Monday, October 17, 2011

पचमढ़ी यात्रा ३

पता नहीं बच्चों में इतनी ताकत कहाँ से आती है?? सारे समय बच्चे कोरिडोर में चक्कर लगाते रहे कुछ ने तो दरवाजा खटखटा कर बता भी दिया मम हम तैयार है कब निकलना है?? खैर आधे घंटे में क्या तो नींद आनी थी? तैयार हो कर नीचे आ गए. हमारा अगला पड़ाव था जटा शंकर. जटा शंकर  गहरी घाटी में  शिव मंदिर है. जहाँ जाने के लिए सीढियां बनी है. कहीं कहीं घाटी इतनी संकरी है की दोनों तरफ के पहाड़ सर मिलाते से लगते है. यह लगभग ३ किलो मीटर  लम्बी घाटी है.यहाँ एक बड़ी गुफा है जिसमे एक पानी का कुण्ड है .जब आसपास की पहाड़ियों से बहता हुआ पानी यहाँ आता है तो वह आगे घाटी में नहीं बहता बल्कि  इस कुण्ड के नीचे से ही जमीन में समां जाता है ओर लगभग १४ किलो मीटर दूर एक अन्य घाटी में निकालता है. रास्ते में जड़ी बूटियों की दुकाने है लेकिन ये जड़ी बूटियाँ कितनी असली है ये तो पहचानने वाले ही बता सकते है. सालों से बहने वाले पानी के साथ  कचरा प्लास्टिक ओर रेत कुण्ड में जमा होते गए .तब एक साधू ने इस कुण्ड की सफाई करवाई ओर टनों कचरा ओर रेत यहाँ से निकली गयी. प्लास्टिक तो खैर आजकल सर्वत्र है.जहाँ भगवन नहीं पहुँच सकते शायद वहां भी प्लास्टिक की पहुँच है. लेकिन ये सुन कर अच्छा लगा की एक साधू ने एक पौराणिक महत्त्व के स्थान को बचाने  के लिए प्रयास किये.  आज उस स्थान पर उस साधू का नाम कहीं भी अंकित नहीं है. हाँ वहां सीढियां बनवाने वालों के नाम जरूर सीढ़ियों पर खुदे है जिन पर चलते हुए हम नीचे पहुंचे. लेकिन उस साधू का नाम जानने की सच में इच्छा हुई.जो वास्तव में सन्यासी था. जिसने प्रकृति में ही भगवन को पाया.     यहाँ कुण्ड के मुहाने पर एक गुफा है जिसमे करीब ५०० मीटर जाया गया है लेकिन इसका अंतिम छोर कहाँ है ये कोई नहीं जानता. इसी गुफा में से हो कर भगवन शिव भस्मासुर से बचते हुए भागे थे.यहाँ उन्होंने अपने सर्प ओर मकर को छोड़ दिया था भस्मासुर को रोकने के लिए.कहा जाता है  भागते हुए शिव जी की जटाएं यहाँ गिरी थी इसलिए इस स्थान का नाम जटा शंकर है.  गुफा में लाइन से शिवलिंग बने है जो मकर की पीठ की आकृति है  इस  चट्टान का सिरा मकर मुख की आकृति का है. एक चट्टान का आकर शेषनाग की आकृति का है ओर यही यहाँ का मुख्य मंदिर है. यहाँ किसी भी मंदिर में पण्डे पुजारियों की भीड़ नहीं है .न अभिषेक करवाने की जिद्द न चढ़ावे की .हम तो खैर बच्चों के साथ गए थे लेकिन ये स्थान सारा दिन शांति से बैठ कर चिंतन मनन करने के लिए सर्वोत्तम है.खैर पचमढ़ी में ऐसे  कई स्थान है जहाँ   भगवन के साथ खुद को भी पाया जा सकता है. यहाँ चेक पोस्ट के अंदर गाड़ी ले जाने की अनुमति लेनी पड़ती है टेढ़े मेधे कटीले घाटों में फॉर व्हील द्रैवे   वाली गाड़ियाँ ही जा पाती है .लेकिन आप अपनी कार भी ले जा सकते है बशर्ते आप अच्छे ड्राईवर हों. 
हमने वहां से वापसी शुरू की.तभी एक बच्चा रोता हुआ आया उसका पर्स कहीं गिर गया था .उसमे उसके पूरे पैसे थे. जटा शंकर के बाद हमें मार्केट जाना था जहाँ बच्चे अपनी फॅमिली के लिए गिफ्ट लेने जाने वाले थे. खैर उसे तो क्या समझाया जा सकता था जैसे तैसे उसे चुप करवा कर चढ़ाना शुरू किया. तभी हमारे एक साथी सर ने एक पर्स  मुझे दिया.ये कहते हुए की आपकी जिप्सी के ड्राइवर ने दिया है .जिप्सी में जा कर उस ड्राइवर को धन्यवाद दिया  बच्चे के मुख पर मुस्कान देख कर बड़ा सुकून मिला.  


हम वापस होटल पहुंचे वहां बच्चों ने अपना बेग रखा ओर १० -१० बच्चों के ग्रुप के साथ उनके इन्चार्जे  टीचर मार्केट के लिए रवाना हो गए. बच्चों का अपने परिवार के लिए पहली बार अकेले शोपिंग करने का उत्साह देखते ही बनता था. लगभग हर बच्चे ने सबसे पहले अपनी मम्मी के लिए कुछ न कुछ खरीदा. मुझे याद है जब मेरी बेटी पहली बार अकेले गयी थी मेरे लिए एक सूट लाई थी.वह आज भी कितने संभाल कर पहनती हूँ .फिर छोटी बहन भाई दादी.लेकिन पापा के लिए क्या लें ये सबसे बड़ा प्रश्न था?दुकानों पर पापा के लिए कुछ खास नहीं था.वही पेन स्टैंड ,पर्स बस. दादी के लिए छोटे से बालगोपाल,गणेश चूड़ियाँ उनको शोपिंग करते देख कर मन खुश हो गया. खुद के लिए तो शायद ही किसी ने कुछ लिया हो. ओर कई तो ऐसे थे जिन्हें पापा के लिए कुछ लेना है लेकिन सिर्फ १० रुपये  बचे है.अब १० रुपये की चीज़ ढूंढ़ रहे हैं या दुकानदार से मोल भाव कर रहे हैं. या जिसके पास रुपये बचे है उससे उधार ले रहे है. देख कर बड़ा अच्छा लगा. वापसी में भी यही बातें होती रहीं ओर देर रात भी बच्चों के गिफ्ट कमरों में  फैले रहे .कल सुबह रजत प्राप्त जाना है.क्रमश  

7 comments:

  1. रोचक यात्रा वृतांत ...अगले भाग का इन्तजार रहेगा

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  2. आपका लेख देखकर तो मन कर रहा है कि अभी चल दूं, कल तक या परसों तक तो पहुँच ही जाऊँगा

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  3. ji bilkul sandeep ji abhi to sach pachmadhi bahut hi khoobsurat hai

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  4. एक अच्छा यात्रा-वृत्तान्त ! अब इसे भी तो कहोगी किसी से या..."कासे कहूं ?' की रट लगाओगी !

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  5. यात्रा का आनंद आपने भरपूर लिया और हम भी ले रहे हैं बिना टिकिट :)

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  6. यात्रा प्रसंग और बच्चों के उत्साह का जिवंत चित्रण किया है आपने.

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