(बरसो बाद मंदिर में मधु और मधुसुदन ने एक दूसरे को देखा और उनकी कई पुरानी यादे जाग उठी.) अब आगे.....
तुम यहाँ कैसे मधु ने पूछा.
अभी चार पांच महीने पहले ही ट्रान्सफर हो कर यहाँ आया हूँ. पास ही की कॉलोनी में मकान लिया है . कभी कभार शाम को यहाँ आ जाता हूँ. इस मंदिर में बहुत शांति मिलती है. बहुत सारी बातें याद करते हुए शाम निकल जाती है.
में भी यहाँ इसीलिए आती हूँ. कहते हुए मधु ने जीभ काट ली वह दूर देखने लगी.
तुम यही कही पास ही रहती हो? उसकी झेंप कम करने के लिए मैंने बात बदली.
पास तो नहीं हाँ ५-७ किलोमीटर दूर एक कॉलोनी में .
तुम्हारा खुद का घर है या...
खुद का है .कई साल हो गए . मम्मी बहुत पीछे पड़ी थी-अपना घर नहीं बसाया तो क्या कम से कम एक मकान तो अपना कर लो.
में कुछ असहज हो गया. मधु आज भी अकेली है मेरे कारण.
मुझे माफ़ कर दो मधु मेरे कारण ...
नहीं तुम्हारे कारण नहीं मेरी बात को बीच से काटते हुए उसने कहा .शायद यही हमारी नियति थी .
क्या कर रही हो तुम?
एक कम्पनी में सलाहकार हूँ. मम्मी मेरे ही साथ रहती है दिन भर काम और शाम को सहेलियों के साथ घूमना फिरना. आज मेरी सहेलियां साथ नहीं आ पाई तो अकेले ही निकल पड़ी. और तुम??
में एक कम्पनी में सीनियर मेनेजर हो कर यहाँ आया हूँ . पत्नी दो साल पहले गुजर गयी बेटा अमेरिका में है और बेटी दिल्ली में .दोनों की शादी हो गयी अपनी अपनी जिंदगी में सेटल है यहाँ में अकेला हूँ.
थोड़ी देर हम दोनों के बीच चुप्पी छाई रही .पूछना तो चाहता था.मधु कैसे गुजारे तुमने इतने साल अकेले पर पूछ न सका .
अब मुझे जाना होगा .मम्मी घर में अकेली है आजकल उनकी तबियत भी ठीक नहीं रहती . फिर कब मिलोगी मधु? अपनी आवाज़ के कम्पन पर में खुद ही हैरान था.
मुझे देख कर हंस पड़ी वो. अरे अब तो इंदौर में ही हो जब चाहो मिल सकते हैं.
उसे हँसता देख कर मेरी जान में जान आयी.
तुम्हारा फोन नंबर ,पता?
हमने एक दूसरे का नंबर लिया और धीरे धीरे गाड़ी की ओर बढ़ चले .
आपको कही छोड़ दूं ?
नहीं में चला जाऊँगा ,थोडा टहलना भी हो जायेगा.
ठीक है फिर मिलते है हाथ हिलाते मधु ने गाडी बढ़ा दी. में दूर तक जाते धूल के गुबार को देखता रहा. क्रमश
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अनजान हमसफर
इंदौर से खरगोन अब तो आदत सी हो गई है आने जाने की। बस जो अच्छा नहीं लगता वह है जाने की तैयारी करना। सब्जी फल दूध खत्म करो या साथ लेकर जाओ। ग...
-
#घूंट_घूंट_उतरते_दृश्य एक तो अनजाना रास्ता वह भी घाट सड़क कहीं चिकनी कहीं न सिर्फ उबड़ खाबड़ बल्कि किनारे से टूटी। किनारा भी पहाड़ तरफ का त...
-
भास्कर मधुरिमा पेज़ २ पर मेरी कहानी 'शॉपिंग '… http://epaper.bhaskar.com/magazine/madhurima/213/19022014/mpcg/1/
-
आईने में झांकते देखते अपना अक्स नज़र आये चहरे पर कुछ दाग धब्बे अपना ही चेहरा लगा बदसूरत ,अनजाना घबराकर नज़र हटाई अपने अक्स से और देखा...
फिर से क्रमश: ..
ReplyDelete:(
कहानी कहां जाकर खत्म होती है, इसका इंतजार है, पर सही दिशा में चल रही है। बढिया
ReplyDeleteआगे का इंतज़ार है..
ReplyDeleteरोचकता बनी है। अगली कड़ी का इंतज़ार ....
ReplyDeleteचलिये..इन्तजार का क्रम बना है...रोचक मोड़!!
ReplyDeleteपिछली कडी तो पढी नहीं अब अगली का इन्तजार रहेगा ।
ReplyDeleteफिर घटनाक्रम भी इन्दौर में चल रहा है ।
गर भला किसी का कर ना सको तो...
Acchi dharavahik...intezar rahega agli ka
ReplyDeleteरोचकता बरकरार है ...आगे का इंतज़ार है
ReplyDeleteवाह .. बहुत ही रोचक मोड़ पर जा कर ... क्रमश: आ गया ...
ReplyDelete