स्कूल की ओर से शैक्षणिक भ्रमण पर पचमढ़ी जाना था..मन तो बिलकुल नहीं था चार दिन की छुट्टी शहीद करना. कब से इंतजार में थी इन चार दिनों में ये काम करना है वो करना है ओर सबसे बड़ी बात की थकान उतरना है.कुछ कहानियां अधूरी है उन्हें पूरा करना है लेकिन ...खैर ५ तारिख को रात में बस से रवाना होना था करीब ९ बजे बस चल पड़ी .सच कहूँ तो आँखों में आंसू भरे थे जिन्हें अँधेरे में आसानी से छुपाया जा सका बार बार छोटी बिटिया की बात ही मन में गूंजती रही आप पिछले ३ सालों से हर बार दशहरे पर घर से बाहर रहती हो दिवाली पर पापा नहीं रहते घर पर. हमारे सारे त्यौहार तो ऐसे ही चले जाते है .सोचती हूँ इन छोटी छोटी खुशियों को पाने के लिए इस नौकरी से छुटकारा पा लूं.लेकिन अब तो ये हाल है की एक दिन की छुट्टी भी लो तो दिन ख़त्म नहीं होता..दिन भर यही सोचते निकल जाता है की कोर्स पूरा करना है आज के कितने पीरियड चले गए .टीचिंग जैसे दिनचर्या में समां गयी है. खैर अब तो बस रवाना हो गयी थी अब बेकार की बातें सोचने से क्या होना था तो यही सोचा की बस अब काम पर ध्यान दिया जाये. रास्ता लम्बा था ओर बहुत ख़राब.. नवमी का दिन था इंदौर से देवास के रास्ते में बहुत भीड़ थी देवास की चामुंडा माता के दर्शन के लिए लोग टोलियों में पैदल जाते है इसमें सभी उम्र के लोग थे बच्चे बड़े बूढ़े. कुछ सालों पहले तक हम भी साल में एक बार तो देवास हो ही आते थे अब तो व्यस्तता इतनी बढ़ गयी है या ...
अभी कुछ दिनों पहले ही होशंगाबाद जाना हुआ था भोपाल से होशंगाबाद का रास्ता इतना ख़राब था की हालत ख़राब हो गयी.ये बात में स्कूल में बताई भी थी लेकिन सारी बुकिंग हो गयी थी ओर छुट्टियों का यही सदुपयोग होता है बाकी समय तो शैक्षणिक कैलेंडर इतना व्यस्त होता है की कहीं समय ही नहीं मिलता इसलिए इस बात को सुन कर भी अनसुना कर दिया गया. सबसे ज्यादा ख़राब रोड तो हमारे मुख्यमंत्री के गाँव में थी या कहा जाये की वहा रोड थी ही नहीं बस एक गढ्ढे की बौंड्री ओर दूसरे गढ्ढे की बौंड्री...आशचर्य तो हुआ लेकिन फिर सोचा शायद मुख्यमंत्रीजी को अपने गाँव जाने का काम ही नहीं पड़ता होगा वैसे भी अभी चुनाव में समय है.
खैर रात का समय था कब नींद लग गयी पता ही नहीं चला ..बस सोते जागते ही रास्ता कट गया सुबह करीब ४ बजे होशंगाबाद पार किया .अभी तो काफी लम्बा सफ़र बाकी था होशंगाबाद से पिपरिया ओर वहां से मटकुली का घाट ओर फिर पचमढ़ी .सोचा था की सुबह जल्दी घाट चढ़ जाते तो ठीक रहता..बच्चे सोये रहते तो ज्यादा परेशानी नहीं होती नहीं तो घाट चढाने में होने वाली मितली...मुझे खुद घाट में तकलीफ होती है ऐसे में बच्चों को भी संभालना. किसी को दवा देना किसी को पानी. घाट चढ़ते चढ़ते सूरज चढ़ आया ओर वाही हुआ जिसका डर था बच्चों को बातों में बहलाना जिन्हें परेशानी हो रही थी उन्हें आगे की सीट पर जगह बना कर बैठाना...ओर खुद का सर चकराने को नज़र अंदाज करना ..रास्ता बहुत सुंदर था घना जंगल बारिश के बाद जंगल की सुन्दरता अपने पूरे शबाब पर होती है . पहले भी पचमढ़ी जाना हुआ है लेकिन हर बार गर्मियों में इसलिए इस बार का दर्शन बहुत नया था .
करीब ८ बजे हम पचमढ़ी पहुंचे होटल मेन रोड पर ही था वहा उतारते ही बच्चों को उनके दोस्तों के साथ कमरे अलोट करना था सब अपने दोस्तों के साथ रहें तो झगड़े क्म होते है अपने दोस्तों के साथ सब आसानी से समन्वय स्थापित कर लेते है लेकिन साथ ही कौन सा बच्चा किस कमरे में है ओर उस कमरे में कितने बच्चे है वह भी नोट करना था .टीचर के कमरे भी एक -एक फ्लोर पर थे ताकि बच्चों पर नज़र रखी जा सके.ओर उनकी परेशानियों के लिए हम आस पास ही रहें . यही करते करीब आधा घंटा निकल गया.आखिर ८८ बच्चों को अडजस्ट करना था .करीब ९ बजे हम अपने कमरों में पहुंचे. फ्रेश हो कर पहला काम था बच्चों के कमरे का चक्कर लगाना.लेकिन ये क्या बच्चे तो बिस्तर पर पसरे हुए थे न जी थके नहीं थे बस टीवी चालू था ओर वो लगे थे टुकुर टुकुर देखने कमरे में सामान फैला हुआ था.नहाने के लिए कपडे निकाल कर बेग्स खुले छोड़ दिए थे जूते पूरे कमरे में फैले थे . बेटा जल्दी नहाओ फिर नाश्ता करके थोड़ी देर सोना है ताकि शाम तक फ्रेश रहो .हर कमरे में जा कर उनका सामान ठीक से लगवाया जूते लाइन से रखवाए छोटे बेग्स अलमारी में रखवाए .ओर जल्दी तैयार होने की हिदायत दे कर अपने कमरे में पहुंची.थोड़ी ही देर में नाश्ते के लिए पहुंचना था जल्दी से नहाया .होटल के ऊपर वाले माले पर एक बड़ा सा हॉल था वहीँ एक ओर किचेन भी था खाने पीने की सभी व्यवस्था हमारी ही थी. नाश्ता करते ११ बज गए अब तो बहुत जोर से नींद आ रही थी .लेकिन बच्चों की आँखों में नींद कहा ..वो तो सारा दिन टीवी देखते रहे सारे दिन कोरिडोर में इतनी हलचल थी की नींद लग ही नहीं पाई. फिर सोचा की बेहतर है उठ कर परीक्षा की कापियां चेक कर लूं. न न करते भी जाने क्यों उन्हें रख लाई थी .सो बस बैठ गयी ओर एक बैठक में ८-१० कापियां चेक भी हो गयी. तब तक खाने का समय हो चला था .जो बच्चे सो गए थे उन्हें उठाया खाना खाने के बाद हमें घूमने जाना था लेकिन अब थकान चढ़ रही थी इसलिए १० मिनिट कमर सीधी करने के लिए लेट लगाई ओर फिर हम तैयार हो गए .
नीचे पहुंची तो सब तैयार थे तब तक चाय भी आ गयी. चाय पी कर पहला स्पोट था चर्च देखने जाना .लेकिन फादर बाहर गए थे इसलिए वहा अन्दर जाना नहीं हुआ. यह बहुत पुराना चर्च है सन १८५६ में बन कर तैयार हुआ जिसमे बेल्जियम शीशे लगे है ढलवां कवेलू वाली छत इसे हर मौसम में ठंडा रखती है यहाँ से पहुंचे पांडव गुफाएं देखने. ये चट्टानों में बनी गुफाएं है जिन का वास्तव में पांडवों से कोई सम्बन्ध नहीं है .ये करीब १५०० साल पुरानी है इस हिसाब से ये बौध कालीन हो सकती है. इसने कोई भित्ति चित्र भी नहीं है. पचमढ़ी सतपुरा की पहाड़ी पर बसा है . भूगर्भीय हलचल से यहाँ एक विशाल ज्वालामुखी बन गया जो ठंडा होने के बस एक विशाल कटोरे के आकर का बन गया जिसमे वर्षा जल एकत्र होता गया ओर जब किसी भूगर्भीय हलचल से ये कटोरा फूटा तो यहाँ सालों नदियाँ बहती रहीं. इसलिए पचमढ़ी में रेतीली मिटटी है ओर मिटटी में नदियों में मिलने वाले गोल पत्थर पाए जाते है. इसलिए यहाँ घास नहीं होती. घास न होने से कीड़े मकोड़े नहीं होते.यहाँ खेती नहीं होती इस लिए खेत में पाए जाने वाले चूहे मेंढक भी नहीं है इसलिए सांप नहीं है .कीट पतंगे ओर अनाज न होने से पक्षी बहुत क्म है .घर के मैदान न होने से हिरन चीतल संभार नहीं है ओर इसलिए यहाँ के जंगलों में शेर भी नहीं है. वैसे सच पूछा जाये तो यहाँ का घना जंगल बहुत सूना लगता है.
.खैर वहां से चले पचमढ़ी झील पर पहुंचे .यहाँ हमें बोटिंग करना थी. बच्चों को ५-५ करके नाव में बैठाया नाव वाले के साथ यहाँ पैडल बोट चलती है बच्चों के साथ किसी बड़े का होना भी जरूरी था. कुछ शरारती बच्चों के साथ टीचर भी बैठे. बारिश के तुरंत बाद झील बहुत खूबसूरत थी .दूर क्षितिज पर सूरज ढलने को था. झील के एक ओर कहीं झाड़ियों के पीछे धुंआ उठ रहा था. दशहरे का दिन था .रास्ते में हमें कई जगह देवीजी की सवारी मिली जिन्हें विसर्जन के लिए ले जाया जा रहा था.उन्ही में से एक सवारी झील पर थी. इस इलाके में रावन दहन इतना प्रचलित नहीं है लेकिन ९ दिन देवीजी की स्थापना का ओर जवारे का बड़ा प्रचलन है .नवें दिन इन्हें विसर्जित किया जाता है .इसके साथ अखाडा चलता है जिसमे लडके करतब दिखाते चलते है .हमारे देखते ही देखते देवीजी की विशाल प्रतिमा को झील में विसर्जित कर दिया गया .श्रध्दा के सामने तो हमारे सारे कानून भी नतमस्तक है.इसलिए जल प्रदुषण जैसी बातें सोचना बेमानी ही था. बोटिंग के बाद बच्चों को नाश्ता करवाया फिर उन्हें बस में चढ़ाया ओर हम चाय पीने पास की एक दुकान में चले गए .वहा बैठे ही थे की जोर से बारिश शुरू हो गयी. शुक्र था की बच्चे पानी से बाहर आ चुके थे नहीं तो उन्हें शांत रखना मुश्किल हो जाता. चाय पी कर हम भी भीगते भागते बस में सवार हो गए. होटल पहुंचे तब तक ऊपर हाल में डी जे लग चुका था बस बच्चे पहुँच गए ओर फिर २ घंटे जम कर डांस किया. डी जे लाइट में सब बहुत साफ नहीं दिखता इसलिए मैंने भी थोडा हाथ आजमा लिया. खाना लग चुका था खा कर सब अपने कमरे में चले गए .हमने भी बच्चों के कमरे में एक चक्कर लगाया.उनके सोने की व्यवस्था देखि ओर सुबह ६:३० पर उठाने का कह कर हम सब टीचर एक कमरे में बैठ गए ओर हमारी गप्पों का दौर शुरू हो गया. ......क्रमश
.खैर वहां से चले पचमढ़ी झील पर पहुंचे .यहाँ हमें बोटिंग करना थी. बच्चों को ५-५ करके नाव में बैठाया नाव वाले के साथ यहाँ पैडल बोट चलती है बच्चों के साथ किसी बड़े का होना भी जरूरी था. कुछ शरारती बच्चों के साथ टीचर भी बैठे. बारिश के तुरंत बाद झील बहुत खूबसूरत थी .दूर क्षितिज पर सूरज ढलने को था. झील के एक ओर कहीं झाड़ियों के पीछे धुंआ उठ रहा था. दशहरे का दिन था .रास्ते में हमें कई जगह देवीजी की सवारी मिली जिन्हें विसर्जन के लिए ले जाया जा रहा था.उन्ही में से एक सवारी झील पर थी. इस इलाके में रावन दहन इतना प्रचलित नहीं है लेकिन ९ दिन देवीजी की स्थापना का ओर जवारे का बड़ा प्रचलन है .नवें दिन इन्हें विसर्जित किया जाता है .इसके साथ अखाडा चलता है जिसमे लडके करतब दिखाते चलते है .हमारे देखते ही देखते देवीजी की विशाल प्रतिमा को झील में विसर्जित कर दिया गया .श्रध्दा के सामने तो हमारे सारे कानून भी नतमस्तक है.इसलिए जल प्रदुषण जैसी बातें सोचना बेमानी ही था. बोटिंग के बाद बच्चों को नाश्ता करवाया फिर उन्हें बस में चढ़ाया ओर हम चाय पीने पास की एक दुकान में चले गए .वहा बैठे ही थे की जोर से बारिश शुरू हो गयी. शुक्र था की बच्चे पानी से बाहर आ चुके थे नहीं तो उन्हें शांत रखना मुश्किल हो जाता. चाय पी कर हम भी भीगते भागते बस में सवार हो गए. होटल पहुंचे तब तक ऊपर हाल में डी जे लग चुका था बस बच्चे पहुँच गए ओर फिर २ घंटे जम कर डांस किया. डी जे लाइट में सब बहुत साफ नहीं दिखता इसलिए मैंने भी थोडा हाथ आजमा लिया. खाना लग चुका था खा कर सब अपने कमरे में चले गए .हमने भी बच्चों के कमरे में एक चक्कर लगाया.उनके सोने की व्यवस्था देखि ओर सुबह ६:३० पर उठाने का कह कर हम सब टीचर एक कमरे में बैठ गए ओर हमारी गप्पों का दौर शुरू हो गया. ......क्रमश
यात्रा के बारे में अच्छा बताया,
ReplyDeleteयदि आपको खराब मार्ग देखना है तो लगातार साठ किमी तक कबाडा मार्ग सहारनपुर से आगे विकासनगर रोड तक मिलेगा।
जानकारी परक यात्रा वृत्तांत
ReplyDeleteपंचमढ़ी कभी गया नहीं। आपके इस यात्रावृत्तांत से काफ़ी कुछ जा(न)ना हो जाएगा।
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक पर्यावरणी सीख देता यात्रा वृत्तांत .धार्मिक मान्यताओं पर भी नज़रिया एक दम से साफ़ .यही तो विडंबना है इस देश की पर्यावरणी चेतना भी मंदिर गिरजाघरों से ही आयेगी आई तो किसी दिन .बधाई आपके अन्दर मौजूद शिक्षक को टीचर होना गौरव की बात है .
ReplyDeleteबहुत सारी बातों को आपने इस पोस्ट के माध्यम से उजागर किया है ..रोचक और सार्थक यात्रा वृतांत ....!
ReplyDeleteरोचक यात्रा वृतांत .
ReplyDeleteबढिया यात्रा चल रही है, बच्चों का ध्यान रखना कठिन काम है। क्रमश: के आगे इंतजार है।
ReplyDeleteपंचमढ़ी सुना हूँ पर कभी मध्य प्रदेश में जाने का चांस नहीं मिला !आप के माध्यम से बहुत कुछ जानकारी मिल गयी ! वैसे स्कूल के बच्चो के साथ टूर पर जाना , बड़ा ही रिस्की होता है ! मै भी जब स्कूल में प्राध्यापक था , तो इस तरह के अनुभव से परिचित हुआ था ! एक बार टूर पर बस में ही बच्चो को लेकर गया था ! बहुत ही सावधान रहना पड़ता है ! अगले अंक की प्रतीक्षा रहेगी !
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत प्रस्तुति, आभार.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें .
काफी रोचक लग रही है यात्रा तो..
ReplyDeleteआगे की कहानी भी बताइयेगा..
बहुत ही अच्छी रोचकता से भरपूर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत ही रोचक यात्रा -वृतांत
ReplyDeleteपंचमढ़ी नहीं गया
ReplyDeleteजाने का अवसर मिला तो जरुर जाऊंगा .. बढ़िया संस्मरण.
कुछ दिनों से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
ReplyDeleteरोचक जानकारी भरी यात्रा-वृतांत, धन्यवाद.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर एक नज़र डालें.
www.belovedlife-santosh.blogspot.com
पचमढ़ी खूबसूरत जगह लग रही है ..यात्रा का आनंद बाँटना बहुत ही नेक ख्याल है...
ReplyDeleteओह तो पचमढ़ी इतना खूबसूरत है. रोचक यात्रा. आगे की कड़ियों का इंतजार रहेगा.
ReplyDeleteक्या बात है, बच्चों के साथ पूरे पंचमढी की सैर हो गई। रोचक है ये यात्रा वृतांत
ReplyDeleteवैसे तो आपकी चर्चा हर जगह हैं फ़िर भी कोशिश की है देखियेगा आपकी उत्कृष्ट रचना के साथ प्रस्तुत है आज कीनई पुरानी हलचल
ReplyDeleteइस होली आपका ब्लोग भी चला रंगने
ReplyDeleteदेखिये ना कैसे कैसे रंग लगा भरने ………
कहाँ यदि जानना है तो यहाँ आइये ……http://redrose-vandana.blogspot.com
वाह बहुत सुन्दर वृतांत ...
ReplyDeletegood jankari hai
ReplyDeletemai mp me hi rahta hu par abhi tak pachmadi gyaa nahi apne ye kahani sum\nakar jankari di thanks
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