(मधु और मधुसुदन मंदिर में अचानक मिले देखते ही बरसों पुरानी बातें ताज़ा हो गयी. थोड़ी देर साथ बैठ कर एक दूसरे के बारे में जानकारी ली एक दूसरे का पता फोन नंबर लिया .मधु के जाने के बाद में वही बैठ कर पुरानी यादों में खो गया .पता नहीं कैसे पर घर में मधु के बारे में पता चल गया घर पहुंचते ही माँ पिताजी और दादी के सवालात शुरू हो गए.जब मधु के बारे में बताया तो घर में बवाल मच गया. माँ ने अनशन की धमकी दे दी. उस दिन मधु से नहीं मिला जब घर पहुंचा माँ को अस्पताल ले जाते देखा.अनशन से माँ की हालत ख़राब हो गयी थी.उन्हें वचन दिया की कोई ऐसा कम नहीं करूंगा जिससे कुसुम की शादी में कोई रूकावट आये .फिर ऑफिस के काम से दिल्ली चला गया.जब लौट कर आया...)अब आगे
घर आ कर एक सिगरेट सुलगाई और बाहर बालकनी में आ गया.
दिल्ली में चार -पांच दिन रहा पर कुछ भी तो नहीं सोच सका .न ही किसी निर्णय पर पहुँच सका .मधु से मिलूंगा तो क्या कहूँगा कैसे सब बताऊंगा इस बारे में सोचने से बचता रहा
वापस घर पहुंचा तो किन्ही मेहमानों को बैठक में पिताजी के साथ बैठे देखा. मुझे देख कर पिताजी ने बड़े गर्व से कहा ये आ गया मेरा बेटा.
आओ बेटा सफ़र कैसा रहा जैसी कुछ औपचारिक बातें कर के में अंदर आ गया.
भाभी से पूछना चाहा की ये लोग कौन है ?पर वो काम बहुत है भैया अभी बताते है कह कर चली गयी.
सफ़र की थकान मेरी आँख लग गयी.
भैया उठो चाय पी लो छुटकी की आवाज़ पर मेरी नींद खुली .भैया जल्दी से चाय पी कर तैयार हो जाइये पिताजी बुला रहे है.उन्हें आपको लेकर कही जाना है.
पर कहाँ ?भैया कहाँ हैं?वो चले जाएँ ना .मैंने अलसाते हुए कहा .
भैया भी तैयार बैठे है बस आपका इंतजार कर रहे है.
तैयार हो कर नीचे पहुंचा तो देखा दो रिक्शे खड़े है. पिताजी ने भैया को माँ के साथ बैठने को कहा ओर खुद मेरे साथ रिक्शे में बैठ गए.
बुरे फंसे मैंने मन में सोचा .अब माँ के साथ होता तो कुछ पूछता भी ,हम कहाँ जा रहे है? पर पिताजी से कुछ पूछना उनका उस दिन का गुस्सा याद था मुझे सो चुप ही रहा.
अगले एक -डेढ़ घंटे के घटनाक्रम में में मूक दर्शक ही बना रहा. चाय की ट्रे ले कर आयी एक लड़की ,आस-पास की बातें परदे के पीछे से झांकती आँखें फुसफुसाहटे ओर हंसी की आवाजें .
जब माँ ने पूछा तुझे लड़की पसंद है तो कसमसा कर रह गया में . सिर्फ यही कह पाया -माँ S S
माँ ने आँखों में अनुनय की .
माँ थोडा समय तो दो मैंने विनती भरे स्वर में कहा.
बेटा तेरे पिताजी. ..
माथे पर टीका हाथ में श्रीफल और कंधे पर शाल डाले घर तक पहुँचने तक क्या क्या हुआ याद नहीं.
आज भी मधु से नहीं मिल पाया वह मेरा इंतजार कर रही होगी. मैंने जो चार पांच दिन की मियाद ली थी वह पूरी हो गयी थी. आज तो उसे खबर भी नहीं भिजवाई थी .न जाने वह अकेले कब तक मेरा इंतजार करती रही होगी.
घर पहुँचते ही पिताजी ने ऐलान कर दिया -अब अपने लाडले से कह दो उस लड़की से न मिले .रूपया नारियल हो चुका है .अब ऐसी कोई बात लड़की वालों तक पहुंचेगी तो रिश्ता भी बिगड़ सकता है ओर खानदान की बदनामी भी होगी.
ठंडी हवा से एक सिरहन सी हुई,में बालकनी से अंदर आ गया.
अंदर बस यूं ही आईने के सामने खड़ा हो गया .यूं लगा जैसे खुद को नहीं किसी ओर को देख रहा हूँ. कौन है वह?असली मदुसुदन पर असली मदुसुदन कौन है? वह जो आईने में दिख रहा है या जो आईने के सामने खड़ा है.
आज मधु से मुलाकात,ओर बीती बातों का यूं याद आ जाना आज खुद के असली स्वरुप को देख रहा हूँ कायर ,डरपोक बेवफा मदुसुदन .
क्यों उस दिन बिना कुछ बोले पूछे में सबके साथ चला गया ?क्यों लौट कर मैंने विरोध नहीं किया मधु से शादी करने में सबसे बड़ी परेशानी कुसुम की शादी में ही आती न ,तो कुसुम की शादी होने तक में शादी न करता.
उस दिन हुए ड्रामे से घबरा गया था में या माँ की हालत देख कर,पिताजी के गुस्से से या..मैंने सर को झटक कर उन विचारों से बाहर आना चाहा.पर आईने में कोई ठहाका मार कर हंस दिया.
क्या तुम सच में मधु से प्यार करते थे ?प्यार तो उसने किया तुमसे अकेली है वह आज भी .तुम तो अपनी दुनिया में खो गए शादी बच्चे सब सुख उसे क्या मिला?
नज़रें नहीं मिला पाया में खुद से . आईने के सामने से हट गया . क्रमश
वाह जी, बहुत ही सुंदर कहानी है।
ReplyDeleteअगले पार्ट के इंतजार में आगे क्या होगा ?
हार्दिक शुभकामनाएं आपको !!
बहुत अच्छा मोड दिया है कहानी को..इंतज़ार है अगली कड़ी का..
ReplyDeleteएक और हुंकारी...
ReplyDeleteबहुत सुंदर। पूरा तो नहीं पढ़ सका, लेकिन जितना पढ़ा अच्छा लगा। अब लगता है आगे भी पूरा पढऩा पड़ेगा।
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी यह कड़ी
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