उन आठ दिनों की डायरी 3
6 नवंबर 2020
सुबह जल्दी ही आँख खुल गई उठते ही पहला विचार आया हास्पिटल। जल्दी से तैयार हुई आज एंजियोग्राफी होना है पता नहीं क्या निकलेगा बस सब ठीक हो कोई बड़ी बात न हो। होना तो नहीं चाहिये अभी चार दिन पहले तक तो खेलते रहे टूर पर गये अचानक इतनी बड़ी कोई बात तो नहीं हो सकती। शायद ज्यादा भागदौड़ के कारण एक झटका सा लगा था। उम्मीद है कि सब ठीक हो।
हास्पिटल पहुँची तभी पापाजी का फोन आ गया वे लोग भी बस पहुंचने वाले थे। आईसीयू में जाकर मिलकर आई सब ठीक था। पतिदेव ने बच्चों के बारे में पूछा मैंने कहा बड़ी बिटिया को बता दिया है छोटी का सब्मिशन है दो दिन बाद इसलिए अभी उसे नहीं बताया है।
फैमिली ग्रुप पर कोई डाल देगा तो वो परेशान हो जायेगी।
कोई नहीं डालेगा सबको मना कर दिया है।
उनसे बात करते हुए मेरी नजर लगातार मानिटर पर थी। बेटियों की बात करते मानिटर जरा सा कांप जाता। इंश्योरेंस एजेंट को फोन कर देना इस नाम से नंबर है आफिस में बात हुई क्या।
तमाम चिंताएँ आईसीयू में भी पीछा नहीं छोड रही थीं या कहें कि वो खुद इन चिंताओं को नहीं छोड़ पा रहे थे। सब हो गया सबको बता दिया। मैं सबके फोन अटैंड कर रही हूँ अब तुम किसी बात के बारे में मत सोचो।
डाक्टर को आने में समय था गार्ड ने बताया कि ग्यारह बजे तक आएंगे। बाहर आई तब तक मम्मी पापा और भाई आ चुके थे। एक दिन पहले की ईसीजी रिपोर्ट की फोटो लेकर भाभी को भिजवाई उनकी बहन हार्ट सर्जन हैं। दवाइयों के नाम पहले ही भेज चुकी थी। सब कुछ अच्छा होते हुए भी मन कांपता है किसी अपने को अनजान हाथों में सौंप कर। आजकल इतनी बातें सुनने को मिलती हैं कि अगर किसी अपने का ओपिनियन मिल सके तो उसे लेना आवश्यक हो जाता है।
देर तक इंतजार के बाद डाक्टर आये एंजियोग्राफी के लिए ले जाने से पहले पतिदेव को सभी से मिलवाया अब बाहर बैठ कर बस इंतजार करना था। यदि स्टेंट लगाना है तो तुरंत फैसला करना होगा और ऐसे फैसलों में परिवार के लोगों का साथ होना आवश्यक होता है। करीब आधे घंटे बाद ही अंदर बुलाया गया। दिल की धड़कनें बेकाबू थीं सब ठीक हो कोई बड़ी बात न हो की प्रार्थना मन में चल रही थी।
डाक्टर ने कंप्यूटर के पास बुलाया और बताया कि ये देखिये तीनों आर्टरी सिकुड़ गई हैं। बायपास ही एक आप्शन है। मैं अगर चाहता तो दो आर्टरी में स्टेंट डालने का कह सकता था लेकिन उनकी लाइफ कम होती है और मैं बायपास नहीं करता लेकिन फिर भी आपको सलाह दूंगा कि आप बायपास ही करवाएं वही बेस्ट है। बायपास आप कहीं से भी करवा सकते हैं यहाँ बाम्बे हास्पिटल में सीएचएल या मेदांता में कहीं भी। पतिदेव को फिर आईसीयू में ले जा चुके थे और हम सभी हतप्रभ से खड़े थे। कल तक भागदौड़ करते व्यक्ति की तीनों आर्टरी सिकुड़ी हुई हैं जिनमें से एक तो नब्बे प्रतिशत तक बंद है तो अब तक वो इतनी भागदौड़ कर कैसे रहे थे?
हम लोग बाहर आकर बैठ गये किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था। एंजियोग्राफी की सीडी ले लो वो भाभी को भिजवाते हैं। उसके बाद देखते हैं क्या करना है।
सुबह से नाश्ता भी नहीं किया था सिर फट रहा था लेकिन खाने की इच्छा मर गई थी। एकदम बायपास मतलब जीवन सिर के बल औंधा हो जाना। ढेर सारे बंधन ये करो ये न करो क्या ऐसा जीवन जी सकते हैं? कभी सोचा नहीं इस बारे में। छह साल पहले जब मुझे स्लिप डिस्क हुआ था तब डाक्टर ने कहा था कुछ समय गाड़ी मत चलाना और मैंने डरते हुए पूछा था गाड़ी चला तो पाऊंगी न मैं।
पतिदेव ने तो कभी किसी चीज को न कहा ही नहीं। खैर अभी यह सब सोचने का समय नहीं है अभी तो सेहत और खास कर दिल की सेहत देखना है और बायपास जैसा फैसला लेना है।
दोपहर बाद हमें सीडी मिल गई। शाम को मम्मी पापा को भी घर भेज दिया वे भी दिन भर में थक गये थे। भाई साथ ही था। आफिस वालों के फोन लगातार आ रहे थे बिटिया की चिंता बनी हुई थी।
आसपास बहुत सारे लोगों की हलचल थी। एक परिवार अपने घर के बुजुर्ग को लेकर आया था तो एक महिला अपनी बेटी को लेकर आई थी जिसका टायफाइड बिगड़ गया था। वह एक महीने से वहाँ थी।
देर शाम पतिदेव ने अंदर बुलवाया। एंजियोग्राफी की रिपोर्ट की फोटो ली और उनसे कुछ देर बात करके मैं घर चली गई।
कविता वर्मा
#बायपास #bypass #angiography
बहुत ही भयावह होती है ऐसी स्तिथि। हाथों के तोते उड़ जाते हैं। पर यह क्षणिक होता है। बहुत जल्दी हमारे भीतर छिपी हुई शक्ति कमान संभाल लेती है और हम पूर्ण रूपसे सज्ज हो जाते हैं।
ReplyDeleteअगली कड़ी की प्रतीक्ष।
बहुत मार्मिक
ReplyDeleteदुःखद समय बीता। आपने हौसला बनाए रखा, बड़ी बात है।
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