Wednesday, October 16, 2013

व्यथा

 
प्रारब्ध ने चुना मुझे 
चाहर दीवारी से घिरा बचपन 
बिना दुःख क्या मोल सुख का 
बिना संग क्या ज्ञान अकेलेपन का।  

तुम रहीं नाराज़ चला गया 
बिना कहे 
न सोचा एक बार 
क्या कह कर जाना था आसन? 
मुझे जाना था 
क्योंकि प्रारब्ध ने था चुना मुझे।  

ज्ञान प्राप्ति की राह में 
किसी कमज़ोर क्षण 
हो जाना चाहा होगा 
एक बेटा, पिता ,पति 
क्यों नहीं समझा कोई ?

मैंने कब चाही थी यह राह आसान 
होना चाहा था एक आम इंसान 
संघर्ष ,सुख दुःख जिजीविषा जी कर 
वंचित किया गया मुझे 
क्योंकि प्रारब्ध ने चुना मुझे।  

देवों की श्रेष्ठ कृति इंसान 
तभी तो लोभ संवरण नहीं कर पाए 
अवतरित होते रहे धरती पर 
बन कर मानव अवतार 

फिर क्यों चुना मुझे 
बनने को भगवान 
मैंने भी कभी चाह होगा 
बनना एक आम इंसान।  

कविता वर्मा  

11 comments:

  1. कवि की व्यथा यही है...वो सृजन की पीड़ा सदैव वहन करता है...फिर आम आदमी बन के कैसे रह सकता है...

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  2. प्रारब्ध ही निर्णय लेता है किसको का बनना है |
    latest post महिषासुर बध (भाग २ )

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  3. प्रश्न से महाभिनिष्क्रमण …और निर्वाण
    नहीं था आसान
    मैंने भी जीना चाहा आम जीवन
    जी न सका
    एक तरफ त्याग
    एक तरफ तप
    मैं मध्य में गौतम से बुद्ध में परिणित होता गया …

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  4. बहुत सुन्दर रचना कविता जी

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  5. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  6. मैंने कब चाही थी यह राह आसान
    होना चाहा था एक आम इंसान
    संघर्ष ,सुख दुःख जिजीविषा जी कर
    वंचित किया गया मुझे
    क्योंकि प्रारब्ध ने चुना मुझे।

    वाह बहुत सुंदर रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति

    आग्रह है मेरे ब्लॉग सम्मलित हों
    पीड़ाओं का आग्रह---
    http://jyoti-khare.blogspot.in

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  7. yek aam insan banne ki chah...niyti kya sochti hai,kya tay ki ..kya pta....yek sarthak rachna.....

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  8. गौतम बुद्ध के अंतर्मन की व्यथा का बहुत प्रभावी चित्रण...

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  9. बहुत सुंदर रचना, बुद्ध की गाथा और व्यथा ॥ सब दिखा दिया .!
    !! प्रकाश का विस्तार हृदय आँगन छा गया !!
    !! उत्साह उल्लास का पर्व देखो आ गया !!
    दीपोत्सव की शुभकामनायें !!

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