जगह नहीं थी। फिर खरगोन भी तो जाना था पतिदेव मंडलेश्वर पहुंच चुके थे।

खैर सोचा जो होगा देखा जाएगा खरगोन तो अभी जाना है।

बायपास से राऊ तरफ मुड़ी ही थी कि जोरदार बारिश शुरू हो गई इतनी तेज कि पचास मीटर दिखाई न दे। यही काफी न था महू में लाइट नहीं थी। टोल क्रास करते ही सड़क जिस तरह लहराती है उसके बलखाते डिवाइडर से गाड़ी टकराते बची।

 तभी पतिदेव का फोन आया। बेचारा धक से हुआ मन उनके सहारे को मचल उठा और मैंने बड़ी उदारता से कहा कि एक काम करो जाम घाट के ऊपर आ जाओ क्योंकि बहुत रात हो गई है और यहाँ तेज पानी गिर रहा है। यह कहकर मानों अहसान ही किया था उन पर क्योंकि मैं तो रात में गाड़ी चलाने का एडवेंचर करना चाहती थी जो उन्हें टेंशन देता और मैंने उन्हें उससे बचा लिया।

खैर महू क्रास करते पानी बंद हो गया लेकिन शहर के बाहर घुप्प अंधेरा और नागिन सी लहराती बलखाती सड़क जो अंधेरे में पता ही नहीं चल रही थी कि किस तरफ मुड रही है। वहाँ आंधी-तूफान अभी-अभी गुजरा था इसलिये जाम घाट में रुकी हुई गाड़ियाँ सामने से आ रही थीं जिनकी तेज हेडलाइट मानों अंधा किये दे रही थी। 

जाम घाट के बारह किलोमीटर पहले घाट शुरू हो जाता है जहाँ सड़क किनारे से काफी ऊँची है और इस अबूझे अंधेरे में डर था कि कहीं गाड़ी सड़क से उतर कर गिर न जाये। इस इलाके में फोन को सिग्नल भी नहीं मिलते कि किसी को मदद के लिए बुला लें या कि बता सकें कि कहाँ हैं। अब एक बार फिर मोबाइल चैक किया। डर से थरथराती एक दो डंडी देख उन्हें बस थाम लिया और पतिदेव को फोन लगाया। बताया कि कुछ दिखाई सुझाई नहीं दे रहा है इसलिए जाम घाट से आगे आ जाओ। उन्होंने पूछा कहाँ बडगोंदा ग्रिड पर रुक जाना।

पता नहीं ये बिजली वालों को अंधेरे में भी ग्रिड डीपी डबल सर्किट कैसे दिख जाते हैं। मैं झुंझलाई अरे यार चलते रहो उस तरफ आने वाली मेरी अकेली गाड़ी है दिख जाएगी। जहाँ दिखे हाथ दे देना।

अब यह नहीं बताया कि एक गाड़ी बड़ी देर से मेरे पीछे पीछे चल रही है। पता नहीं वह भी अंधेरे अबूझ की मारी है या साइड मिरर में उसे अकेली महिला ड्राइवर दिख गई। खैर जो भी हो ऐसे रिस्क लेने की अभी कोई इच्छा नहीं थी। (वैसे अंधेरी बरसती रात में पति से मिलने जाना कोई रिस्क थोड़ी था। जरा सोहनी महिवाल को याद कर लीजिये।)

आजकल खूब सारी सस्पेंस थ्रिलर हाॅरर स्टोरी पढ रही हूँ इसलिए दो तीन बार ऐसा लगा जैसे पैसेंजर साइड की खिड़की के बाहर कोई साथ-साथ दौड़ रहा है। चौंक कर उधर देखा सिर झटका फिर सड़क ढूंढने लगी । चार साल से आना-जाना कर रही हूँ कितनी बार पढ़ा कि तेंदुए की एक्टिविटी है वह कभी नहीं दिखा तो भूत क्या दिखेगा? 

थोड़ी देर बाद एक गाड़ी ओवरटेक की जिसका नंबर एम पी 10 था। अरे ये तो खरगोन की गाड़ी है और मैं उसके पीछे चलती रही।

कहते हैं अंधेरे में दिमाग की क्रियाशीलता कम हो जाती है यह तब पता चला जब वह गाड़ी आगे रुकी और उसमें से एक हाथ निकला। अरे ये तो साहब की गाड़ी है ओह बढ़िया एक गहरी सांस आई जो इतनी देर से बस जरूरत भर चल रही थी। तुरंत गाड़ी रोकी अपना पर्स उठाया और जाकर उनकी गाड़ी में बैठ गई। उनके ड्राइवर ने मेरी गाड़ी ले ली और हम जाम घाट से उतरते मंडलेश्वर आ गये।

वैसे घाट उतरते एक अफसोस हुआ कि खुद को गाड़ी चलाना था अंधेरे में घाट उतरना एक अद्भुत अनुभव होता। खैर वह भी एक दिन करूँगी उस दिन के लिए काफी एडवेंचर हो चुका था।

 बारिश होकर बंद हो गई थी लाइट आ गई थी और ड्राइवर का गांव मंडलेश्वर के पास था। पतिदेव ने पूछा वहाँ से तुम ले लोगी गाड़ी या उसे खरगोन ले चलें फिर किसी के साथ वापस छुड़वा देंगे। तब तक रात के ग्यारह बज रहे थे। मैंने कहा अब वो जाएगा फिर वापस घर पहुंचेगा उसे आधी रात हो जायेगी रहने दो मैं ले लूंगी गाड़ी। यह नहीं कहा कि घाट पर गाड़ी न चला सकने का दुख रात में बाकी रास्ते गाड़ी चलाकर कुछ कम कर लूँ।

मंडलेश्वर टोल पर एक बार फिर गाड़ी अदला-बदली हुई और इस बार आगे पायलट कार थी जिसके टर्न सिग्नल ब्रेक लाइट देखकर सुरक्षित चलते हम छह घंटे में रात बारह बजे खरगोन पहुंचे।

हाँ तो लब्बोलुआब यह है कि इस बार जब खरगोन आना था मैंने कल शाम आने का विचार किया लेकिन हवा पानी और ट्रैफिक जाम की स्थिति देख विचार त्याग दिया। आज सुबह जल्दी जल्दी करते भी 6:55 पर इंदौर से निकली। चालीस मिनट में महू पहुंच कर पांच मिनट जाम घाट पर रुकी पानी पिया फोटो खींची और दो घंटे बीस मिनट में खरगोन पहुंच गई।

वह सफर भी यादगार था यह सफर भी यादगार रहा दोनों के अपने अपने कारण थे। 

Wednesday, June 14, 2023

पहली बार मीठी याद

 जीवन में बहुत कुछ या सभी कुछ पहली बार होता है और वह पहली बार एक याद छोड़ जाता है चाहे मीठी या खट्टी कड़वी।

कल ऐसा ही एक पहली-पहली बार हुआ।

भाई बहुत सालों बाद भारत आया है। मेल मुलाकातों का दौर चल रहा है। कल रात वह घर आया हम देर तक बातचीत करते रहे फिर खाना खाने बाहर गये। होटल के बाहर गाड़ी पार्क करके हम उतरे और डाइनिंग में पहुँचे तभी उसके मोबाइल पर पापाजी का फोन आया। उनसे बात करते उसने कहा जीजाजी को काॅल कर।

मैंने पर्स खोला मोबाइल निकालने के लिए लेकिन उसमें मोबाइल नहीं था। हडबडाना स्वाभाविक था मैंने दो बार बैग चैक किया कुर्ते की जेब चैक की मोबाइल कहीं नहीं था।

घर से निकलते समय पतिदेव का फोन आया था मैंने ताला लगाते हुए बताया था उन्हें कि हम बाहर जा रहे हैं और फोन साथ रखा था फिर फोन कहाँ गया?

भाई ने पूछा जीजाजी का नंबर याद है? उसने टेम्पररी एक नंबर लिया है भारत का उस फोन में नंबर सेव नहीं था।

संयोग से मुझे सिर्फ एक ही नंबर याद है पतिदेव का मैंने तुरंत उसे बताया।

वहाँ से क्या कहा गया नहीं पता लेकिन वह तुरंत उठ खड़ा हुआ ओके ओके हम जाते हैं।

उसके पीछे पीछे मैं भी उठ गई। उसने चलते हुए बताया कि जीजी तेरा फोन नीचे गिर गया है और किसी के पास है वह नीचे इंतजार कर रहे हैं।

तब तक उसने मेरे मोबाइल पर फोन लगा दिया। लिफ्ट से रूफ टाप से नीचे आते वह लगातार बात करता रहा कि बस हम आ रहे हैं दो मिनट रुकिए।

बाहर गाड़ी के पास दो युवक खड़े थे यही कोई 25=28 साल के। चूंकि बात करते करते ही हम वहाँ पहुँचे थे इसलिए पहचान का कोई संकट उपस्थित नहीं हुआ। भाई का नंबर सेव था।

उन्होंने फोन वापस किया और बताया कि वे यहीं खड़े थे आपने गाड़ी खड़ी की तब तक यहाँ कुछ नहीं था और अचानक हमें फोन दिखा। चूंकि उसमें लाॅक नहीं था और लास्ट काॅल पापा न्यू के नाम से सेव था इसलिए उस पर काॅल लगा दिया।

हमें लगा आप यहाँ नहीं हैं तो हम थाने में जमा करवाने जा रहे थे।

उन्हें खूब सारा धन्यवाद दिया और उनका नाम पूछा वह विपुल तिवारी था बनारस से। इंदौर में उसका अपना होटल है।

संयोग से भाई अभी बनारस यात्रा करके आया है और अभी भी बनारस के प्रभाव में है। मैं बनारस जाने के दो मौके अपने अनमनेपन में छोड़ चुकी हूँ और बनारस इस तरह भी मुझे इस बात का अहसास करवा रहा है।

जब से मोबाइल रखना शुरू किया यह पहली बार था कि फोन गुमा लेकिन एक मीठी याद बनाकर उसका वापस मिलना हमेशा याद रहेगा।

#Banaras

#yaad 

Monday, June 5, 2023

ऐसे सहेजें बारिश का पानी

 बाइस साल पहले मैंने जब इस नई बनी कालोनी में मकान बनाया था मेरे बगल के दो प्लाट खाली थे। बारिश में मैंने देखा कि इन प्लाट पर आने वाला बारिश का पानी तीन-चार घंटे में जमीन में समा जाता है। बारिश के मौसम में वे प्लाट डेढ़ दो फीट भर जाते और खाली हो जाते। हर बारिश में ऐसा चार पाँच बार होता।

मैंने उन प्लाटस् पर कभी गाड़ी नहीं खड़ी की। उन पर लगी झाड़ियां भेड़ बकरियों ने खाईं लेकिन उन्हें कटवाया नहीं। पूरे साल विशेषकर बारिश के पहले उन पर हवा में उड़कर आई प्लास्टिक की पन्नियों को इकठ्ठा करके हटाया।

कुछ सालों में आसपास मकान और सड़क बनने के कारण वहाँ पानी की आवक कम हो गई। हमने फावडे से नालियाँ बनाकर सड़क का पानी इन दो प्लाट पर उतारा। 

यहाँ तक कि अपने ट्यूबवेल की रीचार्जिंग के अलावा पोर्च का पानी भी इन खाली प्लाट में उतार दिया। 

हर साल तीन-चार बार डेढ़ दो फीट पानी भरने का सिलसिला पिछले बाईस साल से जारी है।

एक दिन मैंने हिसाब लगाया तीस पचास के दो प्लाट मतलब तीन हजार स्क्वेयर फीट में हर साल एवरेज पाँच फीट पानी भरा और जमीन में चला गया। मतलब तीन हजार स्क्वेयर फीट का कुंआ जिसमें बाईस साल में 110 फीट पानी जमा हुआ। आगे भी जबतक मकान नहीं बनेगा इसकी ऊंचाई बढ़ती रहेगी।

सोचती हूँ इतना पानी मेरे दो बच्चों के पूरे जीवन भर के लिए पर्याप्त होगा। हर बार जब भी बारिश होती है और खाली प्लाट भरते हैं मैं ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ इस पानी को मेरे बच्चों के अकाउंट में लिख देना प्रभु।

बच्चे अपने लिये पैसा तो खुद कमा लेंगे लेकिन हवा और पानी हमें उनके लिए छोड़ कर जाना होगा।

इस बारिश आप भी अपने बच्चों के अकाउंट में पानी जमा करना शुरू करिये। अपने घर के आसपास न हो तो सामने की जगह पर करिये कालोनी के किसी भी खाली प्लाट पर करिये अकेले नहीं तो सामूहिक रूप से करिये। यकीन मानिये ऊपर वाले का हिसाब किताब बहुत पक्का होता है। आपकी बचत आपके बच्चों को ही मिलेगी।

#पर्यावरण

#जल_संरक्षण

#environment_day

#water_conservation

Saturday, March 18, 2023

बैंक में एक दिन अनायास

  

कल एक प्रायवेट बैंक में जाना पड़ा। पड़ा इसलिये क्योंकि मैं ज्यादातर बैंक जाना बिल भरना सब्जी खरीदने जैसे काम करना पसंद नहीं करती लेकिन ऐसा भी नहीं है कि मुझे ये काम नहीं आते। आते भी हैं और जरूरत होने पर करती भी हूँ। अब चूँकि पतिदेव का प्रमोशन हो गया है और उनका वर्किंग डे में इंदौर आना कम ही होता है इसलिये काफी समय से पेंडिंग यह काम मैंने ही करने का सोचा। 
हाँ तो हुआ यह कि बैंक में कुछ पैसे जमा करवाना था और बहुत दिनों से पासबुक अपडेट नहीं करवाई थी उसमें मेरी कुछ कहानियों के पेमेंट भी थे इसलिए उसे अपडेट करवाना थी। 
हाँ तो मैं एक प्रायवेट बैंक गई जो घर से आधा किलोमीटर दूर होगा। मैंने डिपाजिट स्लिप भरी और काउंटर पर पहुँची। काउंटर पर एक लड़की ने स्लिप ली और नोट गिनने वाली मशीन में डालकर गिनने के बजाय सीधे नोट छांटने वाली मशीन में डाल दिए। मैं सामने खड़ी मानिटर पर नंबर देख रही थी और वह नंबर उससे कम था जितने नोट मैंने दिये थे। मुझे आश्चर्य हुआ क्योंकि मैं घर से ही नोट गिनकर और एक स्लिप पर लिखकर ले जाती हूँ। 
"मैंने पूछा ये कितने नोट हैं ये नोट कम हैं क्या?" 
एक दो बार कोई जवाब नहीं मिला फिर उसने बताया कि नहीं नोट बराबर हैं। 
"ठीक है सिस्टम का कोई पेंच होगा सोचकर मैं शांति से खड़ी रही। 
ट्रांजेक्शन होने के बाद उसने पूछा" ये आपका रजिस्टर्ड फोन नंबर है?"
" हाँ" 
" अभी इस नंबर पर एक मैसेज आयेगा वह आप मुझे मेरे नंबर पर फारवर्ड कर दीजिए"। कहकर उसने अपना फोन नंबर उसी स्लिप पर लिख दिया। 
"कैसा मैसेज?"
"फीडबैक के लिए लिंक आयेगा आप मुझे भेज दीजिये मैं भर दूँगी।" 
कमाल है मैंने मन में सोचा।" फीडबैक का लिंक है न तो मैं भर दूंगी क्या दिक्कत है?"
" नहीं वह पाइंट रहते हैं न इसलिये।" 
मैंने कुछ नहीं कहा। आजकल फीडबैक पाइंट मार्केटिंग पर दुनिया चल रही है। खैर यह बेटी का अकाउंट था अब मुझे अपने अकाउंट में डिपाजिट करना था। 
मैंने स्लिप और पैसे उसे दे दिये। उसने पैसे काउंटिंग मशीन पर काउंट करने के बजाय नोट छांटने वाली मशीन पर रख दिए। नोट पुराने थे या ठीक से रखे नहीं गये इसलिए वे मशीन में फँस गये।
उसने एकाध बार निकालने की कोशिश की फिर आवाज लगाई भैयाsss
पास ही खड़े प्यून कम आफिस असिस्टेंट, कैशियर बाक्स के अंदर गया।
"भैया ये देखिये न नोट फँस गये इसे निकालिए न।" 
मशीन में सिर्फ एक कवर था जिसे ऊपर उठाकर नोट निकालना था जिसे करना उसके लिए शायद बहुत कठिन था या डाउन ग्रेड काम इसलिये उस कैशियर केबिन में जहाँ किसी का जाना मना होता है वहाँ भैया फँसे नोट निकाल रहा था।
नोट निकलने के बाद उसने फिर उसमें डाले नोट फिर फँस गये। फिर मशीन खोली गई। 
"सारे नोट निकल गये" ? मैंने पूछा। 
"हाँ" कहकर उसने फिर अंदर देखा तो एक नोट बाहर आया। 
"ठीक से देखो" 
इस बार दो और नोट बाहर आये। एक बार फिर नोट मशीन में लगाए गए। 
भैया कहता रह गया "मैडम ये दूसरी मशीन है उसमें लगाकर गिन लो" लेकिन मैडम स्मार्ट वर्क में विश्वास करती हैं वे दो बार काम क्यों करतीं? वे एक ही बार में नोट गिनकर खराब नोट छांट लेना चाहती थीं। इस बार फिर नोट फँस गये फिर निकाले गये।
अब आधे नोट भैया को दिये गये आधे खुद के हाथ में पकड़े और गिनना शुरू किया। भैया ने गिने उनचालिस मैडम ने कभी एक एक कभी दो को एक कभी एक को दो करते गिने और गिनती बताई। अब हुआ यह था कि मैंने गड्डी दी थी और इस गिनती के अनुसार ग्यारह नोट कम थे। 

मैंने कहा "मशीन में फिर से देखो और नोट तो नहीं फँसे हैं नीचे तो नहीं गिरे हैं" । 
हुआ यह था कि वह पूरी गड्डी थी इसलिए मैंने गिनती नहीं की थी। 
उसने एक बार फिर देखा और कहा "नहीं हैं मैम आप एक बार फिर गिन लीजिये।" 
खैर मैंने गिना 89 नोट ही थे और मुझे उस पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं दिखा इसलिये मैंने उसमें एक नोट और मिलाकर राउंड फिगर किया।
अब हुआ यह कि डिपाजिट स्लिप का अमाउंट कुछ और था और रुपये कुछ और। मैडम ने मेरी स्लिप लेकर उसमें करेक्शन करना शुरू कर दिया। मैं देखती रही कि हो क्या रहा है क्योंकि वह स्लिप इतने करेक्शन के साथ बेकार ही थी। 
फिर आवाज लगाई गई " भैया एक स्लिप ले आइये।" 
स्लिप आई और उन्होंने उसे भरना शुरू कर दिया। अकाउंट नंबर लिखते हुए कोई नंबर बाक्स के ऊपर कोई लाइन पर कोई बाहर कोई नीचे। 
"आप जिस तरह से अकाउंट नंबर भर रही हैं ये आप खुद भी दस मिनट बाद पढ नहीं पाएंगी।" मैंने कहा।
"वो बाक्स हैं ही इतने छोटे"
"अच्छा। बैंक की एक्जाम देते ओएमआर शीट में भी इतने ही बड़े  बाक्स होंगे न वे भी ऐसे ही भरे थे? अगर बाक्स इतने छोटे हैं तो कस्टमर को ऐसी स्लिप क्यों देते हैं बड़े बाक्स के साथ छपवाइये न।" अब यह लापरवाही बर्दाश्त से बाहर होने लगी लेकिन फिर भी मैंने आराम से कहा।

फिर मुझे याद आया "आपने स्लिप में मेरे साइन तो लिये नहीं।"
"हाँ तो आप साइन कर दीजिए।" कहने का अंदाज इतना लापरवाह था कि जैसे साइन होने न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता फिर भी आपको करना है तो कर दीजिए। 
अब मैंने मन बना लिया।" शिकायत पुस्तक कहाँ है दीजिये मुझे।"
" किस लिये?"
" किस लिये? सच में! आपको यह पूछने का अधिकार है? " ओफ्फ मैं अभी तक बाल नहीं नोचने लगी थी यह अजूबा ही था मेरे लिए।
"भैया" उसकी नौकरी में भैया कितना बड़ा सहारा थे पता नहीं उसे और भैया को इस बात का एहसास भी था या नहीं।
खैर मेरे पैसे जमा हो गये थे अब मुझे पासबुक में एंट्री करवाना था इसलिए मैं दूसरी डेस्क पर आ गई। 
पांच मिनट बाद वह भी बगल वाली अपनी डेस्क पर आ गई। दो मिनट अपने कंप्यूटर पर कुछ काम किया और फिर मेरी तरफ पलटी "मैम आपकी पासबुक दीजिये न प्लीज आपका अकाउंट नंबर देखना है।"
वही हुआ वह अपनी ही राइटिंग समझ नहीं पा रही थी। 
"पासबुक! मैंने आपको पहले ही कहा था कि आप इसे पढ नहीं पाएंगी। मान लीजिए अगर मैं यहाँ नहीं रुकती और चली गई होती तो आप मेरा पैसा किस अकाउंट में डालतीं? या मुझे फोन करके घर से बुलवातीं? ये क्या तरीका है काम करने का?"
अब मुझे थोड़ा तैश आने लगा। "कंप्लेन बुक कहाँ है भैया जब तक मुझे कंप्लेन बुक नहीं मिलेगी मैं यहाँ से नहीं जाऊंगी।"
" मैडम वो ब्रांच मैनेजर के पास है।" अब मेरी आवाज़ कांच के केबिन के अंदर चली गई या शायद अंदर तो पहले ही चली गई थी अब उसकी दृढ़ता ने एक संदेश अंदर पहुँचा दिया। अंदर से ब्रांच मैनेजर बाहर आये। 
" क्या हुआ मैडम? "
" ये स्लिप देखिये और तय कीजिये क्या इसे ऐसे भरा जाना चाहिए था? अगर मैं चली गई होती तो अकाउंट नंबर अंदाजे से भरा जाता? किस अकाउंट में डालते आप यह पैसा?"
मैनेजर ने स्लिप देखी और उन्हें समझ आ गया कि बात गंभीर है "मैम प्लीज आप अंदर आइये।"
अब अंदर केबिन में बैठकर फिर पूरी बात बताई गई शिकायत पुस्तक ली गई और पूछा कि क्या एम्पलाईज् को कैश काउंटिंग मशीन खोलना भी नहीं आता? स्लिप भरना, स्लिप में नंबर भरना इतना मुश्किल काम है कि ठीक से नहीं किया जा सकता जबकि बैंक में कुल जमा तीन कस्टमर हैं पिछले आधे घंटे में। सरकारी बैंक में इतनी देर में तीस कस्टमर आ चुके होते।
प्रायवेट बैंक में हैंडसम सैलरी है लेकिन फिर भी काम करने का इतना गैर जिम्मेदार रवैया लापरवाही क्यों है?
एक गलती होती तो मैं नजरअंदाज कर देती लेकिन यहाँ तो गलतियों लापरवाही की सीरीज थी कब तक और क्यों नजरअंदाज किया जाना चाहिए। 
मुझे उस लड़की से कोई दुश्मनी नहीं है लेकिन शिकायत करना जरूरी था ताकि काम करने का रवैया सुधरे सिस्टम सुधरे। 

Saturday, March 11, 2023

टेसू तेरे रंग अनेक

 टेसू का नाम आते ही गहरे नारंगी लाल रंग के फूलों की तस्वीर आँखों में आ जाती है। होली के पहले ही इनकी आमद हो जाती है और ऐसा लगता है मानों जंगल में आग लगी हो।

खरगोन जाते हुए जंगल से भरी घाटियाँ पड़ती हैं। घाट सेक्शन में सफर मेरे लिए बहुत मुश्किल होता है लेकिन फिर भी इस जंगल का मोह मुझे इसी रास्ते पर ले जाता है।

इस साल टेसू जी खोल कर फूला है। जंगल में दूर दूर तक लाल फूलों से लदे पेड़ बार बार रुकने को मजबूर करते हैं लेकिन रुक जाने भर से मन नहीं भरेगा और मंजिल तक पहुँचना मुश्किल हो जायेगा इसलिये बस चलते रहते हैं।

पतिदेव के प्रमोशन के साथ एक मुश्किल यह हुई कि अब उनका इंदौर आना जाना कम हो गया। हेडक्वार्टर न छोड़ने की मजबूरी लेकिन मुझे तो इंदौर खरगोन दोनों ही घर देखना है।

होली पर अकेले ही थी लेकिन रंगपंचमी साथ मनाने के लिए आज सुबह इंदौर से अकेले ही गाड़ी लेकर निकल पड़ी।

गाड़ी तो लेने आ भी जाती लेकिन सामने सीट पर सफर में इतने चक्कर आते हैं कि पीछे सीट पर बैठ कर सफर बिलकुल असंभव है।

तो हुआ यह कि गाड़ी तो अपनी पूरी रफ्तार में थी टेसू लाल रंग दिखा रोक रहे थे लेकिन मन कड़ा कर उन्हें बाय कहते बढ़ती जा रही थी। एक कारण और था रास्ते में न रुकने का। कई जगह साथ चलती गाड़ी ओवरटेक करते लोग गाड़ी में झांक कर सुनिश्चित कर रहे थे कि बयडी अकेली छे।

तभी अचानक ऐसा कुछ दिखा कि अस्सी की गति को झटके से विराम देना पड़ा।

अहा सड़क किनारे केसरिया रंग का टेसू।

टेसू या पलाश का एक और रंग है पीला यह तो पता था। घाटी में पीले रंग के टेसू के आठ दस पेड़ हैं जिन्हें पिछली बार भी देखा था और पिछले बरस भी। उनके बारे में लिखा नहीं क्योंकि फिर शायद वे फूल बच नहीं पाते लेकिन यह तो एक अनोखा रंग है।

गाड़ी तुरंत पीछे ली और दो चार फोटो लीं। अहा आज की यात्रा का प्रतिसाद। मन तो नहीं था कि इस दुर्लभ पेड़ के बारे में बताऊँ क्योंकि ज्यादा जानकारी पेड़ के लिए खतरा हो सकती है लेकिन दुर्लभ है इसलिए जानकारी देना जरूरी है ताकि संरक्षण किया जा सके।

अगर आपको सफर में यह पेड़ दिखे तो बस दूर से देखिये फोटो लीजिये फूल तोड़ने की कोशिश मत कीजिये क्योंकि एक पेड़ के फूलों पर ही बीज बनाने का और अपनी प्रजाति को बचाने का भार होता है।

फोटो में तीनों रंग के टेसू देखिये और प्रकृति द्वारा दी जा रही होली और रंगपंचमी की शुभकामनाओं को दिल से महसूस कीजिये।

नर्मदे हर

 बेटियों की शादी के बाद से देव धोक लगातार चल रहा है। आते-जाते रास्ते में किसी मंदिर जाते न जाने कब किस किस के सामने बेटियों के सुंदर सुखद जी...