आज जो अनोखी घटना हुई मेरे साथ उसने न सिर्फ मन को हिला दिया लेकिन एक अनूठी संतुष्टि का भाव भी दे गया...
स्कूल से आ कर अखबार पढ़ रही थी की एक खबर पर नज़र पड़ी पाकिस्तान में आत्मघाती बम विस्फोट से ५० लोगो की जाने गयी...
ऊंह वहां तो ये होता ही रहता है,मन में उठे ये भाव हतप्रभ करने वाले थे एक क्षण को ठिठकी,ये क्या सोचा ?क्यों सोचा?मरने वाले किसी के भाई बंद थे ,पर न जाने किस रो में पन्ना पलट दिया।
थोड़ी ही देर बाद किचन में काम करते हुए वहां कोने में रखी एक बंद पड़ी ट्यूब लाइट ,अचानक फिसल कर गिर पड़ी और धमाके की आवाज़ के साथ फूटे कांच की किरचे चेहरे को छूते हुए पूरे किचन में फ़ैल गयी । चेहरे पर लगी किरचे .......हाथ चेहरे पर जाते हुए अनायास ही मन कुछ मिनिटों पहले की अपनी सोच तक पहुँच गया ... वहां के लोग भी किसी के भाई बंद होते है ,किसी का परिवार,मरने का दर्द सबका एक सा होता है........
उस एक क्षण ने सारे एहसास एक साथ करा दिए....
बम धमाके में मरने वालों का दुःख,उनके परिवार के लिए संवेदना ,और इस सबसे बड़ा एक अलौकिक एहसास की ईश्वर मेरे बहुत करीब है.....मेरे मन के हर विचारों को पढ़ते हुए,गलत सोच के लिए तुरंत अपने तरीके से आगाह करते हुए....
बस ये सन्निकटता बनी रहे ........
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संवेदना निजी अनुभूतियों से ही घनीभूत होती है। अपना दर्द हमें दूसरों के प्रति संवेदी बनाता है। अपनी गलतियां हमें उदार बनाती हैं कि हम किसी की गलती को समझ सकें। यह उसी तरह की एक घटना है जिसमें संवेदना को अपने अनुभव से राह मिली है। छोटी-छोटी घटनाएं हमें बड़े और व्यापक अनुभव देती हैं। निजी संवेदनाओं का विस्तार और निज का अतिक्रमण ही तो साहित्य का आधार है।
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील पोस्ट..दुःख किसी का भी हो दुःख होता है, जब यह भावना जाग्रत हो जाती है सारा संसार अपना लगने लगता है..
ReplyDeleteबहुत सच्चा चित्रण ....वाकई जब गलत सोचते हैं और ऐसा होता है तो लगता है ईश्वर ने आगाह कर दिया ...संवेदनशील पोस्ट
ReplyDeleteकविता जी विश्व के किसी कोने में यदि कोई हादसा होता है तो मन का द्रवित होना स्वाभाविक है और हम भारतियों में ऐसा होता भी है... क्योंकि हम वसुधैव कुटुम्बकम में विश्वास रखते हैं.. लेकिन इसे हमारी कमजोरी मणि जाती है.. पाकिस्तान हमारा अंग ही तो है लेकिन वहां ऐसी भावना का आभाव है.. बढ़िया आलेख है आपका ...
ReplyDeleteये अनुभूती बनी रहे।
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (9/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
"दर्द सबका एक सा होता है........
ReplyDeleteउस एक क्षण ने सारे एहसास एक साथ करा दिए..."
लहू का रंग एक है.मां-बाप का दिल अपने बच्चों के लिए ,भाई का बहन ,बहन का भाई के लिए ,पति का पत्नी,पत्नी का पति के लिए हर देश काल में एक सा ही धड़कता है ,तड़पता है.एक रचनाकर की यह अद्भुत क्षमता होती है कि वह इसे जी लेता है चाहे रिश्ता कोई भी हो,किसी का भी हो.आपके हर लेखन में यह भाव उठाते देखा है.इस संवेदनशील रचना के लिय धन्यवाद.
शिक्षापूर्ण आलेख। निर्दोष के दर्द से सहानुभूति रख ही मानवता है।
ReplyDeleteमार्मिक प्रस्तुति
ReplyDeletekya baat keh di aapne....yaqeenan, ek sach, bohot aasani se keh dete hai...hota rahta hai, marne walon ki sankhya single digit mein ho to sochte hai, chalo, zyada nahin hai
ReplyDeletedo pal baad hosh aata hai, ke jo gaya, uske liye to wahi ek zindagi thi na...!
beautiful blog kavita ji