कल दो खबरे सुनी और पढ़ीं उनसे मन विचलित हो गया .
एक घटना हमारे घर के पास ही हुई ,किसी के नए मकान का गृहप्रवेश था मेहमान खाना खा रहे थे तभी वहां किन्नर आ गए और नेग के रूप में ११,००० रुपये माँगने लगे. स्वाभाविक ही था की इतनी बड़ी रकम सिर्फ नेग के नाम पर देना किसी को भी नागवार गुजरता सो गृह स्वामी ने मना कर दिया और कुछ कम का प्रस्ताव रखा .लेकिन वह राशी उन किन्नरों को बहुत कम लगी और फिर उन्होंने सभी मेहमानों के सामने हील हुज्जत और अपनी चिर परिचित आखरी धमकी के रूप में अश्लील हरकते शुरू कर दी.आखिर गृह स्वामी को ८,००० रुपये दे कर उन्हें विदा करना पड़ा. पैसे गए बिना बात का मेहमानों के सामने नाटक हुआ और गृह प्रवेश जैसी एक ख़ुशी का क्षण हमेशा के लिए एक कड़वी याद के लिफाफे में बंद हो गया.
दूसरी खबर अख़बार( नईदुनिया १८ जून ) में पढ़ने को मिली की राउरकेला में एक व्यक्ति से किसी किन्नर ने शादी का प्रस्ताव रखा जिसे उसने मना कर दिया तो उस किन्नर ने उस व्यक्ति पर कांच की बोतल से हमला कर दिया. जब उसने इसकी रिपोर्ट पुलिस में की तो उस किन्नर को पकड़ा गया लेकिन कोर्ट ने आदेश दिया की किन्नर को जेल में नहीं रखा जा सकता ,इसलिए उस किन्नर को छोड़ना पड़ा.
इन दो घटनाओं ने बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर दिया. एक समय था जब साल में दो बार सिर्फ होली और दिवाली पर किन्नर त्यौहार का ईनाम माँगने आते थे. प्रकृति की जिस क्रूरता ने इनसे जीवन की सामान्य खुशियाँ छीनी है उसे महसूस करते हुए उन्हें इन त्योहारों के मौकों पर नेग दे कर अपने लिए दुआएं लेना शायद ही किसी को बुरा लगता हो. इसके बाद बच्चे के जन्म के अवसर पर या शादी ब्याह के मौकों पर इनका आना आम बात होने लगी. लेकिन उसमे भी इनके मुंह से निकली दुआएं असर करती है,और इनके जीवन में जो खुशियाँ नहीं आ सकती वह खुशियाँ हमारे आँगन में देख कर ये खुश हो लेते है जैसी भावना बलवती थी इसलिए नेग देने का ये सिलसिला चल निकला. उस समय इन लोगो के लिए पढाई लिखाई नौकरी रोजगार के अवसर भी नहीं के बराबर थे .फिर ऐसी भी ख़बरें सुनने को मिलती रही की नेग के लिए इलाके पर अपने वर्चस्व के लिए किन्नरों के गुट में संघर्ष हुआ .कई बार तो एक ही त्यौहार पर दो तीन बार किन्नर आने लगे. तब उनसे कहना पड़ता था की हम तो नेग दे चुके.और वो अपनी पहचान बता कर जाते थे की इस इलाके में में ही आती हूँ किसी और को नेग मत देना. धीरे धीरे इनकी जनसँख्या बढ़ती गयी और इनका नेग लेने का चलन किसी त्यौहार या ख़ुशी विशेष से न हो कर एक तरह की हफ्ता वसूली हो गयी. अब तो किन्नर ट्रेन में, बस स्टैंड पर ,बाज़ार में कहीं भी ,और कभी भी मिल जाते है और अब उनको मिलने वाला नेग या ईनाम सामने वाली की ख़ुशी पर नहीं उनकी मर्जी पर होने लगा. नेग की राशी ये ही लोग तय करते है और उसे देना सामने वाले की मजबूरी बन जाती है.
मेरी छोटी बेटी के जन्म के ५-६ दिन बाद किन्नर मेरे घर आये. सुबह का समय था दरवाजा खुला था और बिटिया पलंग पर लेटी थी. बिना पूछे घर में घुसे और सबसे पहले एक ने बिटिया को अपनी गोद में उठा लिया. और तुरंत २१०० रुपये की मांग कर दी. अब बताइए अपनी ५ दिन की बेटी को उनकी गोद में देख कर किस माँ बाप की हिम्मत होगी की उन्हें मना करे .जैसे तैसे उन्हें समझा बुझा कर उन्हें नेग दिया और बिटिया को उनसे लिया ,लेकिन इतनी देर सांस मानों रुकी ही रही .
आज इन दो तीन घटनाओं के बहाने जब सोचती हूँ तो कई सवाल मन में उठते है.
- आज़ादी के इतने साल बाद भी क्या इस तरह की जबरिया वसूली के खिलाफ कोई कानून नहीं बन पाया है?
- जनगणना में जाती के नाम पर इतना बवाल होता है तो निश्चित ही किन्नरों की जनसँख्या भी पता की जाती होगी ,क्या कभी किसी सरकार ने इस विकृति के साथ पैदा होने वाले बच्चों की संख्या और इनकी जनसँख्या के तालमेल को जानने की कोशिश की है? (ऐसी बातें अक्सर सुनाने में आती है की बच्चों को उठा कर ओपरेशन कर उन्हें विकृत बने जाता है.)
- आज जब सबके लिए पढ़ने और रोजगार के लिए सामान अवसर है फिर इनके रोजगार की जानकारी क्यों नहीं ली जाती?
- इनकी संपत्ति का कोई ब्यौरा लिया जाता है और उस कमाई का जरिया जानने की कोशिश की जाती है?
- जब कानून सबके लिए एक सामान है फिर किन्नरों के लिए क्यों नहीं ? इनके अपराध के लिए इन्हें जेल में क्यों नहीं रखा जा सकता?
- आज़ादी के इतने साल बाद भी अभी तक किसी ही पार्टी को इन्हें भी मुख्य धारा में जोड़ने की सुध क्यों नहीं आयी?
- इनके लिए रोजगार के अवसर जुटाने के लिए क्या काम हुए है?
- क्या सरकार ने इनके इस लूट के धंधे को मौन स्वीकृति दे रखी है? क्या ये एक तरह का भ्रष्टाचार नहीं है?
- कब तक आम आदमी इस तरह की लूट का शिकार होता रहेगा?
बहुत ही सार्थक आलेख.
ReplyDeleteआपने बहुत ही सार्थक प्रश्न उठाया है और जैसा कि आपने कहा है “ शायद इनका जवाब कम से कम आम आदमी के पास तो नहीं है” ... मैं भी एक आम आदमी ही हूं ... लेकिन आपके सुझाव .. “जरूरत है इस पर रोक लगा कर इन्हें भी कानून के दायरे में लाने की” .. से सहमत हूं।
ReplyDeleteआपने गंभीर मुद्दा उठाया है। शहरों में किन्नरों के द्वारा धमकी देकर वसूली करने की खबर नित्य मिलते रहती है। कुछ दिन पहले रायपुर में इनके खिलाफ़ कार्यवाही हुई है। कुछ लोग नकली किन्नर बन कर भी भयादोहन करने का कार्य कर रहे हैं।
ReplyDeleteजब शासन प्रदत्त सभी सुविधाओं का उपयोग किन्नर करते हैं तो इन्हे कानून के दायरे में लाने की महती आवश्यकता है।
किन्नर ट्रेन में, बस स्टैंड पर ,बाज़ार में कहीं भी ,और कभी भी मिल जाते है और अब उनको मिलने वाला नेग या ईनाम सामने वाली की ख़ुशी पर नहीं उनकी मर्जी पर होने लगा. नेग की राशी ये ही लोग तय करते है और उसे देना सामने वाले की मजबूरी बन जाती है.
ReplyDeleteबहुत भयावह स्थिति है .. आपने सही प्रश्न किया है ??
achchhi avm samayik samsya ke upar badhiya rchna ..badhayee
ReplyDeletebehad sarthak rachna........aapse poori tararh sahmat
ReplyDeleteआपने बिल्कुल सही लिखा है ..विचारात्मक प्रस्तुति ।
ReplyDeletesaarthak prashna....
ReplyDeleteआइएऐस/आइपीऐस आदि का सबसे बडा अमला होते हुए भी भारत में क़ानून व्यवस्था कहीं दिखती ही नहीं है।
ReplyDeleteइस व्यथा को सुनने वाला कौन है...कासे कहूँ...बिलकुल सही...
ReplyDeletebahut sarthak lekh......
ReplyDeletehttp://yadavprakash.blogspot.com
एक और बात भी है। मुफ्त की कमाई, वह भी हेकड़ी के साथ, को देखते हुए बहुत सारे निठ्ठले इनका रूप धर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। यह भी एक कारण है इनकी संख्या में बढोतरी का।
ReplyDeleteउदाहरण के साथ .. आप ने बहुत ही सुन्दर प्रश्न उठाया है ! इस ओर कुछ तो होनी ही चाहिए !
ReplyDeleteजरूरत है इस पर रोक लगा कर इन्हें भी कानून के दायरे में लाने की- सहमत हूं.
ReplyDeleteनिश्चित ही ईश्वर का अन्याय देखकर किन्नरों के प्रति दुख के भाव तो होते ही है किन्तु आज उसकी ही आड़ में जो जोर जबरदस्ती..डराना धमकाना एवं कुछ असमाजिक लोगों द्वारा उनका रुप धर अपना उल्लु सीधा करना....यह ठीक नहीं है और इस हेतु कानून के दायरे में लाना ही चाहिये.
ReplyDeleteकिन्नर समाज के प्रति सहानिभूति तो है, पर देखा जा रहा है कि ये अब धीरे धीरे गंभीर समस्या बनते जा रहे हैं। होली के दौरान ट्रेनों में इनका ड्रामा देखा.. सोच कर ही घबरा जाता हूं।
ReplyDeleteबहुत सार्थक और विचारणीय प्रश्न उठाया है..जिस तरह शुभ अवसरों पर ये अपनी हरकतों से एक अशोभनीय द्रश्य प्रस्तुत करते हैं उसे कभी जायज नहीं ठहराया जा सकता. २१००० रुपये की मांग जो दिल्ली में काफी आम है, एक मध्यमवर्गीय परिवार के लिये मज़बूरन पूरा करना एक शोषण का ही रूप है. दिल्ली के हरेक बड़े चौराहे पर इनकी हरकतें देख कर शर्मिंदा होने के सिवाय आप कुछ नहीं कर सकते.पुलिस वाले भी चुप चाप इनका नाटक देखते रहते हैं. इन पर रोक लगाने की आज बहुत ज़रूरत है.
ReplyDeleteकविता जी आपने एकदम अछूता विषय उठाया है इस पर सचमुच ज्यादा विचार नही किया जाता । प्राकृतिक रूप से ये लोग निश्चित ही वंचित हैं पर कमाने काने का जो जरिया इन्होंने बनाया है वह गलत है ।इन्हें कलात्मक व रचनात्मक कार्यों में प्रेरित किया जाना चाहिये । इस तरह इनके साथ जो लेबल लगा है वह भी हट जाएगा । आपने मेरी कहानी पढ कर मेरा उत्साह बढाया है शुक्रिया ।
ReplyDeletenice blog mere blog me bhi aaye dil ki jubaan
ReplyDeleteसही प्रश्न उठाया गया है...यह वास्तव में अपराध का मामला है , सरकार को कठोर कदम उठाने होंगे....यद्यपि नियम तो है परन्तु स्वयं पुलिस इन से मिली रहती है ...बस यहीं यह समाज में ला एंड आर्डर की गिरी हुई अवस्था का मामला होजाता है....
ReplyDeleteबहुत अच्छा विषय चुना है कविता जी.
ReplyDeleteआपने सही कहा है इस विकृति के साथ पैदा हुए लोगों को मुख्यधारा में लेने के प्रयास हों जिससे वह एक सम्मानजनक जीवन जीने में समर्थ हो.
इससे जबरिया किन्नर बनाने की घटनाओं पर भी रोक लग सके.
एकदम सही लिखा है आपने । हमारे भाी के बेटे की शादी के बाद भी ऐस े ही किन्नरों ने 10,000 रुं की मांग रखी थी । खैर हमने तो 1000 रु. देकर दरवाजा बंद कर लिया ।
ReplyDeleteवाकई ये आवश्यकता तो है.
ReplyDeleteयह तो बहुत ही वैध मुद्दे को uthaya है आपने..
ReplyDeleteउनके लिए भी आम लोगों की तरह सारे नियम-क़ानून बनने चाहियें जो उनके और आम लोगों के हित में हो..
शोचनीय मुद्दा है ये..
समय की मांग है की अच्छा लिखा जाये कासे कहूँ ! एक ऐसा ब्लॉग साबित हो रहा है जो हमें अच्छा जानकारी और तथ्यपरक लेख पड़ने का माध्यम प्रदान करता है |
ReplyDeletekinnro ke utthan ke liye govt.or samaj ko aage aana chahiye {swarup}
ReplyDeletekya inke khilaf court m apil krke is jabriya vasuli k khilaf kanun banane ki mang nhi ki ja sakti har khshi k mauke ,
ReplyDeletehar tij tyhar par inka is trh ghar m akkr vsuli krna ,train me ,bas m public place m inki dadagiri aam aadmi k liye kisi mental heresment se kam nhi hai