कभी सोचती हूँ
दिमाग जो होता एक डिबिया
निकाल कर देखती उसमे पड़े
विचार,भाव रिश्ते-नाते ,
यादें ,एहसास,घटनाएँ
हौले से छूकर सहलाती
संचेतना भरती उनमे
हंसती, रोती, खिलखिलाती
फिर महसूसती उन्हें
करीने से फिर रखती
छांट बाहर करती
अगड़म -बगड़म विचार
टूटे बेजान रिश्तों के तार
टीसते एहसास
खाली पड़े कोनों को भर देती
किसी सुंदर विचार से
सुनहरी यादों की गोटी किनारी से
सजा लेती डिबिया
लेकिन,
उस एक अनाम से रिश्ते
जाने अनजाने से नाम
कुछ अनबूझे से भाव ,
कुछ कसकती बातें, यादें
झाड़ पोंछ कर फिर सहेज देती
छुपा देती फिर किसी कोने में
चाह कर भी न निकाल पाती
निकाल कर भी न भुला पाती
वो बसी है दिल में कहीं गहरे
बहुत गहरे .
दिमाग जो होता एक डिबिया
निकाल कर देखती उसमे पड़े
विचार,भाव रिश्ते-नाते ,
यादें ,एहसास,घटनाएँ
हौले से छूकर सहलाती
संचेतना भरती उनमे
हंसती, रोती, खिलखिलाती
फिर महसूसती उन्हें
करीने से फिर रखती
छांट बाहर करती
अगड़म -बगड़म विचार
टूटे बेजान रिश्तों के तार
टीसते एहसास
खाली पड़े कोनों को भर देती
किसी सुंदर विचार से
सुनहरी यादों की गोटी किनारी से
सजा लेती डिबिया
लेकिन,
उस एक अनाम से रिश्ते
जाने अनजाने से नाम
कुछ अनबूझे से भाव ,
कुछ कसकती बातें, यादें
झाड़ पोंछ कर फिर सहेज देती
छुपा देती फिर किसी कोने में
चाह कर भी न निकाल पाती
निकाल कर भी न भुला पाती
वो बसी है दिल में कहीं गहरे
बहुत गहरे .
खाली पड़े कोनों को भर देती
ReplyDeleteकिसी सुंदर विचार से
सुनहरी यादों की गोटी किनारी से
सजा लेती डिबिया
pyaare khyaal
यादों को करीने से रखने से भी वो तीतर-बीतर हो जाती हैं। और छुपा कर रख देने पर तो वो और भी कुरेदती रहती हैं।
ReplyDeleteयादें कुछ ऐसी ही होती हैं,
ReplyDeleteजिन्हे सहेजा जाता है।
जाने अनजाने रिश्ते भी,
यादों के खजाने मे जमा होते हैं।
सुंदर भाव
आभार
अगड़म -बगड़म विचार...लेखकों/कवियों की बीमारी है...बाकी दुनिया देखो कितने मज़े में है...सिर्फ अपने लिए जिसने जीना सीख लिया...तो...फालतू के विचारों से मुक्ति मिल जायगी...लेकिन फिर क्या ऐसी कविता मिल पायेगी...
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति .. सचमुच यह दिमाग चाही अनचाही हर बात को याद रख हमारे लिए परेशानी खडी करता है !!
ReplyDeleteपा देती फिर किसी कोने में
ReplyDeleteचाह कर भी न निकाल पाती
निकाल कर भी न भुला पाती
वो बसी है दिल में कहीं गहरे
बहुत गहरे
marmik abhivyakti .aabhar
खाली पड़े कोनों को भर देती
ReplyDeleteकिसी सुंदर विचार से
सुनहरी यादों की गोटी किनारी से
सजा लेती डिबिया ....
नारी सुलभ रचनात्मकता इसी भाव के कारण हमारे देश में सुन्दर घर दिखाई देते हैं और वाकई दिमाग भी जब रचनात्मक विचारों से पूर्ण हो तो ऐसी सुंदर कविता जन्म लेती है
आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDeleteखास चिट्ठे .. आपके लिए ...
बहुत अच्छी प्रस्तुति !
ReplyDeleteमानवीय भावों की सांकेतिक अभिव्यक्ति, यह रचना अच्छी लगी ....शुभकामनायें !!
ReplyDeleteयादें यूँ ही मन को कुरेदती रहती हैं ...सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteकभी सोचती हूँ
ReplyDeleteदिमाग जो होता एक डिबिया ...
beautiful imagination.
A lovely post !!!
यादो की सच्ची अभिव्यक्ति ... बहुत खूब --
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
सुंदर भावों का चित्रण .... प्रशंसनीय है बधाई जी
ReplyDeleteएक भावपूर्ण बेहतरीन रचना... बधाई
ReplyDeleteयादें कुछ ऐसी ही होती हैं,
ReplyDeleteजिन्हे सहेजा जाता है।
जाने अनजाने रिश्ते भी,
यादों के खजाने मे जमा होते हैं।
वाह ... बहुत खूब ।
प्रशंसनीय सुन्दर चित्रण
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्द, हमेशा की तरह अनुपम प्रस्तुति ।
छुपा देती फिर किसी कोने में
ReplyDeleteचाह कर भी न निकाल पाती
निकाल कर भी न भुला पाती
वो बसी है दिल में कहीं गहरे
बहुत गहरे .
...
क्या इतना आसान होता है यादों को भूल जाना...बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...शब्दों और भावों का सुन्दर संयोजन..
बहुत ही सुन्दर...प्यारी चीजो को संजोकर रखने में बड़ा मजा है !
ReplyDeleteखाली पड़े कोनों को भर देती
ReplyDeleteकिसी सुंदर विचार से
सुनहरी यादों की गोटी किनारी से
सजा लेती डिबिया
यादें भूलना दुष्कर कार्य है. सुंदर रचना का स्वागत.
खाली पड़े कोनों को भर देती
ReplyDeleteकिसी सुंदर विचार से
सुनहरी यादों की गोटी किनारी से
सजा लेती डिबिया
Khoob likha aapne..... Bahut sunder
सुन्दर एहसास ...
ReplyDeleteयादें तो यादें हैं
यादो की सच्ची अभिव्यक्ति,बहुत खूब!!!!
ReplyDeleteबहुत ही खूब लिखा है आपने.
ReplyDeleteकाश ऐसा हो पाता.
हाफ्ज़ा ही न हो तो अच्छा है.
चाह कर भी न निकाल पाती
ReplyDeleteनिकाल कर भी न भुला पाती
वो बसी है दिल में कहीं गहरे
बहुत गहरे .
सुंदर लेखन....बहुत सुंदर भाव...