माथुर साहब बड़े सुलझे हुए आदमी है ।जीवन की संध्या में वे आगे की सोच रखते हैं । इसलिए उन्होंने उनके बाद उनके मकान के बंटवारे के लिए अपने दोनों बेटों और बेटी को बुला कर बात करने की सोची ताकि उनके दिल में क्या है ये जान सकें ।
बेटों ने सुनते ही कहा पापा आप जो भी निर्णय करेंगे हमें मंजूर होगा । लेकिन बेटी ने सुनते ही कहा हाँ पापा मुझे इस मकान में हिस्सा चाहिए ।माथुर साहब और उनके दोनों बेटे चौंक गए । माथुर साहब की बेटी की शादी बहुत बड़े घर में हुई थी । उसके लिए उनके मकान का हिस्सा बहुत मायने नहीं रखता था । फिर भी उसकी हिस्से की चाह? स्वाभाविक था एक कडवाहट सी उनके मुंह में घुल गयी । साथ ही ये ख्याल आते ही उनकी नज़रें झुक गयीं की उनकी तथाकथित प्रगतिशीलता बेटी के हिस्सा माँगते ही बगलें झांकने लगी थी।
फिर भी प्रकट में उन्होंने कहा हाँ बेटी बता तुझे इस मकान में कौन सा हिस्सा चाहिए?
पापा मुझे इस मकान का सबसे बड़ा हिस्सा चाहिए । आप अपनी वसीयत में लिखियेगा की मेरी पूरी जिंदगी इस घर के दरवाजे मेरे लिए हमेशा खुले रहें ।
माथुर साहब मुस्कुरा दिए और दोनों भाइयों ने बहन को गले लगा लिया । जरूर बहना तेरा ये हिस्सा हमेशा बना रहेगा । अब बंटवारे की जरूरत नहीं थी ।
कविता वर्मा
बहुत सुन्दर और प्रेरक कहानी...काश यह भाव आज सभी बच्चों में होता...
ReplyDeleteकाश यही सोच जिंदा रहे, बहन बेटी को यही हिस्सा तो चाहिये जिसकी वो आजन्म ख्वाहिश रखती है, बहुत सुंदर बोध कथा जैसी.
ReplyDeleteरामराम.
आंख खोलने वाली पोस्ट
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बहुत उम्दा प्रेरक प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteबहुत सुंदर लघु कथा ।
ReplyDeleteप्रेरणादायक, शायद इस लघुकथा से कुछ लोगों को सीख मिले।
ReplyDeleteसहमत हुई आपकी इस बात से .....
Deleteबेटी ने तो बड़प्पन दिखाया,पर ये बात दुखी कर गयी जब उसने हिस्से की इक्क्षा दर्शया तो भाई-बाप उद्वेलित हो गए.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रेरक लघुकथा
ReplyDeleteभावनात्मक प्रेरक कहने ... असल में तो सब कुछ प्रेम ही है ..
ReplyDelete:)
ReplyDeleteबेटी अभी भी उपेक्षित है । हम केवल विचार मात्र से प्रगति-शील हैं, जब घर या खेत के बटवारे की बात उठती है तो बेटी निगाह में खटकने लगती है । उस पर दबाव डाला जाता है कि वह चुपचाप " मुझे कुछ नहीं चाहिए" के पेपर पर हस्ताक्षर कर दे । इसी विसंगति के कारण बेटी आज भी पैतृक सम्पत्ति से वञ्चित है ।
ReplyDeleteबेटी /बहन सदा दबाव में ही रहती है ,
ReplyDeleteमाता - पिता के बाद यदि भाइयों में झगड़ा हो जायें और बहन एक भाई के जायें तो दूसरा नाराज और दूसरे के जाएं तो पहला नाराज !
फिर उसके बच्चों की शादी में मायरे का संकट दिखने लगता है । भाई ना आयें तो ससुराल में संकट !
यही सब बातैं सोच कर बहन मजबूरी में पिता की सम्पत्ति से कुछ नही लेने का ही फैसला करती है !
प्रेरक प्रसंग की बधाई !
love overcomes all
ReplyDeleteआपने लघु कथा हिस्सा के माध्यम से भारतीय परम्परा में रचे बसे भाई बहन के रिश्ते को उजागर किया आभार .....
ReplyDeleteसुंदर......पर बहने होती ही ऐसी है
ReplyDeleteye kahani kya haqikat hai,koi ladki nahi chahti hissa..par mayke me maa-bap ke bad n pucha jay to.....
ReplyDeleteवाह ...
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteUpto date
ReplyDeleteबेहतरीन
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