Monday, May 9, 2011

इंतजार . ९

( मधु से मंदिर में मिल कर मधुसुदन को कई पुरानी बातें याद आ गयीं .कैसे उसकी मधु से मुलाकात हुई कब वो प्यार में बदली और फिर समय ने कैसी करवट की .उस रिश्ते का क्या हुआ ?मधु से मिलकर उसे सारी बात बताने के बाद भी वह शांत थी ...उसके बाद वह फिर नहीं मिली मुझसे .आज मंदिर में मुलाकात हुई क्या ये मुलाकात आगे भी जारी रहेंगी ...३३ सालों बाद इन मुलाकातों का क्या स्वरुप होगा ...)अब आगे...

दो
महीने बाद सुधा से मेरी शादी हो गयी और छ महीने बाद बेहतर नौकरी मिलने पर में दिल्ली चला गया. करीब साल भर बाद जब वापस आया तो पता चला मधु की बहिन की शादी हो गयी और वह अपनी मम्मी के साथ किसी ओर शहर में चली गयी है .
इसके बाद से आज मधु से मुलाकात हुई .
में मधु से फिर मिलने को बेताब था लेकिन फ़ोन लगाने का साहस नहीं हुआ. अतीत के आईने में खुद का जो रूप मैंने देखा था उसने मेरी छवि मेरे ही मन मानस में कमजोर कर दी थी .
एक शाम माल में कुछ खरीदने जाना हुआ तभी पीछे से हंसी की आवाज़ सुनाई दी ,जिसमे एक आवाज़ काफी स्पष्ट और पहचानी हुई थी पलट कर देखा चार महिलाएं खड़ी हंस रही थी उनमे एक मधु थी .हाँ मधु की हंसी में अभी भी पहचान सकता हूँ वही खनकती हंसी.
मधु ने मेरा परिचय अपनी सहेलियों से करवाया .पुष्पा और माला किसी स्कूल में टीचर थीं और आरती बैंक में . हम चारों का ग्रुप है हमारी शामें साथ ही गुजरती है वो चारों ही अकेली थीं .पुष्पा,माला और मधु ने शादी नहीं की थी और आरती तलाकशुदा थी .
मैंने उन्हें कॉफ़ी पिलाने का प्रस्ताव रखा जिसे उन्होंने सहर्ष मान लिया .उनकी हंसी मजाक से पूरा कैफेटेरिया गूंजता रहा .वही बैठे बैठे उनका प्रोग्राम बना की कल शाम पुष्पा के घर डी वी डी पर फिल्म देखि जाये . मुझे भी आमंत्रित किया गया में इनकार न कर सका .मधु का सानिध्य अच्छा लग रहा था ,भले ही वहां अपनी दुनिया में अपनी सहेलियों के साथ मस्त थी पर उसे हँसता खिलखिलाता देख कर एक सुकून सा मिल रहा था.
मधु और उसकी सहेलियों की अपनी ही निराली दुनिया थी दिन भर काम और शाम को कहीं चाट पकोड़ी कभी किसी के घर मूवी देखना तो कभी गप गोष्ठी कभी किसी माल या मंदिर में चले जाना.
में भी धीरे धीरे उनके ग्रुप में शामिल हो गया बाहर जाना तो नहीं हो पाता पर उसकी सहेलियों के घर होने वाली गोष्ठियों में जरूर शामिल हो जाता.
लेकिन मुझे लगता मधु मुझे अपने घर बुलाने से कतराती है. शायद इसलिए की उसकी मम्मी उसके साथ ही रहती थी निश्चित ही उन्हें मेरे बारे में पता होगा और मधु उनसे मेरा परिचय नहीं करना चाह रही होगी. मुझे नहीं पता उसकी सहेलियां मेरे और मधु के सम्बन्ध में जानती है या नहीं .उनकी बातों या व्यवहार से मुझे कभी ऐसा लगा नहीं. वो एक दूसरे को अपने आप से बढ़कर मानती थी ऐसे में मेरा और मधु का पुराना रिश्ता कहीं तो कोई कटुता उनमे भरता जिसका कोई संकेत उनके व्यवहार में नहीं दिखता था.
चारों अकेले हो कर भी अकेली नहीं थी एक दूसरे के लिए परिवार से बढ़ कर थीं.
एक शाम आरती के घर से वापस आया तो फ्लेट में घुसते ही अकेलापन मुझ पर हावी हो गया. न जाने क्यों में मधु और अपने जीवन की तुलना करने लगा
मेरे पास तो मेरा पूरा परिवार था बेटा बेटी पत्नी,भाई बहिन माँ पिताजी सब .अकेली तो मधु थी ,बहिन की शादी के बाद सिर्फ वह और उसकी मम्मी. पर आज सुधा के जाने के बाद में बिलकुल अकेला हूँ.बेटा बेटी अपनी दुनिया में मस्त है हफ्ते में २-४ बार उनके फ़ोन जरूर आ जाते है. कुसुम भी अपनी गृहस्थी में व्यस्त है भैया भाभी जरूर कहते रहते है की अब नौकरी की क्या जरूरत है क्यों अकेले परदेश में पड़े हो यहीं आ जाओ .भैया के बच्चे भी बाहर चले गए है.
आज सबके होते हुए भी में अकेला हूँ बिलकुल अकेला. और मधु अकेले होते हुए भी अकेली नहीं है उसका एक आबाद संसार है.
उस रात मन बहुत उद्विग्न था पता नहीं कुर्सी पर बैठे बैठे कितनी ही सिगरेटें फूंक डाली फिर वही सो गया. क्रमश

11 comments:

  1. achchi post likhi hai aapne. join..... halla bol

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  2. गुड ट्विस्ट...

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  3. क्या बात है। आगे पढ़ता ही जा रहा हूं। एक एक अध्याय की तरह। जैसे मैंने पहले कहा था अब लगता है आगे भी पढऩा पड़ेगा वैसा ही हो रहा है। खास बात यह है कि मैंने तो पहले की भी कई अंक पढ़ लिए। जलवा है आपका।

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  4. बढ़िया प्रस्तुति ...........................धन्यवाद

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  5. बढ़िया कहानी चल रही है.लगातार पढ़ रहा हूँ.

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  6. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  7. पूरी कहानी पडःएए है रोचक प्रवाह चल रहा है आगे इन्तजार। शुभकामनायें।

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  8. बढ़िया कहानी कई अंक पढ़ लिए।

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  9. वाह कविता जी, nice लेकिन पाठकों को ऐसे तरसाना अच्छी बात नहीं है . अब तो इतनी रेकुएस्ट आ चुकी की क्रमश को पूरा कर ही दीजिये . www.neelsahib.blogspot.com

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