Wednesday, July 6, 2011

ढूंढता हूँ में उसे

यादों की गलियों में   
 पीछे जाते हुए  
 पहुँच जाता हूँ उस गेट पर     
जिसके उस पार हाथ हिलाते   
माँ ने मेरा हाथ 
थमा दिया था किसी हाथ में    
देख उस अजनबी चहरे     
माँ की डबडबाई आँखें    
वो बिछड़ने और अकेलेपन का एहसास    
धुंधला रास्ता ,कमरे और चहरे   
वो डर    


एक कोमल स्पर्श 
एक मीठी आवाज़ 
जब उसने कहा था    
रोओं मत में हूँ ना   
झपकाकर डबडबाती आँखें  
साफ होती वह सूरत 
 मुस्कराती आँखों में 
मेरा डर खो गया    


आज बरसों बाद   
नहीं याद आ रहा वह चेहरा    
वह नाम वो आँखें    
लेकिन जब भी उदास 
अकेला  होता हूँ में    
होते है सभी अपने आस पास 
हर संबल हर सांत्वना  में    
वह स्पर्श ढूंढता हूँ  
सुनना चाहता हूँ  
वही मीठी आवाज़ 
रोओं मत में हूँ ना ! 

14 comments:

  1. बहुत कोमल कविता ....कई बार कुछ यादें जीवन भर की धरोहर बन जाती हैं....

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  2. हर संबल हर सांत्वना में
    वह स्पर्श ढूंढता हूँ
    सुनना चाहता हूँ
    वही मीठी आवाज़

    kahin andar tak chhuu gayeee...:)

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  3. होते है सभी अपने आस पास
    हर संबल हर सांत्वना में
    वह स्पर्श ढूंढता हूँ
    सुनना चाहता हूँ
    वही मीठी आवाज़
    रोओं मत में हूँ ना !

    सुन्दर और भावमयी रचना

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  4. बहुत सुंदर रचना बाधाई

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  5. स्पर्श से मिला संबंल जीवन आधार बन गया।

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  6. मुश्किल के पल में...बस एक संबल काफी है...चाहे वो कहीं से मिले...

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  7. kavitaa ji maa ही to है jo santaan की har isare ko samajhati है , बहुत sundar bhaav bhini !

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  8. स्पर्श की भी सिर्फ यादें ही रह जाती हैं पर अगर वो यादें मजबूत हो तो इंसान को उठाने में कामयाब होती हैं..

    परवरिश पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
    आभार

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  9. बहुत कोमल अहसास..कभी एक स्पर्श भी ज़िंदगी का यादगार पल बन जाता है, जिसे भुलाना मुश्किल होता है..बहुत भावपूर्ण रचना..

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  10. सुन्दर और भावपूर्ण रचना

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  11. "हर संबल हर सांत्वना में
    वह स्पर्श ढूंढता हूँ
    सुनना चाहता हूँ
    वही मीठी आवाज़
    रोओं मत में हूँ ना !"
    मिलन और जुदाई के बीच किसी अपने के साथ को रेखांकित करती यह रचना मनःस्थिति की अद्भुत अभिव्यक्ति है.

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  12. Wah, Kavita, very emotional. Every person, who is sensitized, feels exactly in such way. I was lsot in my own memories. So, nice.

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