.सूरज की सुनहरी धुप
छूती है जो गालों को
पर कुनकुनी नहीं लगती
कुछ सर्द सा है.
बारिश की रिमझिम बूँदें
पड़ती जो तन पर
पर मन को नहीं भिगोती
कुछ सूखा सा है.
भीड़ भरे बाज़ार में
चीखती आवाजें
कुछ सुनाई नहीं देता
कुछ सूना सा है.
दोस्ती प्रेम प्यार के
एहसासों से भरे जीवन में
नहीं होता कोई एहसास
कुछ रीता सा है.
एक तुम्हारा स्पर्श
एक तुम्हारी नज़र
जो मिल जाये मुझे
फिर सब अपना सा है.
सुंदर भावाभिव्यक्ति।
ReplyDeleteभीड़ भरे बाज़ार में
ReplyDeleteचीखती आवाजें
कुछ सुनाई नहीं देता
कुछ सूना सा है.
bheed me bhi sannata
बहुत खूबसूरत एहसास लिखे हैं ...
ReplyDeleteखूबसूरत कविता कविता जी...सच है कि जो बूँदें मन को गीला ना सकेवे सूखे ही होंगे...मन को छूती कविता...
ReplyDeleteसिर्फ एक के लिए...सबको नज़रंदाज़ करना ठीक नहीं...मौसम, बाज़ार और दोस्तों की भी ज़रूरत है...वैसे भी मिलने के बाद चीजों का अवमूल्यन बहुत तेज़ी से होता है...
ReplyDeleteबारिश की रिमझिम बूँदें
ReplyDeleteपड़ती जो तन पर
पर मन को नहीं भिगोती
कुछ सूखा सा है.
बहुत खूब कहा है ।
एक तुम्हारा स्पर्श
ReplyDeleteएक तुम्हारी नज़र
जो मिल जाये मुझे
फिर सब अपना सा है.
बहुत सुंदर अहसास,
भावपूर्ण रचना
एक तुम्हारा स्पर्श
ReplyDeleteएक तुम्हारी नज़र
जो मिल जाये मुझे
फिर सब अपना सा है.
इसी मे तो सब समाहित है।
कवीता जी इसी लिए ढाई अक्षर प्रेम का महत्त्व अभी भी है ! बहुत चुटीली कविता !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसुन्दर शब्द रचना.
बहुत ही सटीक भाव..बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteशुक्रिया ..इतना उम्दा लिखने के लिए !!
संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com