Monday, October 24, 2011

धनतेरस

कल यानि २४ अक्तूबर यानि धन तेरस ....ठीक ग्यारह साल पहले भी धनतेरस २४ तारिख को ही थी ठीक ग्यारह साल पहले अपने नए बने आशियाने में हम रहने आये थे. जी हाँ कल हमारे मकान जो अब हमारा घर है उसकी ग्यारहवी सालगिरह है. समय कब कैसे निकल जाता है पता ही नहीं चलता. बीच में कई साल बिना इस सालगिरह को याद किये भी निकल गए. लेकिन इस बार ये सालगिरह बहुत याद आ रही है.शायद इसलिए भी क्योंकि अब फिर से मकान का काम चल रहा है ओर हम पल पल उसके पूरे होने का इंतजार कर रहे है. 
आज भी याद है हमारे नए बने मकान की वास्तु शांति के पहले वाला दिन सारा दिन हम अपनी छोटी गाड़ी से सामान ढोते रहे. उस समय यहाँ का रास्ता भी बहुत उबड़ खाबड़ था गाड़ी दायें चलाओ तो पत्थरों पर लुदकती  हुई बाएं पहुँच जाती थी. दूर दूर तक कोई पंचर वाले की दुकान नहीं थी हमारे घर से लगभग ३ -४ किलोमीटर दूर तक कुछ भी नहीं था. वास्तु शांति के बाद रात में नए घर में ही सोना था. उस समय तक मकान में दरवाजे भी नहीं लगे थे. आज भी याद है रात में बिस्तर के साथ मच्छरदानी लाना नहीं भूले थे ओर बच्चों को बड़े ध्यान से सुलाया था क्योंकि उस समय यहाँ बिच्छू ओर सांप बहुत थे. सुबह जब नींद खुली तो पूरा कमरा सूरज की तेज़ रोशनी में नहाया हुआ था. ये मेरा अपने कमरे से  पहला साक्षात्कार था.अब जब ऊपर नया मकान बन रहा है मेरे बेडरूम में पूर्व दिशा में खिड़की नहीं निकल रही थी तो मन खिन्न सा था पिछले ५ महीनों से खुद को बिना सुबह की रोशनी वाले कमरे में सोते जागते देखने ओर महसूसने की कोशिश कर रही हूँ लेकिन ....सुबह हो ही नहीं पा रही है.अंतत बाहरी लुक में थोडा परिवर्तन करवा कर एक छोटी सी खिड़की पूर्व दिशा में निकलवाई तब जा कर सुबह निश्चिन्तता से जागती हूँ.
हमारा ये घर बनाने से पहले हम किराये के मकान में थे धनतेरस का दिन पतिदेव को ड्यूटी पर जाना था .दो कमरों का मकान था .उन्होंने कहा की में ट्रक लगवा देता हूँ ६-७ किलोमीटर तो जाना ही है सामान बस ऐसे ही बोरों में भर देंगे बस घंटे भर में सब सामान पैक हो जायेगा. मैंने कहा भी की मुश्किल है लेकिन...खैर  ट्रक आ कर खड़ा हुआ ओर समान की लदाइ  शुरू हुई लेकिन ये क्या सामान तो निकलता ही जा रहा है.थक गए बुरी तरह कितना सामान है ख़त्म ही नहीं होता. घर में जमाया हुआ सामान दिखता नहीं है.खैर जैसे तैसे सामान लादा ओर नए घर में पहुंचे शाम होने को थी लेकिन दिए...वो तो पता नहीं किस बोरे में रखे थे. बाहर एक बल्ब लगाया ओर मन ही मन भगवन से माफ़ी मांगी की आज अभी दिए नहीं लग पाएंगे.ओर सामान खोलना ओर जमाना शुरू किया. खैर दिए जल्दी ही मिल गए .शुक्र था खाना पहले ही बना लिया था. 
दूसरे दिन सुबह पुराने मकान में जा कर बचा हुआ सामान लाना था ओर घर की सफाई करके मकान मालिक को चाबी देना थी .मैंने बच्चों को घर के अन्दर किया ओर  मेन दरवाजे पर बाहर से ताला डाल दिया कहा की तुम अन्दर खेलो हम अभी आते है.हम बड़े निश्चिन्त हो कर चले गए की बच्चे घर के अन्दर है तो सुरक्षित है.थे ही कितने बड़े बड़ी बेटी सिर्फ ९ साल की थी ओर छोटी ५ की .हमने इत्मिनान  से सब काम  निबटाया सफाई शौपिंग सब कर के जब घर आये तो दूर से ही घर के बाहर बरांडे में कोई नज़र आया( उस समय करीब २ किलोमीटर   दूर से घर दिख जाता था )  पता नहीं कौन है बच्चे घर में अकेले है गाड़ी की स्पीड बढ गयी जब घर पहुंचे तो देखा बच्चे बाहर खेल रहे है .अरे तुम लोग बाहर कैसे आये ?हमने तो ताला लगाया था बाहर से .मम्मी हम दूसरा दरवाजा खोल कर बाहर आ गए .छोटी बेटी ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया .हे भगवन घर से बाहर आने के ५ रास्ते है हमने एक पर बाहर से ताला डाला था लेकिन ये सोचा ही नहीं की बच्चे भी अपना दिमाग चलाएंगे. शुक्र है उस समय वहां कोई नहीं था सब सुनसान ..जब कोई है ही नहीं तो डर किससे??? उस दिन सामान जमाते हुए बाकी चार दरवाजे बंद किये उनके सामने सामान लगाया ताकि बच्चे उन्हें अकेले में खोल न सकें .वो आज भी बंद है. 
शाम को जब पतिदेव ड्यूटी पर चले गए ,दिन भर से आने वाली हवा चलने की आवाज़ चिड़ियों के चहचहाने की आवाजें भी आना बंद हो गयी तब ये शांति सन्नाटे सी चुभने लगी. तब सब काम छोड़ कर पहले रेडियो की व्यवस्था की ओर उसे चालू किया तब थोडा ठीक लगा. हमारे अलावा भी कोई है यहाँ. 
घर के आसपास कम से कम ५ फीट ऊँची घास लगी थी  खेती की जमीन पर बारिश के बाद घास ने अपना पूर्ण आकर ले लिया था. दिन में जब घास हवा के साथ लहराती तो घंटों उसे देखते निकल जाते. लेकिन इसमें सांप बिच्छू भी  बहुत थे. पहले साल में ही घर में १३ बिच्छू निकले. लगभग हर महीने एक. तब एक नियम बनाया गया की कोई भी सामान ऊपर से पकड़ कर उठाया जायेगा नीचे से नहीं क्योंकि उसके नीचे बिच्छू  हो सकता है. एक बार तो पलंग के अन्दर की पेटी में रजाइयों के बीच से बिच्छू की केंचुली निकली. उसी दिन रात में  लाईट जलाने की व्यवस्था की ताकि रात में कभी उठना पड़े तो जमीन पर पैर रखने से पहले नीचे देखा जा सके. दिन में आस पास के गाँव वाले गाय चराने आते थे. दिन में गाय के गले में बंधी घंटी का मीठा  स्वर जब हवा पर सवार हो कर कानों तक आता एक सुरीला रस घोल जाता. सुबह पक्षियों की मधुर तान से होती तो रात आसमान पर चाँद तारों को देखते बीत जाती. दूर दूर तक कोई कृत्रिम रोशनी न होने से आसमान में ढेर सारे तारे दिखते .ओर हम उनमे सप्त ऋषि ,शुक्र मंगल बृहस्पति ढूँढते  रहते. उस समय रात  में १ घंटे बिजली की कटौती होती थी. ये हमारा स्वर्णिम समय होता था.हम माँ बेटियां बाहर बैठ कर खूब बातें करते. discovary पर देखे गए कार्यक्रमों की बातें उन्हें बच्चों को  समझाना .ऐसे ही एक शाम छोटी बेटी ने पूछा मम्मी कुछ सालों में सूरज का आकर बड़ा हो जायेगा ,वो आधी पृथ्वी को ढँक लेगा तब कितनी गर्मी होगी न तब हम कैसे रहेंगे यहाँ?
मैंने उसे समझाते हुए कहा ऐसा होगा लेकिन उसमे कई लाख करोड़ साल लगेंगे .तब तक तो हम तुम फिर तुम्हारे बच्चे बच्चों के बच्चे ओर उनके बच्चे ओर........कई पीढियां निकल जाएँगी.समझो तुम्हारे  बाद कम से कम १०० पीढियां.कहने को तो कह दिया लेकिन ऐसा लगा जैसे किसी ने दिल मुठ्ठी में भींच लिया हो...चाहे कितनी ही पीढियां लेकिन वो होगा तो मेरा ही खून न?? मेरी बेटियों का भी अंश होगा उनमे.वो बात आज भी भुलाये नहीं भूलती.ओर उस बात का दर्द आज भी महसूस होता है.ऐसे कैसे कह दिया मैंने?बस तभी से सोच लिया चाहे जो हो अपनी अगली पीढ़ी के लिए रहने लायक एक पृथ्वी जरूर छोड़ कर जाना है जिसमे शुध्ध  हवा हो पानी हो ओर साफ सुथरी रहने लायक जगह हो. 
हमारी कालोनी में कुल १२-१५ परिवार थे ओर प्लाट लगभग ३५०० .सभी अकेले थे .इसलिए सब एक दूसरे के बहुत करीब थे. एक दूसरे का खूब ध्यान रखते हुए. रास्ते में यदि कोई पैदल आते दिखता तो तुरंत गाड़ी रोक ली जाती ओर लिफ्ट दी जाती. कोई नयी गाड़ी दिखाती तो कोलोनी के लडके तुरंत अपनी मोटर सायकल  पर निकल जाते देखने की किस के यहाँ जा रही है.?अगर कोई चंदा  मांगने वाला आ जाता तो कौन है क्या है ओर कितना चंदा देना है इसके बारे में तुरंत सबको फोन करके खबर की जाती.
ऐसे ही एक दिन में बैठक में बैठी थी दरवाजा खुला था की एक बुजुर्ग आये उन्होंने बाहर से आवाज़ लगाई ओर कहने लगे बेटा तुम्हारे यहाँ का दरवाजा हमेशा खुला रहता है दूर से दिखता है ऐसे में अगर कोई टोह ले रहा हो तो इसे बंद रखा करो .बात तो सच थी.फिर हमने सामने जाली का दरवाजा लगवाया.  
उस समय का शांत वातावरण हमारे भैया को खूब लुभाता था.वो अक्सर कहते थे यहाँ ध्यान में जाना बहुत अच्छा लगता है.एक बार वो आये तो कुर्सी सामने लगे बबूल के पेड़ के नीचे रख कर ध्यान मग्न हो गए .वहीँ उन्होंने पानी भी मंगवा कर पिया ओर गिलास वहीँ रख कर भूल गए. लगभग ३ दिन बाद एक गाय चराने वाली लड़की वो गिलास ले कर आयी बोली ये पेड़ के नीचे रखा था आपका होगा.यही बबूल इसके नीचे जाने कितनी बार बाफले बनाये है..समय के साथ बहुत कुछ बदलता है लेकिन यादें नहीं...यादें तो बहुत है बाकी फिर किसी ओर बात के बहाने.अभी तो कल की सालगिरह की तैय्यारी  करना है.आप सभी को दीपावली की शुभकामनायें.

13 comments:

  1. इतने सरल लोग, पढकर अच्छा लगा। सामान तो वाकई घर बदलते हुए ही पता लगता है। मैने तो इतने घर बदले हैं एक जीवन में कि बस। हाँ धरा को आने वाली पीढियों के लिये संरक्षित करना हम सब का पावन कर्तव्य है।

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  2. बहुत अच्छी यादें.
    आपकी लेखनी में जादू है.
    एक सरल सा संस्मरण भी ख़ास बन जाता है.

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  3. दीपावली की शुभकामनायें.

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  4. आपको दीवाली की ढेरों शुभकामनायें।

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  5. दीपावली की आपको हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  6. बहुत सुन्दर संस्मरण्।

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  7. धनतेरस की शुभ कामनाएं !!

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  8. घर की सालगिरह मुबारक हो । बहुत रोचक यादें हैं। इनमें मेरी अपनी सत्ताईस साल पुरानी यादें जुड गई। नई कालोनी में एसा ही होता है। और अब जब सारे घर भर गये हैं, सब एक दूसरे के उतने करीब नहीं हैं।
    इसके साथ ही दीवाली की शुभकामनाएं।

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  9. घर तो हमें भी बहुत बदलने पडे हैं .. हर जगह की अलग यादें हैं ..
    .. आपको दीपावली की शुभकामनाएं !!

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  10. बड़ा ही सुन्दर वृत्तांत प्रस्तुत किया है!
    आप को भी दीपावली के इस मुहूर्त पर
    बहुत - बहुत शुभ कामनाएं !

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  11. चना अच्छी लगी । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है ।

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  12. बहुत बढ़िया संस्मरण.... देर से आई... फिर भी दिवाली की हार्दिक शुभकामना !

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नर्मदे हर

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