Thursday, June 14, 2018

लघुकथा सम्मेलन 1

क्षितिज लघुकथा सम्मेलन का उद्घाटन माहेश्वरी भवन में दो जून को सुबह हुआ। वर्षा टावरी द्वारा सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गई । अतिथि श्री बलराम श्री बलराम अग्रवाल श्री बी एल आच्छा श्री सतीशराज पुष्करणा ,श्री श्याम सुंदर दीप्ति एवं श्री सूर्यकांत नागर  द्वारा सरस्वती को माल्यार्पण कर समारोह के शुभारंभ और सुचारु संचालन हेतु आशीर्वाद प्राप्त किया गया। क्षितिज के अध्यक्ष श्री सतीश राठी द्वारा शब्दाहार से अतिथियों का स्वागत किया गया तत्पश्चात संचालन करते हुए श्री पुरुषोत्तम दुबे ने संस्था के सदस्यों से सभी अतिथियों का पुष्प गुच्छ से स्वागत करने का आव्हान किया। 
उद्घाटन सत्र के प्रथम सोपान में विभिन्न पत्र पत्रिकाओं का लोकार्पण किया गया।
क्षितिज संस्था के पैतीस वर्षों की यात्रा को एक पत्रिका के रूप में सहेजा गया जिसमे पत्रिका का प्रारंभिक स्वरुप पत्रिका के लिए फण्ड और विज्ञापन जुटाने के प्रयास उस समय की गोष्ठी आयोजन वरिष्ठ साहित्यकारों से मुलाकातें अख़बारों में क्षितिज की खबरों को फोटोग्राफ के रूप में सहेजा गया है। इसी अंक में लघुकथा की विभिन्न पत्रिकाओं की जानकारी उनमे प्रकाशित चुनिंदा लघुकथाओं की विवेचना लघुकथाओं पर आलेख समीक्षा आदि भी शामिल हैं। 'क्षितिज सफर पैंतीस वर्षों का' का लोकार्पण श्री बलराम जी द्वारा और क्षितिज पत्रिका के ताज़ा अंक का विमोचन श्री बलराम अग्रवाल जी द्वारा किया गया। क्षितिज का यह अंक 2011 से 2017 के मध्य रची गई लघुकथाओं से सजा है। इस अंक में विशिष्ट लघुकथाकार के रूप में श्री श्याम सुन्दर दीप्ति जी की पाँच लघुकथाओं को शामिल किया गया है। 

इस अवसर पर बलराम अग्रवाल की पुस्तक परिंदों के दरमियान का विमोचन हिंदी साहित्य समिति के प्रधानमंत्री श्री सूर्य प्रकाश चतुर्वेदी जी द्वारा रामकुमार घोटड की पुस्तक 'स्मृति शेष' अपना प्रकाशन भोपाल द्वारा प्रकाशित पुस्तक  ' ठहराव में सुख कहाँ' मासिक लघुकथा अखबार 'लघुकथा टाइम्स' जाॅन मार्टिन की 'सब खैरियत है' का लोकार्पण भी किया गया। 
लघुकथा को चित्रांकन और कोलाज के द्वारा खूबसूरत अभिव्यक्ति दी गई है। गुड़गांव की अनघा जोगलेकर द्वारा लघुकथाओं को खूबसूरत चित्रों के माध्यम से और कैलाश बागरे द्वारा कोलाज और चित्रांकन द्वारा उकेरा गया। जूट के विशाल केनवास पर मालवी मांडा के खूबसूरत पैनल की बॉर्डर से रेखांकित इस पोस्टर प्रदर्शनी का उद्घाटन और लोकार्पण श्री सुभाष नीरव और श्री बी एल आच्छा ने किया। लगभग चालीस पोस्टरों के माध्यम से कई लघुकथाओं को प्रदर्शित किया गया। इस अवसर पर श्री किशोर बगरे जी का पुष्प गुच्छ से स्वागत किया गया। 
इसी अवसर पर एक बुक स्टॉल पर विभिन्न प्रतिभागियों की पुस्तके विक्रय हेतु रखी गईं। हाल ही में प्रकाशित लघुकथा संग्रह और साझा संग्रह एक ही स्थान पर उपलब्ध करवाने का यह प्रयास सराहनीय था।   इसका उद्घाटन श्री अशोक भाटिया द्वारा किया गया। 
इंदौर के बाहर से आये अतिथियों को इंदौर के बारे में बताये बिना इस सम्मेलन की परिकल्पना पूर्ण नहीं होती और न ही क्षितिज की पूरी जानकारी को इतने कम समय में उन तक पहुंचाया जा सकता है। अनुध्वनि द्वारा इस सब को एक वृत चित्र के द्वारा प्रस्तुत किया जिसमें इंदौर के राजवाडा छत्री सराफा कपड़ा मार्केट आदि की झलक के साथ क्षितिज के सहभागी साथियों के विचारों की झलक थी। क्षितिज संस्था के पुराने साथी श्री अशोक शर्मा भारतीय इस समय देश से बाहर हैं उन्हें और उनके योगदान को याद कर उनके प्रति आभार व्यक्त किया गया। 

मुख्य अतिथि लोकायत पत्रिका के संपादक बलराम जी ने अपने वक्तव्य में खुशी जाहिर करते हुए कहा कि साहित्य अकादमी ने लघुकथा को मान्यता दी है और चार साहित्यकारों को अकादमी में लघुकथा पाठ के लिए आमंत्रित किया और यही लघुकथा की स्वीकार्यता है।
आपने कहा प्रेमचंद ने इसे गद्य काव्य की संज्ञा दी तो अज्ञेय ने इसे छोटी कहानी कहा । अंतर सिर्फ नाम का है। आपने काव्यात्मक और अकाव्यात्मक लघुकथा लिखने वाले रचनाकारों के नाम का उल्लेख करते हुए इसके महत्व को प्रतिपादित किया।चैतन्य त्रिवेदी के लघुकथा संग्रह उल्लास का जिक्र करते हुए आपने कहा कि इनकी लघुकथाओं में काव्य तत्वों की अधिकता ने अतिरिक्त आभा सौंपी है। 
लघु कथा में गद्य पर काव्य दोनों का समावेश स्वीकार्य है। लघुकथा लिखने के लिए भी परकाया प्रवेश आवश्यक है। लघुकथा में लघुकहानी की विडम्बना से घबराने की आवश्यकता नहीं है। नै पीढ़ी में दीपक मशाल संध्या तिवारी संतोष सुपेकर अनघा जोगलेकर शोभना श्याम में लघुकथा को दूर तक ले जाने की ताकत है। रमेश बत्रा सतीश दुबे सुरेश शर्मा पुणताम्बेकर मोहन राकेश कुलदीप जैन की लघुकथाएं पढ़े जाने की आवश्यकता पर जोर दिया।  आपने बताया कि लघुकथा को स्थापित किये जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह पहले से ही स्थापित है प्रेमचंद परसाई सानी जी इसे पहले ही स्थापित कर गए हैं।  माधव राव सप्रे की लघुकथा टोकरी भर मिटटी को पहली लघुकथा माना जाता है। राजेंद्र यादव जो लघुकथा को विधा ही नहीं मानते थे उन्होंने भी अंततः लघुकथा कोष की भूमिका लिखी और हंस में लघुकथाओं को स्थान दिया। 
आपने लघुकथाकारों को अन्य विधाओं में पढ़ने और लिखने पर भी जोर दिया और अन्य विधाओं में स्थापित लेखकों नरेंद्र कोहली नागर जी चित्रा मुद्गल सतीश दुबे सुभाष नीरव असगर वजाहत सुरेश उनियाल हरीश नवल रामेश्वर कम्बोज नासिरा शर्मा दामोदर दीक्षित आदि ने साहित्य की अन्य विधाओं में भी लिखा। मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति के प्रधान मंत्री श्री सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी ने कहा कि कोई भी विधा छोटी नहीं होती। 
उद्घाटन सत्र के समापन पर वसुधा गाडगीळ ने आभार मन। इस अवसर पर उर्मि शिरीष का सन्देश भी पढ़ कर सुनाया गया। 
पहले सत्र में श्री बलराम अग्रवाल ने लघुकथा कितनी पारंपरिक कितनी आधुनिक पर बात करते हुए कहा कि लघुकथा ने अब मजबूती पा ली है समाज में जो चलन में है वह गाह्य होकर परंपरा बन जाती है ोे रीति रिवाज संस्कार में से आते हैं। लेकिन लघुकथा में कथ्य में नवीनता होना आवश्यक है। िषय वास्तु नई होगी तो कथ्य भी नवीन होगा। 

चर्चा कार चैतन्य त्रिवेदी ने कहा कि लघुकथाकार को समकालीनता की हकीकत स्वीकार करना होगा। लघुकथा में परंपरा एक प्रकाश से दूसरे प्रकाश के रूप में जाती है इसमें शब्द और शक्ति का रिश्ता कद और परछाई का रिश्ता है। हमारा कद ही हमारी परछाई है। लघुकथा में आज जो दबाव देखने में आ रहा है वह 90 के दशक के बाद आया है। कोई भी लघुकथा कार लगातार नहीं लिख सकता और इस अंतराल का दबाव भी उसे ही सहन करना पड़ता है। 
वहीं श्री पुरुषोत्तम दुबे ने बताया कि आधुनिकता निरंतर है और इसके अभाव में परंपरा जड़ रूढि बनकर रह जायेगी। इसी तरह परंपरा विहीन आधुनिकता खड़ी नहीं रह सकती। इसलिए परंपरा आवश्यक है। परंपरा मरती नहीं लक्षित रहती है और नवीनता को जन्म देती है। समय और परिस्थिति के अनुसार लघुकथा का स्वरुप बदला है और भाषा सर्वथा गतिमान रही। शिल्प भाषा शैली का द्योतक है। लघुकथा कथ्य और शिल्प भी है वह केवल भाषा नहीं है। 


दूसरे सत्र में हिंदी लघुकथा बुनावट और प्रयोगशीलता पर बीज वक्तव्य देते हुए श्री अशोक भाटिया ने कहा लघुकथा जितनी चर्चित है उतनी ही विवादास्पद उपेक्षित और सवालों के घेरे में है। काव्य संक्षिप्त और सूक्ष्मता की ओर बढ़ता है जबकि गद्य  का वर्णन करने से विस्तार होता है। गद्य विस्तार मांगता है। गद्य में संक्षिप्तता होना ठीक नहीं लेकिन उसमें अनावश्यक विस्तार नहीं होना चाहिए। 
बुनावट और प्रयोगशीलता का प्रश्न अलग अलग नहीं है हमारी सोच गणनात्मक साँचे में ढल गई है लघुकथा के लिए वर्णनात्मक बुनावट को छोड़ना होगा। लिखना विलास की वस्तु नहीं है साहित्य सामाजिक चेतना का जीवंत मार्ग है हर रचना को चुनौती रूप में लें। रचना में बुनावट हो सौंदर्य हो यथार्थ पर आधारित हो इसमें कल्पना जुड़ती है टूटती है फिर जुड़ती है। खरा साहित्य वह है जो हमें गति दे संघर्ष दे। 
प्रयोगशीलता वह है जो पाठक की संवेदना को झकझोर दे। पहले हमारे भीतर उस संवेदना को उतरना होगा। प्रेमचंद ने कहा था खरा साहित्य वही है जो हमें बैचेनी दे गति दे सुलाए नहीं इसलिए पाठक बनकर अपनी रचना को देखें। पाठक रोचकता के साथ कहानी माँगता है।

लघुकथा में न्यूनोक्ति (under statement ) अर्थात अंत तक बात को छुपाये रखना बेहद जरूरी है। रमेश बत्रा (बीच बाजार ) युगल ( मातम ) कथाओं का जिक्र करते हुए आपने कहा यथार्थ के दवाब से नया प्रयोग होगा। इसी कड़ी में विष्णु नागर की किताब ईश्वर की कहानियाँ मुकेश वर्मा की मुक्त करो वैचारिक बुनावट की कथाएं हैं जिसमे विचार केंद्र में हैं। व्यंग्यात्मक बुनावट की हरिशंकर परसाई जी की कथाएं व्यंग्य को बुनती हैं या व्यंग्य रचना को बुनता है। उन्होंने तर्क वितर्क से बुनावट समावेशी बुनावट काव्यात्मक बुनावट फैंटेसी बुनावट प्राचीन संदर्भों से बुनावट आदि का उल्लेख किया। 

सीमा जैन ने चर्चा करते हुए कहा कि प्रयोग के बिना जीवन अधूरा है प्रयोग के बिना जीवन में नयापन नहीं दे पाएंगे उन्होंने कुछ कथाएं 'स्त्री कुछ नहीं करती ' राजा अँधा है ' के उदाहरण देकर अपनी बात को स्पष्ट किया। आपने कहा पढना लिखना भी आवश्यक है लेकिन मौलिकता बनी रहे। 

योगराज प्रभाकर जी ने लघुकथा के लिए दृष्टि विकसित करने की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कथानक प्लाट है तो शिल्प आर्किटेक्ट लेकिन आँख और कान खुले रखने पडेंगे। आपने कहा कि अगर बुनावट ढीली रह गई तो प्रयोग किस पर करेंगे। 


तीसरे सत्र में आलोचना मापदंड और अपेक्षाएं पर वक्तव्य देते हुए श्री बी एल आच्छा जी ने कहा कि आजतक काव्य शास्त्र कितना बदला है उस पर कोई प्रश्न नहीं उठाता। अगर लघुकथाकार भी शब्द और ध्वनि विज्ञानं से जुड़ें तो बुनावट जोरदार होगी। शीर्षक से पूरी लघुकथा ध्वनित होती है इसलिए शीर्षक पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। अच्छी कविता तनावों को बुनती है तो लघुकथाकार भी शब्दों व तनावों को लघुकथा रूप में बन सकता है। हर अच्छा रचनाकार अपनी भाषा का अपनी कविता का अतिक्रमण करता है और लघुकथाकार को भी नए विषयों की ओर जाने की आवश्यकता है। 

चर्चा करते हुए श्री सूर्य कांत नागर  जब भी साहित्य का मूल्यांकन होता है वह विश्वसनीय होना चाहिए। लघुकथा की समीक्षा में प्रशंसा अधिक और आलोचना काम होती है। आलोचना रचना का सफर तय करती है। आलोचक तभी न्याय कर सकता है जब वह रचनाकार की पीर को समझे। काशीनाथ सिंह ने कहा आलोचना भी रचना है। आपने कहा कई लघुकथाएं सांकेतिक और  बौद्धिक होती हैं लेकिन इनमें भी कथानक में प्रासंगिकता होनी चाहिए। कथानक में यथार्थ का होना आवश्यक है। 

इसी विषय पर चर्चा करते हुए श्री भगीरथ परिहार जी ने कहा कि आलोचना अलग अलग रूपों में होती है। पाठक आलोचना नहीं पढ़ता। पाठक रचना सार्थक या निरर्थक बता सकता है। आलोचना शोधार्थी के लिए सार्थक है और कुछ हद तक लेखक के आगे होने वाले सृजन के लिए मार्गदर्शन है। लघुकथा एक सुगठित विधा है वह कसी हुई होना चाहिए उसमे अनावश्यक विस्तार नहीं होना चाहिए क्योंकि यह लघुकथा के सौंदर्य में रूकावट लाता है। लघुकथा में उपसंहार नहीं होना चाहिए और जो घटनाएं ले रहे हैं उसमे संक्षिप्तिकरण होना चाहिए। लघुकथा में छोटे वाक्य अधिक आकर्षक होते हैं। लघुकथा में कथ्य सशक्त होना चाहिए और वह अभिव्यंजनात्मक और सटीक होना चाहिए। आपने कहा लघुकथा की वर्तमान स्थिति ठीक नहीं है और आलोचना का अर्थ सभी को खुश करना नहीं है। 

कार्यक्रम के अंतिम चरण में पथिक नाट्य संस्था द्वारा 17 लघुकथाओं का नाट्य रूपांतरण प्रस्तुत किया गया। बलराम अग्रवाल अशोक भाटिया सतीश राठी महेश सुरेश बजाज सतीश दुबे आदि अनेक लघुकथाकारों की लघुकथाओं को नाटक रूप में प्रस्तुत किया गया। 



कविता वर्मा 
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1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (15-06-2018) को "लोकतन्त्र में लोग" (चर्चा अंक-3002) (चर्चा अंक 2731) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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