Friday, June 15, 2018

लघुकथा सम्मेलन 2

अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन के दूसरे दिन का शुभारंभ महेंद्र पंडित द्वारा स्वस्ति वाचन के साथ माँ सरस्वती को माल्यार्पण से हुआ। आज के मुख्य अतिथि श्री बलराम वरिष्ठ कथाकार प्रधान संपादक लोकायत पाक्षिक पत्रिका दिल्ली , विशेष अतिथि श्री श्रीराम दवे कार्यकारी संपादक समावर्तन उज्जैन और श्री राकेश शर्मा संपादक वीणा इंदौर थे। कार्यक्रम सम्मान समारोह और पुस्तक विमोचन के रूप में शुरू हुआ। 

अनघा जोगलेकर के उपन्यास अश्वत्थामा का लोकार्पण श्याम सुंदर दीप्ति की लघुकथा पत्रिका प्रतिमान लघुकथाओं के मराठी अनुवाद की पत्रिका 'भाषा सखी ' आदि का विमोचन हुआ। 
लघुकथा शिखर सम्मान श्री बलराम अग्रवाल दिल्ली का क्षितिज संस्था के सदस्य डॉ अखिलेश शर्मा द्वारा शॉल श्रीफल अंग वस्त्र मोमेंटो और प्रशस्ति पत्र द्वारा किया गया। आपको सम्मान राशि भी प्रदान की गई। 
लघुकथा समालोचना सम्मान 2018 श्री बी एल आच्छा जी चेन्नई को मिला। 
लघुकथा नवलेखन सम्मान कपिल शास्त्री भोपाल 
क्षितिज लघुकथा कला सम्मान संदीप राशिनकर को  रेखांकन और चित्रांकन के लिए और नंदकिशोर बर्बे  को नाट्य कर्म के लिए प्रदान किया गया। 
क्षितिज लघुकथा विशिष्ट सम्मान श्री बलराम को प्रदान किया गया। 
इसके अलावा श्री योगराज प्रभाकर सतीशराज पुष्करणा भगीरथ परिहार सुभाष नीरव अशोक भाटिया कांता रॉय को लघुकथा विशिष्ठ सम्मान से सम्मानित किया गया। अनघा जोगलेकर और किशोर बागरे जी को उनके बनाये पोस्टर और चित्रकारी के लिए सम्मानित किया गया। 
लघुकथा साहित्य पत्रकारिता सम्मान इंदौर के पत्रकार श्री रविंद्र व्यास को दिया गया। 

इस अवसर पर बोलते हुए बलराम अग्रवाल ने कहा साहित्य का मूल कर्म जिज्ञासा पैदा करना है। परकाया प्रवेश कर लेखक वह कर सकता है जो वह करना चाहता है। लघुकथा की छोटी काया है उसमे अन्य संकोचन नहीं हो सकता। लेखन व्यवसाय नहीं व्यसन है।
 
सम्मान समारोह की अगली कड़ी में श्री योगराज प्रभाकर अशोक भाटिया कांता राय सतीश राज पुष्करणा भगीरथ परिहार सुभाष नीरव जी को क्षितिज लघुकथा सम्मान से सम्मानित किया गया। 
इस अवसर पर डॉ शैलेन्द्र शर्मा ने अतिथियों को बधाई और आयोजन के लिए शुभकामनायें प्रेषित कीं। आपने इस आयोजन को लघुकथा का महाकुंभ कहा। आपने कहा लघु पर जब चिंतन होता है तो बहुत सारी चिंताएं हमारे समक्ष आती हैं। आपने कहा कि जिस तरह मंदिर की घंटी की गूंज देर तक गूंजती रहती है वैसी ही गूँज लघुकथा की होना चाहिए। लघुकथाकारों को सहानुभूति के साथ समाज के सरोकारों से जुड़ना चाहिए। लघुकथाकार भी शिल्पी हैं और इन्हें अपने अंदर के लोक कथाकार को जगाने की जरूरत है और ऐसे आयोजन यह काम बखूबी करते हैं। 


आज के पहले सत्र और आयोजन के चतुर्थ सत्र में लघुकथा लोकप्रियता और गुणवत्ता के बीच अंतर्संबंध एवं पाठकों के मध्य सेतु निर्माण पर बोलते हुए श्री बलराम ने कहा चालीस साल से लघुकथा लघुकथा सुन रहा हूँ अब लघुकथाकार को कारीगर बनना होगा तभी वह शिखर तक पहुँचेगा। कथाकार मूर्तिकार चित्रकार कोई यूँ ही नहीं हो जाता उसके लिए साधना करनी पड़ती है। जब तक रचना कलात्मक नहीं होगी तब तक वह ऊंचाइयों पर नहीं पहुँचेगी। विधाएँ हमारे अंतर से निकलती हैं इसलिए विरोध से घबराना नहीं चाहिए क्योंकि आलोचना के बिना विकास संभव नहीं है। जो लेखक पाठकों और आलोचकों का सामना करने में माहिर होते हैं एक वर्ग उन्हें महान मानता है तो दूसरा वर्ग जो लोकजन की अनुभूतियों को लिखते हैं उन्हें महान मानते हैं। अच्छे लेखक मध्य मार्ग से आते हैं। 

आपने शहर के साहित्यकार चैतन्य त्रिवेदी की दो लघुकथाओं खुलता बंद घर और जूते और कालीन का जिक्र करते हुए उनकी समीक्षा की और एक कथा में आदमी और दूसरे में समाज की महत्ता को प्रतिपादित करने को इंगित किया। 

चर्चाकार श्रीमती संध्या तिवारी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि हमारे समकालीन लघुकथाकार बहुत अच्छा लिख रहे हैं और विविध विषयों पर लिख रहे हैं और संवेदनाओं के द्वारा पाठकों से जुड़े भी हैं। 
दूसरे चर्चाकार श्री सतीश राठी ने कहा कि यदि लघुकथा के संप्रेषण में भोथरापन है तो वह पाठकों से सेतु नहीं बना सकती। तुलसी की चौपाइयां अनपढ़ व्यक्ति भी पढता है और यही उसकी लोकप्रियता है गुणवत्ता है और पाठकों से उसका संबंध स्थापित करता है। 
इस सत्र में भी लघुकथाकारों ने लघुकथा पाठ किया और उनकी विभिन्न आयामों से समीक्षा की गई। 

अगले सत्र में चित्र आधारित लघुकथाऐं बनाम स्वयं स्फूर्त लघुकथाएं पर बीज वक्तव्य देते कांता राय ने कहा लघुकथा लेखन के लिए कोई प्रेरणा आवश्यक है फिर वह चित्र या शीर्षक ही क्यों न हो। लेखन के लिए रोजमर्रा की परेशानियां भी सृजन की संभावना पैदा करती हैं। अवचेतन में दबी संवेदनाएं चित्र या शीर्षक देख जीवित हो जाती हैं जो लेखन में सहायक होता है इस चिंतन को सृजन में उपयोग कर कथ्य को उभारा जाता है। स्वयं स्फूर्त लेखन के नाम पर सृजन से दूर होने से कोई प्रेरणा होना बेहतर है। 
चर्चाकार अंतरा करवडे ने दोनों का तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत किया और स्वयं स्फूर्त रचना मस्तिष्क को उर्वर करती है इससे सृजन का सुख महसूस होता है जबकि विषय आधारित में अनुभव और जानकारी को विषय के आसपास लाया जाता है। 
सुभाष नीरव जी ने कहा 21 वीं सदी में लघुकथा में लोग जुड़ रहे हैं। लेखन का दबाव स्वस्फूर्त होता है खुले आकाश में स्वतंत्र रचनाएँ पैदा होती हैं जबकि विषय पर लेखन ऐसा है मानों एक खिड़की खोल दी हो कि इसमें से जितना आसमान दिख रहा है उस पर लिखो। 
इस सत्र में लघुकथाओं पर बात करते हुए कविता वर्मा ने कहा की साहित्य का काम समाज में संवेदना जगाना होता है इस संवेदना को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचना चाहिए और इसलिए लगातार लिखना जरूरी है। 

अंतिम सत्र में वैश्विक क्षितिज के साथ नई जमीन की तलाश विषय पर बात करते हुए श्याम सुंदर दीप्ति ने कहा यह बाजार वाद वैश्वीकरण का दौर है। पहले व्यक्ति साल में जीता था और अब क्षण क्षण में जी रहा है। पूर्व में जो विषय लिखे गए वह कैसे लिखे और वर्तमान में कैसे लिखे जा रहे हैं इसका अध्ययन करने की आवश्यकता है।  मनोवैज्ञानिक दृष्टी से तो देखना होगा साथ ही अर्थशास्त्रीय दृष्टी से भी तर्क करना होगा। जिज्ञासा व्यक्ति को आगे बढाती है। 
वक्तव्य पर चर्चा करते हुए सतीश राज पुष्करणा ने आज की वैश्विक समस्याओं का जिक्र करते हुए नए विषयों पर प्रकाश डाला। आपने पर्यावरण जनसँख्या नारी शोषण जैसी विसंगतियों की चर्चा करने के साथ ही खेती की कम होती जमीन, युवाओं का पलायन, शस्त्र बाजार, आतंकवाद, स्त्री का सही स्पेस, जैसे विषयों पर लिखने पर जोर दिया। 
अशोक भाटिया ने कहा कि एक विषय पर अनेक आयामों से लघुकथाएं लिखी जा सकती हैं और इसके लिए अध्ययन का दायरा बढ़ाने की जरूरत है। आपने घटना की गुलामी करना छोडने और घटना का पुनर्निर्माण करने की जरूरत पर बल दिया। कई वैश्विक लघुकथाकारों के उद्धरण देते हुए आपने अपनी बात स्पष्ट की जिसमें खलील जिब्रान की लघुकथा आदमी की पर्तें प्रमुख है। 
समारोह के समापन अवसर पर क्षितिज के लिए काम करने वाले वालेंटियर्स और परिवारों का सम्मान किया गया। माहेश्वरी भवन के ट्रस्टी लाइट साउंड केटरिंग वालों आभार व्यक्त करते हुए कार्यक्रम के समापन की औपचारिक घोषणा की गई। 

दो दिवसीय इस कार्यक्रम में अतिथियों को लाने छोड़ने रहने खाने नाश्ते की स्तरीय व्यवस्था सम्मलेन स्थल पर की गई थी। आयोजक क्षितिज संस्था के सदस्यों के साथ ही सतीश राठी जी का पूरा परिवार भी इस व्यवस्था में लगा रहा। कहीं कोई अव्यवस्था या हड़बड़ाहट देखने को नहीं मिली। लघुकथा के विभिन्न आयामों पर सारगर्भित सत्रों ने लघुकथाकरों को समृद्ध किया तो सोशल मीडिया पर जुड़े लघुकथाकारों को आपस में मिलने जुलने का मौका भी उन्हें मिला जिससे उनके बीच आत्मीयता बढ़ी। खूबसूरत फोटो के माध्यम से सभी खूबसूरत यादें अपने साथ ले गए।

( इस रिपोर्ट या इसके किसी भी अंश का लेखक की अनुमति के बिना कहीं भी किसी भी तरह का उपयोग वर्जित है। ) 


कविता वर्मा 

No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणियाँ हमारा उत्साह बढाती है।
सार्थक टिप्पणियों का सदा स्वागत रहेगा॥

अनजान हमसफर

 इंदौर से खरगोन अब तो आदत सी हो गई है आने जाने की। बस जो अच्छा नहीं लगता वह है जाने की तैयारी करना। सब्जी फल दूध खत्म करो या साथ लेकर जाओ। ग...