Saturday, May 7, 2011

इंतजार ८

( मधु से मंदिर में मिल कर मधुसुदन को कई पुरानी बातें याद आ गयीं .कैसे उसकी मधु से मुलाकात हुई कब वो प्यार में बदली और फिर समय ने कैसी करवट की .उस रिश्ते का क्या हुआ )अब आगे...

भाभी
ने बताया सुधा बहुत अच्छी लड़की है .इंटर तक पढ़ी है और हर काम में होशियार है उनके दूर के रिश्ते के मामा की बेटी है .उसके पिताजी सरकारी नौकरी में ऊँचे ओहदे पर है .
उसके साथ सुख से रहोगे भैया .चाय का कप लेकर जाते हुए भाभी रुक गयीं ओर कहा भैया एक बात और अभी वो लोग इसी शहर में है इसलिए अभी ४-५ दिन आप उस लड़की से न मिलना .किसी ने देख लिया तो बनी बात बिगड़ जाएगी .
और चार पांच दिन? में कसमसा गया पर कहता किस्से वहां समझने वाला कोई था ही नहीं .
अगले ४-५ दिन शाम पांच बजे भैया मुझे लेने ऑफिस आ जाते कभी किसी रिश्तेदार के यहाँ जाने या फिर बाज़ार जाने के बहाने .बिना मुझसे कुछ कहे जिस तरह मुझे घेरा जा रहा था मुझे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. कुछ कहूँ तो किससे और क्या? आखिर किसी ने मुझे तो कुछ कहा ही नहीं .सब कुछ बहुत सामान्य तरीके से हो रहा था.
मधु से मिले करीब बारह दिन हो गए थे मैंने उसे चिठ्ठी भिजवाई आज मिलने आ सकती हो?कॉलेज के पीछे .ठीक समय पर में भी वहां पहुँच गया पर मधु वहां नहीं थी. सामान्यतः वह मुझसे पहले ही पहुँच जाती ओर मेरे आने के तक किसी गीत या ग़ज़ल की कुछ पंक्तियाँ लिख कर रखती .उससे मिलने की बेताबी तो थी पर उसका वहां न होना एक सुकून भी दे रहा था. ये कैसा विरोधाभास था .हाँ लेकिन कुछ ऐसा ही था. में उसका सामना करने से बचना चाहता था. मेरे मन में एक अपराध बोध था.
मधु ने हलके नीले रंग का सलवार कमीज़ पहना था.उसके दुपट्टे का कोना जमीन पर टकरा रहा था जिसमे उलझ कर सूखे पत्ते उसके साथ चले आ रहे थे. कैसे हो तबियत तो ठीक है न कैसी सूरत बना रखी है?आते ही मधु ने अपनी उसी बेबाकी से पूछा और मेरे बालों को उँगलियों से संवारा .
एक कदम पीछे हट गया था में. मेरे मन का चोर उसकी निश्छल बेबाकी का सामना नहीं कर सका .पतझड़ का मौसम था पेड़ों के नीचे सूखे पत्तों की चादर बिछी हुई थी में मधु के सामने बैठ गया.और दिनों की तरह उसके बगल में बैठ कर उसके बालों को सहलाने या उसके हाथों को अपने हाथ में लेकर उसकी लम्बी पतली उँगलियों से खेलने का साहस नहीं था मुझमे .
मैंने बिना उसकी ओर देखे शुरू से आखिर तक की पूरी कहानी उसे सुना दी.
मधु ख़ामोशी से सुनती रही न उसने मुझे टोका न कुछ पूछा .शायद जीवन की जद्दोजहद ने उसे इतना मजबूत बना दिया था .या मेरी कहानी सुनते हुए उसने जान लिया था में एक बेहद कमजोर इन्सान हूँ और मुझे आत्मग्लानी से उबारने के लिए उसने खुद को पत्थर सा मजबूत बना लिया था जब मैंने बात ख़त्म की मेरा गला रुंधा हुआ था और आँखें भरी हुई.
मैंने मधु की ओर देखा.वह दो पल मेरी ओर देखती रही फिर मेरे आंसूं पोंछते हुए कहा बधाई हो तुम्हारी सगाई हो गयी. तभी पेड़ से टूट कर एक सूखा पत्ता उसकी गोद में गिरा उसे हाथ में लेकर वह उसे देखती रही फिर हंस दी .पत्ता मुझे दिखा कर बोली शायद ये कोई इशारा है .
मुझे कुछ समझ न आया.
तुम्हारे घरवाले ठीक ही कहते है तुम्हे अब मुझसे नहीं मिलना चाहिए .परिवार पहले है .तुम मेरी चिंता मत करो.बस हमेशा खुश रहना अब हम कभी नहीं मिलेंगे गुड बाय.
और मधु चली गयी .में दूर तक उसे जाते देखता रहा जब तक उसका आसमानी आँचल क्षितिज से एकाकार न हो गया . क्रमश

12 comments:

  1. फिर एक प्यार की क़ुरबानी

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  2. मधुसूदन अगर इतना कमजोर था तो उसे प्यार करने का कोई अधिकार नहीं था. बहुत मार्मिक

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  3. मधु ...उसकी दृढ़ता ... अगली कड़ी का इंतजार है ।

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  4. बहुत सुंदर
    बहुत प्रभावशाली चल रही है कहानी..

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  5. ये कहानी दुखांत की ओर बढ़ रही है...कुछ ऐसा ट्विस्ट लाइए की सुखांत में परिवर्तित हो जाये...बाई द वे ये कहानी किस युग की है...आज के लड़कों को ऐसे घेरना संभव नहीं लगता...ये तो हमारे ज़माने की बात लगती है...

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  6. ji vanbhatt ji agar aapne pahli kist padhi ho bat kareeb 32-33 varsh purani hai...us samy me hi mata pita ka itana lihaj tha..aaj bhi hai par kisi aur roop me...

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  7. Hmmm...dukhad...magar aise hi kitne ant hain...

    aage intezaar hai.

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  8. लगता है इंतजार 1-7 पढ़ना पड़ेगा

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  9. स्त्री ही धैर्य और दृढ़ता दिखा सकती है ..बहुत अच्छी लगी यह कड़ी ..

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  10. प्रिय बहन सुश्रीकविताजी,

    "पत्ता मुझे दिखा कर बोली शायद ये कोई इशारा है"

    हप्तावार कहानी लिखना सब के बस की वात नहीं है,जिसे आपने आपने बखूबी बस में कर लिया है। बहुत-बहुत बधाई।

    मार्कण्ड दवे।
    http://mktvfilms.blogspot.com

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  11. प्यार त्याग मांगता है .

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नर्मदे हर

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