Tuesday, January 5, 2021

उन आठ दिनों की डायरी 5

 

8 /9 नवंबर 2020
देर रात रूम में आने के बाद शुगर बीपी टेस्ट फाइल का, दवाइयों का हैंड ओवर आदि करते साढ़े बारह एक बज गये। रात सुकून से गुजरी हालाँकि नई जगह नींद आसानी से नहीं आती लेकिन फिर भी बहुत ज्यादा देर जागरण नहीं करना पड़ा। यह शायद दिन भर के तनाव और थकान के कारण हुआ कि नींद लग गई।
सुबह पांच बजे से हलचल शुरू हो गई स्पंज बेड क्लीनिंग बीपी शुगर टेस्ट। थोड़ी देर लेटे रहने की कोशिश की लेकिन बार बार किसी के आने-जाने से लेटना कहाँ हो पाता है इसलिए उठ जाना ही ठीक लगा।
कमरे की खिड़की से सोये अलसाये शहर का नजारा बहुत खूबसूरत था। हालाँकि दूर तक फैली धूल की लेयर इस आनंद में खलल डाल रही थी फिर भी बारहवीं मंजिल से शांत शहर को देखना खूबसूरत अहसास देता है। जल्दी ही सड़क पर ट्रैफिक शुरू हो गया था धूप धीरे-धीरे मकानों की छत से उतरते हुए दीवारों पर उतरते हुए सड़क पर गई थी। नाश्ता चाय अभी तक नहीं आया था। हसबैंड को तेज भूख लगने लगी। बाहर से कुछ लाना संभव नहीं था और अंदर कैंटीन पर ही निर्भर थे।
चाय नाश्ता करके स्नान किया तब तक हसबैंड के कलीग आ गये। उनसे देर तक बात हुई जिसमें एक दिन पहले उस डाक्टर की बदतमीजी के बारे में भी बात हुई। मुख्यतः वे मुझे शांत रहने और शिकायत न करने के लिए ही समझाते रहे। यह तो तय था कि उस डाक्टर को समझ आ गया था कि उसने बड़ी गलती कर दी है लेकिन मानें किस मुँह से। खैर मैं तो अभी सामने आई समस्या के समाधान में व्यस्त थी ऐसे में छोटी मोटी बातों के लिए समय कहाँ था?
दोपहर में डाक्टर राउंड पर आये उन्होंने बताया कि वे आज ही डिस्चार्ज पेपर बना कर दे देंगे। कल दिन में डिस्चार्ज हो जायेगा। आगे बायपास के बारे में क्या सोचा है आदि के बारे में बात करते रहे। मैंने बताया कि सेकेंड ओपिनियन ले रहे हैं फिर डिसाइड करेंगे।
मैं एक दिन पहले ही मेदांता हास्पिटल में फोन करके मंगलवार का अपॉइंटमेंट ले चुकी थी। हास्पिटल से तो सोमवार को डिस्चार्ज होना था लेकिन पिछले तीन बार के मेडीक्लेम के कटु अनुभवों ने बताया था कि लगभग पूरा दिन निकल जाता है क्लेम क्लीयर होने में इसलिए एक दिन बाद का ही लेना ठीक है।
रविवार का पूरा दिन आराम करते बीता। हसबैंड अच्छा महसूस कर रहे थे कुछ देर सोते कुछ देर खिड़की से बाहर देखते बातचीत करते दिन कट गया।
9 नवंबर 2020
सोमवार की सुबह से एक आस जगी कि आज तो घर चले जाएंगे। चाय नाश्ते के बाद इंतजार शुरू हुआ डिस्चार्ज का जो दोपहर के बाद देर शाम तक जारी रहा। शाम को तीस हजार रुपये जमा करने का संदेश आया। हसबैंड ने सारी जानकारी निकलवाई। पता चला कि प्रायवेट रूम होने से आईसीयू का पैसा भी फर्स्ट क्लास का जोड़ा गया था। जो दस हजार जमा किये थे वे भी समायोजित नहीं किये गये थे।
मेरा सब्र अब खत्म होने लगा था। हसबैंड ने दो तीन बार फोन पर बात की फिर खुद ही लिफ्ट से नीचे टीपीए डिपार्टमेंट में गये। वहाँ उन्हें लगभग पौन एक घंटा लग गया। कमरे में बैठे बैठे मेरा दिल घबराने लगा। अभी तीन दिन पहले ही अटैक आया है और इतनी भागदौड़ बहस। मेडीक्लेम की कैशलेस पालिसी के बावजूद हजारों का बिल होता ही है। इतने सबके बावजूद लगभग सत्ताईस हजार रुपये भरने थे जो जमा कर दिये।
यहाँ भी एक पेंच था कि जितने भी टेस्ट हुए हैं उनकी रिपोर्ट हमें नहीं दी गई। कहा गया कि वे मेडीक्लेम के लिए जमा होंगीं। जबकि तय था कि आगे अभी और इलाज करवाना है जिसमें ईसीजी चेस्ट एक्सरे सभी लगेंगे लेकिन और कोई रास्ता नहीं था। मेडीक्लेम कंपनियों और हास्पिटल की जुगलबंदी आपको बंधक बना लेती है और आप पालिसी होने के बावजूद अपनी ही चीजों से वंचित किये जाते हैं।
रात के खाने का समय हो गया था आसपास के कमरों में खाना आ रहा था। मैंने कैंटीन फोन लगाया और खाना भिजवाने को कहा। वहाँ से जवाब मिला आपका तो डिस्चार्ज हो गया है सुनकर खून खौल गया।
नहीं भैया कहाँ हुआ डिस्चार्ज अभी तो हम यहीं हैं अभी पेपर क्लीयर नहीं हुए हैं। अब बाहर का खाना लाने नहीं देते यहाँ खाना भिजवाते नहीं हैं तो पेशेंट को क्या भूखा रखोगे?
नहीं नहीं मैडम मैं खाना भिजवा देता हूँ। खैर थोड़ी देर में खाना आ गया। एक एक्स्ट्रा थाली के पैसे दिये और खाना खाया। रात के आठ बज गये थे इंतजार करते करते थक चुके थे अब घर जाकर खाना बनाना संभव नहीं था।
काउंटर पर बता दिया कि पैसे भर दिये हैं लेकिन देर तक कोई नर्स ड्रिप के लिए लगाई निडिल निकालने नहीं आई। मैं दो बार काउंटर पर जा चुकी थी। धैर्य चूकने को था मन चिल्लाने का हो रहा था बस और थोड़ी देर कह कहकर खुद को समझा रही थी।
निडिल निकलने के बाद दवाइयों के डोज के लिए फिर काउंटर पर गई। नर्स को रूम में आकर दवाइयाँ बताने में जोर आ रहा था। ये बची हुई दवाइयाँ थीं कुछ के नाम फट चुके थे ऐसे में फाइल पर देखकर दवाई समझना मुश्किल था। उसका बना हुआ मुँह देखकर फिर गुस्सा आने को हुआ लेकिन चुप ही रही।
अंततः रात लगभग नौ बजे हम घर पहुंचे जबकि शनिवार से डिस्चार्ज तय था और रविवार को पेपर्स भेजे जा चुके थे।
घर आकर राहत की सांस ली।
कविता वर्मा

#बायपास #bypass #minor_attack 

2 comments:

  1. अस्पताल और मेडिक्लेम का बड़ा झमेला होता ही है। पर इससे छुटकारा भी नहीं, सब्र ओढ़े रहना होता है।

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