पहाड़ों से टकराकर
हर आवाज़ लौट
आती है ,
कितनी ही आवाजें
हो गयी है
गुम ,
मेरी आवाज़ ही
पहुंची नहीं
पहाड़ों तक ,
या पहाड़ ही
अब पत्थर
हो गए है?
Saturday, December 11, 2010
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अनजान हमसफर
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आईने में झांकते देखते अपना अक्स नज़र आये चहरे पर कुछ दाग धब्बे अपना ही चेहरा लगा बदसूरत ,अनजाना घबराकर नज़र हटाई अपने अक्स से और देखा...
अच्छी कविता है.पहाड़ अब पत्थर बन गए हैं .
ReplyDelete................
क्रिएटिव मंच आप को हमारे नए आयोजन
'सी.एम.ऑडियो क्विज़' में भाग लेने के लिए
आमंत्रित करता है.
यह आयोजन कल रविवार, 12 दिसंबर, प्रातः 10 बजे से शुरू हो रहा है .
आप का सहयोग हमारा उत्साह वर्धन करेगा.
आभार
अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeletekaun jane ye pahaad patthar hain yaa awaazen gum gai
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