आईने में झांकते
देखते अपना अक्स
नज़र आये चहरे पर
कुछ दाग धब्बे
अपना ही चेहरा लगा
बदसूरत ,अनजाना
घबराकर नज़र हटाई
अपने अक्स से
और देखा आईने को
नज़र आये तमाम दाग
आईने के चहरे पर
आईने के सामने से हटते ही
मेरा चेहरा फिर था
खूबसूरत, बेदाग
कितना आसन था.
यूँ ही बैठे फुर्सत में
झाँका अपने अतीत में
कुछ पल ख़ुशी के
कुछ दोस्ती और प्रेम के
चमकते इन पलों से
था रोशन मेरा चेहरा
लेकिन इस पर भी
नज़र आये कुछ दाग
दिखा चेहरा धब्बेदार
कोशिश करते पहचानते
इन धब्बों को
ये थे जीवन के वो पल
जो सने थे ईर्ष्या, द्वेष ,धोखे से
स्वार्थ के दाग जो थे
बड़े भद्दे और डरावने
अनायास ही पहुंचा मेरा हाथ
हटाने उन धब्बों को
कितने गहरे जमे थे वो
छू भी न पाया उन्हें
चाहा न देखूं इस अक्स को
पर जीवन के साथ जुड़ा है ये
इस कदर
कि इससे दूर जाना नहीं है संभव
कि नहीं हो सकता अब
कि आईना है ये जिंदगी का
इससे दूर नहीं हो सकता मै
ये थे जीवन के वो पल
ReplyDeleteजो सने थे ईर्ष्या, द्वेष ,धोखे से
स्वार्थ के दाग जो थे
बड़े भद्दे और डरावने ..
यही भाव हैं जो चेहरे को विकृत कर देते हैं ...सुन्दर रचना
मेरा चेहरा फिर खूबसूरत बेदाग
ReplyDeleteकि आईना है ये जिंदगी का
इससे दूर नहीं हो सकता मै.
ज़िन्दगी को आइना दिखाती खूबसूरत रचना.
यूँ ही बैठे फुर्सत में
ReplyDeleteझाँका अपने अतीत में
कुछ पल ख़ुशी के
कुछ दोस्ती और प्रेम के
चमकते इन पलों से
था रोशन मेरा चेहरा
लेकिन इस पर भी
नज़र आये कुछ दाग
दिखा चेहरा धब्बेदार
कोशिश करते पहचानते
इन धब्बों को
ये थे जीवन के वो पल
जो सने थे ईर्ष्या, द्वेष ,धोखे से
स्वार्थ के दाग जो थे
बड़े भद्दे और डरावने
अनायास ही पहुंचा मेरा हाथ
हटाने उन धब्बों को
कितने गहरे जमे थे वो
छू भी न पाया उन्हें
bahut badhiyaa vishleshan
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (14-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
sundar prastuti...
ReplyDeleteगहन भावों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteये थे जीवन के वो पल
ReplyDeleteजो सने थे ईर्ष्या, द्वेष ,धोखे से
स्वार्थ के दाग जो थे
बड़े भद्दे और डरावने
अनायास ही पहुंचा मेरा हाथ
हटाने उन धब्बों को
कितने गहरे जमे थे वो
छू भी न पाया उन्हें
बहुत ही सुंदर रचना..ध्यान से देखने पर सभी को धुंधला दिखाई देगा अपना चेहरा पर हम अपना नहीं दूसरों का देखते हैं...
बहुत सुंदर....
आप भी आइए....
आपका ब्लॉग भी फॉलो कर रही हूं...
जब मन दर्पण हो जाय तभी दिखती हैं अपनी कमियाँ।
ReplyDelete...बहुत बधाई।
बहुत सुन्दर भाव.
ReplyDeleteआईने के माध्यम से आत्म चिंतन.
बहुत खूब.
कि नहीं हो सकता अब
ReplyDeleteमेरा चेहरा फिर खूबसूरत बेदाग
कि आईना है ये जिंदगी का
इससे दूर नहीं हो सकता मै
गहन आत्मचिंतन -
सही विश्लाशन -
सुंदर रचना ...!
जीवन के सच को दिखाती आईना कविता अच्छी लगी... गद्य के साथ साथ आप कविता भी अच्छी लिखती हैं..
ReplyDelete@कि आईना है ये जिंदगी का
ReplyDeleteज़िन्दगी का आइना दिखाती रचना।
पर जीवन के साथ जुड़ा है ये
ReplyDeleteइस कदर
कि इससे दूर जाना नहीं है संभव
कि नहीं हो सकता अब
हमारा कर्म सदा हमारे साथ जुड़ा रहता है और हम चाहकर भी उससे जुदा नहीं हो सकते ...आईने के माध्यम से आपने जीवन की बहुत सी सच्चाईयों को सामने लाया है ...आपके ब्लॉग पर आकर सुखद अनुभव हुआ ....आपका आभार
ज़िन्दगी को आइना दिखाती खूबसूरत रचना| आभार|
ReplyDeletebahut khoobsurat...
ReplyDeleteमेरा चेहरा फिर खूबसूरत बेदाग
ReplyDeleteकि आईना है ये जिंदगी का
इससे दूर नहीं हो सकता मै
अंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं सुन्दर रचना, बधाई
khoobsoorat kvita
ReplyDeletesahitya surbhi
कि आईना है ये जिंदगी का
ReplyDeleteइससे दूर नहीं हो सकता मै.....
Behtareen
अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
ReplyDeleteचाहा न देखूं इस अक्स को
ReplyDeleteपर जीवन के साथ जुड़ा है ये
इस कदर
कि इससे दूर जाना नहीं है संभव
कि नहीं हो सकता अब
मेरा चेहरा फिर खूबसूरत बेदाग
कि आईना है ये जिंदगी का
इससे दूर नहीं हो सकता मै
bahut sundar ....
चाहा न देखूं इस अक्स को
ReplyDeleteपर जीवन के साथ जुड़ा है ये
इस कदर
कि इससे दूर जाना नहीं है संभव
कि नहीं हो सकता अब
वाकई ऐसी रचनाएं कम ही पढने को मिलती हैं। बहुत सुंदर
गुज़रा हुवा वक़्त बहुत से निशान छोड़ता है ... ज़रूरत है बस अच्छे दाग देखने की ... बहुत ही लाजवाब रचना ...
ReplyDeletebahut surdar...
ReplyDeleteकविता जी,नमस्कार.
ReplyDelete"आईने के सामने से हटते ही
मेरा चेहरा फिर था
खूबसूरत, बेदाग"-- सच तो यही है.आईने से अलग होकर ही कोई अपने भीतर छिपी सुन्दरता को देख सकता है,अच्छी-बुरी बातों को पीछे तक जाकर देख सकता है.अपनी खामियों पर चिंतन कर सकता है क्योंकि वहां उसके साथ कोई होता है जो आत्म निरिक्षण में उसकी सहायता करता है. .बाह्य दर्पण तो सौन्दर्यबोध को सीमित कर देता है. बहुत ही गूढ़ अर्थ को समेट कर बढ़ती सुंदर रचना.
आईने के माध्यम से आत्म चिंतन.
ReplyDeleteबहुत खूब.
-------- यदि आप भारत माँ के सच्चे सपूत है. धर्म का पालन करने वाले हिन्दू हैं तो
ReplyDeleteआईये " हल्ला बोल" के समर्थक बनकर धर्म और देश की आवाज़ बुलंद कीजिये...
अपने लेख को हिन्दुओ की आवाज़ बनायें.
इस ब्लॉग के लेखक बनने के लिए. हमें इ-मेल करें.
हमारा पता है.... hindukiawaz@gmail.com
समय मिले तो इस पोस्ट को देखकर अपने विचार अवश्य दे
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क्या यही सिखाता है इस्लाम...? क्या यही है इस्लाम धर्म
Khubsurat...bedaag rachana....
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