Tuesday, May 8, 2018

छोटी सी जिम्मेदारी

कुछ समय पहले घर के पास एक खंबे पर बड़ा सा हैलोजन लगा है। एक दिन दोपहर में बाहर जाते समय देखा हैलोजन चालू था।(मेरे घर के सामने बड़ा सा नीम का पेड़ है इसलिए न सड़क दिखती है न लाइट।) थोड़ा ध्यान से देखा तो पाया कि डायरेक्टर तार जोड़ कर चालू कर दिया गया है और वह दिन रात जल रहा है।
दूसरे दिन आसपास देख कर उसका फोटो खींच लिया। (कोई फोटो खींचते देख लेता और शिकायत करने पर वह बंद हो जाता तो मोहल्ले में मेरे नाम के कसीदे पढे जाते।)
कल नगर निगम के एप पर उसकी शिकायत कर दी। आज दिन में फोन आया मैडम कौन-सी लाइट चालू करना है?
मैंने बताया भैया चालू नहीं करना बंद करना है दिन रात जल रही है उसकी व्यवस्था करो।
शाम को फिर फोन आया मैडम उसे स्ट्रीट लाइट फीडर पर डाल दिया है और टाइमर लगा दिया है। अब सुबह बंद हो जायेगा शाम को चालू हो जायेगा।
बात छोटी सी है आसपास रहने वाले सभी लोगों को दिख रहा था लेकिन किसी ने उसकी व्यवस्था करवाने के लिए नहीं सोचा क्योंकि उसका बिल उनके यहाँ नहीं आ रहा था। लोग यह क्यों नहीं समझते कि जब बिजली के खपत के मुताबिक बिल वसूली नहीं होती वह कमर्शियल लाॅस कहलाता है और इसलिए बिजली के दाम बढ़ते हैं।
कविता वर्मा 

8 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, जीवन का गणित - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 10 मई 2018 को प्रकाशनार्थ 1028 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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  3. सही कहा आपने, अधिकतर; तो हमें क्या सोच आगे बढ़ लेते हैं ! जागरूकता सभी में आ जाए तो दसियों दिक्कतें अपने-आप ख़त्म हो जाएं।

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  4. बहुत अच्छा किया , प्रसंसनीय |

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  5. वर्तमान समय मे कम लोग ही रह गए हैं जो भविष्य का या उन मुद्दों का सोचे जिसमे सबका नुकसान या सबकी भलाई हो,बस खुद को दिक्कत न आनी चाहिए भले ही कोई सार्वजनिक परेशानी कल व्यक्तिगत होने वाली हो लोग व्यक्तिगत स्तर पर परेशान होक ही कदम उठाना फायदे की बात समझते हैं,कविता जी आपको शुभकामनाये आप इन सोचों से भिन्न सोच रखती हैं

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  6. अच्छी सोच है...जागरूकता हर इंसान की जरूरत है पर कोई जागरूक या ये काम करने को तैयार नहीं।
    सीख देता हुआ साहित्य सृजन।

    डिरेक्टर शब्द की जगह शायद डायरेक्ट शब्द आवे.

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