शीत छुट्टियाँ ...बहुत बेसब्री से इन्तेजार था इन छुट्टियों का....वाही रोज़ का काम स्कूल जाना घर आना ,स्कूल का काम घर का काम,थक गए..न न थक नहीं गए ढर्रे से उब गए...लगा अब कुछ दिन तो कुछ बदलाव मिलेगा ।
सारे कामो की फेहरिस्त मन में बन गयी आज ये कल वो ,फिर वो और फिर वो... । पहले दो दिन तो सबके साथ हँसते मस्ताते निकल गए...सबका एक साथ घर में रहना भी तो नहीं हो पाता ..इसलिए जब भी सब साथ हो सुबह का खाना साथ खाये बड़ा अच्छा लगता है । पर छुट्टियाँ तो सिर्फ मेरी थी,सबके तो स्कूल कॉलेज ऑफिस थे। मैंने सोचा चलो यही सही कही बाहर जाना तो नहीं होगा पर घर में ही रह कर अपनी पुरानी हाउस वाइफ लाइफ एन्जॉय करूंगी ।
उसके लिए सारे काम टाइम से करना भी तो जरूरी था। अब हाउस वाइफ लाइफ का ये मतलब भी तो नहीं की सारा दिन उठाई धरई में ही लगे रहो। सो सोमवार को जब सबके टिफिन तैयार हो गए सब घर से निकल गए ,थोड़ी देर इत्मिनान से बाहर धूप में ही खड़ी रही ,पैरों पर पड़ती धूप बड़ी राहत दे रही थी। देर तक घर के सामने लगाये नीम के पेड़ को निहारा ,कितना बड़ा हो गया है,अरे इसपर तो घोंसला भी बना है शायद गिलहरियों का है। हम्म तो अब ये घर से निकल कर पेड़ पर आ गयी है । कितने समझदार होते है जानवर भी और कितने ईमानदार भी जब हम यहाँ आये थे यहाँ कोई पेड़ नहीं था इसलिए ये किचन की तांड पर घोंसला बना कर रहती थी ,पर अब जब उन्हें कोई और ठिकाना मिल गया बिना कहे उन्होंने अपना ठिकाना बदल लिया। इन्सान ऐसा कर सकता है क्या? नया ठिकाना मिलाने के बावजूद भी पुराने पर अपना कब्ज़ा जमाये रखना ही उसकी फितरत है । फिर निगम शाशन प्रशाशन कोर्ट कचहरी सब कर लेंगे और फिर मजबूर हो कर ही अपना उस जगह को छोड़ेंगे जो जानते है अपनी कभी थी ही नहीं।एक लम्बी साँस लेकर में अंदर आ गयी। में भी पाता नहीं क्या -क्या सोचती हूँ ? भला इंसानों का जानवरों से कोई मुकाबला हो सकता है क्या??
फिर दिखा अपना रेडियो, अरे आज तो पुराने गाने सुनेंगे। झट से अपना विविध भारती लगाया। बच्चे तो ज्यादा देर पुराने गाने सुन ही नहीं सकते ऐसा मुंह बनाते है और में ज्यादा देर उनके पसंद के चेनल नहीं सुन पाती । खैर जल्दी जल्दी सारे काम निबटाये, आज इत्मिनान से पूजा करूंगी रोज़ तो जल्दी में सौरी भगवानजी कह कर ही भागना पड़ता है । देर तक पूजा की जाने कितने पाठ करती थी बचपन से धीरे धीरे सब छूट गये। हाथ पूजा करते है और मन घडी पर लगा रहता है ।
फिर बैठी पेपर लेकर ,हम्म आज सुबह का पेपर सुबह पढ़ना है । थोड़ी देर धूप में पीठ सेंकते हुए पेपर पढ़ा फिर सोचा अब खाना खा लिया जाये। अरे बाबा रे कितनी ठण्ड है ? खाना खा कर तो रजाई में बैठने का मन कर रहा है । सोचना क्या है कविता ? उठा ला रजाई ,और दुबक जा उसमे । थोड़ी देर खुद से नानुकुर करते आखिर रजाई उठा ही ली । अब क्या करू?सोना ....अरे नहीं सोया तो खोया॥ बस बैठे बैठे ही मन बचपन की गलियों से होते हुए सहेलियों के साथ कॉलेज के प्रांगन में पहुँच गया । खुद से ही बाते करती रही खुद ही हंसती और खुद ही अपनी बात पर नाराज़ होती। आज तो घर में कोई नहीं है कविता जो जी चाहे कर ले सबके होते तो ये बाते हो ही नहीं सकती कभी बच्चे मुंह ताकने लगते है तो कभी पतिदेव।
शाम होते सबके आते फिर वाही रूटीन शुरू। दूसरे दिन सोचा आज कुछ काम करूंगी कल तो सारा दिन यूँ ही निकल दिया। पर वाही सबके जाते पेड़ पर फुदकती चिड़ियों को देखती रही ,तो कभी गिलहरियों को । सारे काम निबटा कर आज झूले पर बैठा जाये,ये सोचते हुए बाहर निकली झूले पर बैठ कर पेपर तो हाथ में धरा रह गया और मन पहुँच गया पुरानी यादों में .किस तरह तिनका तिनका जोड़ कर ये घर बनाया है से होते हुए शादी के बाद के दिन नयी नयी नौकरी .अकेले रहने का वो दर ,बिटिया के आगमन पर अपने आप सब समझते हुए उसे बड़ा करने की जद्दोजहद। कभी हंसी आती तो कभी आँखे भर आती, पर आज भी तो घर में कोई नहीं है। पर ये क्या ये गिलहरी क्यों मुझे तक रही है ? अब ये पूछेगी क्या हो गया? पर वो तो बस थोड़ी देर टुकुर टुकुर देख कर चली गयी।
तीसरे दिन सोचा आज तो काम करना ही है छुट्टियाँ ऐसे ही निकल जाएँगी कितने सारे काम पेंडिंग है। जल्दी से काम निबटाया कहा से शुरू करते हुए टी वी ओं कर लिया । अरे ये तो हेमामालिनी की फिल्म खुशबू है .बचपन में दादी के साथ देखि थी ये फिल्म ,उसके बाद जब ११ में थी तब टी वी पर आयी थी। अब फिल्म छोड़ कर कोई काम करना तो ठीक नहीं वो भी आज जब बीच में कोई चेनल बदलने वाला नहीं है । यार ठीक है न एक दिन फिल्म देख ली तो क्या हुआ?
चौथे दिन तो सुबह से हड़बड़ी थी ,आज जरूर काम करूंगी ,फिर अब अगले ३ महीने छुट्टियाँ नही मिलाने वाली है .अब तो पेपर बनाना है फिर चेकिंग । सोचते सोचते सामान जमाते पुरानी डायरी हाथ आ गयी। पिछले साल ठंडों की छुट्टियों में एक कहानी लिखनी शुरू की थी। छुट्टियाँ ख़त्म कहानी भी वाही रुक गयी । पढ़ते पढ़ते मन में फिर कल्पनाये बानाने लगी कहानी के पात्र बोलने लगे परिस्थितियां बनाने -बिगड़ने लगी ,और वाही बैठ कर कहानी पूरी करने लगी । थोडा बहुत लिख कर सोचा उठ जाऊ पर पात्र छोड़ने को ही तैयार नहीं हुए।
इसी तरह साडी छुट्टियाँ निकल गयी । सारे काम अपने उसी स्वरुप में अभी भी है । कल से स्कूल है अरे !सारे काम बाकि है ,कुछ नहीं हुआ ...
आज स्कूल में सबसे मिल कर बहुत ख़ुशी हुई , सब पूछते रहे क्या किया छुट्टियों में ?थोड़ी देर चुप रही क्या किया छुट्टियों में सारे काम बाकी है? पर में तो खुश हूँ । बहुत खुश हूँ फिर सोचा अरे किया न । में इन छुट्टियों में अपने साथ रही यही क्या कम है ?
Monday, January 3, 2011
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छुट्टियों का रोचक वर्णन.. अपने साथ रहना सबसे बड़ी नेमत है इन दिनों..
ReplyDeleteरोचक।
ReplyDeletekhud ke saath hi rahna asli sukh hai
ReplyDeleteसच है ... कभी कभी अपने आप का साथ देना भी कितना सुखद होता है ... अच्छा दिलचस्प लिख है ......
ReplyDeleteआपको और परिवार में सभी को नव वर्ष मंगलमय हो ...
sabhi ko nav varsh ki shubhkamnayen...
ReplyDeleteअरे कुछ देर अपने साथ रह लीं इससे ज्यादा और क्या करना था छुट्टियो मे………बहुत ही रोचक शैली है लेखन की।
ReplyDeleteजीने का मकसद समझाती यह कहानी... इससे अधिक क्या...सारा दर्शन...सारी कवायद जीने की...इसी से तो है..जीवन में से जीने का पल चुराना सबसे कठिन है...जिसने चुरा लिया...सब पा लिया...अच्छी भावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteमें इन छुट्टियों में अपने साथ रही यही क्या कम है ?
ReplyDeletewaah
sahaj sacha bebak bayan
sahitiyik bahvon se bherper ..achi kahani .....gahar ghar ki
आपकी कुछ दिनों की कवायद को देखकर कुछ कहने को जी तो चाहा मगर क्या कहूँ ठीक से सोच नहीं पा रहा....कभी सोच कर बताउंगा....!!!
ReplyDelete"में इन छुट्टियों में अपने साथ रही यही क्या कम है?"
ReplyDeleteकविता जी छुट्टी के माध्यम से गृहणियों की व्यस्तता का रोचक वर्णन तो आपने किया ही,साथ ही नीम के बहाने मनुष्य की अनन्त लिप्सा पर कटाक्ष करने से भी नहीं चूकीं. अपने साथ रहने में भी सबका साथ तो रहा ही होगा,दिखा नहीं होगा.सदा की भांति अर्थपूर्ण.
सिर्फ अपने लिए वक़्त निकलना कितना सुखद है . अति सुंदर .
ReplyDeleteछुट्टियों का रोचक वर्णन.
ReplyDeleteनिसंदेह ।
ReplyDeleteयह एक प्रसंशनीय प्रस्तुति है ।
धन्यवाद ।
satguru-satykikhoj.blogspot.com
nice
ReplyDeleteHum auraten apne liye kaha waqt nikalten....phir kuchekdin apne sath gujar lena kitna sukhad....rochak
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