Saturday, January 16, 2021

उन आठ दिनों की डायरी 8


12 नवंबर 2020 

आज सुबह से जाने की तैयारी जैसी हडबडी थी अंदर से बार बार रुलाई आ रही थी लेकिन दिमाग हर चीज हर काम को करने में भी लगा था। कई बार सबकी नजरें बचा कर मन में भरी दुख आशंका डर की बदली को बरसा कर हल्का करने की कोशिश की लेकिन ये इतने अधिक थे कि बार बार फिर भर आते थे। इन्हें बार बार खाली करने का समय कहाँ था। खाली पेट बहुत सारे टेस्ट होना था। बिटिया ने कहा वह हमें छोड़कर वापस आ जायेगी फिर खाना बना लेगी।

स्नान ध्यान करके भगवान के आगे दीपक लगा कर देर तक सलामती की कामना करती रही। सवा नौ बजे के लगभग हम मेदांता हास्पिटल पहुँचे। गेट पर हमें छोड़कर बेटी कार पार्क करने चली गई। मैंने व्हीलचेयर मँगवाई और बताया कि डॉ श्रीवास्तव के पेशेंट हैं कल बायपास होना है। उन्होंने तुरंत इमर्जेंसी डोर से उन्हें अंदर लिया और मुझे काउंटर पर एडमिशन के लिए कहा। चूंकि एक दिन पहले सभी बात हो चुकी थी मेडिकल इंश्योरेंस से क्लीयरेंस आ चुका था इसलिए वहाँ कोई ज्यादा समय नहीं लगा। कहना पडे़गा कि मेदांता का स्टाफ बहुत विनम्र और मददगार है। पूरा फार्म भी उन्होंने ही भरा मुझे सिर्फ अपना नाम पेशेंट से रिश्ता और साइन करना था। जब सब करके फाइल लेकर इमर्जेंसी रूम में पहुँची तब तक पतिदेव के टेस्ट शुरू हो चुके थे। उन्होंने हास्पिटल की ड्रेस पहन ली थी। उनके कपड़े मुझे दिये और जल्दी ही हमें रूम में शिफ्ट कर दिया। यहाँ भी कुछ जानकारी ली गईं बेटी भी आ गई थी अब सारे दिन बस टेस्ट होना थे। एक्सरे डोपलर ईको ब्लड शुगर बीपी के अलावा एनेस्थेटिस्ट की इंक्वायरी। दिन भर फोन आते रहे डाक्टर नर्स हाउस कीपिंग की आवाजाही के बीच मन कभी आशा से भर जाता कभी डर और आशंका से। बीच-बीच में जब भी समय मिलता हम एक-दूसरे का हाथ थामे बैठे रहते। दोनों ही डरे हुए थे और दोनों ही एक-दूसरे का हौसला बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे। अपने अंदर आये नकारात्मक विचारों को होठों पर आने से रोक रहे थे जो अत्यधिक दबाव से तरल होकर आँखों के रास्ते बाहर आ रहे थे।

यहाँ नर्सिंग स्टेशन मतलब इस फ्लोर का काउंटर रूम के बाहर ही था। वहाँ से नर्स डाक्टर की बहुत तेज आवाजें आ रही थीं। दोपहर में थोड़ी देर सोने की कोशिश की लेकिन दुश्चिंता और शोर ने सोने नहीं दिया। दो रातों की अधूरी नींद अब थकान पैदा कर रही थी। 

बेटी वापस घर जाये खाना बनाए इसकी इच्छा नहीं हुई। पास ही एक रेस्तरां था वहाँ जाकर हमने बारी बारी से खाना खाया। पतिदेव का खाना नाश्ता हास्पिटल कैंटीन से आ रहा था। 

हसबैंड को एक्सरे के लिए लेकर गये काफी देर हो गई वे वापस नहीं आये। बेटी देखने गई तो देखा कि वहाँ लंबी वेटिंग है और वे बाहर व्हीलचेयर पर बैठे हैं। यह देखकर वह नाराज हुई कि पहले पता करो कि रूम खाली है या नहीं। कोरोना काल में इस तरह कारीडोर में इतनी देर पेशेंट को क्यों बैठाना। फिर वह भी वहीं रुकी रही ।वापस आकर उसने पूरी बात बताई।

उसका भी तनाव लगातार बढ़ रहा था वह कुछ बोल नहीं रही थी लेकिन अंदर ही अंदर चिंतित थी। अभी तक कभी ऐसी कोई स्थिति नहीं आई थी उसके जीवन में पहली बार ऐसा तनाव आया था जिसे एक के बाद एक कामों के चक्कर में उसे निकालने का समय उसे भी नहीं मिल रहा था।

शाम को एनेस्थिसिया देने वाले सीनियर डाक्टर आये और उन्होंने लंबा इंटरव्यू लिया। खान पान की आदतें किस हाथ से काम करते हैं वगैरह वगैरह। यह सब आपरेशन की तैयारी का हिस्सा था।

शाम को बेटी को घर जाने का कह दिया।। छोटी बेटी से भी वीडियो काल पर बात हुई। वह भी अपनी चिंता और तनाव के साथ इतनी दूर अकेली थी। उसके सब्मिशन हो चुके थे इसलिए अब उसे हर पल की खबर दे रहे थे। या कहें कि उससे कह कर अपना मन हल्का कर रहे थे। वह भी हौसला बढा रही थी और बात करते करते हँस रही थी वास्तव में तो वह अपनी रुलाई रोक रही थी।

अगले दिन सुबह साढ़े पांच बजे आपरेशन थियेटर में जाना था। मम्मी पापा को भी सुबह जल्दी आने का कह दिया था। बेटी से भी कहा अब घर जाओ। गुरुजी ने कुछ दान का कहा था उसकी सामाग्री खरीद कर रख लो कल सुबह जल्दी दान कर आना। देर रात तक आवाजाही चलती रही। करीब दो बजे एक ब्लड टेस्ट के सैंपल लेने नर्स आई। सैंपल लेते ही पतिदेव को अचानक घबराहट शुरू हो गई। ड्यूटी डाक्टर को बुलाया उन्होंने चैक किया सब ठीक था तब तक घबराहट कम हो गई। डाक्टर को कहा कि बाहर बहुत शोर है हम एक मिनट नहीं सो पा रहे हैं। यह तीसरी रात थी जो आँखों में कट रही थी।

नर्स ने कहा कि सुबह साढ़े चार बजे उठकर नहा कर तैयार हो जाएं। अब बमुश्किल तीन घंटे बचे थे आपरेशन में। मन बुरी तरह आशंकित था पलकें भारी थीं लेकिन नींद गायब थी। जैसे तैसे आँखें बंद किये पडे रहे। बाहर अब शांति थी लेकिन मन में उथल-पुथल मची थी। चार बजे हम उठ गये फ्रेश होकर थोड़ी देर बैठे फिर नहा कर तैयार हो गये। नर्स वार्ड बाॅय आ गये पतिदेव के पूरे शरीर पर बीटाडाइन का लेप किया। बड़ी बेटी को फोन किया वह घर से निकल गई थी। छोटी को फोन किया उससे बात की। हम आपरेशन थियेटर के बाहर पहुंचे बड़ी बेटी का फोन आया कि गार्ड अंदर नहीं आने दे रहा है। उससे बात की लेकिन फिर भी उसने बेटी को अंदर नहीं आने दिया। पतिदेव को ओटी के अंदर करने के लिए डाक्टर आ गई उनसे रिक्वेस्ट की कि बस दो मिनट बेटी आ रही है उससे मिल लेने दीजिए। वे रुक गये लेकिन बेटी अभी भी नहीं आई। उसे फोन किया तो बोली मम्मी अंदर नहीं आने दे रहे हैं। वहाँ मौजूद गार्ड से कहा कि प्लीज फोन करके बोलो न। उसने फोन किया कि उसके पापा का बायपास है आने दो अंदर। पापाजी का फोन आया वे रास्ते में थे। उनसे कहा कि हम ओटी के बाहर खड़े हैं। दो तीन मिनट में बेटी दो दो सीढियाँ चढते हुए आई वह बुरी तरह हाँफ रही थी। उसने पापा को दूर से देखा। पतिदेव ने उससे कहा मम्मी का ध्यान रखना।

मम्मी पापा पहुंच नहीं पाये ओटी का दरवाजा बंद हो गया।

अचानक आई इस विपत्ति पर कैसी मनःस्थिति थी और किस तरह से उसका सामना किया इसका दस्तावेजीकरण करने की कोशिश की है। यह पूर्णतः निजी और मौलिक है। इस पर किसी तरह की आपत्ति और शंका के लिए कोई स्थान नहीं है। बस इसे पढ़कर ऐसी स्थिति का कोई धैर्य से सामना कर पाए इसलिए इसे लिखा गया है।

#बायपास #bypass #minor_attack 

5 comments:

  1. बहुत कष्टदायी संस्मरण। अंततः सब कुशल मंगल है, यह ख़ुशी की बात है। शुभकामनाएँ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. थैंक्यू वेरी मच

      Delete
    2. जी हाँ डाॅ जेन्नी शबनम जी। इतने तनाव के बाद भी अंत भला रहा तो जैसे सब कुछ भूल गये।

      Delete

आपकी टिप्पणियाँ हमारा उत्साह बढाती है।
सार्थक टिप्पणियों का सदा स्वागत रहेगा॥

अनजान हमसफर

 इंदौर से खरगोन अब तो आदत सी हो गई है आने जाने की। बस जो अच्छा नहीं लगता वह है जाने की तैयारी करना। सब्जी फल दूध खत्म करो या साथ लेकर जाओ। ग...