जब तुमने
किया था गृहप्रवेश
चूड़ियाँ खनकती थी
बजते थे बिछुए
घर भरा होता था
नवझंकार से
सर पर पल्लू संभालती
चौंकती हर आहट पर
एक झिझक, एक ललक
वो ननद के साथ
भरी दोपहर बाज़ार चले जाना
देवर की चाह का पकवान बनाना
बुजुर्गों के पैर छू लेना आशीष
एक संतुष्टि की मुस्कान
तुम्हारी आँखों में
वो मेरे देखने पर
लजा कर नज़रें झुकाना
पास आने पर सिहर जाना
तुम आज भी वही हो
खुद में संबंधों में और
परिपक्व
लेकिन तुम्हारा वह नयापन
याद आता है मुझे
उसे फिर लौटा लाना चाहता हूँ में
वो वक्त कहाँ लौटता है ..बहुत कोमल भाव से रची खूबसूरत रचना
ReplyDeletebahut hi pyaari rachna
ReplyDeleteकोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन...वो नयापन दोनों तरफ था...
ReplyDeletechudiyan khankti thi...bajte the bichue.......bahoob bayani hai......bahoot sunder bhav
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव .... ना जाने समय के साथ क्यों खो जाता है वो नयापन .......
ReplyDeleteसुन्दर शब्दों के साथ नाजुक से अहसास समेटे बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट कल(3-7-11) यहाँ भी होगी
ReplyDeleteनयी-पुरानी हलचल
कविता ji आप ने भारतीय नारी के उस पहलू को बड़े ही सजीव ढंग से उजागर करते हुए आज पर भी प्रकाश डाली है ! बेहद सजीव लगा !
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव
ReplyDeletesunder yadon ko hamesha jiya ja sakta hai.......bahut komal rachna.
ReplyDeleteबेहतरीन!
ReplyDeleteसादर
खूबसूरत एहसास....
ReplyDeleteकाश! दिन लौट आते।
ReplyDeleteभाव बनाए रखें
आभार
क्या बात है कविता जी.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.
खूबसूरत अहसास कराती हुई.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.आपका स्वागत है.
ये तो हर पति की चाहत होती है ... पर समय वापस नही आ पता .. लाजवाब रचना है ..
ReplyDeleteबद्लाव हर जगह अवश्यम्भव है.
ReplyDeleteपूरी रचना बहुत ही खूब...कुछ भी छोड़ दूं तो नाइंसाफी होगी.
ReplyDeleteएक नयी तरह की कविता .. एक नयापन.. कुछ अलग से अहसास है .. उम्र के इस मोड पर.. बधाई
ReplyDeleteआभार
विजय
-----------
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html