हम हंस हंस के भुलाते गए उनकी ख़ताओं को
और उन्होंने हमें ही कसूरवार ठहरा दिया.....
ख़ताओं का इल्जाम ही क्या कम न था
जो सरे आम हमें रुसवा किया।
जो तुम को हो सुकून तो हम क्या गिला करे
आओ फिर ख़ताओं का सिलसिला शुरू करे....
Wednesday, February 2, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अनजान हमसफर
इंदौर से खरगोन अब तो आदत सी हो गई है आने जाने की। बस जो अच्छा नहीं लगता वह है जाने की तैयारी करना। सब्जी फल दूध खत्म करो या साथ लेकर जाओ। ग...
-
#घूंट_घूंट_उतरते_दृश्य एक तो अनजाना रास्ता वह भी घाट सड़क कहीं चिकनी कहीं न सिर्फ उबड़ खाबड़ बल्कि किनारे से टूटी। किनारा भी पहाड़ तरफ का त...
-
भास्कर मधुरिमा पेज़ २ पर मेरी कहानी 'शॉपिंग '… http://epaper.bhaskar.com/magazine/madhurima/213/19022014/mpcg/1/
-
आईने में झांकते देखते अपना अक्स नज़र आये चहरे पर कुछ दाग धब्बे अपना ही चेहरा लगा बदसूरत ,अनजाना घबराकर नज़र हटाई अपने अक्स से और देखा...
वाह! बहुत बढिया।
ReplyDeleteखताओं के सिलसिले के सहारे सिलसिला शुरु हो खताओं का।
हा हा हा
कविताओं का सुन्दर सिलसिला... बहुत उम्दा...
ReplyDeletehaan chalo khataaon ka hi silsila shuru karen
ReplyDeletesundar keya khata hai
ReplyDeleteबहुत खूब...ठीक है खताओं का सिलसिला फिर शुरू करें. बहुत भावपूर्ण
ReplyDeleteहम हंस हंस के भुलाते गए उनकी ख़ताओं को
ReplyDeleteऔर उन्होंने हमें ही कसूरवार ठहरा दिया.....
ekdam theek baat...kayee baar yahi hota hai.
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।
ReplyDeleteAchchaa hai ... !!
ReplyDeleteकविताओं का सुन्दर सिलसिला
ReplyDeleteखताऑ के सिलसिले जो एक बहाना दे बात करने का तो.....मैं तो जिंदगी भर खताए करने को ईश्वर का दिया तौहफा मानू .हा हा हा
ReplyDeleteछोटी सी पर दिल को छू जाने वाली बात की है इन चंद पंक्तियों में.
प्यार