Friday, October 14, 2011

पचमढ़ी यात्रा २

हम टीचर्स भी गप्पें मारने बैठ गए. अभी सो पाना तो संभव नहीं था. बच्चों के सो जाने के बाद उनके कमरों का चक्कर लगाना था .रात करीब १२ बजे हमने चक्कर लगाया ,तो पता चला २-३ कमरों में टी वी चल रहा है  ओर बच्चे सो चुके है २ कमरों में अंदर से सांकल नहीं लगी है ओर बच्चे बेसुध पड़े है . धीरे से एक बच्चे को जगाकर उससे कहा की अंदर से बंद कर ले.जब सारे कमरे चेक हो गए तब करीब १ बजे हम अपने कमरों में पहुंचे. सुबह ६ :३० पर बच्चों को जगाना था. 
सुबह  चाय  आने से १५ मिनिट पहले ही नींद खुल गयी. चाय आयी तब तक फ्रेश हो कर हम फिर अपने राउंड के लिए तैयार थे. कई बच्चों को तो खूब देर तक उठाना पड़ा तो एक दो उत्साही लाल तो उठ चुके थे. जिसको भी जो पीना था चाय दूध कॉफ़ी ओर ८  बजे  तैयार हो कर नाश्ते के लिए ऊपर पहुँचने के लिए कहा. नीचे  पहुंचे  तो  जिप्सी  आ  गयी  थी . अब  दो  दिन  हमें  जिप्सी  से  घूमना  था . करीब ९ बजे हम जिप्सी से रवाना हुए . 
हमारा  पहला स्पोट था हांड़ी खोह.हांड़ी खोह पचमढ़ी की सबसे गहरी घाटी है. ये इतनी गहरी है की आप इसका तल नहीं देख सकते. इस घाटी में घना जंगल है जिसमे कई ओषधिय  वनस्पतियाँ  पाई जाती है. आदिवासी इन गहरी घनी घाटियों में उतर कर जड़ी बूटियाँ एकत्र करते है. यहाँ १-२ दूरबीन वाले भी बैठे मिले जो घाटी में आदिवासियों के उतरने का रास्ता दूरबीन से दिखाते है. पचमढ़ी के जंगलों में शहद खूब होता है ओर ये शहद अधिक स्वास्थ्य वर्धक माना जाता है क्योंकि ओषधिय  पोधों  के पराग से बनता है.  इसी घाटी के सामने चौरागढ़ की पहाड़ी है.ये मध्य प्रदेश की दूसरी सबसे ऊँची चोटी  है .इस का सम्बन्ध शिव ओर भस्मासुर की कथा से जुड़ा है. कहते है जब भस्मासुर को शिव का वरदान मिला तो उसने शिव के सर पर हाथ रख कर उन्हें भस्म करने के लिए उनका पीछा किया .तब शिवजी भागते हुए इस चोटी पर पहुंचे ओर उन्होंने अपना त्रिशूल उठाया.लेकिन तब तक भस्मासुर वहां पहुँच गया ओर शिवजी को वहां से भागना पड़ा. इस चोटी पर शिव मंदिर है जहाँ लोग अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए त्रिशूल चढाते है. इस समय यहाँ साढ़े तीन लाख त्रिशूल है जिनमे सबसे भरी त्रिशूल ५२१ किलो का है. ओर ये सारे त्रिशूल लोगों ने अपने कंधो पर रख कर ऊपर चढ़ाये है. यहाँ जाने के लिए करीब १५०० सीढियां है जिनमे से करीब २५० सीढियां   बिलकुल खडी है. वैसे हांड़ी खोह सबसे सफल आत्महत्या स्थल भी कहलाता है क्योंकि यहाँ से कूदने वाला अगर जिन्दा बच भी गया तो बाहर नहीं निकाला जा सकता है इसलिए ...खैर यहाँ फोटो खिंचवाते हुए थोडा ओर पीछे जाने का आग्रह सब एक दूसरे से करते रहे. बच्चों को दूरबीन से घाटी ओर चोटी दिखने की व्यवस्था कर दी इसलिए उनका ज्यादा ध्यान नहीं रखना पड़ा. यहीं एक गुलेल वाला भी बैठा था जो १० रुपये में १० कंचे एक पेड़ पर बंधी बोतल में मारने दे रहा था .मैंने भी १० कंचे ले लिए.निशाना तो एक नहीं लगा लेकिन गुलेल हाथ में ले कर फोटो जरूर खिंचवा लिया...आखिर अब ये लुप्त प्राय हथियार है. ए.के ४७ भले आसानी से मिल जाती हो लेकिन गुलेल देखे तो बरसों बीत गए. 
यहाँ से अगला स्पोट था प्रियदर्शनी. ये स्थान सड़क से थोडा अंदर है करीब ३०० -४०० मीटर .यहाँ एक फ़र्न का पौधा हमारे गाइड ने दिखाया जिसकी पत्ती को हाथ पर रख कर थोडा सा दबाओ तो उसका टेटू बन जाता है. बस फिर क्या था बच्चे तो लग गए वह पत्ती ढूंढ कर टेटू बनाने .किसी तरह सबको साथ कर पहुंचे. ये स्थान एक घाटी का किनारा है जहाँ दूर दूर तक चोटियाँ है जो खुली धूप में भी नीली धुंधली दिख रहीं थी. ये एको पॉइंट है .जब आप जोर से आवाज़ देते है तो आवाज़ सुदूर पहाड़ियों से टकरा कर आपके पास  वापस पहुँचती है. यहाँ सब बच्चों से एक साथ अपने स्कूल का नाम लेने को कहा गया.जो वापस हमारे पास पहुँच गया. खैर नहीं भी पहुँचता तो हम वापस स्कूल तो पहुँचने ही वाले थे. गाइड भी व्यावसायिकता को समझते है ओर..खैर कई बातें ओर विचार मन में आते है ओर अलग अलग कोण से इसे देख जा सकता है बस बच्चों को मजा आया. 
यहाँ से हम पहुंचे गुप्त महादेव. भस्मासुर से भागते हुए शिवजी इस संकरी गुफा में प्रवेश कर गए .ये करीब १०० मीटर लम्बी संकरी गुफा है.जिसमे आड़े चलना पड़ता है अंदर एक शिव मंदिर है.बाहर हनुमानजी की बड़ी सी प्रतिमा. जिसपर लाल मुंह  के बन्दर उछल कूद करते रहते है. जिप्सी  से उतर कर करीब आधे किलोमीटर का पैदल रास्ता है . एक बार में १० लोग अंदर जाते हैं  सबके बाहर आने के बाद अगले १० लोग. यहाँ बहुत देर लग गयी. यहाँ बच्चों से हर हर महादेव का जयकारा लगवाया.ये कहते हुए की जोर से बोलो ताकि फोटो में आवाज़ आये. अब बच्चों को व्यस्त  रखना था न.यहाँ पगडण्डी के किनारे आदिवासी बेर,अमरुद ओर ककड़ी ले कर बैठे थे. मैंने भी एक अमरुद में नमक मिर्च लगवा लिया एक हाथ में अमरुद ले कर दूसरे से खाते हुए चली जा रही थी की पीछे से बच्चों के चिल्लाने की आवाज़ आयी पीछे मुड़ के देखती उसके पहले  ही एक बंदर ने धीरे से आ कर मेरे हाथ से अमरुद ले लिया.  अब तो बच्चे मैडम आपका अमरुद??मैंने भी कहा बेटा ले जाने दो मैंने उसमे खूब तेज़ मिर्च डलवा रखी थी उसे भी मज़ा आ जायेगा. खैर बंदर का तो नहीं पता लेकिन बच्चों को बड़ा मजा आया. उस रास्ते में बहुत सारे बच्चों से बंदरों ने ककड़ी अमरुद छीने . यहाँ से करीब आधे किलो मीटर की दूरी पर बड़े महादेव की गुफा है .जब शिवजी गुफा में छुप गए तो विष्णुजी ने सुंदरी का रूप धारण कर भष्मासुर को आकर्षित किया ओर उसे नृत्य करने का न्योता दिया ओर जब वह नृत्य में लीन हो गया तो भूलवश उसने खुद का हाथ ही अपने सर पर रख दिया ओर भस्म हो गया .जिस स्थान पर वह भस्म हुआ वहां अभी एक कुण्ड है जिसमे साल भर पानी रहता है.इस गुफा में भी शिव मंदिर है. गुफा की छत से साल भर पानी टपकता है. यहाँ के रास्ते में एक बहुत पुराना विशाल बड़ ओर आम का पेड़ है.इन पेड़ों के साथ फोटो खिंचवाने का मोह न रोक पाई.बहुत याद आते है इंदौर के वो पुराने पेड़ जिनके नीचे कभी खेला करते थे या जिनकी छाँव में साईकिल चलाया करते थे.   
इसके पहले भी ३ बार पचमढ़ी जा चुकी हूँ लेकिन इन पेड़ों से ऐसा मोह नहीं हुआ लेकिन अब जबकि आस पास ऐसे पेड़ देखने को नहीं मिलते पता नहीं क्यों आते जाते दोनों समय इनके पास थोड़ी देर रुकने का मन किया. बच्चों को भूख लग आयी थी.सब वापस अपनी पानी जिप्सी में सवार हुए.ये स्थान बहुत नीचे पर है यहाँ का घाट तीखे मोड़ वाला है .होटल पहुंचे तो खाना तैयार था. खाना खा कर बच्चों को ४ बजे फिर तैयार होने का कह कर सब आराम करने चले गए. क्रमश

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर यात्रा वृतांत| धन्यवाद|

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  2. रोचकता के साथ हम भी यात्रा का आनंद ले रहे हैं ... अगली कड़ी की प्रतीक्षा है ... ।

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  3. बहुत ही सुन्दरयात्रा वृतांत है कविता जी सचमुच....
    बहुत बहुत बधाई हो आपको!!

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  4. घनी जोर की लगी आपकी यात्रा इससे फ़ायदा भी होगा जो भी वहाँ जाना चाहते है, मैं भी जाना चाहता हूँ।

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  5. सुन्दर यात्रा वृतांत.

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  6. बेहतरीन.. आगे की यात्रा का भी इंतज़ार है.. :)

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