Friday, June 23, 2023

यादगार सफर

 पिछली बार की खरगोन यात्रा खतरों के खिलाड़ी वाली रही। शाम छह बजे निकली थी यह सोचकर कि डेढ़ घंटे में जाम घाट उतर जाऊँगी। उसके बाद अंधेरा हो जायेगा इसलिये हसबैंड से कहा था कि वे मंडलेश्वर के आगे चौली गाँव तक आ जाएं। लेकिन चार बजे खूब तेज बारिश हो गई। उसके बाद हसबैंड से बात नहीं हुई तो चाय बनाकर मैं थोड़ा अलसा गई। फिर अचानक धुन चढी कि नहीं बस अभी जाना है। तैयारी करके निकलते सवा छह बज गये ।

जाने की धुन में दाँए बाएँ सोचा नहीं। सोचा नहीं कि महान इंदौर के उटपटांग छोटे अंडरपास में जाम लगा होगा बस निकल गई। चार किलोमीटर बाद अंडरपास पर आधा घंटा लग गया। वहाँ से आगे बढ़ी तो रालामंडल फाटे पर फिर जाम था।

बादल घने थे सामने बिजली ऐसे चमक रही थी मानों आसमान से धरती तक रास्ता बनाकर उतर रही है। अंधेरा हो चुका था लेकिन गाड़ी पलटाकर वापस जाने की जगह नहीं थी। फिर खरगोन भी तो जाना था पतिदेव मंडलेश्वर पहुंच चुके थे।

खैर सोचा जो होगा देखा जाएगा खरगोन तो अभी जाना है।

बायपास से राऊ तरफ मुड़ी ही थी कि जोरदार बारिश शुरू हो गई इतनी तेज कि पचास मीटर दिखाई न दे। यही काफी न था महू में लाइट नहीं थी। टोल क्रास करते ही सड़क जिस तरह लहराती है उसके बलखाते डिवाइडर से गाड़ी टकराते बची।

 तभी पतिदेव का फोन आया। बेचारा धक से हुआ मन उनके सहारे को मचल उठा और मैंने बड़ी उदारता से कहा कि एक काम करो जाम घाट के ऊपर आ जाओ क्योंकि बहुत रात हो गई है और यहाँ तेज पानी गिर रहा है। यह कहकर मानों अहसान ही किया था उन पर क्योंकि मैं तो रात में गाड़ी चलाने का एडवेंचर करना चाहती थी जो उन्हें टेंशन देता और मैंने उन्हें उससे बचा लिया।

खैर महू क्रास करते पानी बंद हो गया लेकिन शहर के बाहर घुप्प अंधेरा और नागिन सी लहराती बलखाती सड़क जो अंधेरे में पता ही नहीं चल रही थी कि किस तरफ मुड रही है। वहाँ आंधी-तूफान अभी-अभी गुजरा था इसलिये जाम घाट में रुकी हुई गाड़ियाँ सामने से आ रही थीं जिनकी तेज हेडलाइट मानों अंधा किये दे रही थी। 

जाम घाट के बारह किलोमीटर पहले घाट शुरू हो जाता है जहाँ सड़क किनारे से काफी ऊँची है और इस अबूझे अंधेरे में डर था कि कहीं गाड़ी सड़क से उतर कर गिर न जाये। इस इलाके में फोन को सिग्नल भी नहीं मिलते कि किसी को मदद के लिए बुला लें या कि बता सकें कि कहाँ हैं। अब एक बार फिर मोबाइल चैक किया। डर से थरथराती एक दो डंडी देख उन्हें बस थाम लिया और पतिदेव को फोन लगाया। बताया कि कुछ दिखाई सुझाई नहीं दे रहा है इसलिए जाम घाट से आगे आ जाओ। उन्होंने पूछा कहाँ बडगोंदा ग्रिड पर रुक जाना।

पता नहीं ये बिजली वालों को अंधेरे में भी ग्रिड डीपी डबल सर्किट कैसे दिख जाते हैं। मैं झुंझलाई अरे यार चलते रहो उस तरफ आने वाली मेरी अकेली गाड़ी है दिख जाएगी। जहाँ दिखे हाथ दे देना।

अब यह नहीं बताया कि एक गाड़ी बड़ी देर से मेरे पीछे पीछे चल रही है। पता नहीं वह भी अंधेरे अबूझ की मारी है या साइड मिरर में उसे अकेली महिला ड्राइवर दिख गई। खैर जो भी हो ऐसे रिस्क लेने की अभी कोई इच्छा नहीं थी। (वैसे अंधेरी बरसती रात में पति से मिलने जाना कोई रिस्क थोड़ी था। जरा सोहनी महिवाल को याद कर लीजिये।)

आजकल खूब सारी सस्पेंस थ्रिलर हाॅरर स्टोरी पढ रही हूँ इसलिए दो तीन बार ऐसा लगा जैसे पैसेंजर साइड की खिड़की के बाहर कोई साथ-साथ दौड़ रहा है। चौंक कर उधर देखा सिर झटका फिर सड़क ढूंढने लगी । चार साल से आना-जाना कर रही हूँ कितनी बार पढ़ा कि तेंदुए की एक्टिविटी है वह कभी नहीं दिखा तो भूत क्या दिखेगा? 

थोड़ी देर बाद एक गाड़ी ओवरटेक की जिसका नंबर एम पी 10 था। अरे ये तो खरगोन की गाड़ी है और मैं उसके पीछे चलती रही।

कहते हैं अंधेरे में दिमाग की क्रियाशीलता कम हो जाती है यह तब पता चला जब वह गाड़ी आगे रुकी और उसमें से एक हाथ निकला। अरे ये तो साहब की गाड़ी है ओह बढ़िया एक गहरी सांस आई जो इतनी देर से बस जरूरत भर चल रही थी। तुरंत गाड़ी रोकी अपना पर्स उठाया और जाकर उनकी गाड़ी में बैठ गई। उनके ड्राइवर ने मेरी गाड़ी ले ली और हम जाम घाट से उतरते मंडलेश्वर आ गये।

वैसे घाट उतरते एक अफसोस हुआ कि खुद को गाड़ी चलाना था अंधेरे में घाट उतरना एक अद्भुत अनुभव होता। खैर वह भी एक दिन करूँगी उस दिन के लिए काफी एडवेंचर हो चुका था।

 बारिश होकर बंद हो गई थी लाइट आ गई थी और ड्राइवर का गांव मंडलेश्वर के पास था। पतिदेव ने पूछा वहाँ से तुम ले लोगी गाड़ी या उसे खरगोन ले चलें फिर किसी के साथ वापस छुड़वा देंगे। तब तक रात के ग्यारह बज रहे थे। मैंने कहा अब वो जाएगा फिर वापस घर पहुंचेगा उसे आधी रात हो जायेगी रहने दो मैं ले लूंगी गाड़ी। यह नहीं कहा कि घाट पर गाड़ी न चला सकने का दुख रात में बाकी रास्ते गाड़ी चलाकर कुछ कम कर लूँ।

मंडलेश्वर टोल पर एक बार फिर गाड़ी अदला-बदली हुई और इस बार आगे पायलट कार थी जिसके टर्न सिग्नल ब्रेक लाइट देखकर सुरक्षित चलते हम छह घंटे में रात बारह बजे खरगोन पहुंचे।

हाँ तो लब्बोलुआब यह है कि इस बार जब खरगोन आना था मैंने कल शाम आने का विचार किया लेकिन हवा पानी और ट्रैफिक जाम की स्थिति देख विचार त्याग दिया। आज सुबह जल्दी जल्दी करते भी 6:55 पर इंदौर से निकली। चालीस मिनट में महू पहुंच कर पांच मिनट जाम घाट पर रुकी पानी पिया फोटो खींची और दो घंटे बीस मिनट में खरगोन पहुंच गई।

वह सफर भी यादगार था यह सफर भी यादगार रहा दोनों के अपने अपने कारण थे। 

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नर्मदे हर

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