
विद्या दीदी हाँ यही तो नाम है कही किसी रिश्ते से दीदी लगती है है उम्र में मुझसे बहुत बड़ी शायद मेरी मम्मी की उम्र से कुछेक ही साल छोटी. रौबदार चेहरा माथे पर बड़ी सी बिंदिया गरजदार आवाज़ ,जब भी अपने मायके आती थी भाभियाँ सेवा में लगी रहती थी. हर काम सलीके से होना चाहिए,किसी काम में कोई कोताहि देखी और डपट दिया फिर वो भाई हो या भतीजा फिर भाभियों की तो कौन कहे. दो बेटियों और दो बेटों का भरा पूरा परिवार ,जीजाजी भी उनके आगे पीछे ही घूमते थे . यों तो वो बेटियों पर जान छिड़कती थी ,पर नियम कायदे ,रीति रिवाज़ सबके लिए एक सामान थे.
बेटियां बड़ी हो गयी तो अच्छे घर वर देख कर शादी कर दी,पर हाँ परिवार सबके भरे पूरे थे. उनके यहाँ भी हर तीज त्यौहार समारोह पर रिवाज के अनुसार आना जाना व्यव्हार करना ,कुल मिला कर बहुत परम्परावादी है विद्या दीदी.
बेटियों के बाद बेटों की बारी आयी शादी की बहुत सोच समझ कर सुंदर सुघड़ बहू धुन्धी दीदी ने जब भी मिलती करीने से सर ढके , सारे सुहाग संस्कार सजाये , हमारे जाते ही दीदी की आँख का इशारा होता और वह पैर छूने झुक जाती ,बैठ कर पैर छुओ ये क्या ऊँटों जैसे हो कर छूती हो,सबके सामने ही नसीहत देने से नहीं चूकती थी दीदी . हमारे चाय नाश्ते का इंतजाम कर के अगर बहू अंदर चली जाती तो दीदी बुलाती अरे आरती तुमने चाय पी की नहीं यही आ जाओ,लाओ सब्जी मुझे दे दो में सुधार दूँगी तुम नाश्ता कर लो. काम में उसका पूरा साथ देती ,खाने पीने पहनने ओढ़ने का पूरा ख्याल रखती पर कायदे कानून सबके लिए एक.हम तो कभी कभी बातें भी करते दीदी की बहु कैसे रहती होगी इतनी तेज़ सास के साथ .
एक दिन अचानक खबर आयी दीदी का बड़ा बेटा तीन दिन के बुखार के बाद चल बसा .डाक्टर ने आकर देखा एक इंजेक्शन लगाया अचानक हाथ पैर ऐठने लगे और कोई कुछ समझ पाता इससे पहले ही खेल ख़तम हो गया. मात्र २६ साल की उम्र थी बहु तो २३ की ही थी गोद में २ साल की बच्ची .कैसे अचानक हँसता खेलता संसार उजड़ गया ,रह रह कर भरे भरे हाथ ,करीने से सजी मांग,हर तीज त्यौहार पर मेहन्दी रचाई हथेलियाँ याद आती. होनी को कौन टाल सकता है.
बेटे की मौत के करीब ६ महीने बाद दीदी से फिर मिलना हुआ ,बिलकुल थकी थकी निढाल सी बाल बिखरे हुए गुमसुम सी दीदी ,बेटे से ज्यादा इस लड़की का दुःख खा जाता है मुझे ,जब भी इसे देखती हूँ रुलाई नहीं रुकती देखा ही क्या था अभी इसने ,इतनी बड़ी जिंदगी है,जब तक हम है बेटी बना कर रखूंगी इसे पर हमारे बाद..देवर है पर देवरानी कैसी आये कैसे रखे? इसके माँ-बाप ने तो कहा भी की भेज दो हमारे पास पर पोती में मेरी जान अटकी रहती है एक ही तो निशानी है मेरे बेटे की अब .
दीदी से हुई वह मुलाकात दिल भारी कर गयी . इसके बाद बहुत दिनों तक उनसे मिलना नहीं हुआ,न उनके यहाँ जाना हुआ. करीब डेढ़ साल बाद दीदी के यहाँ अचानक जाना हुआ देखा पुरानी विद्या दीदी सोफे पर बैठी है वही गरजदार आवाज़ माथे पर बड़ी सी बिंदिया सलीके से संवारे बाल. पोती के साथ हंस हंस कर खेल रही है उसकी तोतली बातों पर दोहरी हुई जा रही है. पास ही बहू भी बैठी थी करीने से ढंका सर ,हाथ भर चूड़ियाँ .सलीके से भरी मांग . हमारे जाते ही दीदी की आँख का इशारा हुआ उसने आकर हमारे पैर छुए,और पानी लेने अंदर चली गयी.
बहुत सोचा मैंने अपने बेटे की निशानी के लिए इसकी जिंदगी यों नरक तो नहीं होने देती ना? रिश्ते भी एक दो आ रहे थे पर ये भी तो मेरे बेटे की निशानी है ये भी चली जाती. फिर सोचा शादी करनी ही है तो छोटा बेटा भी तो है ना ,उससे बात की उसका मन टटोला उसे भी खूब सोच समझ लेने का मौका दिया आरती से भी बात की फिर एक अच्छे दिन मंदिर में जा कर फेरे पडवा दिए अब बस बेटा नहीं है पर उसकी सब निशानियाँ मेरे पास है . ठीक किया ना मैंने??
मैंने मौन दीदी के हाथ पर अपना हाथ रखा दिया .आज दीदी ने रीति रिवाज संस्कार सभी का सही अर्थ समझा दिया था.