मधु नाम है उसका .मेरे साथ कॉलेज में पढती थी तीन साल पीछे थी वही हमारी जान -पहचान हुई. पिताजी नहीं है उसके .मम्मी और एक बड़ी बहन है .पिताजी की पेंशन से घर चलता है बस .
हे भगवान ,तेरी मति को क्या हो गया है रे मधुसुदन ,बिना बाप भाई की लड़की कौन जात है ?
बहुत बड़ा मुद्दा था ये में चुप लगा गया .
लेकिन दादी वह बहुत अच्छी है, सुंदर है, समझदार है पढ़ने में बहुत होशियार है.
अरे तो कौन सी नौकरी करवानी है हमें तेरी बहु से?घर में न बाप न भाई फिर परजात. बारात द्वारे खड़ी होगी तो घोड़ी से उतर कर तू अगुआई करेगा ? हमारे रिश्ते-नातेदार क्या कहेंगे ?और अपनी बहिन की तो सोच तू.परजात लड़की ले आएगा तो उसके लिए रिश्ते कहाँ से लायेंगे कौन ब्याहेगा उसे?
इस बात पर माँ ने फिर रोना शुरू कर दिया.
पढ़ी लिखी है तो नौकरी करने के भी अरमान होंगे उसके ?पिताजी ने पूंछा.
जी सिटपिटा गया में.
लो सुन लो तुम्हारे लाडले की बात इस घर की बहु अब नौकरी करेगी. पूरे खानदान में थू थू करवाना बेटा ,बस यही उम्मीद थी तुमसे .ये दिन ही देखना रह गया था .पिताजी गुस्से में थर्रा गए उनकी आवाज़ फटने लगी.
भैया तुम शांति रखो ,मधुसुदन देख रे ऐसा कोई काम न करना भैया जिससे परिवार में दो फाड़ हो जाये .तेरे बाबूजी के लिए इतना गुस्सा ठीक नहीं है बेटा .
अरे छुटकी तेरे बाबूजी के लिए पानी ला .दादी ने आवाज़ लगाईं.
माँ मेरे पास आ गयी देख बेकार की जिद न कर एक परजात लड़की से तेरा ब्याह नहीं हो सकता तेरी बहिन कुंवारी रह जाएगी कोई नहीं ब्याहेगा बेटा उसे. तू मेरी कसम खा कभी नहीं मिलेगा उससे कोई मेलजोल नहीं रखेगा .
माँ ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने सर पर रख लिया .
बौखला गया में .अपना हाथ छुड़ा कर झुंझला कर कहा माँ ये क्या नाटक है ?में उससे प्यार करता हूँ और उसी से शादी करूंगा .गुस्से के आवेग में में सारी मर्यादा भूल गया पिताजी दादी की उपस्थिति का भी ख्याल नहीं किया मैंने.
कमरे में एक पल को सन्नाटा पसर गया.
ठीक है अगर तू नहीं मानेगा तो मेरी बात भी सुन ले में भी खाना पीना बंद करती हूँ आज से अभी से. मेरे जीतेजी वो इस घर में बहु बन कर नहीं आएगी तेरी जिद पूरी करने में अपनी बेटी को कुंवारी नहीं देख सकती सारी जिंदगी. माँ सुबकती हुई चौके में चली गयी .
पिताजी उठ कर अंदर चले गए दादी ने फिर माला जपना शुरू कर दिया .
अपने कमरे में आ कर निढाल पढ़ गया में दो घंटे पहले मधु के साथ बिताये वो खूबसूरत पल इस ड्रामे में मटियामेट हो गए.
मधु -मधु तुम्हारे बिना कैसे जिऊंगा में ?तुम्हारी आँखों में मैंने इतने सपने भरे थे अब कैसे कहूँ की वो सिर्फ सपने थे .हमें उन्हें नहीं देखना चाहिए था .हमारी शादी नहीं हो सकती क्योंकि तुम्हारे परिवार में कोई मर्द नहीं है तुम्हारे घर में हमारे रिश्तेदारों का स्वागत करने वाला कोई नहीं है. तुम हमारे समाज की नहीं .तुमसे शादी करने पर मेरी प्यारी छोटी बहिन कुंवारी रह जाएगी.
भैया खाना खा लो. कमरे के दरवाजे पर कुसुम खड़ी थी मेरी छोटी बहिन छुटकी .
मुझे भूख नहीं है.
भैया थोडा सा खा लो न उसने विनय की.
छुटकी माँ ने खाना खाया?में उठ कर बैठ गया. एक पल को चुप लगा गयी वो.वोsss अभी तो नहीं खाया .आप खाओ लो भैया .भाभी और में माँ को खाना खिला देंगे.
ओह्ह मतलब माँ सच में अनशन पर उतर आयी है. मुझे भूख नहीं है छुटकी तू जा बस एक लोटा पानी रख जा.
भैया रूआंसी आवाज़ में उसने कहा .
क्या है ?
कुछ नहीं .पानी रख कर वह चली गयी.
रात कब आँख लगी याद नहीं पर सुबह आँख देर से खुली.में जल्दी से तैयार होने लगा भूख जोर से लगी थी.चाय भी नहीं पी थी.
भैया चाय बनाऊं या खाना ही खाओगे ?ऑफ़िस का समय हो गया है.
खाना बन गया है क्या?बहुत जोर से भूख लगी है.
हाँ हाँ बन गया है यही ले आऊं?पिताजी खाना खा रहे है.
हाँ बहना यही ले आ .
अरे यार क्या मुर्दानी सूरत बना रखी है क्या बात है तबियत तो ठीक है?मेरे एक सहयोगी ने मुझे टोका.
हाँ हाँ सब ठीक है बस जरा नींद पूरी नहीं हुई.
हूँ होता है बरखुरदार इस उम्र में ऐसा ही होता है.और वह ठहाके लगाते हुए आगे बढ़ गए
तो क्या सच में मेरे चेहरे से ऐसा लग रहा है?फिर तो मधु एक सेकेण्ड में पकड़ लेगी
क्या करूँ कैसे जाऊं उसके पास?शाम को वो कॉलेज के पीछे मेरा इंतजार करेगी.
नहीं अभी उसे कुछ बताना ठीक नहीं है .
तो न मिलूँ उससे?लेकिन उससे मिले बिना भी तो नहीं रह सकता .
लेकिन अगर मिला तो वह पकड़ लेगी और एक एक बात खोद कर निकलवा लेगी
मैंने एक छोटा सा ख़त मधु के नाम लिखा आज कुछ जरूरी काम है मिलना नहीं हो सकेगा और लिफाफे में बंद करके चपरासी के हाथ इस ताकीद के साथ भिजवा दिया की पहले नाम पूछना और पत्र सिर्फ मधु के हाथ में देना. अपने घर हुए ड्रामे को उसके घर नहीं दुहराना चाहता था में. क्रमश
कविता जी ..आप ने जी भी लिखा है , वह आज और कल का जीता जागता परिदृश्य सामने चलता नजर आया ! आप बहुत जल्दी - जल्दी पोस्ट करती है ! समयाभाव में एक साथ पढ़ना ज़रा मुश्किल हो जाता है ! सुन्दर प्रयास ! बधाई !
ReplyDeleteएक बार नए सिरे से सारे भाग पढना चाहूंगा , आपकी धाराप्रवाह शैली हमेशा ही प्रभावित करती है
ReplyDeleteबहुत प्रभावशाली चल रही है कहानी..
ReplyDeletehmmmmmmmmm phir kya hua ?
ReplyDeleteआपकी शैली बहुत बढ़िया है.बांधे रखती है.
ReplyDeleteपांचो भाग पढ़े.बहुत अच्छी कहानी है.
काश सच होती.
बहुत प्रभावशाली चल रही है कहानी| धन्यवाद|
ReplyDeleteहुंकारी न भरो तो कहानी सुनाने वाले का टेम्पो नहीं बनता...एक हुंकारी हमारी भी...
ReplyDeleteji vanbhatt ji mein sahmat hu bahut shukriya aapne is bat ko samjha aur aage likhane ka tempo banaya....agali kisht jaldi hi.
ReplyDeletekahai badhiya chal rahi hai, patron ke vartalap jivant hain.
ReplyDeletesabhi kadiyon ko padhta hun.
aabhaar
प्रभावशाली कहानी..
ReplyDeleteबेहद अच्छी....
ReplyDeleteकविता जी,
ReplyDeleteरिश्तों से बड़ी प्रथा.औरों के लिए ये कहानी हो सकती है मेरे लिए एक जीया गया सच है.इस दंश को मैंने झेला है.इसलिए कह सकता हूँ कि आपने कहानी को सच के सामने ला खड़ा किया है.आज भी हर जगह इसकी बानगी मिल जाती है. हमारा वर्तमान समाज भी इस छूत से अछूता नहीं है.हालत आज भी कमोबेश वैसे ही हैं.बिलकुल जीवंत,आप-बीती सी प्रेरणादायी रचना के लिए बधाई.
कायर है! प्रेम करता है और मिलने से इन्कार? चिट्टी लिख कर प्रेम करेगा... इन्तेज़ार तो रहेगा [अगली किश्त का] :)
ReplyDeleteरिश्तों से बडी प्रथा यही है शायद.
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