
पीपल पर फिर नयी कोंपले आ गयी
फिर चहचहाने लगे पंछी उस पर
सड़क के किनारे लगा
बरसों पुराना पीपल
न जाने किसके हाथ से लगाया हुआ
छोड़ देता है अपने पुराने पत्ते
उसका विशाल भव्य आकर
हो जाता है रीता
और करता है इंतजार
नए पत्ते ,पंछियों और पथिकों का
है उसका विश्वास अटूट
ये सब फिर लौटेंगे
बरसों पहले बसी कालोनी
अपनी सामर्थ्य भर पैसा जुटाते
बच्चों की जरूरत मुताबिक
करते सुविधाओं का विस्तार
खूब रौनक भरी
लगभग एक उम्र के सब बच्चे
खेल के मैदान और छत पर
गूंजते कहकहे और किलकारियां
पीपल के नीचे बैठ कर
लिए गए मशविरे
देखते पीपल की कोपलें
दी गयी सलाहें
कुछ बन कर वापस लौटेंगे ये पंछी
पीपल की एक एक शाख सा
हर घर रहा इसी आस पर
तब से अब तक
न जाने कितनी बार
पीपल पर आ गयी नयी कोंपलें
कितने ही पंछियों के बने बसेरे
पीपल फैलता रहा अपनी शाखें
देने ज्यादा पथिकों को अपनी छाँव
पीपल के नीचे बैठ कर
आज भी होते है मशविरे
अपने विस्तार को समेटने के
इन बूढ़े पीपलों को
हो गया है विश्वास
इनकी शाख पर
कोंपलें अब नहीं लौटेंगी
पंछी दो घडी सुस्ता कर
फिर उड़ जायेंगे
कि अब उनका बसेरा है कही और
पीपल के नीचे
अब भी होती है बैठके
चहकते पंछियों को देखते
मन का सूनापन मिटने को.
khubsurat peepal ko khubsurat shabdo se sanjo diya aapne..badhai!
ReplyDeleteकहावत है-
ReplyDeleteबूढा पीपल घाट का,बतियाए दिन रात
जो गुजरे पास से, सिर पे धर दे हाथ
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार
जीवन्त अभिव्यक्ति... आभार.
ReplyDeleteखूबसूरत कविता.. पीपल का विम्ब जीवन का विम्ब है..
ReplyDeleteपीपल के नीचे बैठ कर
ReplyDeleteआज भी होते है मशविरे
अपने विस्तार को समेटने के
इन बूढ़े पीपलों को
हो गया है विश्वास
इनकी शाख पर
कोंपलें अब नहीं लौटेंगी
पंछी दो घडी सुस्ता कर
फिर उड़ जायेंगे
कि अब उनका बसेरा है कही और
kitni gahri baat kah gai
कविता जी ..परमार्थ हमेशा मौन ही होता है !आप मेरे ब्लॉग पर आई और इसे फोल्लो की ! आपने बालाजी को समझा ! बहुत - बहुत धन्यबाद ! इससे भी रुचिकर और सत्य घटनाओं पर आधारित पोस्ट भविष्य में पोस्ट करूँगा ! अपने बहुमूल्य विचार देना कभी न भूले ?
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ..... पीपल के वृक्ष के माध्यम से सामाजिक जीवन के कितने रंग उकेर दिए आपने..... बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सरल शब्दों में बड़े गहरे ज़ज़्बात .......आभार !
ReplyDeleteaur uske baad phir basenge naye ashiyaane usii peepal par....
ReplyDeleteBahut hi UMADAA , Kavita jeee....
Gaagar mein Saagar...!!!...
सुंदर भावाभिव्यक्ति।
ReplyDeleteपीपल के नीचे
ReplyDeleteअब भी होती है बैठके
चहकते पंछियों को देखते
मन का सूनापन मिटने को.
bahut bhavpoorn rachna ...badhai
पीपल पर पोस्ट लगाना आपके पर्यावरण के प्रति प्रेम को दर्शाता है,जो एक श्रेष्ठ कार्य है.
ReplyDeleteppepal ka per,
ReplyDeletegaaon ka khet,
pani ka kuan,
sab yaad aa gaye...hari hari vasundhara ki chah jagi man me...
badhiya post.
..अच्छा लिखा है आपने।
ReplyDeletebudh pipal ke niche budhe pipalon ki baithak...mashvire...aur panchiyon ke naa lautane ki aas...badhiya khaka khincha hai...sunder rachna...
ReplyDeleteपीपल के पेड़ के माध्यम से आपने सामाजिक सत्यों को उद्घाटित करने का प्रयास किया है जो की प्रभावी बन पड़ा है ...आपका आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता बधाई कविता जी !
ReplyDeleteबहुत गहरी बात सुन्दर पीपल छाँव ....मनमोहक !
ReplyDeleteइन बूढ़े पीपलों को
ReplyDeleteहो गया है विश्वास
इनकी शाख पर
कोंपलें अब नहीं लौटेंगी
पंछी दो घडी सुस्ता कर
फिर उड़ जायेंगे
कि अब उनका बसेरा है कही और
गहन शब्दों का समावेश ... ।
बेहतर... पढ़ते पढ़ते अपने गांव के पीपल के पेड की याद आ गई, अव वहां भी नई पत्तियां आ गईं होंगी। बेचारे सूखे पत्ते.....
ReplyDeleteबहुत सरल शब्दों में गहरी बात, सुंदर अभिव्यक्ति , बधाई
ReplyDeletePeepal apni jaron ki bhanti hi hamare jeevan me vistarit hai..sundar bhavon ko bikherati sundar rachana...shubhkamna...
ReplyDeletebahut gahree baat bahut sahjata se abhivykt.......
ReplyDeletedil ko choo gayee ye rachana....
सचमुच, पीपल जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग रहा करता था।
ReplyDelete............
ब्लॉग समीक्षा की 12वीं कड़ी।
अंधविश्वासी लोग आज भी रत्न धारण करते हैं।
peepal apne aap mein ek dastavez hai ... ithihaas hai lambe samay ka ... bahut umda prastuti ...
ReplyDeleteबहुत सही और सच्ची बात.
ReplyDeleteदुनाली पर देखें
चलने की ख्वाहिश...