क्या खेले ?क्या खेले?सोचते सोचते आखिर ये तय हुआ नदी पहाड़ ही खेलते है।
तेरी नदी में कपडे धोउं,
तेरी नदी में रोटी पकाऊ,
चिल्लाते हुए बच्चे निचली जगह को नदी और ऊँचे ओटलो को पहाड़ समझ कर खेल रहे है ,
नदी का मालिकअपनी नदी के लिए इतना सजग है की उसमे कपडे धोने ,बर्तन धोने से उसे
तकलीफ होती है।गर्मियों की चांदनी रात ,लाइट नहीं है अब अँधेरे में क्या करे? एक जगह बैठे
तो मच्छर काटते है ,नानी कहती है ,अरे ! जाओ धुप छाँव खेलो ,कितनी अच्छी चांदनी रात है,
और बच्चे मेरी धूप और मेरी छाँव के मालिक बन जातेहै।इत्ता इत्ता पानी गोल गोल रानी हो या
अमराई में पत्थर पर गिरी केरीयों की चटनी पीसना ,खेलते हुए किसी कुए,की जगत पर बैठना,
प्यास लगे और पानी न हो तो किस पेड़ की पत्तियां चबा लेना ,या रंभाती गाय भैस से बातेकरना,
इस साल किस आम पर मोर आएगा किस पर नहीं ,गर्मी में नदी सूखेगी या नहीं, टिटहरी जमीन
पर अंडे देगी या नहीं ?हमारा बचपन तो ऐसी ही जाने कितनी बातों से भरा पड़ा था। खेल खेल में
बच्चे अपने परिवेश से कितने जुड़ जाते थे?कितनी ही बाते खुद -ब -खुद सीख जाते थे ,पता ही
नहीं चलता था। हमारे खेल हमारे जीवनसे परिवेश से पर्यावरण से इस तरह जुड़े थे की उन्हें कही
अलग देखा ही नहीं जा सकता था।
समय बदला नदियाँ सूख गयी, पहाड़ कट कर सड़के या खदाने बन गयी,सड़क की लाइट ने चाँद
तारों की रोशनी छीन ली,अब न पेड़ों से मोह रहा न उनकी चिंता, पानी के लिए ट्यूब वेल आ गए या
मीलों दूर से पाइप लाइन ।
हमारा प्लेनेट खतरे में है ,अन्तरिक्ष से आयी आफत हम पर टूट पड़ी ,पोपकोर्न खाते हाथ मुह तक
आने से पहले ही रुक गए ,अब आयेंगे हमारे सुपर हीरो .........ये लो आ गए पृथ्वी,अग्नि, वायु, जल,
आकाश और ये बनी सुपर पॉवर मिस्टर प्लेनेट ,और दुश्मन का हो गया खात्मा ,हमारी पृथ्वी बच गयी ।
एक गहरी सांस लेकर पोपकोर्न खाना फिर शुरू हो गया ,बिस्तेर पर पैर और फ़ैल गए । लीजिये अब
चाहे अन्तरिक्ष से कोई आफत आये या ओजोन लयेर में छेद हो ,चाहे कही आग लगे या बाढ़ आ जाये
हमारा सुपर हीरो सब ठीक कर देगा ,हम खाते रहेंगे आराम से अपने घर में बिस्तर पर । न्यूज़ पेपर वाले
शोर मचाएंगे,टीचेर कोई प्रोजेक्ट देगी ग्लोबल वार्मिंग पर हम नेट से जानकारी जुटा कर ढेर सारे कागजों
को इस्तेमाल करके बढ़िया सा प्रोजेक्ट बनायेंगे और १० में से १० नंबर पायेंगे । अब जिस पर्यावरण को
कभी महसूस ही नहीं किया जिस की गोद में खेले ही नहीं उसके लिए संवेदनाये लाये कहाँ से ?
बच्चे पर्यावरण से बस इसी तरह से जुड़े है अब इसमें उनका क्या दोष है ?जो पर्यावरण हमारे बुजुर्गों ने हमारे
लिए सदियों से सहेज कर रखा था ,उसे हमने अपने स्वार्थ के लिए किस तरह तहस नहस कर दिया है,
और इसी के साथ छेन लिया है पर्यावरण सा मासूम बचपन .....पर्यावरण सहेजे ,ताकि बचपन का भोलापन कायम रह पाए...
बहुत बढिया, अच्छे विचार हैं।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeleteअब जिस पर्यावरण को कभी महसूस ही नहीं किया जिस की गोद में खेले ही नहीं उसके लिए संवेदनाये लाये कहाँ से ?
ReplyDeletekhel khel me kitni sahi baat kahi aapne....aakhir wo lagao layen kahan se...ham aur hamare bachche...:(
achchha lagta hai...aapko padh kar
abhar!!
bahut saralta hai kuch kahne me
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विचार्।
ReplyDeleteकवीताजी बिलकुल चिंता की बात है ! इस तरफ सठिक कदम उठाये जाने चाहिए !
ReplyDeletefirst few paragraphs reminded me of my good old days...
ReplyDeleteNice post !!
वाह ... बहुत खूब ।
ReplyDeleteजागरूकता फ़ैलाने वाली पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार!
ReplyDeleteक्या बात है ,वाह .
ReplyDeleteपर्यावरण की चिंता ज़रूरी हो गई है.
पर्यावरण सहेजे ,ताकि बचपन का भोलापण कायम रह पाए.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया,आपको बधाई है ।
आदरणीय बहन सुश्रीकविताजी,
आपका मेईल किसी वजह से नहीं पोस्ट हो रहा है, मैं आपका धन्यवाद करना चाहता हूँ कि, आपने मेरी कहानी `कैरेक्टर ढीला है?` का सशक्त अंत दर्शाया । आज आपके दर्शाये हुए अंत के साथ कहानी प्रकट हुई है, आपका फिरसे एकबार धन्यवाद करता हूँ।
मार्कण्ड दवे।
mdave42@gmail.com
http://mktvfilms.blogspot.com/2011/06/blog-post_06.html
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteविचारणीय और आज की जरूरत भी - अच्छा लगा कविता जी. एक शेर आज ही लिखा हूँ-
ReplyDeleteबढ़ता जंगल कंकरीट का
जहाँ सिसकते शजर को देखा
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com