प्रारब्ध ने चुना मुझे
चाहर दीवारी से घिरा बचपन
बिना दुःख क्या मोल सुख का
बिना संग क्या ज्ञान अकेलेपन का।
तुम रहीं नाराज़ चला गया
बिना कहे
न सोचा एक बार
क्या कह कर जाना था आसन?
मुझे जाना था
क्योंकि प्रारब्ध ने था चुना मुझे।
ज्ञान प्राप्ति की राह में
किसी कमज़ोर क्षण
हो जाना चाहा होगा
एक बेटा, पिता ,पति
क्यों नहीं समझा कोई ?
मैंने कब चाही थी यह राह आसान
होना चाहा था एक आम इंसान
संघर्ष ,सुख दुःख जिजीविषा जी कर
वंचित किया गया मुझे
क्योंकि प्रारब्ध ने चुना मुझे।
देवों की श्रेष्ठ कृति इंसान
तभी तो लोभ संवरण नहीं कर पाए
अवतरित होते रहे धरती पर
बन कर मानव अवतार
फिर क्यों चुना मुझे
बनने को भगवान
मैंने भी कभी चाह होगा
बनना एक आम इंसान।
कविता वर्मा
कवि की व्यथा यही है...वो सृजन की पीड़ा सदैव वहन करता है...फिर आम आदमी बन के कैसे रह सकता है...
ReplyDeleteप्रारब्ध ही निर्णय लेता है किसको का बनना है |
ReplyDeletelatest post महिषासुर बध (भाग २ )
प्रश्न से महाभिनिष्क्रमण …और निर्वाण
ReplyDeleteनहीं था आसान
मैंने भी जीना चाहा आम जीवन
जी न सका
एक तरफ त्याग
एक तरफ तप
मैं मध्य में गौतम से बुद्ध में परिणित होता गया …
बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना कविता जी
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteमैंने कब चाही थी यह राह आसान
ReplyDeleteहोना चाहा था एक आम इंसान
संघर्ष ,सुख दुःख जिजीविषा जी कर
वंचित किया गया मुझे
क्योंकि प्रारब्ध ने चुना मुझे।
वाह बहुत सुंदर रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
आग्रह है मेरे ब्लॉग सम्मलित हों
पीड़ाओं का आग्रह---
http://jyoti-khare.blogspot.in
बढ़िया प्रस्तुति।।
ReplyDeleteनई कड़ियाँ : अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस (International Poverty Eradication Day)
लोकनायक जयप्रकाश नारायण
yek aam insan banne ki chah...niyti kya sochti hai,kya tay ki ..kya pta....yek sarthak rachna.....
ReplyDeleteगौतम बुद्ध के अंतर्मन की व्यथा का बहुत प्रभावी चित्रण...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना, बुद्ध की गाथा और व्यथा ॥ सब दिखा दिया .!
ReplyDelete!! प्रकाश का विस्तार हृदय आँगन छा गया !!
!! उत्साह उल्लास का पर्व देखो आ गया !!
दीपोत्सव की शुभकामनायें !!