घनघोर अँधेरे पथ पर
कुछ बिखरे काँटे , कुछ
फूलों जैसे पल
अटपटी राह
पर बढ़ते अकेले कदम।
कठिन राह, घनघोर अन्धकार
संवेदनाओं से रीता संसार
मन ढूँढ रहा एक किरण
एक आस , कोई एहसास
टटोलते हाथ
टकराते सघन निरास
ठोकर खाते गिरते
भीगते जज़्बात।
नहीं समय करने का
भोर का इंतज़ार
न ही कोई साथ
उठ खड़ा हो मिचमिचा कर आँख
हो अभ्यस्त साध अन्धकार
बढ़ा कदम न कर इंतज़ार।
कविता वर्मा
मंगलवार 15/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteआप भी एक नज़र देखें
धन्यवाद .... आभार ....
बहुत सुंदर, प्रभावित करती सुंदर रचना ...!
ReplyDeleteनवरात्रि की शुभकामनाएँ ...!
RECENT POST : अपनी राम कहानी में.
बहुत सुन्दर ....विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ .
ReplyDeletebadhate chalen ....prakash nikat hi hai ...!!vijayadashmi ki shubhkamnayen ....!!
ReplyDeleteudasi se ujale ki talash karti sundar rachna
ReplyDeleteआस की नए रिज़ोल्व की रचना -चल डर मत अन्धकार से बढ़ा चल।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
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