कल एक प्रायवेट बैंक में जाना पड़ा। पड़ा इसलिये क्योंकि मैं ज्यादातर बैंक जाना बिल भरना सब्जी खरीदने जैसे काम करना पसंद नहीं करती लेकिन ऐसा भी नहीं है कि मुझे ये काम नहीं आते। आते भी हैं और जरूरत होने पर करती भी हूँ। अब चूँकि पतिदेव का प्रमोशन हो गया है और उनका वर्किंग डे में इंदौर आना कम ही होता है इसलिये काफी समय से पेंडिंग यह काम मैंने ही करने का सोचा।
हाँ तो हुआ यह कि बैंक में कुछ पैसे जमा करवाना था और बहुत दिनों से पासबुक अपडेट नहीं करवाई थी उसमें मेरी कुछ कहानियों के पेमेंट भी थे इसलिए उसे अपडेट करवाना थी।
हाँ तो मैं एक प्रायवेट बैंक गई जो घर से आधा किलोमीटर दूर होगा। मैंने डिपाजिट स्लिप भरी और काउंटर पर पहुँची। काउंटर पर एक लड़की ने स्लिप ली और नोट गिनने वाली मशीन में डालकर गिनने के बजाय सीधे नोट छांटने वाली मशीन में डाल दिए। मैं सामने खड़ी मानिटर पर नंबर देख रही थी और वह नंबर उससे कम था जितने नोट मैंने दिये थे। मुझे आश्चर्य हुआ क्योंकि मैं घर से ही नोट गिनकर और एक स्लिप पर लिखकर ले जाती हूँ।
"मैंने पूछा ये कितने नोट हैं ये नोट कम हैं क्या?"
एक दो बार कोई जवाब नहीं मिला फिर उसने बताया कि नहीं नोट बराबर हैं।
"ठीक है सिस्टम का कोई पेंच होगा सोचकर मैं शांति से खड़ी रही।
ट्रांजेक्शन होने के बाद उसने पूछा" ये आपका रजिस्टर्ड फोन नंबर है?"
" हाँ"
" अभी इस नंबर पर एक मैसेज आयेगा वह आप मुझे मेरे नंबर पर फारवर्ड कर दीजिए"। कहकर उसने अपना फोन नंबर उसी स्लिप पर लिख दिया।
"कैसा मैसेज?"
"फीडबैक के लिए लिंक आयेगा आप मुझे भेज दीजिये मैं भर दूँगी।"
कमाल है मैंने मन में सोचा।" फीडबैक का लिंक है न तो मैं भर दूंगी क्या दिक्कत है?"
" नहीं वह पाइंट रहते हैं न इसलिये।"
मैंने कुछ नहीं कहा। आजकल फीडबैक पाइंट मार्केटिंग पर दुनिया चल रही है। खैर यह बेटी का अकाउंट था अब मुझे अपने अकाउंट में डिपाजिट करना था।
मैंने स्लिप और पैसे उसे दे दिये। उसने पैसे काउंटिंग मशीन पर काउंट करने के बजाय नोट छांटने वाली मशीन पर रख दिए। नोट पुराने थे या ठीक से रखे नहीं गये इसलिए वे मशीन में फँस गये।
उसने एकाध बार निकालने की कोशिश की फिर आवाज लगाई भैयाsss
पास ही खड़े प्यून कम आफिस असिस्टेंट, कैशियर बाक्स के अंदर गया।
"भैया ये देखिये न नोट फँस गये इसे निकालिए न।"
मशीन में सिर्फ एक कवर था जिसे ऊपर उठाकर नोट निकालना था जिसे करना उसके लिए शायद बहुत कठिन था या डाउन ग्रेड काम इसलिये उस कैशियर केबिन में जहाँ किसी का जाना मना होता है वहाँ भैया फँसे नोट निकाल रहा था।
नोट निकलने के बाद उसने फिर उसमें डाले नोट फिर फँस गये। फिर मशीन खोली गई।
"सारे नोट निकल गये" ? मैंने पूछा।
"हाँ" कहकर उसने फिर अंदर देखा तो एक नोट बाहर आया।
"ठीक से देखो"
इस बार दो और नोट बाहर आये। एक बार फिर नोट मशीन में लगाए गए।
भैया कहता रह गया "मैडम ये दूसरी मशीन है उसमें लगाकर गिन लो" लेकिन मैडम स्मार्ट वर्क में विश्वास करती हैं वे दो बार काम क्यों करतीं? वे एक ही बार में नोट गिनकर खराब नोट छांट लेना चाहती थीं। इस बार फिर नोट फँस गये फिर निकाले गये।
अब आधे नोट भैया को दिये गये आधे खुद के हाथ में पकड़े और गिनना शुरू किया। भैया ने गिने उनचालिस मैडम ने कभी एक एक कभी दो को एक कभी एक को दो करते गिने और गिनती बताई। अब हुआ यह था कि मैंने गड्डी दी थी और इस गिनती के अनुसार ग्यारह नोट कम थे।
मैंने कहा "मशीन में फिर से देखो और नोट तो नहीं फँसे हैं नीचे तो नहीं गिरे हैं" ।
हुआ यह था कि वह पूरी गड्डी थी इसलिए मैंने गिनती नहीं की थी।
उसने एक बार फिर देखा और कहा "नहीं हैं मैम आप एक बार फिर गिन लीजिये।"
खैर मैंने गिना 89 नोट ही थे और मुझे उस पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं दिखा इसलिये मैंने उसमें एक नोट और मिलाकर राउंड फिगर किया।
अब हुआ यह कि डिपाजिट स्लिप का अमाउंट कुछ और था और रुपये कुछ और। मैडम ने मेरी स्लिप लेकर उसमें करेक्शन करना शुरू कर दिया। मैं देखती रही कि हो क्या रहा है क्योंकि वह स्लिप इतने करेक्शन के साथ बेकार ही थी।
फिर आवाज लगाई गई " भैया एक स्लिप ले आइये।"
स्लिप आई और उन्होंने उसे भरना शुरू कर दिया। अकाउंट नंबर लिखते हुए कोई नंबर बाक्स के ऊपर कोई लाइन पर कोई बाहर कोई नीचे।
"आप जिस तरह से अकाउंट नंबर भर रही हैं ये आप खुद भी दस मिनट बाद पढ नहीं पाएंगी।" मैंने कहा।
"वो बाक्स हैं ही इतने छोटे"
"अच्छा। बैंक की एक्जाम देते ओएमआर शीट में भी इतने ही बड़े बाक्स होंगे न वे भी ऐसे ही भरे थे? अगर बाक्स इतने छोटे हैं तो कस्टमर को ऐसी स्लिप क्यों देते हैं बड़े बाक्स के साथ छपवाइये न।" अब यह लापरवाही बर्दाश्त से बाहर होने लगी लेकिन फिर भी मैंने आराम से कहा।
फिर मुझे याद आया "आपने स्लिप में मेरे साइन तो लिये नहीं।"
"हाँ तो आप साइन कर दीजिए।" कहने का अंदाज इतना लापरवाह था कि जैसे साइन होने न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता फिर भी आपको करना है तो कर दीजिए।
अब मैंने मन बना लिया।" शिकायत पुस्तक कहाँ है दीजिये मुझे।"
" किस लिये?"
" किस लिये? सच में! आपको यह पूछने का अधिकार है? " ओफ्फ मैं अभी तक बाल नहीं नोचने लगी थी यह अजूबा ही था मेरे लिए।
"भैया" उसकी नौकरी में भैया कितना बड़ा सहारा थे पता नहीं उसे और भैया को इस बात का एहसास भी था या नहीं।
खैर मेरे पैसे जमा हो गये थे अब मुझे पासबुक में एंट्री करवाना था इसलिए मैं दूसरी डेस्क पर आ गई।
पांच मिनट बाद वह भी बगल वाली अपनी डेस्क पर आ गई। दो मिनट अपने कंप्यूटर पर कुछ काम किया और फिर मेरी तरफ पलटी "मैम आपकी पासबुक दीजिये न प्लीज आपका अकाउंट नंबर देखना है।"
वही हुआ वह अपनी ही राइटिंग समझ नहीं पा रही थी।
"पासबुक! मैंने आपको पहले ही कहा था कि आप इसे पढ नहीं पाएंगी। मान लीजिए अगर मैं यहाँ नहीं रुकती और चली गई होती तो आप मेरा पैसा किस अकाउंट में डालतीं? या मुझे फोन करके घर से बुलवातीं? ये क्या तरीका है काम करने का?"
अब मुझे थोड़ा तैश आने लगा। "कंप्लेन बुक कहाँ है भैया जब तक मुझे कंप्लेन बुक नहीं मिलेगी मैं यहाँ से नहीं जाऊंगी।"
" मैडम वो ब्रांच मैनेजर के पास है।" अब मेरी आवाज़ कांच के केबिन के अंदर चली गई या शायद अंदर तो पहले ही चली गई थी अब उसकी दृढ़ता ने एक संदेश अंदर पहुँचा दिया। अंदर से ब्रांच मैनेजर बाहर आये।
" क्या हुआ मैडम? "
" ये स्लिप देखिये और तय कीजिये क्या इसे ऐसे भरा जाना चाहिए था? अगर मैं चली गई होती तो अकाउंट नंबर अंदाजे से भरा जाता? किस अकाउंट में डालते आप यह पैसा?"
मैनेजर ने स्लिप देखी और उन्हें समझ आ गया कि बात गंभीर है "मैम प्लीज आप अंदर आइये।"
अब अंदर केबिन में बैठकर फिर पूरी बात बताई गई शिकायत पुस्तक ली गई और पूछा कि क्या एम्पलाईज् को कैश काउंटिंग मशीन खोलना भी नहीं आता? स्लिप भरना, स्लिप में नंबर भरना इतना मुश्किल काम है कि ठीक से नहीं किया जा सकता जबकि बैंक में कुल जमा तीन कस्टमर हैं पिछले आधे घंटे में। सरकारी बैंक में इतनी देर में तीस कस्टमर आ चुके होते।
प्रायवेट बैंक में हैंडसम सैलरी है लेकिन फिर भी काम करने का इतना गैर जिम्मेदार रवैया लापरवाही क्यों है?
एक गलती होती तो मैं नजरअंदाज कर देती लेकिन यहाँ तो गलतियों लापरवाही की सीरीज थी कब तक और क्यों नजरअंदाज किया जाना चाहिए।
मुझे उस लड़की से कोई दुश्मनी नहीं है लेकिन शिकायत करना जरूरी था ताकि काम करने का रवैया सुधरे सिस्टम सुधरे।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (१९-०३-२०२३) को 'वृक्ष सब छोटे-बड़े नव पल्लवों को पा गये'(चर्चा अंक -४६४८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteसार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
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