Wednesday, May 11, 2011

इंतजार ११

मधु से मंदिर में मिल कर मधुसुदन को कई पुरानी बातें याद आ गयीं .कैसे उसकी मधु से मुलाकात हुई कब वो प्यार में बदली और फिर समय ने कैसी करवट की .उस रिश्ते का क्या हुआ ?मधु से मिलकर उसे सारी बात बताने के बाद भी वह शांत थी ...उसके बाद वह फिर नहीं मिली मुझसे .आज मंदिर में मुलाकात हुई क्या ये मुलाकात आगे भी जारी रहेंगी ...३३ सालों बाद इन मुलाकातों का क्या स्वरुप होगा .. मधु से फिर मुलाकात हुई और आगे भी होती रही फिर....)अब आगे..

जिंदगी बहुत अच्छी चल रही थी .हफ्ते में कई शामें सबके साथ बीतती .मधु से अकेले मिलने का समय तो नहीं मिलता ,लेकिन उसका सानिध्य अच्छा लगता था .पर रात में भयावह सन्नाटा. उम्र और अकेलेपन की थकान मुझ पर हावी होती जा रही थी. मेरे रिटायर्मेंट को दो महीने बचे थे .बेटे के फ़ोन आ रहे थे पापा आप अमेरिका आ जाइये .भैया भाभी भी अकेले थे भैया चाहते थे में शाहपुर आ जाऊ और हम साथ ही रहे. में मधु को छोड़कर जाना नहीं चाहता था,हालाँकि हम साथ हो कर भी उतने ही दूर थे जितने नदी के दो किनारे.
पुष्पा और माला बाहर गयीं थी आरती भी व्यस्त भी ,उस शाम मधु मेरे घर आयी हमने ढेर सारी बातें की फिर साथ में डिनर पर भी गए. उस रात मधु को उसके घर छोड़ते हुए एक ख्याल आया क्या हम साथ नहीं हो सकते ?क्या सालों पहले हुई गलती सुधारी नहीं जा सकती?
उस रात में इस बारे में सोचता रहा .मधु इतनी सहज थी की वो क्या सोचती है समझ पाना मुश्किल था. क्या उसके मन में अपने पुराने प्यार के लिए कोई कोना शेष है ?उसने शादी भी तो नहीं की शायद वो अब भी मुझे चाहती हो. कैसे पता करूँ क्या उससे पूछूं ?
मेरे मन ने कहा मधुसुदन जो भी करना है जल्दी करो एक बार उसकी सहेलियां आ गयी फिर उससे बात भी करना मुश्किल होगी .सारी रात बड़ी उहापोह में गुजरी.
अगले दिन रविवार था .मधु ने मुझे लंच पर बुलाया था. पुरानी गज़लें चल रही थीं. मधु किचन में व्यस्त थी .में यूं ही किताबें देखने लगा .किताबों के पीछे एक पुरानी डायरी रखी थी छुपा कर . मैंने किचन में झाँका मधु व्यस्त थी .मैंने वह डायरी निकाली.
बहुत पुरानी लगती है .पन्नो के बीच एक सूखा पत्ता रखा था.उस पेज पर कुछ पंक्तियाँ लिखी थी में पढ़ने लगा .
शाख से टूट कर गिरे पत्ते

फिर हरे नहीं होते .

उनकी जिंदगी होती है

उदास तनहा.

डायरी में नज्में ,गज़लें लिखी थी उस पेज के बाद के सारे पन्ने खाली थे.
उस शाम ऊपर से इतनी शांत दिखने वाली मधु अपने भीतर दुःख का समंदर छुपाये हुए थी मधु ने अपने आँचल में आ गिरे सूखे पत्ते को अपनी जिंदगी बना लिया . वह आज भी उसे संभाले हुए है इसका क्या मतलब समझूं क्या वह आज भी मुझे चाहती है?
कुछ आहट सी हुई मैंने डायरी वापस उसी जगह पर रख दी .खाना खाकर मम्मी दवाई लेकर सो गयी और हम फिल्म देखने लगे .मुझसे रहा न गया मधु तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है.
मधु ने टी वी बंद कर दिया और मेरी ओर देखने लगी
मैंने बिना भूमिका के बात शुरू की. में जानता हूँ सालों पहले जो हुआ वो मेरी कमजोरी थी पर सजा सिर्फ तुम्हे मिली .में तो इतना कमजोर था कि उसके बाद तुम्हारे बारे में जानने कि कोशिश भी नहीं की.में तुमसे माफ़ी मांगना चाहता हूँ.
आंसूं मेरे गालों तक ढलक आये थे. आज मधु ने भी अपने को मजबूत बनाने की कोशिश नहीं की उसकी भी आँखें भर आयीं .
अब इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता ,मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है.
मधु में बाकी जिंदगी तुम्हारे साथ गुजरना चाहता हूँ में जानता हूँ ये निहायत स्वार्थी पन है पर में आज भी उतना ही कमजोर हूँ जब ये अकेलापन मुझ पर हावी हो जाता है में खुद को बहुत असहाय पाता हूँ.
लेकिन मधुसुदन ये कैसे? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है .
मधु तुम घबराओ मत अच्छे से सोच लो में इंतजार करूंगा .
दरवाजे पर आहट हुई ,मम्मी वहां खड़ी थीं उनके चहरे पर मुस्कान थी .

में ऑफिस में था की फ़ोन की घंटी बजी पुष्पा थी ,-मधुसुदन जी मम्मी

क्या हुआ मम्मी को ?

मम्मी हमें छोड़ कर चलीं गयी. हम उन्हें लेकर घर जा रहे है .

जमीन पर मम्मी सफ़ेद चादर ओढ़ कर लेटीं थीं उनके चहरे पर उस दिन वाली मुस्कान थी सब कुछ बिलकुल शांत था .तभी मधु की दीदी आ गयीं मधु उनसे लिपट कर रो पड़ी तो कोई भी अपने आंसूं नहीं रोक पाया .मधु के ऑफिस के लोग और दूसरे परिचित अंतिम संस्कार के इंतजाम में लगे थे .मधु ने घोषणा कर दी की अंतिम संस्कार वह करेगी . थोड़ी बहुत खुसुर पुसुर हुई पर किसी ने विरोध नहीं किया.

उस दिन तो मम्मी बिलकुल ठीक थीं फिर अचानक क्या हुआ कुछ समझ में नहीं आया .पुष्पा माला और आरती को भी कुछ पता नहीं था.

गुरूद्वारे में शांति पाठ के बाद मधु की बहिन जीजा और बाकी रिश्तेदार भी चले गए. में भी घर आ गया .मुझे अपना सामान पेक करना था पांच दिन बाद में रिटायर होने वाला था और उसके अगले दिन रवानगी. में कुछ दिन और इंदौर में रहना चाहता था लेकिन बेटे के बार बार फ़ोन आ रहे थे या तो आप अमेरिका आ जाइये या शाहपुर चले जाइये आप अब और अकेले नहीं रहेंगे. भैया तो मुझे लेने आने के लिए भी तैयार हो गए थे बड़ी मुश्किल से उन्हें रोका .

यहाँ सब इतना अप्रत्याशित हो रहा था की कोई भी निर्णय लेना संभव नहीं था मधु के साथ कोई न कोई सहेली हमेशा बनी रहती .वैस भी ये समय मेरे प्रश्न के जवाब का नहीं था. क्रमश

5 comments:

  1. शाख से टूट कर गिरे पत्ते

    फिर हरे नहीं होते .

    उनकी जिंदगी होती है

    उदास तनहा...:)


    bahut pyari rachna.....

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  2. जी..आज कई दिनों बाद आपके ब्लाग पर आ पाया। "इंतजार" की ये किस्त लिखकर हो सकता है कि आपको सुकून मिला हो, लेकिन आपने हम जैसे पाठकों की जिम्मेदारी बढा दी, जो ब्लाग पर नियमित नहीं रहते हैं। वैसे कई बार होता है कि आप कोई किताब पहले पन्ने से पढना शुरू करते हैं और आखिर तक पढते चले जाते हैं, लेकिन आपकी इस कहानी "इतजार" ने मुझे मजबूर कर दिया कि कि एक बार फिर 11 से शुरू कर एक तक पहुंचूं । सच में लगा ही नहीं की कोई कहानी पढ रहा हूं, बल्कि ऐसा महसूस हो रहा था कि जीवन के इर्द गिर्द कुछ घट रहा है, जिसका मैं भले ही कोई पात्र न रहा हूं, फिर भी खुद को इसके काफी करीब पा रहा था। सच में और लोगों की तरह मुझे भी इंतजार है अनसुलझे सवालों के जवाब का। बधाई कविता.. बहुत बहुत बधाई

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  3. ये इंतज़ार है कि ख़तम होने का नाम ही नहीं लेता...शीर्षक पर अब गौर किया...

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