Saturday, July 30, 2011

तसल्ली


अरे बेटा यहाँ  आ भैया को चोट लग जायेगी. कहते हुए मांजी   ने मिनी को अपनी गोद मे खींच  लिया. मम्मी के पास भैया है ना ,थोडे दिनो मे वो मिनी के पास आ जायेगा,उसके साथ खेलेगा, मिनी उसे राखी बान्धेगी . मांजी के स्वर मे पोते के आने की आस छ्लक रही थी.नेहा को भी बस उसी दिन का इन्त्जार था.
"बेटी हुई है" नर्स ने कहा,तो मांजी का चेहरा बुझ गया.नेहा से तो उन्होने कुछ नही कहा पर उनके हाव-भाव ने काफी कुछ कह दिया. मिनी से उनका बात करना बन्द हो गया. नेहा अनजाने ही अपराधबोध से ग्रस्त हो गयी.विनय ने भी तो कुछ नही कहा,बस चुपचाप उसकी हर जरूरत का ध्यान रखते रहे.मांजी  की चुप्पी देखकर विनय की चुप्पी तुड्वाने का उसका साह्स नही हुआ.
अस्पताल से घर आकर दरवाजे पर ठिठकी कि शायद 
मांजी  घर की लक्ष्मी की आरती उतारे,पर घर मे पसरी निशब्दता देखकर चुपचाप अपने कमरे मे चली गयी.
मिनी छोटी बहन के आने से अचानक बडी हो गयी. उसने अपने आप को गुडियो के सन्सार मे गुम कर दिया,वहां  बोझिलता कम थी.
विनय आजकल अपने काम मे ज्यादा ही व्यस्त थे, उनसे बात करने का समय ही नही मिलता था.घरवालो की खामोशी ने उसके दिल-दिमाग को अजीब सी बॆचेनी से भर दिया.रात मे सोते-सोते अचानक नींद खुल जाती,दिमाग मे कभी बहुत से ख्याल गड्मग होते या कभी सोचने पर भी कोइ ख्याल नही होता.
इसी बेचेनी मे एक रात उसने नींद  मे करवट बदली तो अधखुली आँखों  से विनय को छोटी बिटिया के हाथ को अपने हांथों  मे थामे स्नेह से उसे निहारते पाया.उसे लगा कमरे मे उजास भर गया,घर मे घन्टिया   बजने लगी,उसकी बॆचेनी अचानक खत्म हो गयी,उसके बाद वह चॆन से सोयी.


ये कहानी नईदुनिया नायिका में दिनांक २० जुलाई २०११ को प्रकाशित हुई है.     .

20 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति ... न जाने क्यों लोंग दूसरी भी बेटी होने पर ऐसा व्यवहार करते हैं और स्त्री अपराधबोध से ग्रस्त हो जाती है ... चलो अंत में तसल्ली मिली यही बहुत है

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  2. कितनी बिडम्बना है जब हम वेटी के जन्म होने पर मायुश हो जाते है ! वेटी तो जागता है !

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  3. हम कब सुधेरेंगे, मेरी भी दो बेटियां है दोनों आँखों पर नहीं सर पर बैठती है

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  4. sundar kahani.. padhkar man bhar aayaa... sakaratamak ant dekar aapne achha kiya hai...

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  5. सुन्दर प्रस्तुति,
    एक गहरा सन्देश देती रचना

    मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है.....
    सादर

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  6. आपने भारतीय परिवेश व मानसिकता को बड़े ख़ूबसूरत और संतुलित रूप से पन्ने पर उतारा है।

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  7. आजकल...लड़कियां होने के कई फायदे हैं...एक लड़की के साथ एक दामाद फ्री...नुक्लियर फैमिली लड़कों की तो चलती नहीं...सो बहुएँ अपने सास-ससुर के साथ ना रहे तो चलेगा...पर अपने माँ-बाप के लिए उनके दिल में (घर में भी) सदा जगह होती है...ये बात मुझे पांच लड़कियों की शादी कर चुके बाप ने बताई...हुजूर खुश होइए...कि लड़की हुयी...बुढ़ापे की लाठी अब बदल गयी है...

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  8. सार्थक संदेश देती हुई कहानी के लिए आभार

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  9. bahut badiya sandesh deti kahani....
    Ant bhala to sab bhala..
    dheere-dheere hi sahi ladkiyon ke prati logon ka najriya badlega jarur, aisa mujhe vishwas hai....
    Saarthak prastuti ke liye aabhar!

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  10. Bahut sunder kahani....sukoon aur sandesh deti si lagi...

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  11. भारतीय मानसिकता के साथ आज के युवा की मानसिकता को भी बखूबी उकेरा है…………संदेस सही प्रेक्षित हो रहा है………बहुत बहुत बधाई।

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  12. Bahut sunder
    आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें
    लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
    अगर आपको love everbody का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ।

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  13. बहुत सुन्दर कथा है.... एक सार्थक सन्देश...
    सादर...

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  14. बहुत ही सार्थक और सारगर्भित पोस्ट....

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  15. बहुत ही बढि़या ।

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  16. bahut hi sundar kahani..iske prakashan ke liye badhayi...

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  17. कहानी में निहित सार्थक संदेश के लिए बधाई.....

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  18. normally maine aaj ke parivesh me feel kiya hai , har baap beta hi nahi chahta ..balki wo beta aur beti dono ka baap hona chahta hai...waise wo apne dono bachch ko barabar pyar deta hai....wo alag baat hai ki dusre logo ko duriyan nahi bhi dikhti hai to bhi bana dete hain..!!

    behtareen rachna..!

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  19. बेहतरीन... वो एक इंसान ही काफी है आपकी ज़िन्दगी में जो आपकी इज्ज़त करता है..
    लोग बदल रहे हैं और सोच भी बदल रही है.. आशा है कि अच्छे के लिए ही बदलाव होगा..

    आभार

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