Tuesday, April 12, 2011

आईना

आईने में झांकते
देखते अपना अक्स
नज़र आये चहरे पर
कुछ दाग धब्बे
अपना ही चेहरा लगा
बदसूरत ,अनजाना
घबराकर नज़र हटाई
अपने अक्स से
और देखा आईने को
नज़र आये तमाम दाग
आईने के चहरे पर
आईने के सामने से हटते ही
मेरा चेहरा फिर था

खूबसूरत, बेदाग

कितना आसन था.

यूँ ही बैठे फुर्सत में
झाँका अपने अतीत में
कुछ पल ख़ुशी के
कुछ दोस्ती और प्रेम के
चमकते इन पलों से
था रोशन मेरा चेहरा
लेकिन इस पर भी
नज़र आये कुछ दाग
दिखा चेहरा धब्बेदार
कोशिश करते पहचानते
इन धब्बों को
ये थे जीवन के वो पल
जो सने थे ईर्ष्या, द्वेष ,धोखे से
स्वार्थ के दाग जो थे
बड़े भद्दे और डरावने
अनायास ही पहुंचा मेरा हाथ
हटाने उन धब्बों को
कितने गहरे जमे थे वो
छू भी न पाया उन्हें

चाहा न देखूं इस अक्स को
पर जीवन के साथ जुड़ा है ये
इस कदर
कि इससे दूर जाना नहीं है संभव
कि नहीं हो सकता अब

मेरा चेहरा फिर खूबसूरत बेदाग
कि आईना है ये जिंदगी का
इससे दूर नहीं हो सकता मै

27 comments:

  1. ये थे जीवन के वो पल
    जो सने थे ईर्ष्या, द्वेष ,धोखे से
    स्वार्थ के दाग जो थे
    बड़े भद्दे और डरावने ..

    यही भाव हैं जो चेहरे को विकृत कर देते हैं ...सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  2. मेरा चेहरा फिर खूबसूरत बेदाग
    कि आईना है ये जिंदगी का
    इससे दूर नहीं हो सकता मै.

    ज़िन्दगी को आइना दिखाती खूबसूरत रचना.

    ReplyDelete
  3. यूँ ही बैठे फुर्सत में
    झाँका अपने अतीत में
    कुछ पल ख़ुशी के
    कुछ दोस्ती और प्रेम के
    चमकते इन पलों से
    था रोशन मेरा चेहरा
    लेकिन इस पर भी
    नज़र आये कुछ दाग
    दिखा चेहरा धब्बेदार
    कोशिश करते पहचानते
    इन धब्बों को
    ये थे जीवन के वो पल
    जो सने थे ईर्ष्या, द्वेष ,धोखे से
    स्वार्थ के दाग जो थे
    बड़े भद्दे और डरावने
    अनायास ही पहुंचा मेरा हाथ
    हटाने उन धब्बों को
    कितने गहरे जमे थे वो
    छू भी न पाया उन्हें
    bahut badhiyaa vishleshan

    ReplyDelete
  4. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (14-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

    ReplyDelete
  5. गहन भावों के साथ बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

    ReplyDelete
  6. ये थे जीवन के वो पल
    जो सने थे ईर्ष्या, द्वेष ,धोखे से
    स्वार्थ के दाग जो थे
    बड़े भद्दे और डरावने
    अनायास ही पहुंचा मेरा हाथ
    हटाने उन धब्बों को
    कितने गहरे जमे थे वो
    छू भी न पाया उन्हें

    बहुत ही सुंदर रचना..ध्यान से देखने पर सभी को धुंधला दिखाई देगा अपना चेहरा पर हम अपना नहीं दूसरों का देखते हैं...
    बहुत सुंदर....
    आप भी आइए....
    आपका ब्लॉग भी फॉलो कर रही हूं...

    ReplyDelete
  7. जब मन दर्पण हो जाय तभी दिखती हैं अपनी कमियाँ।
    ...बहुत बधाई।

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर भाव.
    आईने के माध्यम से आत्म चिंतन.
    बहुत खूब.

    ReplyDelete
  9. कि नहीं हो सकता अब
    मेरा चेहरा फिर खूबसूरत बेदाग
    कि आईना है ये जिंदगी का
    इससे दूर नहीं हो सकता मै


    गहन आत्मचिंतन -
    सही विश्लाशन -
    सुंदर रचना ...!

    ReplyDelete
  10. जीवन के सच को दिखाती आईना कविता अच्छी लगी... गद्य के साथ साथ आप कविता भी अच्छी लिखती हैं..

    ReplyDelete
  11. @कि आईना है ये जिंदगी का

    ज़िन्दगी का आइना दिखाती रचना।

    ReplyDelete
  12. पर जीवन के साथ जुड़ा है ये
    इस कदर
    कि इससे दूर जाना नहीं है संभव
    कि नहीं हो सकता अब

    हमारा कर्म सदा हमारे साथ जुड़ा रहता है और हम चाहकर भी उससे जुदा नहीं हो सकते ...आईने के माध्यम से आपने जीवन की बहुत सी सच्चाईयों को सामने लाया है ...आपके ब्लॉग पर आकर सुखद अनुभव हुआ ....आपका आभार

    ReplyDelete
  13. ज़िन्दगी को आइना दिखाती खूबसूरत रचना| आभार|

    ReplyDelete
  14. मेरा चेहरा फिर खूबसूरत बेदाग
    कि आईना है ये जिंदगी का
    इससे दूर नहीं हो सकता मै
    अंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं सुन्दर रचना, बधाई

    ReplyDelete
  15. कि आईना है ये जिंदगी का
    इससे दूर नहीं हो सकता मै.....

    Behtareen

    ReplyDelete
  16. अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....

    ReplyDelete
  17. चाहा न देखूं इस अक्स को
    पर जीवन के साथ जुड़ा है ये
    इस कदर
    कि इससे दूर जाना नहीं है संभव
    कि नहीं हो सकता अब

    मेरा चेहरा फिर खूबसूरत बेदाग
    कि आईना है ये जिंदगी का
    इससे दूर नहीं हो सकता मै

    bahut sundar ....

    ReplyDelete
  18. चाहा न देखूं इस अक्स को
    पर जीवन के साथ जुड़ा है ये
    इस कदर
    कि इससे दूर जाना नहीं है संभव
    कि नहीं हो सकता अब

    वाकई ऐसी रचनाएं कम ही पढने को मिलती हैं। बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  19. गुज़रा हुवा वक़्त बहुत से निशान छोड़ता है ... ज़रूरत है बस अच्छे दाग देखने की ... बहुत ही लाजवाब रचना ...

    ReplyDelete
  20. कविता जी,नमस्कार.
    "आईने के सामने से हटते ही
    मेरा चेहरा फिर था
    खूबसूरत, बेदाग"-- सच तो यही है.आईने से अलग होकर ही कोई अपने भीतर छिपी सुन्दरता को देख सकता है,अच्छी-बुरी बातों को पीछे तक जाकर देख सकता है.अपनी खामियों पर चिंतन कर सकता है क्योंकि वहां उसके साथ कोई होता है जो आत्म निरिक्षण में उसकी सहायता करता है. .बाह्य दर्पण तो सौन्दर्यबोध को सीमित कर देता है. बहुत ही गूढ़ अर्थ को समेट कर बढ़ती सुंदर रचना.

    ReplyDelete
  21. आईने के माध्यम से आत्म चिंतन.
    बहुत खूब.

    ReplyDelete
  22. -------- यदि आप भारत माँ के सच्चे सपूत है. धर्म का पालन करने वाले हिन्दू हैं तो
    आईये " हल्ला बोल" के समर्थक बनकर धर्म और देश की आवाज़ बुलंद कीजिये...
    अपने लेख को हिन्दुओ की आवाज़ बनायें.
    इस ब्लॉग के लेखक बनने के लिए. हमें इ-मेल करें.
    हमारा पता है.... hindukiawaz@gmail.com
    समय मिले तो इस पोस्ट को देखकर अपने विचार अवश्य दे
    देशभक्त हिन्दू ब्लोगरो का पहला साझा मंच
    क्या यही सिखाता है इस्लाम...? क्या यही है इस्लाम धर्म

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणियाँ हमारा उत्साह बढाती है।
सार्थक टिप्पणियों का सदा स्वागत रहेगा॥

नर्मदे हर

 बेटियों की शादी के बाद से देव धोक लगातार चल रहा है। आते-जाते रास्ते में किसी मंदिर जाते न जाने कब किस किस के सामने बेटियों के सुंदर सुखद जी...