Thursday, July 25, 2013

ऑनरकिलिंग

बेटी के शव को पथराई आँखों से देखते रहे वह.बेटी के सिर पर किसी का हाथ देख चौंक कर नज़रें उठाई तो देखा वह था. लोगों में खुसुर पुसुर शुरू हो गयी कुछ मुठ्ठियाँ भींचने लगीं इसकी यहाँ आने की हिम्मत कैसे हुई. ये देख कर वह कुछ सतर्क हुए आगे बढ़ते लोगों को हाथ के इशारे से रोका और उठ खड़े हुए. वह चुपचाप एक किनारे हो गया.
तभी अचानक उन्हें कुछ याद आया और वह अन्दर कमरे में चले गए. बेटी की मुस्कुराती तस्वीर को देखते दराज़ से वह कागज़ निकाला और आँखों को पोंछ पढने लगे. पापा मै ऐसे अकेले विदा नहीं लेना चाहती थी. बिटिया की आँखों में उन्हें आंसू झिलमिलाते नज़र आये.
चिता पर बिटिया को देख उनकी आँखे भर आयीं उसे इशारा कर उन्होंने अपने पास बुलाया और जेब से सिन्दूर की डिबिया निकाल कर उसकी ओर बढ़ा दी. हतप्रभ से डबडबाई आँखों से उसने डब्बी लेकर उसकी मांग में सिन्दूर भरा और रोते हुए उसके चेहरे पर झुक कर उसका माथा चूम लिया. उन्होंने जलती लकड़ी उसे थमा दी और बिटिया से माफ़ी मांगते हुए उसके सिरहाने वह कागज़ रख दिया. जलते हुए कागज़ के साथ उन्होंने ऊँची जाती का अभिमान भी जला डाला था.
 कविता वर्मा 

16 comments:

  1. kash yesab jindgi rahte hoti,samaz ka dhancha ab badal raha....gile man se padhnewali katha....

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  2. बहुत ही मार्मिक, पर वर्तमान परिपेक्ष्य में आनर किलिंग अभिशाप ही है.

    रामराम.

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  3. उफ़ ! काश ये बात कुछ लोग पहले ही समझ लें तो ये दिन ना देखना पडे।

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  4. आपने इतने कम शब्दो में इतना कुछ कह दिया....बहुत सजीव दृश्य प्रस्तुत कर दिया आपने....बस इस तरह की त्रासदियां देश में खत्म हो जाए......

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  5. बहुत मार्मिक....कुछ शब्दों में बहुत कुछ कह दिया...

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  6. सच में बहुत मार्मिक.....

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  7. आपकी आशाये पूर्ण हों ...

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  8. मार्मिक ...
    सही समय में संभल जाना ही ठीक है ...

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  9. बहुत ही मार्मिक..आप मेरे ब्लांग में आई आप का बहुत बहुत आभार..

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  10. कहानी दिल को छू गयी
    कम शब्दों ने भी बहुत कुछ कह दिया
    सुन्दर पोस्ट / बधाई
    आभार

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  11. कहीं भीतर कुछ लग गया इसे पढ़कर ... देश में अब भी यही होता है न .. बहुत ही संवेदिनशील पोस्ट .

    दिल से बधाई स्वीकार करे.

    विजय कुमार
    मेरे कहानी का ब्लॉग है : storiesbyvijay.blogspot.com

    मेरी कविताओ का ब्लॉग है : poemsofvijay.blogspot.com

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