Thursday, January 14, 2021

उन आठ दिनों की डायरी 7

11 नवंबर 2020

रात की भयावह परछाई सुबह के उजाले में कहीं नहीं थी लेकिन मन के किसी कोने में उसकी कालिमा अपना असर छोड़ गई थी। क्या हुआ था रात में क्या हार्ट को ब्लड आक्सीजन की सप्लाई नहीं हो रही थी? क्या वह भी कोई छोटा सा अटैक था? क्या यह कोई ईश्वरीय संकेत था जो कह रहा था कि अपने निर्णय पर विचार करो?

मुझे पाँच तारीख याद आ गई जब सुबह आफिस जाते समय हसबैंड ने सीना दबाया था। वह प्रथम ईश्वरीय संकेत था जिसे नजरअंदाज किया गया। दूसरा था जब पतिदेव आफिस में सीढ़ियों से चढ़े और हाँफने लगे थे लेकिन वे रुके नहीं और काम करते रहे। उन्होंने किसी को भी अपनी तकलीफ के बारे में नहीं बताया। अगर बताया होता तो कोई उन्हें डाक्टर के पास ले जाता उसी समय ईसीजी हो जाता तो शायद अटैक नहीं आता और हार्ट को नुकसान नहीं होता। अटैक के बिना भी एंजियोग्राफी करवा लेते।

कल रात जो हुआ वह भी ईश्वरीय संकेत था। शरीर ने अपने संकेत भेजे हैं क्या इन्हें नजरअंदाज करना ठीक होगा?

इतना बड़ा आपरेशन पूरे शरीर को खोलना उसमें से हार्ट को बाहर निकालना। आपरेशन के बाद लंबी देखभाल और जीवन चक्र में इतने आकस्मिक बदलाव। अब न वह बेफिक्री रहेगी न स्वतंत्रता कि कभी भी कहीं भी घूमने फिरने चल दो कितनी भी गाड़ी चलाओ जहाँ जो मिले खाओ पियो। सोच सोच कर रोना आ रहा था लेकिन रो नहीं सकती थी। यह समय कमजोर पड़ने का नहीं है। 

थोड़ी देर पतिदेव से बातचीत की क्या हो रहा था कैसा लग रहा था? क्या करें आपरेशन की डेट ले लें क्या? अभी तीन चार दिन डाक्टर यहाँ हैं फिर वे बाहर चले जाएंगे। एक और डाक्टर का ओपिनियन लेने का विचार था लेकिन वह जिस हास्पिटल में आपरेशन करते हैं उसकी अच्छी रिपोर्ट नहीं थी इसलिए मन आगे पीछे हो रहा था।

लगभग ग्यारह बजे मैंने मम्मी पापा जी को फोन किया रात में क्या हुआ और आगे क्या करें का विचार करना है तो आप लोग आ जाओ। उन्हें बताते बताते रोना आ गया। आज सुबह बिटिया भी पूना से इंदौर आने के लिए निकली थी। वह अपनी गाड़ी से आ रही थी। उससे भी सतत संपर्क बना हुआ था लेकिन उसे अभी तक कुछ नहीं बताया था।

मैं खाना बनाने की तैयारी में जुट गई। पतिदेव ने तब तक मेडीकल क्लेम के लिए एजेंट को फोन किया। उसने हास्पिटल में डाक्टर के असिस्टेंट को फोन किया और जो भी जरूरी पेपर्स लगने थे उनकी स्कैन कापी उसे भेजीं। खाना बनने खाने तक लगभग तय हो गया कि अगले दिन ही हास्पिटल में एडमिट होना है ताकि उसके अगले दिन यानि कि रूपचौदस के दिन बायपास सर्जरी हो सके।

अभी दिन उगे बमुश्किल पांच घंटे हुए थे हमें उठे शायद चार घंटे ही हुए थे। एक रात पहले सोच कर सोये थे कि आपरेशन दस पंद्रह दिन बाद करवाएंगे। रात में विचार डगमगाया। सुबह सब ठीक था और मात्र तीन चार घंटे में बायपास करवाना है यह लगभग तय हो गया था।

दो बजे तक मम्मी पापा जी आ गये ।उन्हें भी बताया कि अब और ओपिनियन के लिए रुकने का समय नहीं है। वैसे भी एंजियोग्राफी करने वाले डाक्टर ने भाभी ने उनकी बहन जो हार्ट सर्जन हैं उन्होंने और कल डाक्टर श्रीवास्तव ने बायपास के लिए ही कहा है तो अब करवा लेना ही बेहतर है।

दरअसल कुछ दिन रुकने का एक कारण यह भी था कि भाई तीन साल बाद नाइजीरिया से वापस आया था और हम चाह रहे थे कि वह अपने परिवार के साथ दीपावली मना ले। आपरेशन के कारण वह परिवार के पास नहीं जा पाता जो दूसरे शहर में रहता है। लेकिन अब परिस्थितियां ऐसी बन गई थीं कि रुकना संभव नहीं था। रात बड़ी भयावह थी जिस तरह की असहायता महसूस की थी और जिस गंभीर स्थिति की आशंका अब बन गई थी उसके बाद तुरंत बायपास ही उचित था।

पापाजी ने भी कहा कि दीपावली तो हर साल आएंगी। भाई से बात की तो वह भी बोला मेरे और दीपावली के लिए मत रुको जो जरूरी है वह करो। भाभी से बात हुई उन्होंने भी कहा कि नहीं स्थिति ठीक नहीं है देर मत करो।

शाम को बिटिया के आने का समय होने को था मैं खाने की तैयारी में लग गई। दिन भर के लंबे सफर के बाद वह थकी होगी। अगले दिन सुबह हास्पिटल जाने की तैयारी भी करना था।

पाँच बजे बिटिया आ गई ।वह नाना-नानी को देखकर चौंकी। हालचाल पूछने के बाद उसे बताया कि कल पापा को एडमिट होना है परसों बायपास है।

चौंक गई वह भी सब कुछ अचानक लेकिन जल्दी ही संभल गई ठीक है क्या तैयारी करना है बताओ।

छोटी बेटी को भी फोन करके बताया कि पापा का आपरेशन करने का डिसाइड किया है और कल एडमिट हो जाएंगे। थोड़ी देर में उसने अपने दोस्तों से और गूगल पर आपरेशन के बारे में पता किया और हमें हौसला देने लगी कि सब ठीक होगा। वह बड़ी कुशलता से अपने डर और तनाव को छुपा रही थी। 

खाना खाते नौ बज गये। सुबह की तैयारी करके रख दीं थोड़ी देर टीवी देखा आज का दिन भी बेहद लंबा और व्यस्त रहा।  रात में थोड़ी देर पतिदेव के पास बैठी। मन का डर जुबान पर आ ही गया। तुम ठीक हो जाओगे न? बस जो भी हो ठीक हो जाना कहते कहते रोना आ ही गया।

हम दोनों देर तक एक दूसरे का हाथ थामे बैठे रहे।

रात बारह बजे अचानक नींद खुल गई। एक रात पहले का वह पल ही था जिसने जगा दिया। करीब एक घंटे तक पतिदेव के चेहरे को देखती रही। उनकी साँसों की गति माथे का ताप सभी नार्मल था कि अचानक उनकी नींद खुल गई। फिर वही दर्द वही बैचेनी। मैंने उठकर गर्म पानी दिया। वे टायलेट गये लेकिन बैचेनी दूर नहीं हुई। मन हुआ सुबह का इंतजार क्यों अभी हास्पिटल चलें। वे कभी लेटते कभी बैठते कभी गर्म पानी पीते कभी डकार लेने की कोशिश करते। मैं कभी उनकी पीठ पर हाथ फेरती कभी हाथ थामे बैठती भगवान का स्मरण लगातार करती रही हे ईश्वर रात ठीक से गुजर जाये।

ईश्वर ने सुन ही लिया। दिन भर की थकी हारी बिटिया को नींद से नहीं जगाना पड़ा। थोड़ी देर में पतिदेव सो गये मैं देर तक जागती रही।

#बायपास #bypass #minor_attack 

2 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति।
    मकर संक्रान्ति का हार्दिक शुभकामनाएँ।

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