खता जो तुमने की,
सजा क्यूँ हमको दी...
चुप से सह लेते हम सजा भी।
फिर क्यूं तुमने शिकायत की ,
सह लेंगे सभी शिकवे भी
पर जो सजा तुमने खुद को दी
सह न सकेंगे ........
Wednesday, February 2, 2011
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अनजान हमसफर
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भास्कर मधुरिमा पेज़ २ पर मेरी कहानी 'शॉपिंग '… http://epaper.bhaskar.com/magazine/madhurima/213/19022014/mpcg/1/
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आईने में झांकते देखते अपना अक्स नज़र आये चहरे पर कुछ दाग धब्बे अपना ही चेहरा लगा बदसूरत ,अनजाना घबराकर नज़र हटाई अपने अक्स से और देखा...
सह लेंगे सभी शिकवे भी
ReplyDeleteपर जो सजा तुमने खुद को दी
सह न सकेंगे ........
प्रेम की इन्तहा...बहुत सुन्दर अहसास और उनकी अभिव्यक्ति ...
हा हा हा इसे प्यार कहते हैं. प्यार यानि अपनों की खुशी,अपनों के लिए जीना फिर....वो दुखी हो कैसे सहन हो सकता है भला?
ReplyDeleteयही तो है न् इस कविता में?
मेरे लिए प्यार ईश्वर है इसीलिए इस शब्द का ज़िक्र भर मुझे डूबा देता है किसी रचना में और.....मैं डूब गई इन चार पंक्तियों में.
प्यार
इंदु