Friday, October 26, 2012

लड़कों में आत्मघाती प्रवृत्ति

आज सुबह का अखबार पढ़ते ही मन दुखी हो गया।मेडिकल फाइनल के एक छात्र ने इसलिए फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली क्योंकि उसकी प्रेमिका की सगाई कहीं और हो गयी थी।उस छात्र के जीजाजी जो की खुद मेडिकल ऑफिसर है ने एक दिन पहले उसे इसी बारे में समझाइश भी दी थी लेकिन रात  वह होस्टल के कमरे में अकेला था और उसने इसी अवसाद में फांसी लगा ली।  इसी के साथ एक और खबर थी की मेडिकल के जुड़ा के अध्यक्ष ने दो महीने पहले इसी कारण  की उसकी प्रेमिका की किसी और के साथ शादी हो गयी आत्महत्या की कोशिश की थी और वह अभी तक कोमा में है। वैसे भी आजकल आये दिन अखबार में युवा लड़कों द्वारा आत्महत्या किये जाने की ख़बरें आम हो गयीं हैं।ये लड़के अवसाद की किस गंभीर स्थिति  में होंगे की उनके लिए उनके माता पिता भाई बहन परिवार जिम्मेदारी कोई चीज़ मायने नहीं रखती और वे इस तरह का आत्म घाती  कदम उठा लेते हैं। 

अगर इस बारे में गंभीरता से सोचा जाये तो हमारे यहाँ का पारिवारिक सामाजिक ढांचा इस स्थिति के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार है। हमारे यहाँ लड़कों को बहुत ज्यादा संवेदनशील न समझा जाता है न उनका संवेदनशील होना प्रशंशनीय बात मानी जाती है। बचपन से ही उन्हें इस मानसिकता के साथ पाला जाता है की तुम लड़के हो तुम्हे बात बात पर भावुक होना या रोना शोभा नहीं देता। इस तरह से एक प्रकार से घर परिवार के लोगों के साथ वे अपनी भावनाएं शेयर कर सकें इस बात पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है। लड़के 10-11 साल के होते न होते अपनी बातें घर के लोगों से छुपाना शुरू कर देते हैं।अधिकतर माता पिता को पता ही नहीं होता की स्कूल में या अपने दोस्तों के बीच बच्चा किस मानसिक दबाव से गुजर रहा है। स्कूल में भी लड़कों पर कई तरह के दबाव होते हैं वहां भी कोई परेशानी होने पर उनकी बात उस सहानुभूति के साथ नहीं सुनी जाती जिस सहानुभूति के साथ लड़कियों की बातें सुनी जाती है। उसके साथी लड़के अगर उसे चिढाते है या उसके साथ उसे अच्छी न लगे ऐसी बातें करते है तो वह इस बारे में न घर पर न ही स्कूल में किसी से कह पाता है। इस उम्र में इतनी समझ भी विकसित नहीं होती की अपने दोस्त की सीक्रेट बातें अपने तक रखी जाएँ।इस तरह यदि कोई बच्चा अपने किसी दोस्त को अपने मन की बातें बताता  भी है तो उसका हमउम्र दोस्त उन बातों  को कभी भी सबके बीच उजागर कर के उसे शर्मिंदा कर देता है।और इस तरह लड़कों में अपनी बातें अपने दोस्तों को भी न बताने की प्रवृत्ति जन्म लेती है। ( फिल्म जिंदगी न मिलेगी दोबारा  इसका बहुत ही बढ़िया उदाहरण है ). 

थोड़े बड़े होने पर हाई स्कूल तक आते आते जब की लड़कों में बहुत सारे परिवर्तन होने लगते है एडोलेसेंस या वयः संधि के परिवर्तन की जितनी जानकारी लड़कियों को दी जाती है लड़कों को वैसी जानकारी देने के इतने प्रयास नहीं किये जाते हैं। परिणाम स्वरुप वह आधी अधूरी जानकारी या हमउम्र साथियों द्वारा मिली गलत जानकारी के आधार पर इनसे जूझता है। यही वह उम्र होती है जब लड़कों में लड़कियों के प्रति आकर्षण बढ़ता है।ऐसे समय में जब उन्हें उनसे दोस्ती की चाह  होती है ये चाह  एक हमदर्द या संवेदनशील दोस्त की चाह ज्यादा होती है। ऐसे में अगर उन्हें एक लड़की की दोस्ती हासिल हो जाये जो वाकई दोस्ती रखना चाहती हो तो ठीक लेकिन अगर वह लड़की किसी कारणवश दोस्ती न करे या दोस्ती तोड़ दे तो उनपर खुद को एक वयस्क के रूप में साबित करने का दबाव रहता है और सिगरेट शराब पीना ,लड़ाई झगडा करके खुद को एक हेरोइटिक इमेज में दर्शाना, दाढ़ी बढ़ाना स्कूल में नियमों को तोडना,टीचर्स के साथ बदतंमीजी करना ,अनापशनाप गाड़ी चलाना आदि इसी के परिणाम होते हैं। असल में लड़के इस उम्र में खुद को एक वयस्क के रूप में स्थापित करने की जद्दोजहद में होते हैं। 

किशोर उम्र की लड़कियों की जितनी जानकारी उनके घरवालों द्वारा रखी  जाती है की वह कहाँ जा रही है किससे मिल रही है लड़कों के बारे में उतनी जानकारी रखना उनके घरवाले जरूरी नहीं समझते,ऐसे में उसकी किसी लड़की से दोस्ती या दोस्ती की हद समझाने के भी बहुत प्रयास नहीं किये जाते हैं। न ही उनकी दोस्ती टूटने की और उससे होने वाले अवसाद की कोई जानकारी परिवार वालों को होती है।ऐसे समय में लडके के बहुत ज्यादा घर से बाहर होने को दोस्तों की गलत संगत पढाई न करना कमरे में अकेले बैठे रहना कान में एयर फोन लगा कर खुद को सबसे दूर रखने की कोशिश को कोई भी उनके डिप्रेशन से जोड़ कर न देखता है न समझता है।ये मान लिया जाता है की इस उम्र में लड़के ऐसे ही हो जाते है और उम्र बढ़ने पर समझ आने पर संभल जायेंगे। पर कभी कभी बहुत देर हो जाती है। 

परिवार की लड़कों से उनके करियर के बारे में भी बड़ी बड़ी उम्मीदें होती हैं।कई बार माता पिता अपनी उमीदें उन पर थोप देते हैं जिन्हें पूरा करना उनके लिए नामुमकिन दिखता है। लेकिन इस बारे में बात करने पर उन्हें माता पिता की नाराजगी ही मिलती है।उन्हें पढाई करो तो क्या नहीं कर सकते,दोस्तों को छोड़ने टी वी न देखने जैसी ढेरों हिदायतें मिल जाती हैं। 

लड़कों का ये अकेलापन उनकी उम्र की हर स्टेज पर देखने को मिलता है।वे अपने दुःख,अपनी चिंताएं अपने घरवालों से आसानी से शेयर नहीं करते।यहाँ तक की अपनी पत्नी से भी वे कई बातें छुपा जाते हैं।लेकिन जब परेशानियाँ हद से बढ़  जाती हैं तब घर छोड़ कर चले जाना या आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं।आज आये दिन अख़बारों में वयस्क व्यक्तियों द्वारा कर्ज का बोझ बढ़ने या पारिवारिक समस्याओं से जूझने में असमर्थ रहने पर आत्महत्या कर लेने की ख़बरें बहुत आम हो गयीं हैं। 

अब समय आ गया है जब की लड़कों को भी मजबूत भावनात्मक सहारे का एहसास करवाया जाये। 
परिवार,स्कूल में उनकी बातें सहानुभूति के साथ सुनी और समझी जाएँ। 
उनकी संगत ,दोस्ती लड़कियों के प्रति उनके आकर्षण को समय रहते समझा जाये और इस दिशा में उन्हें सही समय पर सही सलाह दी जाये। 
उनके भावुक होने को मजाक में न लिया जाकर उन की परेशानियों को समझा जाये और उन्हें इससे उबरने के लिए उचित सलाह दीं जाएँ। 
किशोरावस्था के परिवर्तनों को समझाने के लिए स्कूल में ,परिवार में उन्हें सही समय पर सही मार्गदर्शन दिया जाये। 
बचपन से ही उन्हें सिर्फ दिखावटी मजबूत होने के बजाय वाकई ऐसा मजबूत बनाया जाये की वे अपनी परेशानियों को अपने परिवार के साथ शेयर करें उसमे झिझकें न .
लड़कों की परवरिश में थोडा सा परिवर्तन कर के हम उनपर पड़ने वाले दबावों को कम कर सकते हैं और ऐसी आत्मघाती प्रवृत्तियों से उन्हें बचा सकते हैं। 

Friday, October 19, 2012

समझा जो होता


समझा जो होता 
मेरी विवशता और 
उलझनों को 
जाना जो होता 
मेरी सीमा और 
बंधनों को 
थमा जो होता 
मेरी ख्वाहिशों और
अरमानों को 
पाया जो होता 
मेरे मन की
गहराइयों को
सोचा जो होता
मेरी धडकनों और
सांसों को
महसूस जो होता
मेरे प्यार और
भावनाओं को
यूं चले न जाते
इक पुकार के इंतजार में
पलटकर देखते तो पाते
ठिठके पड़े शब्द
विवशताओं के उलझे धागे में फंसे।

Tuesday, October 16, 2012

कहानी


कहानी 
चूल्हे पर चढ़ी खाली हांड़ी से 
कुछ दाने पके चावल के 
बच्चे को खिलाते  हुए 
माँ का मन कसमसाया होगा 
भूखे बच्चे को थपक सुलाते हुए 
भरे पेट का एहसास कराने 
कहानी में रोटी को 
चाँद से भरमाया होगा। 

दिला दो नए कपडे माँ 
बेटी की जिद पर 
माँ को गुस्सा आया होगा 
लगा दो चांटे उसे चुप कराया होगा 
फटे आँचल से पोंछते आँसू 
बिटिया को बहलाया होगा 
कात रही है सूत बूढी माँ 
तेरी फ्राक बनाने को 
बेटी को सुलाते हुए ये 
सपना उसके मन जगाया होगा। 

खिलौने,कपडे ,रोटी,मिठाई 
झूले,गुब्बारे,दूध की मलाई 
पूरे न हो सकें जो कभी 
लेकिन बनें रहें उनके ख्यालों में 
ताकि उन्हें पाने की आस में 
बच्चे करते रहें कोशिशें 
ऐसे ही किसी ख्याल ने 
माँ के मन में 
कहानी को उपजाया होगा। 

Wednesday, October 10, 2012

आँगन की मिट्टी



कुछ सीली नम सी
माँ  के हाथों के  कोमल स्पर्श  सी
बरसों देती रही सोंधी महक
जैसे घर में बसी माँ की खुशबू
माँ और आँगन की मिट्टी

जानती है 
जिनकी जगह न ले सके कोई और
लेकिन फिर भी रहती चुपचाप
अपने में गुम
शिव गौरा की मूर्ति से तुलसी विवाह तक
गुमनाम सी उपस्थित
एक आदत सी जीवन की
माँ और आँगन की मिट्टी

कभी खिलोनों में ढलती
कभी माथा सहलाती
छत पर फैली बेल पोसती
कभी नींद में सपने सजाती
कभी जीवन की धुरी कभी उपेक्षित
माँ और आँगन की मिट्टी

उड़ गए आँगन के पखेरू
बन गए नए नीड़
अब न रही जरूरी
बेकार, बंजर, बेमोल
फिंकवा दी गयी किसी और ठौर
माँ और आँगन की मिट्टी।






नर्मदे हर

 बेटियों की शादी के बाद से देव धोक लगातार चल रहा है। आते-जाते रास्ते में किसी मंदिर जाते न जाने कब किस किस के सामने बेटियों के सुंदर सुखद जी...