Friday, December 11, 2020

उन आठ दिनों की डायरी

5 नवंबर 2020

कुछ विशेष न था इस दिन में रोज की तरह ही सूरज निकला था रोज की तरह सुबह के काम किये थे और रोज की तरह ही पतिदेव की आफिस जाने की तैयारी भी हुई थी। हाँ इतना जरूर था कि उन्होंने कहा खाना खाकर नहीं जाऊँगा टिफिन में रख दो। मैंने पूछा क्यों तो कहने लगे कि भूख नहीं है पेट भरा भरा सा लग रहा है। मैंने भी सोचा ठीक ही है जब भूख लगे तब खाना चाहिए फिर खाना साथ रहेगा तो कहीं भी गाड़ी रोककर खा सकते हैं।

दूध दे दूँ मैंने पूछा तो उसके लिए भी मना कर दिया केले खा लो।

साथ में रख दो मैं बाद में खा लूँगा। मैंने भी जिद नहीं की रात में खाना खाने के बाद तुरंत सो गये थे शायद इसीलिए पेट साफ नहीं हुआ है।

आफिस के लिए निकलते समय उन्होंने एक बार सीने को दबाया मैंने पूछा क्या हुआ सीना दुख रहा है क्या? चिरपरिचित जवाब मिला नहीं कुछ नहीं और बात आई गई हो गई।

बहुत दिनों से एक लेख लिखने का सोच रही थी पतिदेव के जाने के बाद वहीं सोफे पर बैठ गई और लेख लिख डाला। जब खत्म किया तब तक सवा डेढ़ घंटे बीत गये थे। कितनी देर हो गई ये मुआ मोबाइल भी बहुत समय खाता है अब एक घंटे इसे हाथ नहीं लगाऊँगी सोचते हुए मोबाइल वहीं सोफे पर पटका और अपने काम निपटाने लगी।

खाना खाते हुए वेबसीरीज के एक दो एपिसोड देखने की आदत सी लग गई है तो मैं प्लेट लेकर टीवी के सामने जम गई इस तसल्ली के साथ कि मोबाइल तो हाथ में नहीं है। खाना खत्म हुआ एपिसोड के खत्म होने का इंतजार करते प्लेट हाथ में लिये बैठी रही। प्लेट किचन में रखकर आई तब मन फिर ललचाया कि एक बार मोबाइल पर नजर डाल लूँ। मोबाइल में पतिदेव के दो मिस काल थे जिन्हें देख कर चौंक गई। आज तो बैंक का कोई काम भी नहीं था फिर दोपहर के इस समय फोन क्यों किया होगा? तुंरत काल बैक किया हाँ क्या हुआ? फोन करते कतई अंदाजा नहीं था कि कोई बहुत नई बहुत भौंचक करने वाली बात सुनने को मिलेगी। कहाँ हो तुम?

घर पर, घर पर ही रहती हूँ कहाँ जाती हूँ। झुंझलाहट सी हुई।

अच्छा सुनो मुझे जरा चेस्ट में पेन हो रहा था मैं बाम्बे हास्पिटल आया हूँ ईसीजी करवाने।

क्या कहा क्या सुना है मैंने क्या ठीक सुना है या शायद ठीक से समझा नहीं है दो पांच या दस सेकेंड के लिए दिमाग सुन्न सा हो गया। ऐसी कोई खबर ऐसी किसी बात के लिये दिन में फोन आयेगा कभी सोचा ही कहाँ था? अच्छा मैं अभी आती हूँ कहाँ हो तुम?

हाँ आराम से आना घबराने की कोई बात नहीं है।

हास्पिटल आना है और घबराने की बात नहीं है। क्या करूँ कपड़े बदलूँ नहीं अलमारी में से पैसे निकालूँ पता नहीं कहाँ कैसी जरूरत पड जाये गाड़ी की चाबी पर्स मोबाइल ओह गाड़ी भी तो गंदी पड़ी है कितनी धूल जमी है क्या करूँ गाड़ी साफ करने का समय नहीं है। सामने एक मकान बन रहा है दिन भर धूल सीमेंट उड़ती है गाड़ी धोवो दूसरे दिन गंदी। उन लोगों से कहा भैया अगर पानी हो तो जरा पाइप से पानी डाल दो गाड़ी पर। ताला लगाकर नीचे आई तब तक वे लोग खड़े थे गाड़ी से कपड़ा निकाला और धूल झाड़ने लगी तब तक एक लड़के ने कहा मैडम हम डाल देते हैं पानी। विंड स्क्रीन पर पानी डालकर गाड़ी स्टार्ट की। हास्पिटल में पार्किंग की जगह ही नहीं थी। आगे बढ़ते बढ़ते गाड़ी हास्पिटल परिसर से बाहर निकल गई और पीछे की सड़क के किनारे पार्क की। वहाँ से लगभग भागते हुए अंदर पहुँची फिर फोन लगाया पतिदेव ने कहा हाँ ऊपर आ जाओ फोर्थ फ्लोर पर आईसीयू में।

आईसीयू!!!!

दिल की धड़कने यह सुनते ही और तेज हो गईं। भागते दौड़ते आईसीयू में पहुँची वहाँ के तीन-चार दरवाजे वाले गलियारे पार करके अंदर बिस्तर पर पतिदेव को लेटे पाया। सीने पर नलियाँ लगी थीं बगल में मानिटर पींपीं कर रहा था। जिस इंसान को पिछले इकतीस साल से हमेशा भागते दौड़ते देखा हो उसे इस तरह मानिटर और नलियों से घिरे आईसीयू में लेटे देखकर सदमे सी स्थिति हो गई मेरी।

वहाँ एक डॉक्टर थे उन्होंने बताया कि माइनर अटैक आया था इसलिए अभी मानिटरिंग में रखना पडे़गा कल एंजियोग्राफी करेंगे। अभी आप काउंटर पर जाकर एडमिशन बनवा लाइये फिर उस पर सीएमओ के दस्तखत करवा लाइये। यह जल्दी करवा लीजिये ताकि इलाज शुरू हो सके।

क्या कहा गया क्या करना है कुछ समझते कुछ न समझते मैं जाने को हुई तब तक पतिदेव ने कहा पैसे चाहिए क्या यह लो और अपनी जेब से पैसे निकालने लगे।

पैसे हैं मेरे पास लेकिन तब तक पैसे मोबाइल चाबियाँ न जाने क्या क्या बाहर आ गया। सब कुछ अपने पर्स में ठूंस कर मैं फिर नीचे भागी। काउंटर पर पैसे जमा करने के साथ सीएमओ आफिस के बाहर अपनी बारी आने का इंतजार। उसे लेकर फिर आईसीयू में आई तब उन्होंने एक छोटी सी चिट पकड़ा दी जिस पर एक नंबर लिखा था। आप मेडिकल स्टोर से ये दवाइयाँ ले आइये। मेडिकल स्टोर पर जाते हुए देखा कि एक गाड़ी बीच में खड़ी है। वहाँ खड़े गार्ड एक दूसरे से पूछ रहे हैं कि किसकी गाड़ी है कब से खड़ी है। दो तीन बार अनाउंसमेंट करवा दिया लेकिन कोई नहीं आया। ये बातें कान में पडने के बाद मैंने गाड़ी को ध्यान से देखा। अरे ये तो सरकारी गाड़ी है नंबर तो याद नहीं रहता लेकिन रजिस्ट्रेशन इंदौर के बाहर का है मतलब पतिदेव की गाड़ी। गार्ड ने बताया कि एक साहब खुद ही गाड़ी चला कर आये थे बहुत देर से खड़ी है एंबुलेंस लाने में दिक्कत आ रही है।

हाँ भैया उन्हें अटैक आया है वे आईसीयू में हैं मैं अभी हटवाती हूँ गाड़ी पहले दवाइयाँ दे आऊं। मैडम थोड़ा जल्दी करिये यहाँ दिक्कत हो रही है।

दिक्कत तो हो ही रही होगी लेकिन दवाइयाँ भी तो जरूरी हैं मैं मेडिकल स्टोर पर भागी। एक नंबर पर ढेर सारी दवाइयाँ थीं क्या क्या लिखा है क्या नहीं नहीं पता। दवाइयाँ देकर वापस नीचे आई और गार्ड से कहा भैया आप हटा देंगे क्या गाड़ी? मैंने कई बार कहा लेकिन कभी टीयूवी चलाने नहीं दी और अब इस समय तो कम से कम पहली बार नहीं चला सकती। गार्ड भी गाड़ी नहीं चला सकता था वह किसी को ढूंढने चला गया। अब तक मैंने किसी को नहीं बताया था कि क्या हुआ है क्या हो रहा है और मैं अकेले इस तनाव के साथ अब थकने लगी थी अकेलापन मुझ पर हावी होने लगा था और अब मुझे किसी बेहद अपने के साथ अपने तनाव अपनी चिंताओं को साझा करने की सख्त जरूरत थी। लेकिन यह गाड़ी बीच में खड़ी है इमर्जेंसी एंबुलेंस के रास्ते में। मैंने पास में खड़े एक व्यक्ति से कहा एक्सक्यूज मी क्या आप यह गाड़ी चला सकते हैं? फिर मैंने दो तीन वाक्यों में पूरी कहानी सुनाई। वह थोड़ा झिझका और बोला गार्ड को बोल दीजिये। उसे गाड़ी चलाना नहीं आता। पांच सेकेंड सोचने के बाद उसने चाबी के लिए हाथ बढ़ाया। चाबी दे तो दी लेकिन क्या इस तरह किसी अजनबी को चाबी देना ठीक है? अभी एक परेशानी सामने है दूसरी के लिए कोई जगह नहीं है तो मैं भी जल्दी से उसके साथ गई और गाड़ी का दरवाजा खोल कर दूसरी तरफ बैठ गई। मुझे पता रहेगा कि गाड़ी कहाँ लगी है। शुक्र है थोड़े आगे ही जगह मिल गई और गाड़ी लगा दी।

अब समय था अपने तनाव को मैनेज करना। पापाजी मम्मी को बताते हुए खुद को संयमित रखना जरूरी है इसलिए उन्हें सबसे पहले नहीं बताया जा सकता इसलिए सबसे पहला फोन किया बेटी मानसी को। जैसे ही उसे बताया मुझे जोर से रोना आ गया और मानसी को भी। नहीं अभी मैं कमजोर नहीं पड सकती नहीं तो बच्चे जीवन में किसी स्थिति में कमजोर हो जाएंगे। उन्हें खुद को मजबूत रखना तभी संभव होगा जब वे मुझे मजबूत देखेंगे। मैंने जल्दी ही अपने आप पर काबू किया और मानसी को भी समझाया कि रोओ मत। हमारे मोबाइल में नेट वाउचर खत्म हो गया है वह डलवा दो कभी जरूरत पडे तो। थोड़ी देर बेटी से बात करके उसे समझा कर खुद को संभाल कर पापाजी को फोन लगाया। रोकते रोकते भी रोना आ गया। सुनकर पापाजी भी घबरा गये हम अभी आते हैं। नहीं अभी आप मत आओ अभी तो यहाँ सिर्फ बैठना है कल एंजियोग्राफी होगी तब आप सुबह आ जाना। कोई भी बात हो तो तुरंत बताना हम आ जाएंगे इस आश्वासन पर बात खत्म हुई। इसके बाद मैं ऊपर आईसीयू के बाहर बने वेटिंग हाॅल में आकर बैठ गई।

कविता वर्मा

#बायपास #minor_attack #bypass 

4 comments:

  1. पढ़ते पढ़ते रोंगटे खड़े हो गए। सब कुछ सजीव कर दिया आपने। बहुत हिम्मत चाहिए ऐसे समय में..!

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  2. ५ नवम्बर को लिखा है आपने। आशा है अब सब ठीक हो गया होगा। हिम्मत रखनी ही पड़ती है। ख्याल रखें। हम चिट्ठकार साथी प्रार्थना कर सकते हैं। शुभकामनाएं। शीघ्र स्वस्थ हों।

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  3. प्रभु से प्रार्थना है कि सब कुछ ठीक हो जाए, ऐसे नाज़ुक वक़्त में हिम्मत रखना अहम होता है। जीवंत सशक्त लेखनी।

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  4. उम्मीद है आपके पति स्वस्थ्य होकर घर आ गए होंगे। मुश्किल समय में हिम्मत और धैर्य नहीं खोना चाहिए, आपसे सबक़ भी मिला। शुभकामनाएँ।

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